6-10-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर
सिंह। मित्रों,पिछले कुछ समय में बिहार की राजनीति ने जिस तरह से यू-टर्न
लिया है आज से दो साल पहले कोई उसकी कल्पना तक नहीं कर सकता था। जो व्यक्ति
कभी हमेशा दिन-रात मूल्यों और सिद्धांतों का राग अलापा करता था वही सबसे
बड़ा अवसरवादी निकला। राम निकला तो था रावण से लड़ने के लिए लेकिन
युद्धभूमि में जाकर उसने पाला बदल लिया और सीता (बिहार) अपने उद्धार की बाट
ही जोहती रह गई। पहले उसने अपने उस गठबंधन सहयोगी को सरकार से निकाल बाहर
कर दिया जिसके साथ मिलकर उसने 2010 का विधानसभा चुनाव लड़ा था। उसकी पार्टी
को जो भी मत मिले थे वे अकेले उसकी पार्टी के नहीं थे बल्कि जनता ने दोनों
पार्टियों को एक मानकर उसकी गठबंधन सरकार को बंपर बहुमत दिया था। फिर उस
नीतीश कुमार को किसने यह अधिकार दे दिया कि वे अकेले की सरकार चलाएँ? जनता
ने तो उनको गठबंधन सरकार चलाने के लिए मत दिया था। क्या बिहार नीतीश कुमार
जी की निजी जमींदारी थी और है? अगर नहीं तो नैतिकता का तकाजा तो यह था कि
वे गठबंधन तोड़ने के तत्काल बाद ही विधानसभा को भंग करके आम चुनाव करवाते।
मित्रों,नीतीश कुमार जी की बिहार और बिहार की जनता के साथ खिलवाड़ यहीं पर
नहीं रुका। भाजपा को सरकार और गठबंधन से निकालबाहर करने के बाद नीतीश जी
ने लगभग एक साल तक मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं किया और एक साथ उन सभी
विभागों सहित जो भाजपा के पास थे 18 विभागों के मंत्री बने रहे जिसका
परिणाम यह हुआ कि पूरे बिहार में अराजकता व्याप्त हो गई। सारे नियम-कानून
की माँ-बहन होने लगी जिसका परिणाम यह हुआ कि नीतीश जी की पार्टी को बिहार
में जीत के लाले पड़ गए। अगर नीतीश जी में थोड़ी-सी भी नैतिकता होती उनको
लोकसभा चुनावों के तत्काल बाद ही विधानसभा चुनाव करवाने चाहिए थे। लेकिन
नीतीश जी ने एक बार फिर से बिहार को अपनी निजी जमींदारी समझते हुए
मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और खुलकर जातीयता का गंदा खेल खेलते
हुए एक निहायत अयोग्य महादलित को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया। इस
तरह बिहार के साथ जानलेवा प्रयोग-पर-प्रयोग करने का अधिकार नीतीश कुमार जी
को किसने दिया है? चिड़िया की जान जाए बच्चों का खिलौना?
मित्रों,जबसे
बिहार में जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया गया है तबसे बिहार के
शासन-प्रशासन ने जो थोड़ी चुस्ती थी वह भी जाती रही। अब आप बिहार पुलिस को
घटना के समय या घटना के बाद लाख फोन करते रहें वह तत्काल घटनास्थल पर नहीं
आती है जबकि वर्ष 2005 में जब जदयू-भाजपा गठबंधन की सरकार नई-नई आई थी तब
पुलिस सूचना मिलते ही घटनास्थल पर हाजिर हो जाती थी और समुचित कार्रवाई भी
करती थी। अब अगर आप बिहार में रहते हैं तो अपने जान व माल सुरक्षा की
जिम्मेदारी पूरी-पूरी आपकी है। बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी
में वह योग्यता है ही नहीं कि वे प्रशासनिक अराजकता को दूर कर सकें। वे तो
बस विवादित बयान देते रहते हैं और इस बात का रोना रोते रहते हैं कि उनका
जन्म छोटी जाति में हुआ है इसलिए लोग उनका मजाक उड़ाते हैं। पिछले कुछ समय
में श्री मांझी ने इतने मूर्खतापूर्ण बयान दिए हैं कि इस मामले में उनके
आगे बेनी प्रसाद वर्मा का कद भी बौना हो गया है।
मित्रों,यह तो आप भी
मानेंगे कि इस प्रकार के अतिमूर्खतापूर्ण बयान वही व्यक्ति दे सकता है जो
महामूर्ख हो। पुत्र-विवाहेतर संबंध विवाद,विद्यालय उपस्थिति विवाद,......
