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30.1.14

लकीर पीटता लोकतंत्र

लकीर पीटता लोकतंत्र 

देश का लोकतंत्र लकीर पीटने में व्यस्त है शायद नेता समझते हैं कि लकीर पीटने से
लोकतंत्र चलता है और मजबूत बनता है।

   दोष निकालने,ढूंढने और दोषों के दर्शन और अध्ययन करने में पूरी राजनीति गले
तक डूबी है। कोई दल किसी दल केअच्छे काम की प्रशंसा नहीं कर पाता क्योंकि
प्रशंसा से दूसरे दल कहीं प्रेरणा न ले लें या कहीं विरोधी दल की प्रशंसा से उसकी जमीन
खिसक न जाये। सब केंकडावृति में मशगुल हैं। इस तू -तू,मैं-मैं में देश कि जनता पीस
रही है,मूक दर्शक है या फिर किसी के साथ मिलकर कुछ देर अपना टाइम व्यतीत
करती है और फिर अपने लम्बे दर्द तथा संघर्ष में डूब जाती है।

क्यों पीटते हैं लकीर नेता लोग - 1947 से लेकर अब तक विश्व बदल चूका है ,विकास
के नए आयाम तय कर रहा है और हम प्राथमिक सुविधा भी उपलब्ध जनता को नहीं
करा पा रहे हैं यह बात हर नेता अच्छी तरह से जानता है ,लोग कहीं उनसे इस बारे में
कटु सवाल कर ना ले इसलिये लकीर पीटने को खाल बचाने का माकूल उपाय मानते हैं।

      जो दर्द गुजर गया,जो घाव भर गये,जो यंत्रणा भोग ली गयी उसे गाहे बगाहे हरा
करने से क्या मुस्लिम ,हिन्दू ,सिक्ख या ईसाई क़ौम का भला हो जायेगा ?गुजर चुके
भयानक इतिहास को कोई सिरफिरी विचारधारा फिर हरी करती है उसे पोषण देती है
उसका उद्देश्य क्या है ?क्या उससे देश का भला होगा या किसी भी क़ौम का भला होगा ?
फिर भयानक पलों को याद करवाना राज धर्म क्यों बन रहा है। क्या फिर भारतीयों को
लड़वाने का इरादा है या उनमें नफरत की आग को जलाना है। राजनीति चमकाने के
रास्ते और भी चुने जा सकते हैं मगर सब लकीर पीटना चाहते हैं ताकि जनता पुराने
दुःख को याद कर उन्हें वोट दे दे।

कैसे निपटे भारतीय लकीर के फकीर से     -आज तक ये लोग लकीर पीटते रहे और
हम आपस में लड़ते हुए ,एक दूजे से काल्पनिक भय रख कर इन्हे वोट करते रहे और
लोकतंत्र को जीवित रखते गये ,इससे हमें उपहार में मिला कौमवाद,गरीबी ,असुविधा ,
भ्रष्टाचार,आश्वासन,अशिक्षा और गिड़गिड़ाता हुआ जीवन। इस कुचक्र को तोड़ने के
लिए क्या करें ? आईये एक  चित्रकार के पास चल उसके चित्र को देखते हैं जो एक
लम्बे कागज पर कुछ शेर बनाकर उनके गले में पाटिये लटका रहा है पहले के गले में
हिन्दू ,दूसरे के मुस्लिम ,तीसरे के सिक्ख ,चौथे के ईसाई ,पाँचवे के बौद्ध ,छठवें के
पारसी,सातवे के पिछड़ा ,आठवें के अगड़ा ? अब इस चित्र को देख कर इनका नाम
करण कर दीजिये  यानि शेर ,यही ना ! पहले सब भारतीय बन जाइये ,सबमे समान
ताकत और समान अधिकार हों और हम सब अपनी ऊर्जा का उपयोग जो उपहार हमे
अभी तक नेताओं ने दिए हैं उन्हें वापस लौटाने में करे , फिर देखो देश कैसे बदलता है।
देश नारों से नहीं बदलेगा ,देश बदलने के लिए हर भारतीय को एक होना पड़ेगा फिर
राजनीती की धारा खुद ब खुद बदल जायेगी। प्रेम और विकास ,समानता और सद्भाव
की राजनीती होगी।                   

29.1.14

भड़ास blog: देश का शराबी पति...( राजनीति )

भड़ास blog: देश का शराबी पति...( राजनीति )देश का शराबी पति...( राजनीति )

देश का शराबी पति...( राजनीति )

देश का शराबी पति...( राजनीति )   

आज भारत की राजनीति में काफी उथल - पुथल का दौर चल रहा  है , कुछ इस उथल  - पुथल के पक्ष में हैं तो कुछ विपक्ष में ऐसा होना स्वभाविक भी हैं  .आखिर भारत में सब को अपने पक्ष विपभ और भेद मतभेद रखनें का अधिकार है .यही  गुण हमारे लोकतंत्र को सफल बनाने में महत्वपूर्ण  भूमिका अदा करता हैं,१६ वें लोकसभा चुनाव का समय जैसे - जैसे  करीब आ रहा है...वैसे - वैसे ही राजनीतिक दलों में हलचल तेज़ होती जा रही है.राजनीतिक दलों की हलचल भी तो स्वभाविक है , क्योंकि उनकी बरसो पुरानी रणनीतियों पर उनके बरसों पुराने प्रचलन पर स्वाल  उठनें लगें हैं . जिसका असर देश के हर क्षेत्र में  नजर आने लगा है , अब तक जो राजनीति से दूर रहतें थे या बस वोट डालनें तक अपना अधिकार समझतें थे..वह भी राजनीति के ढ़ंग को लेकर विचार विमर्श करनें लगें हैं , जिस मुद्दें को लेकर साधारण जनता के विचार शुन्य पड़े थे आज वह भी इसमें भाग लेने लगें हैं,अब साधारण लोग ये समझनें लगें हैं कि हम  जिन प्रश्नों  से बरसों से बच कर निकल रहें थे आज उन प्रश्नों का उत्तर खोजनें का समय आ गया हैं..कुछ प्रश्न इस प्रकार थे , जैसें देश की राजनीति भ्रष्ट्र हो चुकी है , भाई भतिजावाद सब और अपनी जड़ें फैला चुका है ,जिसका कारण राजनीति हैं,एक नेता का स्थान  सर्वोपरी हैं, देश का कुछ नहीं हो सकता , देश कब बदले गा आदि अनेक प्रश्न थे
 क्या हमारे पूर्वजों ने   देश आज़ाद इसलिए करवाया था , कि देश की आजादि गौरों से हस्तांत्तरित हो कर अपने देश के ही कुछ नेताओं  के हाथ में  चली जाए,..लोकतंत्र का नक़ाब पहन कर अपने लोग ही देश को खोखला करें , पर आज भारतवासी समझनें लगें हैं कि इन प्रश्नों से बचकर निकलना हमारा सबसे बड़ा दोष है.ये हमारी जिम्मेदारी है क्योंकि वोट देकर हम ही इन्हें हुकूमत सौंप कर सर्वोपरी बना रहें हैं ..आखिर हम क्यों ऐसे लोगों को चुन रहें है जो लोकतत्रं के पतन में भूमिका निभा रहें हैं..जो लोकतंत्र की परिभाषा को बदल कर प्रस्तुत करनें का प्रयास कर रहें हैं...आज देश में राजनीति की स्थिति को हम एक स्त्री के शराबी पति के उदाहरण से समझ सकतें हैं , एक स्त्री जिसका पति शराबी है और आमूमन वो अपनी पत्नी को पीटा करता है किन्तु सब सहती रहती है ,( यहां स्त्री एक देश है और शराबी पति देश की राजनीति है ) पत्नी जब जब बाज़ार जाती है या बाहर निकलती है तो वो अपने पिटाई के निशानों को छुपाने के प्रयास में लगी रहती है, यदि कोई देखने में कामयाब हो जाए और कारण पूछें तो भी वो बताना नहीं चाहती  कि उसके पति ने मारा है क्योंकि वो स्त्री अपने पति परमेश्वर की  संस्कृति  का प्रतिपालन करती है , वहीं जो आस - पड़ोस उस की हकिकत जानता है और उस स्त्री को अपने पति के अत्याचार के खिलाफ लड़ने को कहता है, विरोध करने को कहते है, उसे वो स्त्री अच्छा नहीं समझती और उसको आस पड़ोस जो उसका हितेशी बनना चाहतें हैं उसे ही अपना दुश्मन और माखौल उड़ाने वाला समझकर उस की शिकायत अपने पति  से ही कर बैठती है , जिसे जान कर शराबी पति सभंलने का प्रत्यन ना कर कर अपनी स्त्री को भी दोषी बतातें हुए यह कहता है , कि तुम आस पड़ोस से बात क्यों करती हो और फिर शराब पीकर अपनी स्त्री को खूब पीटता है, स्त्री पीटती रहती है,यही सोच कर कि , ये मेरा पति है मेरा परमेश्वर है , मेरा भगवान है , जिसका विरोध सही नहीं है , और वहीं उस स्त्री के नादान बच्चें माँ को पिता से पीटाई खाने की  संस्कृति को समझ नहीं पाते और अपने पिता के प्रति  घृणा की भावना उनमें जन्म लेने लगती है , तब उनमें से एक बच्चा जो विचारों में और तर्को के आधार पर समझ रखने में तेज होता है , अपने शराबी पिता का विरोध करता है और अपने माँ को सशक्त करने का प्रयास करता है तब उसके अन्य भाई बहन भी यह देख कर की शराबी पिता भाई के विरोध के कारण कुछ डर गया है कुछ नरम पड़ रहा है तब उनमें भी चेतना तेज होती है और अपनें हालातों को बदलनें की इच्छा का उदय होता है , इसी इच्छा - शक्ति के बल पर वे भाई अपने शराबी पिता के दूआरा अपनी माँ पर कए जा रहे हत्याचार को बंद कर पाते है और अपने  घर की तरक्की में योगदान दे पातें है , वही जब आस - पाड़ोस ये देख कर जब बच्चों की तारीफ करता है तब वही शराबी पति की पत्नी अपने बच्चों के प्रयास के कारण सही गलत का फर्क समझ पाती है और आस -पड़ोस से मेल जोल बढ़ाती है , ऐसी ही स्थिति से आज देश गुजर रहा है जब एक दिन सब स्थिर होगा इस उथल - पुथल के बाद और आने वाली पीड़ियां हमें इस बदलाव का जनक पाऐंगी तो हमारे सम्मान में भी बढ़ौतरी होगी..,

आओ, कानून बना देते हैं !!!

आओ, कानून बना देते हैं !!!

देश अब कागज पर चलेगा क्या ? अगर नेताओं को यही रास्ता ठीक लगता है और इसी
रास्ते से सरकारें बनना सरल लगता है तो कुछ लाइनें और खिंच दीजिये ताकि देश वासी
यह मुगालते में रहे कि अब सब कुछ ठीक ठाक हो गया है -

1. रोजगार का अधिकार कानून
2. पानी आपूर्ति कानून
3. बिजली और सड़क का अधिकार
4. सड़क निर्माण कानून
5. दुर्घटना रोको कानून
6. महँगाई भगाओ कानून
7. बिना पढ़ें डिग्री का कानून
8. तुष्टिकरण और पक्षपात का कानून
9.अभिव्यक्ति पर लगाम का कानून
10. वादों और आश्वासन का कानून
11. झूठ बोलने की स्वतंत्रता का कानून
12. समाज सुधार का कानून
13. विकास का कानून

कागज पर लिखने से देश और नागरिकों का विकास सम्भव है तो फिर हर अव्यवस्था पर
प्रतिदिन कानून बनाते चलो। हर चौराहे पर निपटारा विभाग खोल दो। गाँव-गाँव में
कारावास बना दो। देश का विकास इसी रास्ते से होना सही लगता है तो कानून बनाते रहो।

देश के पास पर्याप्त कानून है। देश के पास अगर कमी है तो निष्ठा और कर्तव्य परायणता की,सेवा और समदृष्टि की।   

28.1.14

मेरा पाप जिंदाबाद ,उसका पाप मुर्दाबाद !!

मेरा पाप जिंदाबाद ,उसका पाप मुर्दाबाद !!

देश को बपौती समझने वाले लोग अपने पाप पर भी जिंदाबाद चाहे और किसी के काम
को सिर्फ मुर्दाबाद कहें तो किसे मुर्ख समझे ?उसको चुनने वाली जनता को या उसके 
दोहरे चरित्र को ,तय करें क्योंकि समय आप हिन्दुस्तानियों से जबाब माँग रहा है। 

कोई व्यक्ति खुद को स्वराज मानता है और अपने से बड़ों का अनादर भाषा से या हाव 
भाव से करता रहता है तो उसे देश स्वराज माने या अराजकता ,तय करे और पुनर्विचार 
करें क्योंकि यह देश कुछ लोगों कि जागीर नहीं है इसकी हर विचारधारा पर करोड़ों 
भारतीयों का भविष्य बंधा है। 

हजारों चूहे खाकर बिल्ली हज को चली ,क्या उसके बाद वह चूहे खाना बंद कर देती है ?

विधाता ने खून के रँग में फर्क नहीं किया मगर नेता अब सड़कों पर बह चुके खून को 
अलग-अलग भाव से देखता है ,उसको दर्द नहीं होता इस बात पर कि खून बहा है उसे 
दर्द है इस बात पर कि वह किसका बहा है !!  

26.1.14

गणतंत्र केवल वोट का अधिकार नहीं

गणतंत्र केवल वोट का अधिकार नहीं 

हमारी आजादी और गणतंत्र की रक्षा का दायित्व केवल चुनी हुई सरकार की जबाबदारी
ही नहीं हर नागरिक का कर्तव्य है।  वह हर दिन भगवान् के बाद उनको भी नमन करें
उनके बलिदान को याद करें और समय पर अनुसरण करें जिनके त्याग के कारण हम
स्वतन्त्रता की साँसे ले रहे हैं।

     हमने जब अपना संविधान लिखा तब अधिकांश भारतीय अशिक्षित और गरीब थे
तब देश के प्रबुद्ध नागरिकों ने सबको जीने की आजादी मिल सके इस बात को प्रमुख
रूप से संविधान में भारत के कर्तव्य के रूप में लिखा ,प्रश्न हर भारतीय के जेहन में
घूमता रहता है कि इतने सालों बाद भी सबको जीने का अधिकार ( जिसमे रोटी ,कपडा
मकान,शिक्षा ,स्वास्थ्य और रोजगार शामिल है) क्यों नहीं मिला ,क्यों करोड़ों लोग
32/-प्रतिदिन भी नहीं कमा पा रहा है ?

