इतिहास कुछ कहना चाहता है ...
जब नीतियाँ ही आम लोगो के खिलाफ बनेगी तो आम आदमी क्या करेगा ? सिंगल ब्रांड रिटेल
और मल्टी ब्रांड रिटेल के लिए रास्ता खोलकर सरकार करोडो भारतीयों को बेरोजगारी के
खप्पर में होम देना चाहती है .
विदेशी आका अपने देश में ख़त्म हो चुकी मांग को हमारे से वसूल करना चाहते हैं ,और नीति
तय करने वाले उनके लिए रास्ते बना रहे हैं ?क्या इसी स्वराज्य के लिए सुभाष,भगत,आजाद
कुर्बान हुए थे ? एक गांधी की आवाज पर हमारे बाप -दादाओ ने विदेशी सामान का बहिष्कार
किया था ,होली जला दी थी विदेशी सामान की विदेशी सरकार के सामने .अब हमारी ही चुनी
हुयी सरकार यदि देशवासियों के अहित में विदेशी लोगो को हर क्षेत्र में आमंत्रित करेगी तो हम चुपचाप सहन करते रहेंगे ?
हमें संगठित होकर लड़ना ही पडेगा ,विदेशी दुकानों को हम अपनी जमीं क्यों दे ? उनका धंधा
चमकाने में हम कंगाल क्यों हो जाए ?क्यों ख़रीदे उन दुकानों से सामान ?हम भारतीयों को
उनका बहिष्कार करना होगा.यदि उनसे हम सामान खरीदेंगे ,उन्हें प्रोत्साहित करेंगे तभी तो
वो यहाँ टिक पायेंगे .हम क्यों अपनी और आने वाली पीढ़ी की कब्र अपने ही हाथों से तैयार
करेंगे ?
क्या हमारे में कुशलता की कमी है?क्या हमारे में बुध्धि की कमी है ?यदि नहीं तो फिर क्यों
सहन करे ?
सरकार यदि जनहित में नहीं है तो कोई बात नहीं ,हमें कसम लेनी होगी की हम किसी भी
विदेशी दूकान से सामान नहीं खरीदेंगे ?यह कसम विदेशी ताकतों की आँखे खोल देगी .हमारे
नीति निर्माता भी हमारे असहयोग के आगे झुक जायेंगे .
याद कीजिये गांधी के सपने को -"देश में कुटीर उद्योग विकसित हो ? हर हाथ को काम मिले ?"
हमें आने वाली पीढ़ियों की तगदीर मनरेगा के अकुशल श्रमिक के रूप में नहीं लिखनी है ,
हमें अपने भविष्य को सुदृढ़ करना होगा ?हमें इस काबिल बनना होगा की विदेशी हमारा सामान
ख़रीदे .विश्व के विकसित देश अपने देश में फैल रही मंदी से भयभीत हैं वे लोग अविकसित और विकाशशील देशों पर डोरे डाल रहे हैं ,अपना माल इन देशो में खपाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं .माना कि हम गरीब हैं लेकिन हम कामचोर और आलसी तो नहीं हैं ?हम भले ही
ज्यादा पढ़े -लिखे नहीं हैं मगर हम मूढ़ और बेवकूफ भी नहीं है.हम अपना भला बुरा जानते हैं .
यदि भारतीय जातिवाद,भेदभाव भूलकर संगठित होकर नहीं रहेंगे तो हम आर्थिक गुलामी की
और बढ़ते जायेंगे ?हमें जागना होगा.आज संकट करोडो लोगो की रोजी रोटी का है ?आज भले
ही हम कुछ सामान महंगा खरीद रहे होंगे लेकिन हमें याद रखना होगा की इससे किसी
निर्धन भारतीय के घर का चुल्हा जलता है.विदेशी दुकाने हमें सस्ती चीजें उपलब्ध करा सकती
है ,मगर वे सस्ती लायेंगें कहाँ से? हमारे से ही कच्चा माल सस्ता लेगी ,तब हम कहाँ जायेंगे ?
