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1952 में डॉ. योहाना ने ठंडी विधि से निकले अलसी के
तेल व पनीर के मिश्रण तथाकैंसर रोधी फलों व सब्जियों के साथ कैंसर रोगियों के
उपचार का तरीका विकसित किया, जो “बुडविज प्रोटोकोल” के नाम से विख्यात हुआ। इस उपचार से कैंसर
रोगियों को बहुत लाभ मिलने लगाथा। इस सरल, सुगम, सुलभउपचार से कैंसर के रोगी ठीक
हो रहे थे। इस उपचार से 90 प्रतिशत तक सफलता मिलती थी। नेता और नोबेल पुरस्कार
समिति के सभी सदस्य इन्हें नोबल पुरस्कार देना चाहते थे पर उन्हें डर था कि इस
उपचार के प्रचलित होने और मान्यता मिलने से 200 बिलियन डालर का कैंसर व्यवसाय (कीमोथेरेपी
और विकिरण चिकित्सा उपकरण बनाने वाले बहुराष्ट्रीय संस्थान) रातों रात धराशाही हो
जायेगा। इसलिए उन्हें कहा गया कि आपको कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी को भी अपने
उपचार में शामिल करना होगा। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक
नहीं सात बार ठुकराया।
वे 1952 से 2002
तक कैंसर के लाखों रोगियों का उपचार करती रहीं। वे कैंसर के ऐसे
रोगियों को, जिन्हें अस्पताल से यह कर छुट्टी दे दी जाती थी
कि अब उनका कोई इलाज संभव नहीं हैऔर उनके पास अब चंद घंटे या चंद दिन ही बचे हैं,
अपने उपचार से ठीक कर देती थीं।कैंसर के अलावा इस उपचार से डायबिटीज,
उच्च रक्तचाप, आर्थ्राइटिस, हृदयाघात, अस्थमा, डिप्रेशन आदि बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं।
115 पृष्ठ की इस ई-पुस्तक में डायबिटीज, कैंसर, अलसी, खुबानी, कलौंजी, कोएंजाइम क्यु-10, लैंगिक रोग का उपचार, अलसी के व्यंजन और अलसी खाने वाले लोगों के चमत्कारी अनुभव हैं।
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