    एक भारत में दो भारत कैसे बन गए ,एक ओर ५%लोगों के हाथ में सम्पन्नता है
१०%लोग  मध्यम जीवन जी रहे हैं और बाकी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करते हैं
कमी कहाँ है ?संविधान में या सरकार की  इच्छा शक्ति में या नेताओं की सत्ता लोलुप
प्रवृति में ? आप खुद चिंतन करें और अपनी सरकार चुने जो हँगामा खड़ा नहीं करे बल्कि
काम करें।     

       बात संविधान की करेंगे- संविधान ने कुछ समय के लिए जातियता के आधार पर
जीवन स्तर को सुधारने का मत रखा जो उस समय जरुरी था और उस व्यवस्था को
सुधारने का समय भी तय किया लेकिन हम आज तक उन भारतीयों के जीवन स्तर को
सुधार नहीं पाये,क्यों ?क्या देश की आज तक की सरकारें इसके लिए जबाबदार नहीं हैं ?
क्या सत्ता लोलुप लोगों की ईमानदार कोशिश वंचित वर्ग के प्रति आज तक झलक पायी
है ?

     हम आज तक गरीबी नहीं हटा पाये,प्राथमिक सुविधाएँ नहीं दे पाये ,शिक्षा का गुणवत्ता
युक्त ढांचा नहीं बना पाये ,करोडो हाथों को काम नहीं दे पाये ,क्यों ?क्या हमने पैसा खर्च
करने में कंजूसी की ? फिर  …। क्या पैसे को सही जगह खर्च नहीं किया या फिर अधिकांश
धन भ्रष्ट नेताओं ,अफसरों या नौकरशाही ने लूट लिया ?क्या कारण रहा है कि जनता खुद
जनता के हित से परहेज कर स्वार्थ साधने के खातिर अनाचार और भ्रष्ट मार्ग पर बढ़ रही
है। हमारे देश में नेता कोई आकाश से नहीं टपकते,हम लोग ही चुनते हैं सवाल यह है कि
क्या हम खुद ही भ्रष्ट होते जा रहे हैं ओर भ्रष्ट आचरण स्वीकार्य हो चूका है।

     आज भ्रष्टाचार को मथने के लिए हर दल के नेता कसमें खाते हैं ,वादे करते हैं लेकिन
कोई यह नहीं बताता कि इस बिमारी का माकुल ईलाज यह होगा। हम भारतीय आज भी
प्राथमिक सुविधाएँ उपलब्ध कराने वाले दल को सत्ता सौंपने को मजबुर हैं !! क्या यही
गणतंत्र की अवधारणा थी ?क्या हम अपने पर अपना शासन देश को दे पाये हैं ?बहुत से
नेता अपने -अपने स्वराज,सुशासन और विकास के दावे करते हैं ,भारत निर्माण की
बातें करते हैं मगर फिर भी हम वहीँ के वहीँ रह जाते हैं,क्यों ?क्या नेताओं के वादे सिर्फ
दिखावा या आडम्बर है या हम खुद अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है ?

  " हम जागरूक बन जाए ,हम भारतीय बन जाए,हम कर्तव्य पारायण बन जाए ,हम
राष्ट्रप्रेमी बन जाए" यह बात हम सबके आचरण में आनी चाहिए। हम जातिगत विकास
की केंचुली को जब तक उतार कर नहीं फेकेंगे तब तक हम सरपट दौड़ नहीं पायेंगे। हमें
विकास का नक्शा जाति ,पंथ और धर्म को हटाकर फिर से बनाना होगा जिसमे अति
निर्धन भारतीय ,निर्धन भारतीय ,मध्यम भारतीय ,उच्च मध्यम और सम्पन्न भारतीय
का वर्ग हो और उसी वर्ग के अनुसार काम की योजना तय हो।

                     जय गणतंत्र -जय भारत           

लोकल 'पप्पू' भी सांसत में

वर्षों से कोई 'पप्पू' पुकारता रहा, तो बुरा नहीं लगा। मगर अब उन्हीं लोगों को 'पप्पू' का अखरना, समझ नहीं आ रहा। भई क्या हुआ कि 'पप्पू' अभी तक फेल हो रहा है। यह कुंभ का मेला तो है नहीं कि बारह साल में एक बार आएगा। हर साल कहीं न कहीं यह परीक्षा (विधानसभा, पंचायत, निकाय चुनाव) तो होगी ही, तब राष्ट्रीय न सही लोकल 'पप्पू' तो पास हो जाएगा। रही बात हाल में 'पप्पू' के पास न होने की, तो इससे मैं भी आहत हूं। एक राष्ट्रीय पप्पू ने लोकल पप्पूओं की वाट जो लगा दी है। अब देखो, सब हर फील्ड में पप्पू होने का मतलब नाकामी से जोड़ रहे हैं। ऑक्सफोर्ड वाले भी सोच रहे हैं कि 'पप्पू' को फेल का पर्यायवाची बना दिया जाए। देश में अब मां-दे लाडलों को भी दुत्कार में 'पप्पू' नहीं कहा जा रहा। मांएं भी जाने क्यूं इस नाम से खौफजदा हैं। शायद उन्हें भी लग रहा है, कि कहीं प्यार-दुलार के चक्कर में बेटे की नियति भी 'पप्पू' न हो जाए।
'बाजार' हर साल कैडबरी बेचते हुए इसी उम्मीद में जीता है, आस लगाए रहता है कि 'पप्पू' पास होगा, तो मुहं मीठा जरूर कराएगा, और वह भी निश्चित ही कैडबरी से.। एड में अपने बड़े एबीसीडी भी तो हमेशा पप्पू के पास होने का भरोसा देते हैं। दें भी क्यों न, इस बहाने से उनका भी तो कुछ न कुछ जेब खर्च जो निकलना है। एड एजेंसी से लेकर चैनल तक सबकी दाल रोटी चलेगी। मगर, अफसोस अपने 'पप्पू' को पास होने में शर्म आ रही है। कह रहा है कि अभी 'आप-से' सीखना है।
कहते हैं कि उम्र ए दराज मांग कर लाए थे चार दिन, दो आरजू में कट गए दो इंतजार में। कहीं सीखने पर ऐसा ही हलंत न लग जाए, कि आरजू और इंतजार सीखने में ही गुजर जाएं। दूसरा अब इन मत- दाताओं को कोसूं नहीं तो क्या करुं, जिनका दिल पत्थर हो गया है। 128 साल का इतिहास भी नजर नहीं आ रहा उन्हें। अब तो मेरे दर्द का दिल दरिया भी थम नहीं रहा। 'पप्पू' के पास होने के लिए की गई मेरी सब दुआएं, मंदिरों में टेका मत्था, घोषणापत्रों की तरह भगवान को दिया गया प्रलोभन भी बेकार हो रहा है।
..और रही सही कसर अपना वॉलीवुड भी बार-बार तानें मारकर पूरी कर रहा है, कि 'पप्पू कान्ट डांस साला..'। कभी नहीं सोचा था कि 'पप्पू' इतना निकम्मा निकलेगा। यही सब सुनना बाकी रह गया था हमारे लिए। हमने फेल होना सहा, मगर वह तो 'डांस' में भी अनाड़ी निकला। चुनावों में अनुत्तीर्ण होना तो उसका शगल बन गया। बाप-दादा की 'टोपी' की भी फिक्र नहीं। जबकि दूसरे टोपी पहनकर उछल रहे हैं।
भई अपुन तो सफाई दे देकर उकता गया, आलोचकों के तानों से कहते हैं, नया रास्ता निकलता है। मगर क्रिटिक्स हमरी बॉडी में यही बाण मार रहे कि काहे इतना 'पप्पू' हुए जा रहे हो। क्या बताऊं उन्हें कि 'पप्पू' के पासिंग- आउट का कोई 'विश्वास' करे न करे, मुझे तो है। हां, ये मत पूछना कि किस पप्पू से उम्मीद है, राष्ट्रीय, बाजार वाले या लोकल, क्योंकि सुबह पड़ोसी 'मलंग बाबू' गुरुमंत्र दे गए, कि 'आप' और 'नमो' मंत्र का जाप करो। 'पप्पू' न सही तुम जरूर पास हो जाओगे। अब करूं क्या, कैसे अपने 'पप्पूपन' को तिलांजली दूं। आपको मालूम हो तो बताएं..।
धनेश कोठारी

25.1.14

गणतंत्र और न्याय के दोहरे मापदंड

गणतंत्र और न्याय के दोहरे मापदंड

गणतंत्र का मजबूत स्तम्भ है न्याय तंत्र ,हम भारत के नागरिक इसका सम्मान
करते हैं। हमारा भरोसा इस स्तम्भ पर टिका हुआ है ,मगर प्रश्न यह है कि क्या
सर्व साधारण को सहज उपलब्ध है ?क्या कारण है कि न्याय भी खास और आम
लोगों में फर्क कर देता है ?क्यों दोहरे मापदंड देखने को मिलते है ?

         क्यों पद पर बैठा जनसेवक संविधान को चुनौती दे देता है और न्याय उसके
सामने घुटने टेक देता है ?आम भारतीय जब कुछ भूल कर बैठता है तो न्याय का
यह चक्र सुदर्शन कि तरह उस पर मंडराने लगता है और उसे यथोचित दंड देकर
ही रुकता है और खास भारतीय जब जानबूझ कर उसको ढेंगा दिखाता है तो यह
चक्र घूमना बंद कर देता है या दिखावे के लिए उसके इर्द-गिर्द मंडराता रहता है
मगर उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाता।

           जब आम भारतीय कर्ज समय पर नहीं चूका पाया तो कानून बड़ी जल्दी
से उसके गिरेबान को झकड़ लेता है और बड़े लोग मोटी धन राशि डकार जाते हैं
तब न्याय पकड़ छोड़ देता है।

         न्याय की  किसी छोटी सी धारा का उल्लंघन आम आदमी को तुरंत हवालात
में भेज देता है मगर जनसेवक धारा पर धारा तोड़ता है तब न्याय पंगु बन जाता है।

      न्याय जब आम नारी के साथ हादसा होता है तो उससे अभद्र सवाल पूछ उसे
लज्जित कर देता है पर जनसेवक की लड़की के हादसे पर देशद्रोहियों को भी
छोड़ देता है।

     न्याय जब गरीब के साथ होता है तो उसे सालों तक तारीख पर तारीख देता
है और जब रसूखदार के साथ होता है तो पवन वेग से दौड़ता है।

      क्या कारण है कि न्याय छोटे व्यापारी की भूल को उसका अपराध मानता है
और बड़े आदमी के घोटालों पर सफेद चददर लगा देता है।

     न्याय व्यवस्था के दोहरे मापदण्ड क्या हमारे गणतन्त्र को मजबूत कर पाये
हैं ? आम आदमी के लिए कानून हाथ में लेना जुर्म है मगर देश के मंत्री या मुख्य
मंत्री उस कानून की छड़े चौक अवहेलना करता है तो भी उसका कुछ नहीं बिगड़ता।

    ऐसी कौनसी बिमारी लग गई है न्याय तंत्र को कि कभी तो उसे दूर का तिनका
भी नजर आने लगता है और कभी आँख में पड़ा तिनका भी सुख की अनुभूति
कराता है ?
   

