यात्रा करके आज
पहुंची है स्त्री यह
कहने की स्थिति में
''मैं भी एक अलग व्यक्तित्व हूँ ''
मेरा भी समाज में अलग अस्तित्व है .
मनु ने पिता ,पति
पुत्र की दीवारों में
किया कैद स्त्री को ,
पुत्री,पत्नी ,माता और
बहन के रूप में सर्वस्व
न्यौछावर करती हुई
अबला बना दी गयी
''नर की शक्ति नारी ''
केवल देह मान ली गयी
और पुरुष ने घोषणा की
''नारी मेरी संपत्ति है ''
कभी मर्यादा व् लोकरंजन के नाम पर
वन-वन भटकाई गयी ,
कभी जुए में दाव पर लगा दी गयी
नारी की अस्मिता ;
फिर कैसे विश्वास करें
की भारतीय संस्कृति में
सम्मानित स्थान दिया गया
है स्त्री को ?
ये ठीक है कि
आज भी नारी देह का
शोषण जारी है ;
आज भी नर नारी को मानता है
अपनी दासी
लेकिन खुल चुकी हैं
कुछ खिड़कियाँ
पितृ- सत्तात्मकता की
मजबूत दीवारों में ,
जहाँ से झांक कर स्त्री कर रही
है ऐलान
''मैं भी एक अलग व्यक्तित्व हूँ ''
मेरा भी समाज में पृथक
अस्तित्व है .
शिखा कौशिक
shikhajee,bahut achcha likhi hain.....
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