विदेशी दुकाने कोई सेवा करने नहीं आ रही है हमारे देश में ,वे लोग हमें ही चूस कर हमारा धन
अपने देश में ले जाने आ रहे हैं ?
हमें जागरूक रहना होगा ,यह हर भारतीय का पावन कर्तव्य है की वह दुसरे हर भारतीय को
चेताये सजग करे ,आने वाले खतरे का अहसास कराये .यह काम हम हिन्दू,मुस्लिम,दलित
बनकर नहीं कर सकेंगे ,हमें भारतीय बनना होगा ,मन से और कर्म से .
आर्थिक उदारीकरण की नीतियाँ सम्पूर्ण भारत के लिए बढ़िया नहीं है ,नहीं है. हमें ३२/-वाला
धनी नहीं बनना है .हमें छोटे दुकानदारों के हित की रक्षा करनी पड़ेगी क्योंकि उन करोडो
दुकानदारों के पीछे करोडो परिवार पल रहे हैं ,करोडो सपने सच हो रहे हैं ,कुसुमित हो रहे हैं.
क्या हम विदेशी दुकानों से खरीदी के लालच को नहीं रोककर उनको त्राहि-त्राहि करते देखना
चाहते हैं ?
फैसला हमारे हाथ में है ?फैसला मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के लोगो को करना है क्योंकि
सबसे बड़ा बाजार इन्ही के हाथ में है.यदि ये वर्ग सही दिशा में सोचेगा तो विदेशी दुकाने शटर
खुद ही बंद कर देगी ,और बिस्तर पोटले लेकर भारत को अलविदा कह देगी .
लेकिन हम ऐसा करेंगे नहीं क्योंकि हम राष्ट्र हित को प्राथमिकता नहीं दे रहे हैं .शायद यही
हमारी विडम्बना है ,जिसके कारण हम सदियों तक गुलाम रहे हैं .हम घर का जोगी जोगना
बाहर गाँव का सिदध वाली कहावत चरितार्थ करते रहे हैं .
हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी ,यह समय की मांग है .......
और मल्टी ब्रांड रिटेल के लिए रास्ता खोलकर सरकार करोडो भारतीयों को बेरोजगारी के
खप्पर में होम देना चाहती है .
विदेशी आका अपने देश में ख़त्म हो चुकी मांग को हमारे से वसूल करना चाहते हैं ,और नीति
तय करने वाले उनके लिए रास्ते बना रहे हैं ?क्या इसी स्वराज्य के लिए सुभाष,भगत,आजाद
कुर्बान हुए थे ? एक गांधी की आवाज पर हमारे बाप -दादाओ ने विदेशी सामान का बहिष्कार
किया था ,होली जला दी थी विदेशी सामान की विदेशी सरकार के सामने .अब हमारी ही चुनी
हुयी सरकार यदि देशवासियों के अहित में विदेशी लोगो को हर क्षेत्र में आमंत्रित करेगी तो हम चुपचाप सहन करते रहेंगे ?
हमें संगठित होकर लड़ना ही पडेगा ,विदेशी दुकानों को हम अपनी जमीं क्यों दे ? उनका धंधा
चमकाने में हम कंगाल क्यों हो जाए ?क्यों ख़रीदे उन दुकानों से सामान ?हम भारतीयों को
उनका बहिष्कार करना होगा.यदि उनसे हम सामान खरीदेंगे ,उन्हें प्रोत्साहित करेंगे तभी तो
वो यहाँ टिक पायेंगे .हम क्यों अपनी और आने वाली पीढ़ी की कब्र अपने ही हाथों से तैयार
करेंगे ?
क्या हमारे में कुशलता की कमी है?क्या हमारे में बुध्धि की कमी है ?यदि नहीं तो फिर क्यों
सहन करे ?