नरेश-राजेश के रूप में भाजपायी गुटबंदी ना केवल सड़क पर आ गयी है वरन नगर खामियाजा भी भुगतेगा
अपने आप को अनुशासित पार्टी कहने वाली भाजपा का अनुशासन तार तार हो गया है। भाजपा की गुटीय लड़ाई विस चुनाव के बाद सड़कों पर दिखायी देने लगी है। सिवनी विस से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने वाले जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर और मतदान के दिन भाजपा से निलंबित किये गये पालिका अध्यक्ष के बीच चल रही खींचतान खुले आम सड़कों पर दिखायी देने लगी है। अब तो भाजपा की आपसी गुटबंदी नगर विकास में खुलेआम बाधक बनती भी दिखने लगी है।  हार की समीक्षा करने के लिये या कांग्रेस के प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिये अभी तक ना तो प्रदेश कांग्रेस ने कोई बैठक की और ना ही जिला कांग्रेस ने। कुछ ही महीने बाद होने वाले लोस चुनाव के लिये ऐसे हालात में कांग्रेस अपने आप को तैयार करेगी? कांग्रेस में यदि भीतर घात करने और समय समय पर धोखा देने वालों को पुरुस्कृत करने का सिलसिला यदि ऐसे जारी रहा तो भला राहुल गांधी प्रदेश में कांग्रेस को कैसे मजबूत कर पायेंगें? इन दिनों देश में आम आदमी पार्टी का आकर्षण बना हुआ है। दिल्ली में सरकार बनाने के बाद अरविंद केजरीवाल के चर्चे हर जगह हो रहे है। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का माना है कि चूंकि आप का प्रभाव शहरी क्षेत्रों और युवाओं में अधिक दिखायी देता है तो वह भाजपा को नुकसान पहुंचायेगी तो वहीं दूसरी ओर इसके विपरीत यह भी दावा किया जा रहा है कि धर्मनिरपेक्ष वोटों में आप जो सेंध लगयोगी उससे कांग्रेस पर भी असर पड़ेगा। 
सड़कों पर आयी भाजपा की गुटबाजी विकास में बनी बाधक-अपने आप को अनुशासित पार्टी कहने वाली भाजपा का अनुशासन तार तार हो गया है। भाजपा की गुटीय लड़ाई विस चुनाव के बाद सड़कों पर दिखायी देने लगी है। सिवनी विस से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने वाले जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर और मतदान के दिन भाजपा से निलंबित किये गये पालिका अध्यक्ष के बीच चल रही खींचतान खुले आम सड़कों पर दिखायी देने लगी है। बीते दिनों नगर पालिका की सामान्य सभा की बैठक से भाजपा पार्षदों का बहिष्कार फिर खाना खाते एक पत्रकार द्वारा खीचीं गयी फोटो को भाजपा नेताओं द्वारा जबरन डीलिट कराने का मामला अखबारों में सुर्खियों में छाया रहा।परिषद की बैठक से बहिष्कार करने वाले कुछ पार्षदों ने ही यह बयान देकर चौंका दिया कि उन्हें जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर ने ही बैठक में नहीं आने दिया। भाजपा नेताओं की ही यह मांग भी अखबारों में प्रकाशित हुयी कि जिला भाजपा अध्यक्ष के पद से त्यागपत्र दे चुके नरेश दिवाकर का स्तीफा मंजूर किया जाये और पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी का निलंबन निरस्त किया जाये। सिवनी विस से दो बार विधायक रह चुके दिवाकर और उनके समर्थकों का ऐसा मानना है कि पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी नें भीतरघात किया है। इसी के चलते विवाद जारी है। लेकिन पालिका की बैठक से जिसमें नगर विकास के कई मामलों पर चर्चा होनी थी उस बैठक से भाजपा पार्षदों का बहिष्कार समझ से परे है। यदि भाजपा पार्षदों या जिला भाजपा अध्यक्ष को किसी मामले में आपत्ति थी तो उसे बैठक में जाकर उठाया जा सकता है। क्या दिवाकर यह नहीं जानते थे कि उनके ऐसा करने के बाद भी पालिका में ना केवल कोरम पूरा हो जायेंगा वरन प्रस्ताव पास भी हो जायेंगें। वैसे भी प्रदेश में भाजपा की सरकार और नगर पालिका रहते हुये भी शहर को भाजपा की गुटबाजी का बहुत खामियाजा उठाना पड़ा है। यदि जिले के शीर्ष भाजपा नेताओं की पालिका अध्यक्ष से नहीं पटती है तो बजाय शहर के विकास में अडंगा डालने के काम्पोटीशन में पालिका अध्यक्ष से बड़ी उपलब्धि शहर को दिलाते तो जनता दोनों की जय जयकार करती। लेकिन अफसोस की ऐसा नहीं हो सका और आज भी शहर विकास के कई ऐसे प्रस्ताव प्रदेश में इसी खींचतान के चलते लंबित पड़े है जो कि मील के पत्थर साबित हो सकते है। अब तो भाजपा की आपसी गुटबंदी नगर विकास में खुलेआम        बाधक बनती भी दिखने लगी है।
हार के सदमे से राहुल कैसे उबारेंगंे प्रदेश में कांग्रेस को?-विधानसभा चुनावों में कांग्रेस शर्मनाक हार के सदमे से अभी तक उबर नहीं पायी है। हार की समीक्षा करने के लिये या कांग्रेस के प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिये अभी तक ना तो प्रदेश कांग्रेस ने कोई बैठक की और ना ही जिला कांग्रेस ने। कुछ ही महीने बाद होने वाले लोस चुनाव के लिये ऐसे हालात में कांग्रेस अपने आप को तैयार करेगी? हालांकि प्रदेश कांग्रेस कें अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया का स्तीफा मंजूर करके कांग्रेस ने प्रदेश के युवा सांसद और टीम राहुल के सदस्य अरुण यादव को नया प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले दिनों भोपाल का दौरा किया। उन्होंने देश भर से आयी महिला प्रतिनिधियों से कांग्रेस के घोषणा पत्र में शामिल किये जाने वाले मुूद्दों पर चर्चा कर जानकारी ली है। इसके अलावा राहुल गांधी ने प्रदेश भर के जिला कांग्रेस,ब्लाक कांग्रेस अध्यक्षों,प्रदेश प्रतिनिधयों और 2013 के विस चुनाव के जीते और हारे प्रत्याशियों से भी चर्चा कर हार के कारणों को जानने की कोशिश की है। लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की हालत सुधारने के लिये हार के कारणों को जानना भी जरूरी नहीं है। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि हार के जो भी कारण है उनका निदान किया जाये और कांग्रेस को हराने वाले कांग्रेसियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाये। लेकिन आने वाले लोस चुनावों को देखते हुये ऐसा लगता नहीं है कि ऐसा कुछ हो पायेगा। लोकसभा चुनाव जीतने के लिये यह भी जरूरी है कि प्रदेश के हर लोस क्षेत्र के उन प्रमुख मुद्दों और विकास कार्यें को प्राथमिकता के आधार पर विचार कर पूरा करें जिसके लिये जन मानस में कांग्रेस के खिलाफ जनाक्रोश है। कांग्रेस में यदि भीतर घात करने और समय समय पर धोखा देने वालों को पुरुस्कृत करने का सिलसिला यदि ऐसे जारी रहा तो भला राहुल गांधी प्रदेश में कांग्रेस को कैसे मजबूत कर पायेंगें? यह एक      शोध का विषय बना हुआ है।
किसे नुकसान पहुचायेगी आप?-इन दिनों देश में आम आदमी पार्टी का आकर्षण बना हुआ है। दिल्ली में सरकार बनाने के बाद अरविंद केजरीवाल के चर्चे हर जगह हो रहे है। हालांकि उनके सरकार चलाने के तरीके और उनके मंत्रियों के कारनामे भी सियासी हल्कों में चर्चित है। लेकिन इसके पक्ष और विपक्ष में अलग अलग तर्क दिये जा रहें है।जिले में भी आप की सदस्यता का अभियान चल रहा है। उनका दावा है कि जिले में तकरीबन दस हजार सदस्य बन चुके है। अब इस बात के कयास लगाये जा रहें हैं कि जिले की दोनों लोकसभा सीटों याने मंड़ला और बालाघाट से आप पार्टी चुनाव लड़ेगी या नहीं? और यदि लड़ेगी तो कांग्रेस या भाजपा किसके वोटों में सेंध लगायेगी?कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का माना है कि चूंकि आप का प्रभाव शहरी क्षेत्रों और युवाओं में अधिक दिखायी देता है तो वह भाजपा को नुकसान पहुंचायेगी तो वहीं दूसरी ओर इसके विपरीत यह भी दावा किया जा रहा है कि धर्मनिरपेक्ष वोटों में आप जो सेंध लगयोगी उससे कांग्रेस पर भी असर पड़ेगा। अभी यह कहना मुश्किल है कि आप भाजपा और कांग्रेस के कितने प्रतिशत मतों पर असर करेगी?एक संभावना यह भी व्यक्त की जा रही है कि कहीं ऐसा ना हो जाये कि आप दोनों ही पार्टियों के मतों में बराबरी की सेंध लगाकर चुनावी राजनैतिक समीकरण को प्रभावित ही ना करें। वैसे तो लोस चुनाव के मुद्दे अलग होते है लेकिन दस साल से केन्द्र में सरकार चलाने वाली कांग्रेस को विपक्ष कई मामलों में कठघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहा है। वहीं दूसरी ओर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी सांप्रदायिक छवि और बड़बोलापन भी चुनावी मुद्दा बन सकता है। समस्याओं को गिनाना एक अलग बात होती है लेकिन जो अपने आप को विकल्प के रूप में देश के सामने रख रहा है यदि वह उनका निदान ना बताये तो कोई महत्व नहीं होता। रहा सवाल आप पार्टी का तो उसका राष्ट्रीय स्वरूप अभी नहीं है लेकिन इन चंद महीनों में वह कितना कुछ कर पायेगी?उसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी।“मुसाफिर“   
दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी
21 से 27 जनवरी 2014 से साभार      

26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर विशेष
प्रलोभन में निर्णय लेता रहेगा जन तो कैसे मजबूत होगा जनतंत्र? 
आज हम गणतंत्र दिवस की 64 वीं सालगिरह मनाने जा रहें है। इन वर्षों में हमारा प्रजातंत्र कितना मजबूत हुआ और क्या खामियां विकसित हुयीं? इन पर विचार करना आवश्यक है। देश में मतदान की भागीदारी बढ़ना एक शुभ लक्षण है। लेकिन एक बात और देखी जा रही है कि चाहे राजनैतिक दल हों या फिर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने वाले हों वे अपनी नीतियों और सिद्धान्तों के स्थान पर मतदाताओं को प्रलोभन देते हुये कुछ भी वायदे करके वोट बटोर कर जीतने की कवायत में जुटे देखे जा सकते है। कहीं जातिवाद का प्रलोभन रहता है तो कहीं समाज के विभिन्न वर्गों को मुफ्त में सुविधायें उपलब्ध कराने का प्रलोभन दिया जाता है। कहीं कहीं तो ऐसा भी होंता है कि ना पूरे हो सकने वाले वायदे भी नेता कर देते है और वोट बटोर कर जीत हासिल कर लेते है। बाद में भले ही आम मतदाता अपने आप को ढ़गा हुआ महसूस करता रहें।
राजनैतिक दल और राजनेता तो चुनाव जीतने के लिये यह सब करते हों लेकिन इन 64 सालों में जन भी अपने मताधिकार का प्रयोग किसी ना किसी प्रलोभन में आकर कर लेता है और बाद में हाथ मलते रह जाता हैै। देश और आने वाली सरकार हमें क्या देगी? इस पर तो सभी विचार करते है लेकिन क्या जन को आज यह नहीं सोचना चाहिये कि हम देश को क्या दे रहें हैं? प्रजातंत्र में हमें एक वोट देने का जो अधिकार मिला है उसका भी यदि हम प्रलोभन में दुरुपयोग करने लगें तो भला प्रजातंत्र कैसे मजबूत होगा और गणतंत्र कैसे सफल होगा?
देश के कमजोर वर्ग के लिये योजनायें बनाना और सुविधायें देकर उन्हें सबके साथ चलने का मौका देना आज समय की मांग है फिर चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का क्यों ना हो। लेकिन वोटों की खातिर धर्म और जाति के नाम पर प्रचार करना और देश को बांटने की कोशिश करना किसी भी रूप में सही नहीं कही जा सकती है।
सरकार के पास अपना कुछ नहीं होता जो कुछ होता है वह जन से वसूले जाने वाले टेक्स का पैसा ही होता है। यदि सरकार जन को प्रलोभन देने वाली मदों पर अधिक राशि खर्च करेगी तो फिर उससे बेहतर विकास और अच्छी अनिवार्य सेवाओं की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। सरकार का मुख्य कार्य देश के आधारभूत विकास का होता है। यदि सरकार से यह अपेक्षा रखना है तो जन को यह तय करना पड़ेगा कि वह किसी प्रलोभन में आकर अपना निर्णय नहीं लेगा तभी यह संभव है वरना राजनैतिक दल और राजनेता तो जीतने के लिये यही करते रहेंगें जो आज तक कर रहें है। इसीलिये आज हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम प्रलोभन में आकर निर्णय नहीं लेंगें और गणतंत्र को मजबूत बनायेंगें, यही गणतंत्र दिवस पर हमारी हार्दिक शुभकामनायें हैं।
आशुतोष वर्मा,
16 शास्त्री वार्ड,सिवनी म.प्र. 480551
मो 09425174640       

24.1.14

उत्तर प्रदेश 20 साल में भी गुजरात नहीं बन सकता - नरेन्द्र मोदी

उत्तर प्रदेश 20 साल में भी गुजरात नहीं बन सकता - नरेन्द्र मोदी, गोरखपुर (23-01-2014)
वास्तव में उत्तर प्रदेश गुजरात तो क्या, महाराष्ट्र, तमिल नाडू, आन्ध्र प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश आदि भी नहीं बन सकता !

मोदी ने आज गोरखपुर रैली में जो कहा और जो उनका आशय था वह वाकई में काबिले - गौर था । मुलायम और मुलायम के जवाबी कीर्तन में उलझे बिना जो पहलू मेरे जेहन में घूम गया उसमें मेरे हाई स्कूल काल से आज तक की तस्वीर में कोई खास अन्तर नहीं नजर आता ।

बताते चलूं कि जब देश मंडल - कमंडल की आग में जल रहा था लगभग उसी समय के आस - पास मैं हाई - स्कूल का अभ्यर्थी था । मेरे आस - पास बहुत कम ही सहपाठी इस ’लफड़े’ में पड़ कर अपना समय खराब करना चाहते थे । @ abhigyan gurha जैसे कुछ बिरले ही थे जिन्होने ने अपनी ’कारस्तानियों’ से मेरा घ्यान अपनी ओर खींचा ।  या यह भी हो सकता है कि ’मेरे स्कूल’ में यह आन्दोलन ज्यादा ठीक से चल न पाया हो या न चलने दिया गया हो ।

खैर, जो भी हो । एक विचार जो मुझे याद आ रहा है वो यह था कि हमें IIT - JEE, CBSE, CPMT आदि की प्रतियोगिता में सफल होकर ’बाहर’ निकलना है ।  ’बाहर’ से ज्यादातर का मतलब देश के बाहर होता था । हमें इस मंडल - कमंडल के चक्कर में नहीं पड़ना है । और अपना कैरियर बनाना है । और करियर उत्तर प्रदेश में तो नहीं बनता है । कमोवेश, यह विचार मेरे सहपाथियों से कहीं ज्यादा उनके अभिभावकों में भी प्रबल था ।

आज, जब देखता हूँ तो पाता हूं तो वाकई कई सहपाठी अपने उपक्रम में सफल हुए । जो भारत के भारत बाहर नहीं जा सके या नहीं गये उन्होनें भारत के ही ज्यादा विकासित बड़े शहरों (दिल्ली, मुम्बई, बंगलौर, हैदराबाद आदि) में अपना ठिया जमाया । और अपने करियर में कामयाबी हासिल की ।

उसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय में भी मिले बहुतायत सहपाठियों के लिये उत्तर प्रदेश में कोई लक्ष्य नहीं था । कई तो छोटी- बड़ी पढ़ाई के लिये भी उत्तर प्रदेश से बाहर गये । और कालान्तर में लौट कर नहीं आये । पंकज उद्धास का गीत "चिठ्ठी आई है - आई है" कई बार सुना पर वास्तव जीवन में इसका कोई प्रभाव यदा - कदा ही दीखता है ।

आज लगभग दो दशक के बाद भी हालात में कोई खास परिवर्तन नहीं हैं । न तो उत्तर प्रदेश Education Destination है, न Business Destination, और न ही Investment Destination. आज भी कोई अभिभावक अपने पाल्यों के लिये जब बेहतरी की कामना करतें हैं तो उत्तर - प्रदेश शायद ही उनके विचारों में होता है । यहाँ तक कि प्रदेश के UP-Board के स्कूलों की संख्या लगातार घट रही है । कई स्कूल यू.पी. बोर्ड की मान्यता त्याग कर CBSE की मान्यता ले रहे हैं । एक - आध उदाहरण उत्तर प्रदेश सरकार से UP - Board के स्कूल के लिये मिलने वाली grant-in-aid को त्याग कर भी CBSE से जुड़ने के मिल जायेंगे । मुलायम सिंह यादव के पाल्य और मौजूदा मुख्यमन्त्री अखिलेश भी आस्ट्रेलिया से एम.बी.ए. कर के आये हैं ।  अब, करियर के रूप में तैयार राजनैतिक जमींन पर खेती कर रहे हैं । 

हाल - फिलहाल भी कई नौनिहालों को अपने लक्ष्यों की खोज और प्राप्ति में प्रदेश से बाहर जाते देखा है । यहां तक कि जिनके पास अपने स्थापित व्यापार हैं वो भी प्रदेश की सीमा से बाहर ही नयीं जमीन तलाश रहे हैं । जो ज्यादा सक्षम हैं वो अपने व्यापार को प्रदेश से बाहर ले जाने को अकुला रहे हैं ।