और अब पटना गांधी मैदान भगदड़ पर उटपटांग बयान कि इसमें गलती भीड़ की भी हो
सकती है,.....। श्री मांझी किस तरह के मुख्यमंत्री हैं कि इतनी हृदयविदारक
घटना के घंटों बाद तक घटना से पूरी तरह से बेखबर रहते हैं? और जब मुँह
खोलते भी हैं तो मृतकों के परिजनों के जख्मों पर मरहम लगाने के बदले यह
बोलकर कि गलती भीड़ की भी हो सकती है नमक छिड़कने का काम करते हैं। क्या
श्री मांझी बताएंगे कि गलती किसकी थी उन दो दर्जन मासूम बच्चों की जिनके
जीवन को खिलने से पहले ही पैरों तले कुचल दिया गया? उन बेचारों को तो अभी
पता भी नहीं होगा कि गलती की कैसे जाती है या गलती शब्द का मतलब क्या होता
है। क्या सिर्फ महादलित होने से ही किसी व्यक्ति में मुख्यमंत्री बनने की
पात्रता आ जाती है?
मित्रों,बिहार की जनता ने नीतीश कुमार के
प्रयोगवादी पागलपन जीतनराम मांझी को बहुत बर्दाश्त किया मगर अब पानी सिर के
ऊपर से बहने लगा है। जो व्यक्ति एक ट्राफिक हवलदार तक बनने के काबिल नहीं
था उसको नीतीश कुमार ने बिहार को दिशा देने का काम सौंप दिया? जब 1 ग्राम
भी बुद्धि है ही नहीं तो श्री मांझी शासन कैसे चलाएंगे और इतनी बड़ी
जिम्मेदारी कैसे उठाएंगे? जाहिर है कि ऐसा कर पाना उनके बूते की बात नहीं
है। हाजीपुर टाईम्स ने तब भी जब मांझी को बिहार के सीएम की कुर्सी दी गई थी
अपनी सामाजिक व राजनैतिक जिम्मेदारी को निभाते हुए नीतीश जी को चेताया था लेकिन तब नीतीश जी ने जो कि एक वैद्य के
बेटे हैं एक मरणासन्न रोगी की तरह हमारे रामवाण नुस्खे को नहीं माना था।
मित्रों,हमारा स्पष्ट रूप से यह मानना है कि नीतीश कुमार जी को देर आए मगर
दुरुस्त आए पर संजीदगी से अमल करते हुए तत्काल बिहार में विधानसभा चुनाव
करवा कर फिर से जनादेश प्राप्त करना चाहिए। बिहार की जनता को अगर उनके
महाअवसरवादी महागठबंधन में विश्वास होगा तो वे दोबारा मुख्यमंत्री बन
जाएंगे और अगर नहीं होगा तो विपक्ष की शोभा बढ़ाएंगे लेकिन दोनों ही
परिस्थितियों में बिहार को एक पागल,बुद्धिहीन के शासन से तो मुक्ति मिलेगी।
इसके विपरीत अगर नीतीश जी श्री मांझी को हटाकर किसी दूसरे व्यक्ति को
मुख्यमंत्री बनाते हैं तो यह एक बार फिर से उनकी अनाधिकार चेष्टा होगी।
जनता ने 2010 में उनको इसलिए बहुमत नहीं दिया था कि वे बिहार को चूँ-चूँ का
मुरब्बा बनाकर रख दें बल्कि उनको बिहार के समग्र विकास के लिए वोट दिया
था। वैसे भी लोकसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर वे
बिहार के विकासपुरुष की अपनी जिम्मेदारियों से भाग चुके हैं लेकिन वे एक
बिहारी होने की जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकते हैं। इसलिए बिहार का एक
शुभचिंतक होने के नाते,एक बिहारी होने के नाते उनको अपने सारे प्रयोगों को
विराम देते हुए बिहार में तत्काल विधानसभा चुनाव करवाना चाहिए वरना उनके 8
साल के सुशासन से पहले बिहार जहाँ से चला था अगले एक साल में उससे भी पीछे
चला जाएगा।
(
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)