मौत, तेरे कब्ज़े में । (गीत)
कई सवालों के घेरे में, आ गया हूँ मैं ।
अय मौत, तेरे कब्ज़े में, आ गया हूँ मैं ।
अंतरा-१.
रास आ गई है, फाँकामस्ती मुझे, अब तो ।
उसे डपटने के लहज़े में, आ गया हूँ मैं ।
अय मौत, तेरे कब्ज़े में, आ गया हूँ मैं ।
अंतरा-२.
पाँव के छाले, मज़े में हैं, नंगे हो कर ।
लो, काँटो को कुचलने आ गया हूँ मैं ।
अय मौत, तेरे कब्ज़े में, आ गया हूँ मैं ।
अंतरा-३.
ज़िंदगी ने कहा, `ड़र मत`, हरेक पल मुझे ।
फिर भी ऐतबार कहाँ कर पाया हूँ मैं ?
अय मौत, तेरे कब्ज़े में, आ गया हूँ मैं ।
अंतरा-४.
सोचता हूँ, ये चोला भी उतार ही दूँ , यहाँ ।
आने पर - जाने पर, क्या ले पाया हूँ मैं..!!
अय मौत, तेरे कब्ज़े में, आ गया हूँ मैं ।
कई सवालों के घेरे में, आ गया हूँ मैं ।
अय मौत, तेरे कब्ज़े में, आ गया हूँ मैं ।
मार्कण्ड दवे । दिनांक-०२-१२-२०११.
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