भारतीय अर्थशास्त्र में BI-MA-R-U राज्यों की अवधारणा है । जिसमें Bihar, Madhya - Pradesh, Rajasthan और Uttar Pradesh को शामिल किया गया है । ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है और अपने नाम के अनुरूप यह राज्य आर्थिक रूप से बीमार माने जाते हैं ।  प्रतिभा पलायन की बात करना बहुत बेमानी लगती है जब की सच्चाई के धरातल पर राज्य के नीति - निर्माताओं के पास जातीय - समीकरणों का तो सटीक आंकड़ा है । पर आर्थिक दर्शन के नाम पर सन्नाटा पसरा है । चुनावी नारों और वादों से पेट नहीं भरता ।

तो अगर कोई राज ठाकरे महाराष्ट्र में हमें हेय दृष्टि से देखता है तो उसे बुरा कहने से पहले अपने अन्दर भी झांक कर देखना चाहिये कि क्या कमी रह गयी कि वहां पिट कर भी हमारे लोग वापस नहीं आना चाहते हैं । आशय यह कि Blue Collored और White Collored दोनों प्रकार के आर्थिक सम्भावनाएं उपलब्ध कराने में यह राज्य विफल रहा है । और ’स्वदेस’ भी शाहरुख खान सिर्फ फिल्मों में रचते हैं वो भी अपने मेहताना प्राप्त करने के लिये ।

(नोट : इस विचार के कोई राजनैतिक अर्थ न निकाले जाये । यह विशुद्ध आर्थिक विचार है । यह विचार किसी भी राजनैतिक विचार - धारा का समर्थन और विरोध नहीं करता ।)

फूलों का गणतन्त्र

फूलों का गणतन्त्र 

एक विशाल बगीचे में विभिन्न तरह के फूलों के पौधे लगे थे ,सब में अलग-अलग
सौरभ और सब खिले-खिले से। एक दिन बगीचे में एक बड़े फूल ने सब पौधोँ से
कहा- हम अलग-अलग किस्म और जाति के फूल हैं और हमारी खुशबु भी भिन्न -
भिन्न है इस गुण के कारण हमारे में विभिन्नता में एकता के दर्शन नहीं होते हैं ,
क्यों नहीं हम सब सुगंध निरपेक्ष हो जाए ताकि हमारे में सभी को एकता नजर
आये। कुछ पौधों को समझा कर ,कुछ को धौंस दिखाकर ,कुछ को समाज द्रोह
का डर दिखा कर सुगंध निरपेक्ष बना दिया गया। अब उस बगीचे से मीठी सुगंध
गायब हो गयी। भँवरे ,मधुमक्खियाँ ,तितलियाँ ,पक्षी सब अगले दिन हतप्रभ
रह गये। उन सबने फूलों से पूछा -अरे!तुम लोग सुगंध विहीन क्यों हो गए हो ?

बड़े फूल ने कहा -इस बगीचे में हम विभिन्न प्रजाति के पुष्प साथ -साथ रहते हैं
हमारे रंग और सुगंध भी अलग-अलग है ,अलग-अलग सुगंध के कारण हम
एकता के सूत्र में नहीं बंध पा रहे थे इसलिए हमने सुगंध निरपेक्ष हो जाने का
निर्णय लिया है।

  उस बड़े फूल का निर्णय सुन तितलियों ने उस बगीचे में मंडराना छोड़ दिया ,
भँवरे बगीचे से दूर हो गए ,मधुमक्खियों ने दूसरी जगह छत्ता बनाना शुरू
कर दिया ,कुछ दिनों में बगीचा वीरान हो गया। यह सब बदलाव देख मोगरे
के छोटे फूल ने बड़े फूल से पूछा -ज्येष्ठ श्री ,क्या इसी का नाम निरपेक्षता है ?
क्या यह हमारी एकता की सही और सच्ची पहचान है ?इस निरपेक्षता से हमें
क्या मिला ?हमने अपना गुण खोया और साथी तितलियों ,भंवरों, मधुमक्खियों 
को खोया ?हम को देख कर प्रसन्न होने वाले मानव की प्रसन्नता को खोया ?

बड़े फूल ने कहा -एकता के दर्शन के लिए कुछ तो क़ीमत चुकानी होती है  …

मोगरे ने कहा -ज्येष्ठ ,मुझे आपकी निरपेक्षता जँच नहीं रही है ,मैं तो अपने
सुगन्धित स्वरुप से खुश हूँ और उस स्वरुप में जाना चाहता हूँ।

मोगरे की बात का बड़े फूल ने विरोध किया मगर मोगरा नहीं माना और पुरानी
तरह से फिर खुशबु बिखरने लग गया.मोगरे कि मिठ्ठी खुशबु देख भँवरे उस
के आस पास गीत गाने लगे,तितलियाँ फुदकने लगी ,मधुमक्खियाँ पराग
चूसने लगी। बाकी फूल एक दो दिन ये सब देखते रहे और फिर साथी भँवरों से
पूछने लगे -तुम सब मोगरे को गीत सुनाते हो ,हमारे पास क्यों नहीं फटकते ?

भँवरे ने उत्तर दिया -आप झूठी एकता का प्रदर्शन करने लगे हैं ,जब आप
साथ रहकर खुशबु बिखरते थे तब हम लोग आपसे प्रेरणा लेते थे कि आप
अलग-अलग किस्म के होते हुए भी सब मिलकर के वायु मंडल को सुगंधित
कर देते हैं ,आपके सामीप्य से निकल कर पवन देव भी अपनी निरपेक्षता
छोड़ देते हैं और आपके गुणों को दूर तक अपने साथ फैलाते रहते हैं।
महत्व निरपेक्षता का नहीं अपने गुणों की सुगंध को फैलाने का है।

उसकी बात सुन कर सभी पौधे पूर्ववत महकने लगे। 

21.1.14

लगता है कांग्रेसियों ने वक-नकुल कथा नहीं पढ़ी-ब्रज की दुनिया

ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। संस्कृत में ऐसी बेशुमार शिक्षाप्रद कहानियाँ हैं जिनसे हम वर्तमान जीवन में भी सीख ले सकते हैं। कभी कांग्रेस का भी संस्कृत और भारतीय संस्कृति से लगाव हुआ करता था लेकिन अब तो कांग्रेस के कर्णधार अमेरिका-इंग्लैंड से पढ़कर आते हैं सो वे अपने संस्कृत वांग्मय से पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं उनसे शिक्षा लेने की बात तो दूर ही रही।
हमने बचपन में अपनी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक में एक कथा पढ़ी थी-नक-वकुल कथा। कथा एक बगुले की है जो एक पेड़ की कोटर में परिवार सहित रहता है। उसके कोटर से एक बिल जाता है जो एक साँप के बिल तक जाता है। परिणाम यह होता है कि जब भी मादा बगुला अंडा देती है और उनके बच्चे होते हैं साँप आकर उनका भक्षण कर जाता है। इस तरह बगुला दम्पति परेशान रहता है कि आगे हमारा संतति कैसे चलेगी। फिर एक दिन बगुला पेड़ के पास एक नेवले को देखता है और साँप को मारने की फुलप्रुफ योजना बनाता है। वह नदी से मछली पकड़कर लाता है और उसके टुकड़े करके नेवले के बिल से लेकर साँप के बिल तक बिछा देता है। नेवला भी ठहरा मांसाहारी सो मछलियों के टुकड़ों को खाता-खाता अंत में साँप के बिल तक पहुँचता है और साँप को मार देता है। लेकिन अब बगुले के समक्ष एक नई समस्या खड़ी हो जाती है। साँप को मारने के बाद नेवला वहीं से वापस नहीं हो जाता बल्कि पेड़ पर बिल से और ऊपर चढ़ता हुआ नेवला बगुले के कोटर तक पहुँच जाता है और उसके सारे अंडों और बच्चों को खा जाता है। इस तरह बगुले की समस्या जस-की-तस बनी रह जाती है। साँप का तो ईलाज उसने कर दिया अब नेवले का ईलाज कहाँ से लाए?
मेरा मानना है कि अगर कांग्रेसियों ने यह नीति-कथा पढ़ी होती तो आज उनके समक्ष और देश के सामने भी अरविन्द केजरीवाल एंड गिरोह की समस्या नहीं खड़ी हुई होती। माना कि अरविन्द केजरीवाल मोदी-रथ को आगे बढ़ने से रोक देगा लेकिन उसके बाद वो देश में जो अराजकता फैलाएगा जिस तरह कि इन दिनों दिल्ली में फैला रहा है तो उसका ईलाज कांग्रेस और देश कहाँ से लाएगा? यह आदमी मिनट-मिनट पर झूठ बोलता है,पैंतरे बदलता है। आज यह न्यायिक जाँच और न्यायपालिका पर अविश्वास प्रकट करते हुए मांग नहीं मानने पर गणतंत्र दिवस जो भारत की अस्मिता का प्रतीक है को बाधित करने की धमकी दे रहा है कल कहेगा कि वो खुद नया संविधान बनाएगा क्योंकि पूरे देश में सिर्फ उसी के पास दिमाग है और पूरे देश को उस संविधान पर चलना पड़ेगा। आज वो संवैधानिक पद पर रहते हुए खुलेआम,बेशर्मी से कानून तोड़ रहा है,निषेधाज्ञा का उल्लंघन कर रहा है और कांग्रेस उसको गिरफ्तार करने के बदले सिर्फ मुँहजबानी आलोचना कर रही है कल वो कहेगा कि मैं जो कहता हूँ वही कानून है और सबको न चाहते हुए भी उसी के कानून को मानना पड़ेगा तब कांग्रेस के साथ-साथ पूरे देश के सामने जो समस्या खड़ी होगी क्या उसका हल है कांग्रेस के पास? जिस आदमी को कश्मीरी अलगाववाद,वामपंथी उग्रवाद के समर्थन के आरोप में जेल में होना चाहिए उसे कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बना दिया? अगर केजरीवाल की जगह कोई आम आदमी होता और उसने निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया होता तो कब की पुलिस उसे वहाँ से गिरफ्तार कर हटा चुकी होती फिर स्वघोषित आम आदमी केजरीवाल के साथ वीआईपी जैसा व्यवहार क्यों? देश रहेगा,संविधान रहेगा,कानून रहेगा तभी कांग्रेस के दोबारा सत्ता में आने की संभावना भी रहेगी लेकिन अगर एक अराजकतावादी को कांग्रेस साजिशन देश का भाग्य-विधाता बन जाने देगी तो न तो देश रहेगा न ही देश का बाबा साहेब का बनाया संविधान और न ही कानून का राज। एक पागल दिन-रात जनता की ईच्छा के नाम पर उल्टे-सीधे आदेश दिया करेगा और लोग उत्तर कोरिया के नागरिकों की तरह न चाहते हुए उन पर अमल करने को बाध्य होंगे। तब उस नेवले का ईलाज कांग्रेस के बगुले कहाँ से लाएंगे? तब क्या उन कांग्रेसी घुनों के साथ-साथ देश की गेहूँ रूपी जनता भी अराजकता और एक पागल की प्रलाप रूपी चक्की में नहीं पिस जाएगी?
मुझे याद आता है अपना पढ़ा एक प्रसंग। तब कांग्रेस नेता सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं। उनके पति आचार्य कृपलानी कांग्रेस छोड़ चुके थे और लखनऊ में कांग्रेस-सरकार के खिलाफ ही आंदोलन कर रहे थे। उन्होंने भी निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया। डीजीपी ने सुचेता जी से पूछा कि क्या करें? सुचेता जी ने बेहिचक गिरफ्तार करने का आदेश दिया। शाम में वे खुद थाने में जमानत देने भी पहुँची तो आचार्य कृपलानी ने नाराजगी दिखाते हुए पूछा कि यह सब क्या है? पहले गिरफ्तार करवाया अब जमानत दे रही हो तब सुचेता जी ने कहा था कि गिरफ्तार करवाना एक मुख्यमंत्री का कर्त्तव्य था और अब जमानत देना एक पत्नी का फर्ज है। कहाँ गई कांग्रेसियों की वो नैतिकता? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

गणतन्त्र और बिका हुआ समाचार

गणतन्त्र और बिका हुआ समाचार 

गणतन्त्र का एक सशक्त आधार स्तम्भ है समाचार पत्र ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटनेट
कि सामाजिक साईट।

आम आदमी जब समाचार पत्र खरीदता है तो वह यह सोच कर नहीं खरीदता है की इस पत्र
का मालिक कौन है ,किस दल के प्रति लगाव या द्वेष रखता है। आम आदमी को देश का
दैनिक सही चित्र चाहिए इसलिए वह समाचार पत्र खरीदता है ,टी वी पर खबरे देखता सुनता
है मगर बहुत अफसोस !! हम आँखों से जो चित्र देखते हैं और कानों से सुनते हैं वह भी यथार्थ
से कोसों दूर होते हैं और हम भ्रम में पड़ जाते हैं क्योंकि कोई चैनल उस खबर के पक्ष में
दलील कर रहा होता है और कोई विपक्ष में। कोई सत्य को गलत ठहराता है तो कोई झूठ को
सही ,ऐसा क्यों हो रहा है? पैसा कमाने का धन्धा नहीं होते हैं समाचार मीडिया। समाचार पत्र
और मीडिया खोट का धंधा होता है और उस खोट की पूर्ति जनता से दान लेकर पूरी की जा
सकती है ,मगर आज हमारे घर में झूठी खबरें दबे कदम से घुसती जा रही है ,मीडिया बार-
बार झूठी खबरों को ,सामान्य अव्यवस्था को इस तरह चटकारे लेकर पेश करता है जैसे
वह खबर ही देश कि मूल समस्या है। बच्चा खड्डे में गिर गया उसका जीवंत प्रसारण,किसी
नेता ने कुछ कहा तो चार पंडितों को बुलाकर उसकी सुविधापरक व्याख्या करवाना। एक
ही बात को साम ,दाम ,दण्ड और भेद से बार-बार तौलते रहना जब तक नयी सनसनी खबर
हाथ में नहीं आ जाती।

         मीडिया लम्पट साधू के कारनामे कई दिनों तक दिखाता रहा,क्या उससे आम भारतीय
के बौद्धिक ज्ञान का विकास हुआ ? फिर क्यों खुद के कमाने के चक्कर में देश के लोगों का
वर्किंग समय ख़राब किया। हमारा मीडिया नकारात्मक खबरों को हाथों हाथ ब्रेकिंग न्यूज के
नाम से गरमागरम परोसता है ,उन ख़बरों को दिखाने से पहले यह नहीं सोचता है कि क्या
इनको दिखाने से देश का भला होगा।

  बहुत से समाचार पत्र मुख्य पेज पर कम महत्व वाली मगर चटाके दार खबर छाप देते हैं।
नेताओं के सकारात्मक कथन की व्याख्या मनगढ़ंत तरीके से लिख देते हैं। कुछ दिन पहले
देश के एक नेता ने कुत्ते के बच्चे का उदाहरण दे दिया और मीडिया ने उसका बेज़ा मनगढ़ंत
भावार्थ निकाला कि देश के एक वर्ग को लगा जैसे उसे कुत्ता कहा हो ,क्यों बचकानी हरकतें
करता है मीडिया ,क्यों वास्तविक भाव नहीं खोजता है? क्यों जल्दबाजी में है ?