सरकार यदि जनहित में नहीं है तो कोई बात नहीं ,हमें कसम लेनी होगी की हम किसी भी
विदेशी दूकान से सामान नहीं खरीदेंगे ?यह कसम विदेशी ताकतों की आँखे खोल देगी .हमारे
नीति निर्माता भी हमारे असहयोग के आगे झुक जायेंगे .
याद कीजिये गांधी के सपने को -"देश में कुटीर उद्योग विकसित हो ? हर हाथ को काम मिले ?"
हमें आने वाली पीढ़ियों की तगदीर मनरेगा के अकुशल श्रमिक के रूप में नहीं लिखनी है ,
हमें अपने भविष्य को सुदृढ़ करना होगा ?हमें इस काबिल बनना होगा की विदेशी हमारा सामान
ख़रीदे .विश्व के विकसित देश अपने देश में फैल रही मंदी से भयभीत हैं वे लोग अविकसित और विकाशशील देशों पर डोरे डाल रहे हैं ,अपना माल इन देशो में खपाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं .माना कि हम गरीब हैं लेकिन हम कामचोर और आलसी तो नहीं हैं ?हम भले ही
ज्यादा पढ़े -लिखे नहीं हैं मगर हम मूढ़ और बेवकूफ भी नहीं है.हम अपना भला बुरा जानते हैं .
यदि भारतीय जातिवाद,भेदभाव भूलकर संगठित होकर नहीं रहेंगे तो हम आर्थिक गुलामी की
और बढ़ते जायेंगे ?हमें जागना होगा.आज संकट करोडो लोगो की रोजी रोटी का है ?आज भले
ही हम कुछ सामान महंगा खरीद रहे होंगे लेकिन हमें याद रखना होगा की इससे किसी
निर्धन भारतीय के घर का चुल्हा जलता है.विदेशी दुकाने हमें सस्ती चीजें उपलब्ध करा सकती
है ,मगर वे सस्ती लायेंगें कहाँ से? हमारे से ही कच्चा माल सस्ता लेगी ,तब हम कहाँ जायेंगे ?
विदेशी दुकाने कोई सेवा करने नहीं आ रही है हमारे देश में ,वे लोग हमें ही चूस कर हमारा धन
अपने देश में ले जाने आ रहे हैं ?
हमें जागरूक रहना होगा ,यह हर भारतीय का पावन कर्तव्य है की वह दुसरे हर भारतीय को
चेताये सजग करे ,आने वाले खतरे का अहसास कराये .यह काम हम हिन्दू,मुस्लिम,दलित
बनकर नहीं कर सकेंगे ,हमें भारतीय बनना होगा ,मन से और कर्म से .
आर्थिक उदारीकरण की नीतियाँ सम्पूर्ण भारत के लिए बढ़िया नहीं है ,नहीं है. हमें ३२/-वाला
धनी नहीं बनना है .हमें छोटे दुकानदारों के हित की रक्षा करनी पड़ेगी क्योंकि उन करोडो
दुकानदारों के पीछे करोडो परिवार पल रहे हैं ,करोडो सपने सच हो रहे हैं ,कुसुमित हो रहे हैं.
क्या हम विदेशी दुकानों से खरीदी के लालच को नहीं रोककर उनको त्राहि-त्राहि करते देखना
चाहते हैं ?
फैसला हमारे हाथ में है ?फैसला मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के लोगो को करना है क्योंकि
सबसे बड़ा बाजार इन्ही के हाथ में है.यदि ये वर्ग सही दिशा में सोचेगा तो विदेशी दुकाने शटर
खुद ही बंद कर देगी ,और बिस्तर पोटले लेकर भारत को अलविदा कह देगी .
लेकिन हम ऐसा करेंगे नहीं क्योंकि हम राष्ट्र हित को प्राथमिकता नहीं दे रहे हैं .शायद यही
हमारी विडम्बना है ,जिसके कारण हम सदियों तक गुलाम रहे हैं .हम घर का जोगी जोगना
बाहर गाँव का सिदध वाली कहावत चरितार्थ करते रहे हैं .
हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी ,यह समय की मांग है .......
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