2.12.11

मौत, तेरे कब्ज़े में । (गीत)





मौत, तेरे  कब्ज़े  में ।  (गीत)








कई  सवालों  के  घेरे  में,  आ  गया  हूँ  मैं ।

अय  मौत, तेरे  कब्ज़े  में, आ  गया  हूँ  मैं ।



अंतरा-१.



रास आ  गई  है, फाँकामस्ती  मुझे, अब तो ।

उसे  डपटने  के  लहज़े  में, आ  गया  हूँ  मैं ।

अय  मौत, तेरे  कब्ज़े   में,  आ  गया  हूँ  मैं ।



अंतरा-२.



पाँव   के  छाले,  मज़े   में   हैं, नंगे  हो  कर ।

लो,  काँटो   को  कुचलने  आ   गया  हूँ  मैं ।

अय  मौत, तेरे  कब्ज़े   में, आ  गया  हूँ  मैं ।



अंतरा-३.



ज़िंदगी  ने  कहा, `ड़र मत`, हरेक पल मुझे ।

फिर  भी   ऐतबार   कहाँ   कर  पाया  हूँ  मैं ?

अय   मौत, तेरे  कब्ज़े  में, आ  गया  हूँ  मैं ।



अंतरा-४.



सोचता  हूँ, ये  चोला  भी  उतार ही  दूँ , यहाँ ।

आने  पर - जाने  पर, क्या  ले  पाया  हूँ   मैं..!!

अय  मौत,  तेरे   कब्ज़े  में, आ  गया  हूँ  मैं ।



कई  सवालों  के  घेरे  में,  आ  गया  हूँ  मैं ।
अय  मौत, तेरे  कब्ज़े  में, आ  गया  हूँ  मैं ।


मार्कण्ड दवे । दिनांक-०२-१२-२०११.

No comments:

Post a Comment