      क्या मीडिया अपरिपक्व है या हर खबर में खुद का लाभ देखता है? इस देश में हिन्दू -
मुस्लिम सोहार्द के किस्से हर दिन बनते हैं मगर वो खबरों में जगह नहीं पाते मगर छोटा
सा दँगा मुख्य खबर बन जाता है। फर्जी खबरे और गुणगान ,सामान्य गुण को बड़ा और
बड़े फैसले को छोटा हमारा मीडिया बता देता है। किसी के छींक देने से देश को फायदे बता
देता है और किसी के पसीने बहाने को वायु प्रदूषण का नाम दे देता है।

   मीडिया अपने कर्तव्य को समझे ,पत्रकार राष्ट्र धर्म का निर्वहन करें। सही और जनहित
की  खबरों का प्रसारण निर्भीक रूप से करें। सकारात्मक खबरों को ज्यादा समय दें तभी
देश को ताकत मिलेंगी।            

20.1.14

शुरू हो गया दिल्ली की सड़कों पर हाई वोल्टेज ड्रामा-ब्रज की दुनिया

ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। आपने ड्रामें तो बहुत सारे देखे होंगे लेकिन माँ कसम इतना बड़ा और हाई वोल्टेज ड्रामा कभी नहीं देखा होगा। दिल्ली की पूरी सरकार सारे नियमों-कानूनों को रौंदती हुई,शपथ-ग्रहण के समय खाई हुई सारी शपथों पर थूकती हुई निषेधाज्ञा का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करती हुई खुद ही धरने पर बैठ गई है। चोरी और सीनाजोरी ऐसा उदाहरण शायद ही फिर से कभी देखने को मिले। जिन्होंने समर्थन देकर सरकार बनवाई यह उनकी ही सरकार के खिलाफ एक दूसरी सरकार का आंदोलन है। कई विदेशी महिलाओं को इनके मंत्री ने आधी रात में नाजायज तरीके से बंदी बना लिया। यहाँ तक कि सबके सामने ही मूत्र-विसर्जन करने के लिए बाध्य किया और खुद ही पीड़ित बनकर अब धरने पर जा बैठे हैं।
यह सही है कि दिल्ली पुलिस भ्रष्ट है। दिल्ली पुलिस क्या सारे राज्यों की पुलिस भ्रष्ट है। मगर क्या इस तरह पूरी दिल्ली को जाम कर देने,चार-चार मेट्रो स्टेशनों को बंद कर देने से दिल्ली पुलिस ईमानदार हो जाएगी? क्या निर्दोष विदेशी महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने से,उनको नाजायज तरीके से हिरासत में रखने से दिल्ली पुलिस ईमानदार हो जाएगी? गृह-मंत्री द्वारा पैसे लेकर थाना बेचने का आरोप तो पूर्व गृह सचिव व भाजपा नेता आर.के. सिंह ने भी लगाए थे जो कदाचित् सही भी हैं तो क्या चार वांछित लोगों का तबादला कर देने से गृह-मंत्री ईमानदार हो जाएंगे? कल हो सकता है कि केंद्र इनकी मांग मान भी ले क्योंकि इनका रिमोट तो कांग्रेस के पास ही है तो आज जो जनता को परेशानी हुई वो वापस हो जाएगी? क्या अरविन्द केजरीवाल की चांडाल चौकड़ी उसको वापस कर सकती है? सरकार चलाना और आंदोलन करना दो अलग-अलग काम हैं,बिल्कुल अलग-अलग तरीके के काम हैं। अन्ना अच्छे आंदोलनकारी हैं लेकिन कोई जरूरी नहीं कि मौका मिलने पर वे अच्छा शासन भी कर सकें। हो सकता है कि वे इस मामले में टांय-टांय फिस्स हो जाएँ। अरविन्द भी अच्छे आंदोलनकारी हैं,कहीं उससे अच्छे रंगमंच-कलाकार भी हो सकते हैं लेकिन उनका 20 दिन का काम बताता है कि वे शासक अच्छे नहीं हैं बल्कि बुरे हैं। वे ड्रामा कर सकते हैं,हंगामा भी कर सकते हैं लेकिन अच्छी सरकार नहीं दे सकते। कभी इसी कारण से ब्रिटेन की जनता ने उनको द्वितीय विश्वयुद्ध में जीत दिलानेवाले प्रधानमंत्री चर्चिल को पदमुक्त कर दिया था क्योंकि चर्चिल युद्ध के दिनों के लिए तो इस पद के लिए उपयुक्त थे परंतु निर्माण-काल के लिए अनुपयुक्त।
केजरीवाल को समझना चाहिए कि दिल्ली की सरकार को शासन का पूरा अधिकार नहीं है क्योंकि दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है और आगे भी रहना चाहिए अन्यथा कल को बिहार-यूपी वालों के साथ भी वही सलूक होगा जो मुम्बई में अक्सर होता है। मैं तो मांग करता हूँ कि मुम्बई को भी केंद्रशासित प्रदेश ही होना चाहिए। फिर भी दिल्ली सरकार के हाथों में काफी अधिकार है जिनका इस्तेमाल करके वो चाहे तो दिल्लीवालों का काफी भला कर सकती है। इस समय दिल्ली की सड़कों पर सर्वाहारा वर्ग के लोग ठंड के मारे दम तोड़ रहे हैं और सरकार गायब है। अरविन्द और उनकी सरकार को वहाँ होना चाहिए न कि धरने पर। दिल्ली की सरकार को तेज गति से उन वादों को पूरा करने के लिए मुस्तैद होना चाहिए जो उसने चुनाव-परिणाम आने से पहले किए थे  न कि धरने पर। दिल्ली सरकार को पहले उन नौ लाख लोगों की चिंता करनी चाहिए थी जिन्होंने उनलोगों की बातों में आकर पिछले एक साल से बिजली और पानी का बिल उनको इस वादे पर भरोसा करके नहीं भरा कि हमारी सरकार आने पर हम उनका सारा-का-सारा बिल माफ कर देंगे। उनको उन दिल्लीवासियों की चिंता करनी चाहिए जिनको उनके द्वारा पानी और बिजली पर दी जानेवाली छूट से कोई फायदा नहीं होनेवाला है बल्कि बढ़ी हुई दरों से नुकसान होनेवाला है। शायद ऐसे ही किसी मौके पर किसी दूरदराज के गांव में यह कहावत गढ़ी गई होगी-नाच न जाने आंगन टेढ़ा। करो,करते रहो आंगन को सीधा। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

गणतन्त्र में अल्प संख्यक की परिभाषा ?

गणतन्त्र में अल्प संख्यक की परिभाषा ?

यह गणतंत्र का महीना है और इतने गणतन्त्र देख चूका भारतीय आज दिशा विहीन क्यों हो
गया है ?क्या गणतंत्र में कमियाँ रह गयी थी उन्हें जानबूझ कर सुधारा नहीं गया या जान
बुझ कर उनका मनमाफिक उपयोग करने के लिए राजनेताओं ने बने रहने दिया ? या फिर
गण पर तन्त्र बैठा दिया गया।

गणतन्त्र जब हर भारतीय के लिए है तो जाति ,पंथ और धर्म के नाम पर हक़ में अंतर क्यों ?

         भारतीय संस्कृति में शुद्र कोई जन्म पर आधारित व्यवस्था नहीं थी यह तो कर्म पर
आधारित व्यवस्था थी लेकिन हमने जन्म आधारित जाति व्यवस्था को आधार बना
लिया,क्यों ?

जाति आधारित हक़ बढाकर क्या हमने भारतीयता को मजबूत किया है ?अगर हम इतने
सालों में उन भारतीयों को अविकसित श्रेणी से नहीं निकाल पाये हैं तो उसके क्या कारण
रहे हैं ?क्या हमारा आरक्षण भाई -भाई में प्रेम को बढ़ा रहा है ?क्या हम जाने -अनजाने
अपनी विपुल सामाजिक व्यवस्था के दर्द का ईलाज कर रहे हैं या दर्द को बढ़ा रहे हैं ?जिस
व्यवस्था को हमारे ऋषियों ने शुद्र की श्रेणी में रखा और उसे पैर स्तम्भ कहा उसका गलत
भाव ,उसकी गलत व्याख्या हम लोगों ने की है। जिस संस्कृति का पैर ही कमजोर हो उसे
लकवा मार जाता है ,वह संस्कृति विकलांग होती है। हमारे ऋषियों ने मजबूत सेवा क्षेत्र
को समाज का पाँव कहा क्योंकि उस क्षेत्र पर समाज का विकास टिका था ,मगर काल वश
हमने उस व्यवस्था को जन्म से जोड़ दिया और अपना संविधान पाने के बाद भी उसे जन्म
से जोड़े रखा ,क्या यह हमारी भूल नहीं है? फिर सब कुछ समझ कर भी हम जन्म से जीव
को शुद्र क्यों मान रहे हैं ?क्या हमें मजबूत भारत के लिए जन्म या जाति से जुड़ा रहने में
लाभ है या फिर हमें आर्थिक आधार पर भारतीयों की वर्ग व्यवस्था बनानी होगी और उसी
 नये मानदण्ड के तहत विकास की ओर बढ़ना होगा ?

जब यह देश भारत है और उसका नागरिक भारतीय कहलाता है तो किसी को बहुसंख्यक
और किसी को अल्प संख्यक क्यों माना जा रहा है ?क्या परिभाषा है अल्प संख्यक की ?
अगर हम भारतीय हैं तो सभी भारतीय हैं ,क्या भारतीयता धर्म या जाति जन्म के आधार
पर तय होगी ?क्या हम किसी को अल्प संख्यक कह कर उसमे खोटा भय बहुसंख्यक का
नहीं दिखा रहे हैं ?भारतीयों को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक कह कर उन्हें आपस में लड़ा
तो नहीं रहे हैं ,उनमे वैमनस्य तो नहीं बढ़ा रहे हैं ?क्या भारतीयों के धर्म और आस्था के
विभिन्न प्रतीकों को मानने के आधार पर राष्ट्र निर्माण की योजना सफल रही है या रहेगी ?

    हम यदि गणतन्त्र इस देश में लाना चाहते हैं तो हमे नए मार्ग बनाने होंगे ,हमे बदलनी
होगी जन्म आधारित व्यवस्था ,हमें बदलनी होगी धर्म आधारित व्यवस्था। हमें सब में 
भारतीयता की स्थापना करनी होगी। हमारी पहचान भारतीयता बने ना कि हिन्दू ,मुस्लिम ,
सिक्ख,ईसाई ,जैन या अन्य। हमें सत्ता प्राप्ति के लिए या उस सत्ता से चिपके रहने के
लिए भारतीयों को आपस में लड़ाना बंद करना होगा।  हमें धर्म आधारित तुष्टिकरण की
राजनीति को दूर करना होगा ,अब भारतीयों को समता की राजनीति करनी होगी ,सद्भाव
कि राजनीति करनी होगी। हम आम भारतीयों को निश्चय करना पडेगा कि जो नेता एक
भारतीय से अधिकार छीन कर दूसरे को देता है उस सोच से बच कर रहना होगा ?जो सोच
हमारी आस्था को सत्ता पाने के लिये साधना चाहती है उस सोच के पँख काटने होंगे।

हे भारतीयों,तुम न तो अल्पसंख्यक हो और न ही बहुसंख्यक ;तुम सब भारत माता की
संतान हो। वर्ग भेद,जाति भेद,धर्म भेद से ऊपर उठ कर मिलझुल कर आगे बढ़ो।           

19.1.14

आम तौर पर ईश्वर हर किसी को छप्पर फाड़ कर नहीं देता लेकिन केजरीवाल को भगवान् ने लेंटर फाड़ कर दिया है । दिल्ली दी है । अब उनसे दिल्ली संभल नहीं रही है । लेंटर भारी होता है । केजरीवाल को चाहिए था कि वे लोकसभा को छोड़कर दिल्ली सँभालते ।  दिल्ली दिल है भारत का , दिल्ली सम्भाल लेते तो अन्य राज्यों के दरवाजे भी सम्भाल लेते । लेकिन क्या करें ? उन्हें जल्दी पड़ी है । पी एम् बनना  है । अब उनके क़ानून मंत्री जो कर रहे हैं , हो सकता है , हर जगह उनका दोष न हो लेकिन एक प्रोसेस होता है और जब तक आप कानूनी प्रक्रिया द्वारा इन को बदलेंगे नहीं तब तक आपको उन पर चलना पड़ेगा क्योंकि अब आप मूवमेंट नहीं चला रहे , सरकार चला रहे एक बात जगजाहिर है , कानून मंत्री को ज्ञान नहीं है । लेकिन कोई बात नहीं , वे मदद ले सकते थे । लेकिन स्वीकार कैसे करें ? ज्ञान नहीं है । अहम् है । केजरीवाल भी नहीं मान रहे कि उनके मंत्री को ज्ञान नहीं । अरे ! नीयत तो आपकी ठीक है न ? फिर क्या बात है ? ज्ञान भी समय पर हो जाएगा । पर अपनी हरकतों से अपना अज्ञान तो न बखारें । इसी से यह कुल मिलाकर ड्रामा लग रहा है । केजरीवाल के काम का मूल्यांकन सौ दिन बाद होना चाहिए पहले भी लोग सौ दिन का तो इन्जार करते रहे हैं । अब हमें भी समझना चाहिए कि वे बुरे फंस गए हैं इसलिए धैर्य से उन्हें सौ दिन देने चाहिए और काम करने देना चाहिए । सौ दिन बाद पूछा जाए कि आपने क्या किया । केजरीवाल भी सौ दिन का समय मांग लें कहें , सौ दिन बाद पूछना । और फिर चुपचाप काम करें । लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है ।

18.1.14

सरकारी हॉस्पिटल की बात की जाए तो ये तमाम सरकारी विभाग  एक ही शर्त पर ठीक हो सकते हैं जब सरकारी लोगों के लिए भी सरकारी विभागों में ही अपने कार्य कराने की  अनिवार्यता हो । यानि यदि मंत्री से लेकर सरकारी चपरासी तक के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ें तो सरकारी स्कूल बहुत आसानी से ठीक हो जायेंगे । क्योंकि सरकारी स्कूल में जब सभी  सरकारी लोग जायेंगे तो व्यवस्था बनानी ही पड़ेगी । आज सरकारी स्कूल में जब गरीब के बच्चे पढ़ते हैं तो वहाँ इनकी सुनने वाला कोई नहीं होता लेकिन जैसे कि दक्षिण में हुआ एक आई ए  एस ने अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में भर्ती करवा दिया तो स्कूल की  पहले हालत खराब थी बाद में तीन माह में स्कूल सुधर गया और बहुत बदलाव आये । मैं स्वयं भी एक सरकारी टीचर हूँ तब भी यह बात कह रहा हूँ । ऐसे ही सरकारी लोग अपने बच्चों का इलाज सरकारी हॉस्पिटल में कराएं तब ठीक होंगे हॉस्पिटल । सरकार के बड़े बड़े अधिकारी तक जब सरकारी हॉस्पिटल में इलाज कराएंगे तो व्यवस्था को दबाव में ठीक होना ही होगा । यही एकमेव इलाज है सरकारी उपक्रमों के ठीक करने का । 
डॉ द्विजेन्द्र हरिपुर ,  देहरादून

17.1.14

आज राहुल गांधी जी का भाषण सुना । सुना कि वे पीछे मुड़कर नहीं  देखते । देख लेते तो पता चलता कि उनके लोगों ने देश में  कितनी गरीबी छोड़ी है । देखते तो पता चलता कि जिस कलावती के घर का एक वक़्त का भोजन वे खा आये थे उसका दामाद और बेटी कर्ज में डूबकर मर चुके हैं और वह  भी मरणासन्न है ।
वे कहते हैं कि कांग्रेस का इतिहास तीन हज़ार साल पुराना है । सॉरी , कांग्रेस का इतिहास तीन हज़ार साल पुराना नहीं है । अठारह सौ पचासी में स्थापित हुयी थी कांग्रेस । एक सौ उन्तीस वर्ष हुए हैं । लेकिन आप क्या कहना चाहते हैं ? देश की  आजादी का श्रेय लेना चाहते हैं । तो फिर उन्नीस सौ सैंतालीस के दंगों का भी श्रेय आपको लेना पड़ेगा  । गांधी जी ने आजादी के बाद कहा था कि कांग्रेस को  ख़त्म कर दो । वे जानते थे कि देश को आजाद करने का श्रेय लेकर कौन लोग मजे लूटना चाहेंगे । लेकिन ऐसा हुआ नहीं । क्या आज जो लोग अन्य पार्टियों में हैं उनके पुरखों या पार्टियों के लोगों को कोई श्रेय नहीं मिलेगा ? क्यों ?
राहुल ने कहा कि कांग्रेस एक सोच है संगठन नहीं । अच्छा ? लेकिन इस देश की  तीन हज़ार वर्ष  सोच  इतनी भ्रष्ट नहीं रही है । यह देश स्वर्णिम इतिहास रखता है । यदि आजादी के बाद की  कांग्रेस को हटा दिया जाय तो भारत का इतिहास बहुत स्वर्णिम रहा है । इसलिए अपनी सोच अपने पास रखिये ।
आपने कहा विपक्ष गंजों को कंघी बेचता है । जी हाँ।  कांग्रेस पार्टी की  तरह देश नहीं बेचता । टू जी । थ्री जी । koal  घोटाले नहीं करता ।
आप सिलेंडर बढ़ा रहे हैं ।  बेवकूफ समझते हैं हमें। हमें सिलेन्डर  देना चाहते हैं या अपने लिए ऑक्सीजन सिलेंडर जुटाना चाहते हैं ।
आप कहते हैं देश के गरीबों के लिए काम करेंगे । आपके मंत्री तो चाय वालों को  आदमी ही मानने को तैयार नहीं हैं ।   उन्हें तो समझाइये ।
छोड़िये भी । आप क्या जानेंगे गरीबों का दर्द ।
डॉ द्विजेन्द्र हरिपुर , देहरादून

राजनीति के तमाशें का हिस्सा बनी आम आदमी पार्टी

-बड़बोलापन पड़ रहा है अब भारी, मीडिया को भी नचाया
-जनता वादों, बातों, हरकतों को वक्त के तराजू में तोल रही है
-नितिन सबरंगी
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीति वाकई एक तमाशा है। बोलना अच्छा होता है लेकिन बड़बोलापन अच्छा नहीं। यकीनन आम आदमी पार्टी में कुछ ऐसा ही चल रहा है। जनता ने बड़ी उम्मीदों से अरविंद केजरीवाल को सत्ता दी है, लेकिन उनके खरे उतरने पर सवाल उठ रहे हैं। बात केवल विपक्षी पार्टियों की नहीं बल्कि आम जनता की भी है। हर बात को विपक्षियों की साजिश करार भी नहीं दिया जा सकता। जनता की अपेक्षा से वादों की नाव पर सवार होकर जो वोट हासिल किये हैं उनका बदला तो चुकाना ही होगा। मतदाताओं के मन को टटोलिये उन्हें बहुत कुछ समझ में आने लगा है या यूं कहें कि राजनीति है ही ऐसी कि जो इसमें जाता है उसे खुद को बदलना पड़ता है। बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि ‘पहले तौलो फिर बोलो’ बात छोटी है परन्तु अति महत्वपूर्ण भी है। कई बार इंसान क्या ओर कितना बोल जाता है उ
से खुद भी पता नहीं होता। वैसे केजरीवाल जी को पता होगा क्योंकि वह गंभीर स्वभाव के व्यक्ति हैं। सवाल उठ रहे हैं कि मीडिया में तमाशा ज्यादा हो रहा है। इस
बात में दम है तभी सवाल उठ रहे हैं। अपने-पराये पोल खोलकर झूठ पकड़कर सामने ला रहे हैं। अपने ही विधायक बिन्नी झूठा बता रहे हैं। जनता महंगाई ओर भ्रष्टाचार से त्रस्त थी ओर है केवल इसीलिए तो उसने एक नई पार्टी को चुना वह भी इसलिए कि उनमें साधारण झलक थी ओर वादे भी कुछ अलग थे। अब यदि वादे पूरे नहीं होते तो भावनाएं तो आहत होंगी हीं। कथनी ओर करनी में बार-बार फर्क होगा, तो पकड़ में बातें आ ही जाती हैं।
एक चैनल ने सर्वे कर डाला। हालंाकि ऐसे सर्वे के कोई बहुत मायने भले ही न माने जायें, लेकिन सर्वे क मुताबिक 83 प्रतिशत जनता मान रही है कि केजरीवाल ने जनता को धोखा दिया है। हुजूर यह कहना अभी जल्दबाजी होगी थोड़ा इंतजार कीजिए। ख्वाहिशों का भी अंत नहीं हुआ है। साहब ने पूरे देश में पंख फैला दिए है लोकसभा चुनाव के लिये। सच चाहे जो भी हो लेकिन झूठ की गठरी की जब गांठे खुलतीं हैं तो उसमें बांधने को कुछ नहीं रहता। कार्यकर्ता बढ़ रहे हैं। आप देखिए सभी ईमानदार हैं, बेईमान ढूंढे नहीं मिलेंगे। सांसारिक हकीकत है कि प्रत्येक व्यक्ति के मन में लालच, महत्वाकांक्षा, लोभ जैसे गुण विद्यमान होते हैं। किसी में कम किसी में ज्यादा। हवा के बाद हर शहर में ऐसे लोग आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता बताने लगे हैं जो कुछ कारनामेबाज रहे हैं। जरा उनसे पूछिए क्या कभी भ्रष्टाचार को किसी भी रूप में बढ़ावा नहीं दिया। उनको देखकर जो वाकई आम आदमी है वह मुस्करा रहा है। करोड़ों का कारोबार, व्यापार करने वाले भी आम आदमी हो गए!
कुमार विश्वास जैसे सिपाही के बड़बोलेपन ओर स्वभाव को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। सही भी हैं। हर एंगल से बंदे में अंहकार जैसे लक्षण नजर आते हैं। नाउम्मीद जीत का उत्साह ही कहा जायेगा कि कुछ भी बोले देते है किसी के बारे में कुछ-कुछ व्यापारी बाबा की तरह। पुराने मामले खुल रहे हैं जो अब संभालने नहीं संभल रहे। वैसे तर्जुबा उम्र ओर ठोकरों से आता है। दूसरे नेता जी कश्मीर पर शर्मनाक बयान देते हैं। किसी भी भारतीय को गुस्सा आ जाये। राखी बिड़ला वाले मामले को ही लें। बच्चे की बॉल से कार का शीशा टूट गया बेवजह एक बड़ी नौटंकी हो गई। इसकी पोल भी खुल गई। बच्चे की माँ ने तत्काल माफी भी मांग ली थी लेकिन मुकदमा लिखा दिया गया। रिपोर्ट आयी कि मासूम बच्चा डर गया तीन दिन तक खाना नहीं खाया। दहशतजदा परिवार घर छोड़कर चला गया। जब पता था तो क्यों ड्रामा किया गया? पूरी आम आदमी पार्टी को जरूरत संतुलन की है ओर कुछ कर दिखाने की। यह साफ है कि कई तराजू हैं जो वक्त के साथ उसे तौलना जारी रखेंगे। यह तराजू जनता के हाथ में ही है।

एक सशक्त केंद्रीय सत्ता मांगता है देश - सुधीर मौर्य

पिछली ८ दिसंबर को आये दिल्ली विधानसभा के नतीजो ने एक नई बहस को जन्म दे दिया। ऐसी बहस जिसमे आम आदमी पार्टी के सयोजक अरविन्द केजरीवाल एक नायक के रूप में उभरे, एक ऐसे नायक जो भ्रष्टाचार के खिलाफ दो - दो हाथ करने को तैयार हो। निश्चय ही अरविन्द केजरीवाल से अब देश की उम्मीदे जुड़ने है, ऐसी उम्मीदे जिसमे देश अपने को भ्रष्टाचार से मुक़्त करने कि सोच सके। देश को भ्रस्टाचार से मुक्त करने की रौशनी की किरण जो अरविन्द केजरीवाल ने जगाई है उसके हम दिल से आभारी हैं। भ्रष्टाचार आज की तारीख में देश के लिए सबसे बड़ा प्रश्न है पर एक यही प्रश्न तो नहीं है जो देश के सामने मुह बाये खड़ा हो। भ्रष्टाचार के अलावा और भी कई प्रश्न है जिनके उत्तर देश मागता है, इन प्रश्नों में जो सबसे बड़ा प्रश्न है वो है की किस तरह से पडोसी दुश्मनो से देश की सरहदों, देश की ज़मीन की रक्षा की जाये। आज हालत ये है की चीन का जब दिल चाहता है वो हमारी देश की सीमाओ में आके केम्प लगा देता है। उसकी जब मर्ज़ी है वो अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे भारतीयो राज्यो को अपना बताने है, अरुणाचल प्रदेश के लिए तो वो नत्थी वीजा जारी करता है।

सन उन्नीस सौ सैतालिस से ही हमारे कश्मीर का एक हिस्सा 'आज़ाद कश्मीर' के नाम पर पाकिस्तान के पास है। पाकिस्तान जब तब सीज फायर का उल्लघन करके एल ओ सी पर गोलाबारी करता रहता है। उसकी ढिठाई तो इतनी बढ़ गई है की वो हमारी सीमाओ के अंदर आकर हमारे सैनिको के सर काट ले जाता है। आज पूरी दुनिया जानती है भारत, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से पीड़ित है। हमारे देश में आतंक की घटनाओ को अंज़ाम देने वाले पाकिस्तान में हीरो कि तरह खुलेआम घूम रहें हैं। आज सिंध में रह रहे अल्पसंख्यक हिन्दुओ की हालत जानवरो से भी बदतर है। वहाँ की हिन्दू लड़कियों की अस्मत बड़ी आसानी से उनके ही परिवार वालो के सामने लूट ली जाती है।

बांग्लादेश भी भारत के लिए एक बड़ी समस्या बनके उभरा है। भारत में आतंकवाद के धंधे को चलने के लिए आतंकवादी संगठनो ने अब बांग्लादेश की ज़मीन को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना चालु कर दिया है। आज भारत में बांग्लादेशी घुसपैठिये टिड्डी दल कि तरह घुसते चले आ रहे है। बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन वहाँ रह रहे हिन्दुओ का ज़बरन धर्म परिवर्तन कर रहें है।वहाँ हिन्दू लड़कियों का निर्ममता से बलात्कार किया जाता है। और अब यही शर्मनाक घटनाये बांग्लादेश से आये घुसपैठिये बांग्लादेश की सीमाओ से लगे भारत के राज्यो में अंज़ाम दे रहें हैं।

चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत को सिर्फ इसलिए परेशां कर पा रहें है क्योंकि भारत की केंद्रीय सत्ता कमज़ोर है। इतिहास गवाह है जब - जब देश में केंद्रीय सत्ता कमज़ोर हुई है तब - तब हमारे ऊपर हमला करने वाले कामयाब हुए हैं। इतिहास में झांके तो तैमूर ने भारत में तब लूटपाट की जब निकम्मा तुग़लक़ सुलतान नसरिउदीन दिल्ली की सत्ता संभाल रहा था। बाबर ने भी पानीपत की पहली लड़ाई में कमज़ोर लोदी सुल्तान इब्राहीम को हराकर भारत में लूटपाट की थी। नादिरशाह भारत को सिर्फ इसलिए लूट सका क्योंकि मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह एक निर्बल बादशाह था। ठीक इसी तरह अब्दाली भी इसलिए कामयाब हुआ क्योंकि कायर अहमदशाह उस वक़्त भारत का बादशाह था। इसके उलट सिकंदर, सेलूकस को भारत में इसलिए सफलता नहीं मिली क्योंकि चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध में सशक्त सत्ता का निर्माण किया था। चीन के शक्तशाली राज्य को धूल में मिला देने वाले भारत में इसलिए धूल में मिला दिया गए क्योंकि स्कंदगुप्त के रूप में सशक्त शासक भारत के केंद्र में मौजूद था। मंगोलो को भारत में लूटपाट करने से रोक सकने में अलउद्दीन खिलज़ी सफलता पाई थी।सशक्त मुग़ल बादशाह अकबर से लेकर औरंगज़ेब तक कोई भी विदेशी ताकत हमें लूट पाने में कामयाब नहीं हो पाई। आधुनिक भारत में भी जब - जब इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपई सशक्त सरकारे केंद्र में रही, हर बार दुश्मनो धूल चाटनी पड़ी। आज हमारे देश एक ऐसी सशक्त सरकार की जरुरत है जो विश्व में भारत को एक शक्तशाली देश के रूप स्थापित कर सके। जो भारत में हो रही आतंकवादी घटनाओ को रोक सके, जो देश के वीर सैनिको की शहादत को सम्मान दिल सके, उनकी हत्या का प्रतिशोध ले सके। जो अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश के रुतबे को कायम कर सके। जो हमारी ज़मीन चीन से वापस ला सके। जो पाकिस्तान में घूम रहे देश के गुनहगारो को सजा दिल सके। कौन दिला सकता है भारत को सम्मान एक सशक्त सरकार के रूप में ? एक प्रश्न ये भी है। यकीनन आज की राजनीत में सिर्फ नरेंद्र मोदी ही एक ऐसा नाम है जो भारत को आतंकवाद से सुरक्षित रख पाने में सक्षम है। नरेंद्र मोदी ही है जो बेलगाम होते चीन की लगाम कस सकते हैं। नरेंद्र मोदी ही हैं जो पाकिस्तान के नापाक इरादो को धूल में मिला सकते है।

यकीनन आज देश में महगाई और भ्रष्टाचार भी बहुत बड़े मुद्दे हैं पर हमें नरेंद्र मोदी की योगयता पर पूरा विश्वास है की वो सीमाओ के बाहर और सीमाओ के अंदर के सारे मुद्दे सफलता पूर्वक हल कर सकते है और एक सशक्त और विकसित भारत का निर्माण कर सकते है। अरविन्द केजरीवाल यकीनन एक ईमानदार व्यक्ति हैं और उनमे दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने की योगयता है, पर इस वक़्त देश के प्रधानमंत्री बनने के योग्य इस वक़्त अगर कोई है तो वो नरेंद्र मोदी है। आज हमारे पास नरेंद्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल जैसे योग्य व्यक्ति हैं निश्चय ही अब हमारे देश का भविष्य उज्जवल है। मै उम्मीद करता हूँ कि २०१४ में देश की जनता नरेंद्र मोदी के रूप में भारत को एक सशक्त प्रधानमंत्री देगी और नरेंद्र मोदी एक खुशहाल भारत का निर्माण करेंगे।

सुधीर मौर्य
गंज जलालाबाद, जनपद - उन्नाव, (UP) २०९८६९
09619483963

16.1.14

अपने केजरीवाल से कहना - समर्थक तो हम भी बन रहे थे लेकिन तुम्हारी हरकतों ने लौटने पर मजबूर कर दिया । दिल्ली सम्भाली नहीं जा रही देश कैसे संभालोगे ? तुम्हारा हारना हमें बहुत दुखी करेगा । तुमने सबको गाली दे देकर सत्ता कब्जायी थी हमने सोचा था चलो अब कुछ बदलेगा लेकिन तुम्हारे सपने बहुत ऊँची छलांग लगा रहे हैं । दिल है दिल्ली देश का । उसे सम्भालो तो देश  सर आँखों पर बैठायेगा । जल्दी क्या है । लेकिन भ्रष्ट कांग्रेस का साथ ? बहुत बुरा किया । अरे फंस रहे थे तो बीजेपी को समर्थन दे देते । पांच साल आराम से कटते  । तुम्हारे नए नए चेहरे बहुत कुछ सीखते इन पांच सालों में । जिम्मेदारी ज्यादा होती नहीं । अपने क्षेत्र में विकास कार्य करके अपनी अट्ठाईस  सीट्स पक्की कर लेते पांच साल बाद के चुनाव में । बीजेपी को समर्थन देने की  शर्त रखते कि जब तक बीजेपी असाम्प्रदायिक की  तरह काम करेगी तब तक समर्थन करोगे । बीजेपी साम्प्रदायिक नहीं है फिर भी कह रहा हूँ । मैं तो मोदी का हूँ फिर भी कह रहा हूँ । जब कांग्रेस समर्थन वापस ले या तुम्हारी सरकार गिरे तब बीजेपी को समर्थन कर देना । बच जाओंगे वरना  नाम भी कोई नहीं लेगा । सुनो , कांग्रेस के ख़त्म होने का समय आ गया है तो एक विपक्ष तो चाहिए । तुम हो सकते हो । सोच समझ कर फैसले लो । समझे ,

Flax Awareness Society: Best Way To Eat Flax

Flax Awareness Society: Best Way To Eat Flax

14.1.14

प्रयोग-तंत्र

प्रयोग-तंत्र 

सड़क पर ट्रक ड्राईवर गाडी चला रहा था ,नशे में धुत होने के कारण गाडी के स्टेयरिंग से
काबू खो दिया और ट्रक ने कुछ को कुचल दिया जिसमे एक -दो मर गए और सात -आठ
घायल हो गये। हादसा होते ही भीड़ इकट्टी हो गई। लोग काफी गुस्से में थे उनमें से एक
बोला -गाडी सड़क पर चलने से दुर्घटना होती है ,इसलिए ट्रको को सड़क पर नहीं उतारना
चाहिये।
दूसरा बोला -इन ड्राइवरों को गाडी चलाना ही नहीं आता।
तीसरा बोला -हमें ट्रको में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा ,हम ऐसी ट्रक का निर्माण
कर सकते हैं जिसे नौसिखिया भी बढ़िया तरीके से चलाये और दुर्घटना होने के पहले
ट्रक में लगे सेंसर हमें बता देंगे कि सावधान हो जाए।
भीड़ ने कहा -क्या ऐसा हो सकता है ?
उस व्यक्ति ने आत्मविश्वास से जबाब दिया -हाँ ,यह कोई बड़ी बात नहीं है। मैं और
मेरे दोस्त ऐसा कर सकते हैं।
भीड़ उत्साह और कोतुहल से भर गई और उन्होंने उससे पूछा -बोल ,तुझे क्या चाहिए ?
वह व्यक्ति बोला -इस ड्राईवर को हटा दीजिये।
भीड़ ने पूछा -क्या दूसरा ड्राइवर लाये जो नशा नहीं करता हो ?
वह व्यक्ति बोला -नहीं ,दूसरे अनुभवी और योग्य ड्राइवर की जरूरत नहीं है ,बस आप
न तो दूसरा लाने कि बात करे न इसको रखने की।
भीड़ में से एक ने पूछा -फिर इस सड़क के बीच खड़ी ट्रक को कौन चलायेगा ?
वह व्यक्ति बोला -आपको किसने कहा ट्रक चलाने के लिए निपुणता कि आवश्यकता
होती है। आप सब हमारे पर विश्वास कीजिये ,हम कसम खाते हैं कि इस ट्रक में
आमूलचूल परिवर्तन कर देंगे ये स्वत: चलेगी।
भीड़ का कौतुहल बढ़ता गया ,कुछ उतावले लोगों ने उसके मत को योग्य बता दिया।
देखने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। सबने एक दूसरे को बताया कि यह व्यक्ति
कुछ नया करने को कह रहा है। जिसने भी नयी बात को सुना उसका कायल हो गया।
भीड़ ने तय किया कि हम इस व्यक्ति को अवसर देंगे ,भीड़ में से एक आवाज उठी -
अरे,इससे पूछ तो लो कि इसने कभी वाहन चालन किया है ?

उस व्यक्ति ने कहा -वाहन चालन सीखना निकम्मी बात है जी ,हम बिना सीखें भी
बढ़िया ट्रक बनायेंगे और चला के दिखायेंगे।
लोगों ने नशे में डूबे चालक को पीट कर निचे उतारा, योग्य ड्राइवर को किनारे किया
और उस व्यक्ति को बैठाया।

वह व्यक्ति चालक सीट पर जा बैठा और गाडी का इन्जन चेक किया और बोला -
आज यह गाडी सड़क पर पड़ी रहेगी इसके इन्जन को कल खोल के देखना है।

दूसरे दिन भी गाडी सड़क पर पड़ी थी वह ड्राइवर बोला इसके ईंधन को बदलना होगा।

तीसरे दिन भी गाडी सड़क पर पड़ी रही वह व्यक्ति बोला -गाडी चलाने से पहले सड़क
की फाईल की जाँच आवश्यक है।

चौथे दिन वह व्यक्ति बड़ी भीड़ इकट्टी करके ड्राईवर की सीट पर बैठा ,इंजन स्टार्ट किया
ट्रक को गति दी ,कुछ ही फीट चल कर ट्रक डिवाइडर से टकरा गयी। वह व्यक्ति सीट
से उतर कर ट्रक की छत पर चढ़ गया और बोला -माफ करना ,मैं अभी ट्रक में पुरे
परिवर्तन नहीं कर पाया ,मुझे समय दीजिये ,मैं और नए तरीके आजमाता हूँ।

यह कह कर वह व्यक्ति चला गया और सड़क जो पहले से संकड़ी थी उस ट्रक में नए
बदलाव के कारण और जाम हो गयी।     

विकसित होते गुजरात के पंख हैं "हम "

विकसित होते गुजरात के पंख हैं "हम "

भारत के टुच्चे राजनीतिज्ञ वर्तमान और भविष्य को नहीं देख पा रहे हैं उन्हें केवल
दिखाई देता है सालों पहले हुआ गुजरात का दँगा ,अतीत के उस पन्ने को बार -बार
खोल कर वो देश के सामने रखते रहते हैं जैसे वह दँगा अभी तक चल रहा हो!!

          क्या गुजरात झूठे मिडिया ,उल्लू  गुणों वाले राजनीतिज्ञों,स्वार्थी NGO से
निराश हुआ ?नहीं। गुजरात पर दैविक और लोक सृजित आपदायें आयी और
हर बार गुजरात स्वयं के बल से बाहर निकला ,कैसे ?सब लोग पूछते हैं यह हुआ
कैसे ?इसके पीछे परिपक्व नेतृत्व कि मेहनत है।

    गुजरात के टूटे हुये दिलों में एक नयी आशा का संचार हुआ जब यहाँ के नेतृत्व 
ने एक महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने बड़ी कुशलता से हिंदुओं से "ह "लिया और 
मुस्लिमों से "म "और फिर इन दोनों को नेक नियत से जोड़ कर "हम "बना दिया।

यह बात बहुत से बुद्धिजीवियों के गले नहीं उतरी होगी क्योंकि उन्होंने इस प्रयोग
को देखा नहीं था और आज तक समझा भी नहीं है। वो तो बस एक रट लगा के बैठे
हैं कि यहाँ का विकास बड़बोलापन है। वो लोग झूठ बोल कर खुद भी सच को समझ
नहीं पा रहे हैं और देश के अवाम को भी गुमराह कर रहे हैं। गुजरात में बारह साल
से कोई दँगा क्यों नही हुआ ,टुच्चे नेता गुजरात में आपाधापी देखना चाहते हैं पर
"हम "के कारण उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। गुजरात के नेतृत्व ने बड़े धीरज
से विकास के आकाश में "ह "और "म "के दोनों पंखों से मुक्त आकाश में उड़ान
भरी और देखते ही देखते गुजरात विकास की बुलंदियों को छूने लगा।

     आज जब देश के अधिकाँश नेता तुष्टिकरण की खोटी कुनीति से बाहर कुछ
नहीं देख पा रहे हैं वहीं गुजरात ने समता कि नीति में विश्वास कर सबको प्रगति
का समान अवसर प्रदान किया ,समता की नीति से दोनों समुदायों का द्वेष खत्म
हुआ और हर गुजराती पुरे दम ख़म के साथ विकास के पथ पर ,कुछ अच्छा कर
गुजरने के लिये दौड़ने लगा और परिणाम यह आया कि गुजरात विश्व के नक़्शे
पर छा गया।

एक के मुँह से छीनकर दूसरे के मुँह में ग्रास डालने कि कुनीति जैसे ही खत्म हुयी
वैसे ही अलग-अलग मजहब ,अलग-अलग प्रान्त के लोगों ने एक दूसरे के हाथ
मजबूती से थाम लिये और चल पड़े विकास की  राह पर।

    आज वोट बैंक की राजनीती के युग में , जातिवाद और धर्मवाद की राजनीति
के युग में, पक्षपात और तुष्टिकरण के युग में  "हम " की संस्कृति दुर्लभ है।

  आज "हम" ने गुजरात को स्थिर सरकार दी और बदले में नेतृत्व ने विकास के
नए रास्ते बनाएँ। आज हम गुजराती आगे बढ़ रहे हैं ,दंगे फसाद ,लड़ाई -झगड़े
सब भूल गए क्योंकि अब हमारे हाथों में काम है हम निकम्मे नहीं रहे। हमारा
काम "हम "अकेले अकेले पूरा नहीं कर सकते इसलिये पुरुषार्थ ने हमें मिलजुल
कर रहने को बाध्य कर दिया।
            

13.1.14

अपना हिंदुत्व ,विश्व बंधुत्व (स्वामी विवेकानंद के चरित्र से )

अपना हिंदुत्व ,विश्व बंधुत्व  (स्वामी विवेकानंद के चरित्र से )

स्वामी विवेक नन्द जी को प्रणाम। 

हमारे देश को आज किसकी ज्यादा जरूरत है। क्या राष्ट्र भक्ति के नाम पर पग-पग
पर हिंदुत्व को कटटरवाद से जोड़ने वाले नेताओं की जरूरत है ?

क्या तुष्टिकरण को सर्वोच्च मानने वाले हल्के नेताओं की देश को जरुरत है ?

हिन्दूधर्म के टुकड़े जाति के नाम पर ,छूत-अछूत के नाम पर,आरक्षण के नाम पर
करने वाले नेताओं का कोई औचित्य है ?

 अगर ऐसे नेताओं की देश को जरूरत नहीं है तो उनके विचारों का अस्तित्व क्यों है ?

-इसका कारण हिंदुत्व में भेद डालने की नीति,लोकतंत्र की सँख्या बल की आधारशिला,
और स्वार्थ सीधा करने की संकुचित मानसिकता है।

हर दिन देश की बहस सम्प्रदायवाद के जहर से शुरू होती है ,हिंदुओं को साम्प्रदायिक
ठहराकर अन्य धर्म के अनुयायियों में हिंदुओं के प्रति नफरत और भय का भाव दिखाया
जाता है ,क्यों ?क्या इस कुकृत्य से देश का हित हो जायेगा ?कटटरता के भाव धर्म में नहीं
होते हैं,मनुष्य के मन में होते हैं।जिनका भाव खोटा उनका आचरण खोटा।
           
 स्वामी विवेक नन्द के जीवन से जुड़ी एक घटना -एक दिन खेतड़ी राज्य के सेक्रेटरी श्री 
जय मोहनलाल उनके दर्शन करने आए। उस समय स्वामीजी एक खाट पर कोपीन 
पहने लेटे थे। सेक्रेटरी ने उनसे पूछा -"महाराज ,क्या आप हिन्दू हैं ?
स्वामीजी बोले-"हाँ ,मैं हिन्दू ही हूँ "  
सेक्रेटरी ने पूछा-"फिर आप मुसलमान के यहाँ क्यों खा लेते हैं "?
स्वामीजी ने कहा -"इसीलिए कि मैं हिन्दू हूँ "
सेक्रेटरी ने कहा -"पर हिन्दू तो मुसलमान के हाथ का नहीं खाते "?
स्वामीजी ने कहा -"वे अज्ञानी हिन्दू हैं ?"
सेक्रेटरी ने कहा-"अज्ञानी हिन्दू कैसे ?"
स्वामीजी ने कहा -"क्योंकि उन्हें वेदों का ज्ञान नहीं है। वेदों में कहीं इस तरह का प्रसंग 
नहीं है कि किसके हाथ का छुआ खाना खाया जाए और किसके हाथ का नहीं "
यह है हिंदुत्व जो सबमें सम भाव रखता है ,सम देखता है। 

हमारे वेद मनुष्य-मनुष्य में अन्तर नहीं करते और ना ही हमारे शास्त्र जन्म से किसी
जाति को मानते हैं। हमारे शास्त्र कर्म के अनुसार वर्ण व्यवस्था का बखान करते हैं और
एक सामाजिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने का निर्देश देते हैं। हमारे शास्त्र ने पूरी
सामाजिक व्यवस्था को मनुष्य के शरीर के चित्र के माध्यम से समझाया -मनुष्य के
शरीर के अग्र भाग मस्तिष्क को ब्राह्मण ,वक्ष स्थल को क्षत्रिय ,उदर स्थल को वैश्य तथा
पैरो को शुद्र कहा है ,जो मनुष्य ज्ञान देकर अर्जन करेगा विवेक का उपयोग करेगा वह
ब्राह्मण,जिसके ह्रदय में साहस और संवेदना होगी वह क्षत्रिय ,जो वाणिज्य कर्म करके
पशुपालन करके अर्जन करेगा वह वैश्य और जो सेवा के क्षेत्र से उदर पूर्ति करेगा वह शुद्र।
अब यहाँ जन्म से जाति का सवाल कहाँ से आया ?जो संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम् में
विश्वास करती है ,सर्वे भवन्तु सुखिन की  भावना से सुबह की शुरुआत करती है और
विश्व बन्धुत्व का अनुकरण करती है वह कैसे कटटरवाद को जन्म दे सकती है ?

"अपना हिंदुत्व ,विश्व बंधुत्व" का दीया जलाने का समय आ गया है, आनेवाला समय
भारत के भाग्य को तय करेगा। यह अब हम भारतीयों के हाथ में है कि हम इस देश
को किस दिशा में ले जाना चाहेंगे। क्या झूठा जातिवाद, मजहब वाद पसंद करेंगे और
आपस में एक दूसरे से पद लोलुप नेताओं के कहने से झगड़ते रहेंगे या अपना हिंदुत्व,
विश्व बन्धुत्व का मैत्री भाव रख अंधकार से प्रकाश की ओर आगे बढ़ेंगे ?     

12.1.14

जन आंदोलन में जो भीड़ केजरीवाल साहब को सुहाती थी वही भीड़ जब माँगने आयी तो समझ में आया कि भीड़ क्या होती है ? भैया ! आपको जिसने वोट दिया वह मांगने भी आएगा । कब तक छत पर चढ़ेंगे ? कल लोग सीढ़ी लेकर आने लगेंगे तब क्या करेंगे ? हेलीकाप्टर पर चढ़ेंगे ?

आम आदमी पार्टी के नेता मनीष शिशोदिया से जब पूछा गया कि यदि लोकसभा में भी hung पार्लियामेंट रही और आपकी स्थिति दिल्ली जैसी ही रही तो आप क्या करेंगे - देश में पूछने जायेंगे कि सरकार बनाएँ कि नहीं बनाएँ  । वे बोले - हाँ , हम सारे देश में जायेंगे । जनता से पूछेंगे । क्या बुराई है ? लो कर लो बात भैया ।

अरविन्द केजरीवाल जी ने अपनी साईट से शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ सारे सबूत मिटा दिए हैं । बधाई अरविन्द जी ! अच्छा एहसान चुकाया आपने कांग्रेस का । अगर आप या कांग्रेस लोकसभा में आने का सपना देख रहे हैं तब तो खुल गया टू  जी , कामनवेल्थ , koal  घोटाला आदि आदि ।

11.1.14

दिल्ली में जनता दरबार लगा । और समाप्त हो गया है । क्या आप ऐसा ही पी एम भी देखना चाहते हैं ? क्या आप चाहते हैं कि देश में ऐसा ही अफरा तफरी का माहौल हो । केजरीवाल साहब को इतनी जल्दी सब कुछ करने और हथिया लेने की  पड़ी है कि वे सोच रहे हैं कि सब को सबकुछ दे दें । लेकिन यह सम्भव नहीं है । उन्होंने वायदे तो कर दिए लेकिन वे वायदों को जल्दी पूरा करने की जल्दी दिखा रहे हैं । सीधे सीधे उन्हें तमाम कामों को बिना किसी भावना के वशीभूत हुए करना चाहिए । अब वे भूल जाएँ कि उन्होंने क्या वादे किये वे सिर्फ काम करें । वे जो काम करेंगे जनता के लिए ही करेंगे । धीरे धीरे करें । केजरीवाल साहब ! यदि आपने दो चार काम भी आसानी से कर दिए और तब भले ही आपकी सरकार गिर जाये लेकिन तब जनता समझ जायेगी कि आप  को समय कम मिला । समय ज्यादा मिलता तो आप कुछ और भी अच्छा करते । लेकिन करें तो क्या करें । आप को तो लोकसभा भी जीतना है अपनी टीम के सदस्यों को आपने लोकसभा जीतने के लिए भी लगा रखा है । उन सबको वापस बुलाइए । और सबकी मदद से इस काम को करें । भूल जाएँ लोकसभा को । अगर आपने दिल्ली को संवार दिया तो अन्य राज्यों में आपको कोई नहीं हरा पायेगा । जगह अपने आप बनती जायेगी । अभी आप को अंदाजा भी नहीं होगा कि आपकी पार्टी में कितने लुच्चे लफंगे सदस्यता ले रहे हैं । ये सब आपकी पार्टी को ही बदनाम कर रहे हैं । आप सब कुछ खुद ही कर लेना चाहते हैं लेकिन यह उचित भी नहीं है । एक सिस्टम होता है । आप उस पर चलें । यह जो सोच है कि मोदी को रोको जिसके लिए आपने लोकसभा चुनाव लड़ना तय किया है इससे आप की  छवि गिर रही है आप लोग कब तक माफ़ी मांगते रहेंगे। आपकी माफ़ी से लोंगों ने कहना शुरू कर दिया है कि एक माफ़ी मंत्रालय आपको सबसे पहले खोलना चाहिए । लेकिन करें तो क्या करें । आप तो ऐसे हो गए हैं जैसे एक स्कूल का प्रिंसिपल घंटी भी खुद बजाये , क्लर्क का काम भी खुद करे । पानी भी खुद पिलाये । प्रिंसिपलशिप भी करे । अरे भैया ! माना कि समाज को आपने चोरों से मुक्त करने का ठेका लिया है पर स्वयं को तो संभालिये । एक चोर से तो आपने हाथ मिला लिया है और अब घबराये जा रहे हैं । भूल जाइये सब कुछ । सारे वादे । यह सस्ता तरीका । धीरे धीरे काम करिये । ठोस काम करिये । ताकि लोग आपको सस्ते काम के लिए नहीं बल्कि ठोस कार्यों के लिए याद करें । समझे ।
डॉ द्विजेन्द्र , हरिपुर कलां , मोतीचूर , देहरादून

हिन्दुत्व की टहनी है धर्मनिरपेक्षता

 हिन्दुत्व की टहनी है धर्मनिरपेक्षता 

हिंदुत्व के दर्शन को पढ़े समझे बिना उसे संकुचित अर्थ देना मूढ़ और अज्ञानी लोगों
का काम है,यह काम यदि पथ भ्रष्ट हिन्दू करता है तब तो बड़ी मायूसी होती है क्योंकि
वे हिंदुत्व में पैदा भले ही हुये हो पर उसमें जी नहीं रहे हैं।
हिन्दू धर्म का संस्थापक कौन ? संस्थापक उसका होता है जो सम्प्रदाय से जुड़ा हो,जिसमें
किसी विशेष मत को मानने वाले अनुयायी हो। हिंदुत्व तो सनातन है ,एक जीवन पद्धति
है जो सृष्टि के साथ विकसित हुई। हिन्दू धर्म के वेद कब और किसने लिखे ? जिन वेदों
की सूक्तियों के भाव को समझने में बड़े विद्धवान भाष्य लिखते रहे हैं और नेति-नेति
कहते रहे हैं। बड़ा आश्चर्य होता है जब अपने को बड़ा समझने वाले किंकर लोगों के मुँह
से हिंदुत्व को साम्प्रदायिक कह कर उसकी भत्सर्ना करते देखते हैं,क्या हो गया उन
अधम हिंदुओं को जो खुद की सभ्यता को सरे आम गाली देकर गर्व महसूस करते हैं ?
क्यों करते हैं वे ऐसा ?सिर्फ राज्य सत्ता को हासिल करने के लिए या तुच्छ स्वार्थ की
पूर्ति के लिए। खेर  … यह बात फिर कभी  ………
हिंदुत्व की जीवन पद्धति के कुछ गुण -

 हिंदुत्व सम दृष्टि में जीता है उसके लिए मनुष्य और कीट सबमे एक ईश्वर तत्व को
देखता है। फिर मनुष्य-मनुष्य में भेद की रेखा किस सम्प्रदाय ने खेंची ?

हिंदुत्व सद्गुणों को धारण करने का नाम है। हमारे ऋषियों ने पूर्वजों ने हर सद गुण
को कहा ही नहीं ,जीया है। सद्गुणों की स्थापना कहने भर से नहीं होती है उसको
आचरण में लाना पड़ता है ,विश्व में जिसने भी मर्यादा की स्थापना में अपने निजी
स्वार्थो की आहुति दी और नैतिकता की स्थापना में हर क्षण तत्पर रहा वही तो राम
कहलाता है ,हिंदुत्व ने यह आदर्श जी कर हर काल में बताया है।

हिन्दुत्व ने विश्व कल्याण से आगे समस्त ब्रह्माण्ड के सुख की प्रार्थना ईश्वर से की।
सबका भला हो ,सब का कल्याण हो ,सब अँधेरे से उजाले की ओर बढ़े यह संकल्प
हिंदुत्व से निकला ,इस उम्दा भाव में कोई मुर्ख ही संकीर्णता देख सकता है।

हिंदुत्व ने मानव सभ्यता को विकास का मार्ग दिखाया -हमारे वेदों ने मनुष्य को
मिलझुल कर आगे बढ़ने का सूत्र दिया। चरैवेति -चरैवेति। यह शब्द नहीं है विकास
का मूल मन्त्र है।

हिंदुत्व ने सबसे पहले धर्म को विज्ञान से जोड़ा, वेदों से लेकर रामायण तथा गीता में
यही तो लिखा है। जो सिद्धांत जाँचा ,परखा गया हो और सर्वकालिक हो तथा सत्य हो
उसे ही विज्ञान कहा जाता है। हमारे सिद्धांत गीता से निकल कर समस्त विश्व में यूँ
ही फैल गये।

हमारी सँस्कृत भाषा जो सब भाषाओँ की जननी मानी जाती है उसे सीखने के लिए
अमेरिकी लालायित हैं,वे इस भाषा के महत्व को समझ रहे हैं ,कुछ ही शब्दों में गहन
बात कह देना यह संस्कृत की उपादेयता है।

स्वस्थ रहकर सौ बरस जीये ,किसने सिखाया विश्व को ?हिन्दू धर्म के आयुर्वेद ने।
आज योग और प्राणायाम की ओर विश्व भाग रहा है।

सदाचार हमारा दैनिक जीवन जीने का मार्ग है और उस सदाचार से निकली एक
शाखा है धर्म निरपेक्षता।

हमें अपने हिंदुत्व पर गर्व करना सीखना होगा ,महात्मा गाँधी ने कहा था मुझे अपने
धर्म पर गर्व है और उनका प्रिय गान था -वैष्णव जन तो तेने कहिये जो पीर परायी
जाणे रे  …। हिंदुत्व कि ही ताकत है कि वो दूसरों कि पीड़ा को भी समझ सकता है ,
महसूस कर सकता है और संवेदनशील हो सकता है।       
            

10.1.14

“I’ve made my challenges a stepping stone to my success... RANNVIJAY”

“As a 14 year old kid, I had my future clearly written by my family. Write the NDA, clear the exam and crack the interview... I could not see a life beyond that. One day ROADIES came to me as a challenge. I didn’t know what it had in store for me. I took the challenge and went on for the Roadies Journey. Along the way, there were many obstacles and nerve breaking tasks to accomplish. Instead of stepping back, I faced every challenge. Today I know that I’ve made my challenges a stepping stone to my success.” said Rannvijay at the announcing the 2nd season of his adventure race Rocksport Challenge.
The modern lifestyle is distancing the kids from nature. They rarely get a chance to move out and to challenge their own self. Rannvijay Singh Singha the first winner and host of MTV Roadies who is now a successful bollywood actor has partnered with Rocksport, Asia’s largest in-school adventure camping company to organize and host Rocksport Challenge. Rocksport challenge is primarily an adventure racing event with a carnival for adventure lovers on its sidelines. The race is organised at Camp Tikkling, Gurgaon in the Aravali range which offer a hilly terrain through forests and villages. A 5 Km racing circuit is created with natural and artificial obstacles that require racers to climb hills, crawl through bushes, climb rope ladders and wriggle through slush. More than 5 lakh rupees worth of prizes it is the self respect that inspires the runners to take up the Rocksport Challenge.
After a global tour for his extreme sporting show RannVJRun, he shared his experiences and explained that “Extreme sports are not popular in our country. Kids today want to either “hang out” at a mall or “chill out” at a hookah bar. But it’s not their fault. They don’t have options. A lot of people abroad are into adventure. Rocksport challenge is an attempt to promote the same culture amongst Indian youth. I want to give an opportunity here in India to do what I experienced abroad.”
Since everyone may not want to start with something so extreme, one can challenge his fears by participating in other adventure sports too. Rocksport Challenge hosts an adventure carnival which offers activities like Rock climbing, Hot Air Ballooning, Quad Biking, Zorbing, etc to ensure that there is something for every age group in the family.
The first challenge which was organised in 2013 saw over 800 runners and 2000 others who witnessed the challenges set in Aravali hills. Rannvijay after personally completing all the challenges was seen giving adventure tips to the teams. Although, there were 8 only winners but every runner went home armed with a trophy of confidence. Rannvijay had organised a special adventure trip to The Last Resort, Kathmandu for these winners.
Rannvijay says that the race will inspire youth to achieve more than they think is possible. His own story from being an ordinary Delhite, to a successful actor and now an entrepreneur is an alibi to the fact.
Booking for Rocksport Challenge Season 2 can be made at www.buzzintown.com

More information about it can be obtained from www.rocksportchallenge.com or www.facebook.com/rocksportchallenge