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23.7.25

किराए का मकान लेकर फर्जी दूतावास चला रहा था ये फ्रॉडियल- UPSTF ने पकड़ा

 


Ghaziabad... गाजियाबाद में चल रहे अवैध दूतावास का भंडाफोड़ - नाम है हर्षवर्धन जैन

हर्षवर्धन केबी 35 कवि नगर में  किराए का मकान लेकर अवैध रूप से वेस्ट आर्कटिक दूतावास चला रहा था तथा अपने आप को West Arctica, Saborga, Poulvia, Lodonia आदि देशों का कॉन्सुल/एम्बेसडर बताता है और कई डिप्लोमेटिक नम्बर प्लेट लगी गाड़ियों से चलता है. लोगों को प्रभाव में लेने के लिए प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और कई अन्य गणमान्य लोंगों के साथ अपनी मॉर्फ़ की हुई फोटो का भी प्रयोग करता है. 

इसका मुख्य काम कंपनियों और प्राइवेट व्यक्तियों को बाहर के देशों में काम दिलाने के नाम पर दलाली करना तथा शेल कंपनियों के माध्यम से हवाला   रैकेट चलाना है. 

हर्षवर्धन के पूर्व में चंद्रास्वामी और अदनान खगोशी (इंटरनेशनल आर्म्स डीलर) से भी संपर्क में होना ज्ञात हुआ है। उल्लेखनीय है की 2011 में  हर्षवर्धन से अवैध सेटेलाइट फ़ोन भी बरामद हुआ था...

17.7.25

मैं आजाद कलम का सिपाही हूं...!

आज, जब ’पत्रकार’ और ’प्रोपगैंडा’ के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है, तब यह और भी ज़रूरी हो गया है कि हम कलम को वैचारिक ईमानदारी, संवैधानिक निष्ठा और नैतिक साहस से भरें। मेरी यही आकांक्षा है कि मैं आज़ाद कलम का वह सिपाही बन सकूं, जो सत्ता से नहीं, सत्य से संचालित हो. पत्रकार एक ऐसा शब्द है जिसकी रक्षा करना हर कलम के जादूगर का फर्ज है. और यही सोच ले बहुत से कलम के हुनरदारों ने पत्रकारिता जगत में धूम-धड़ाके से प्रवेश किया. परन्तु समाज ने उन्हें उनका फर्ज भुलाकर अपनी मुट्ठी में कैद करने की कोशिश शुरू कर दी। पत्रकार को मुट्ठी में कैद करने की चालें देश के गद्दारों, भ्रष्टाचारियों, अवैध धंधे करने वालों ने करके पत्रकारिता की गरिमा को ठेस पहुंचाकर कलम के हुनर को दबाने की कोशिश की. और हरदम उनका प्रयास और तेज है। जबकि सभी स्वार्थों का त्यागकर पत्रकारिता जगत में बेखौफ कलम चलाकर भ्रष्टाचारियों के चेहरे बेनकाब करने चाहिए... 

सुरेश गांधी- 

पत्रकारिता को अक्सर सत्ता का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन जब यह स्तंभ अपने मूल स्वरूप से डगमगाने लगे, तो समाज का संतुलन भी टूटने लगता है। आज जब सूचनाओं की बाढ़ है, मगर सच्चाई की प्यास बुझती नहीं, तब पत्रकार की भूमिका केवल समाचार संकलक की नहीं, बल्कि लोकस्वर के संवाहक की होती है। मतलब साफ है पत्रकारिता केवल समाचारों का संकलन या प्रसारण भर नहीं है। यह समाज की आत्मा से संवाद है। यह लोकजीवन की धड़कनों को सुनने, समझने और उसे शब्द देने की तपस्वी प्रक्रिया है। इसी भावना से मैं अपनी पत्रकारिता को परिभाषित करता हूं. यह किसी को डराने, धमकाने या ब्लैकमेल करने का औजार नहीं, बल्कि अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति की आवाज़ को मंच देने का माध्यम है।

मैं जब पत्रकारिता के क्षेत्र में आया, तो मैंने इसे न तो व्यवसाय की दृष्टि से देखा, न ही सत्ता या प्रसिद्धि की सीढ़ी के रूप में। मैंने इसे अपने विचारधारा और संवैधानिक चेतना के विस्तार के रूप में अपनाया, एक ऐसा माध्यम, जिससे मैं समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज़ बन सकूं। मेरी कलम न सत्ता से संचालित है, न किसी संस्था से निर्देशित। यह कलम उस विचारधारा की अंतिम स्याही है, जो सामाजिक न्याय, संवैधानिक अधिकार और मानवीय गरिमा के लिए बहती है। मैं पत्रकारिता को सिर्फ एक पेशा नहीं मानता, यह मेरे लिए एक नैतिक दायित्व है. एक ऐसी प्रक्रिया, जिसके माध्यम से लोकतंत्र की आत्मा जीवंत रह सके। आज जब मीडिया पर बाज़ार, विज्ञापन और राजनीतिक दबावों का शिकंजा कसता जा रहा है, तब पत्रकार का विवेक, उसकी प्रतिबद्धता और उसका साहस सबसे बड़ी पूंजी बन जाती है। और मैं स्वयं को इसी चुनौती से जूझता पत्रकार मानता हूं, जो न बिकने को तैयार है, न झुकने को।

मेरी कलम न तो किसी दल की भोंपू है, न ही किसी कारपोरेट एजेंडे का औजार। मेरी पत्रकारिता का उद्देश्य किसी को डराना, धमकाना या लज्जित करना नहीं है। यह क़लम किसी को गिराने के लिए नहीं, बल्कि गिराए गए को उठाने के लिए उठती है। मैं यह मानता हूं कि पत्रकारिता का धर्म है, बोलना वहां, जहां चुप्पी सहमति बन जाए और लिखना वहां, जहां सच दबा दिया जाए। जब कोई किसान आत्महत्या करता है, कोई मज़दूर विस्थापित होता है, कोई दलित न्याय से वंचित रह जाता है, कोई महिला उत्पीड़न की शिकार होती है या कोई आदिवासी जंगल से बेदखल कर दिया जाता है, या कोई प्रताड़ना से ग्रसित बुनकर तब मुख्यधारा की मीडिया अक्सर खामोश हो जाती है। मेरी लेखनी उन्हीं आवाज़ों की साझेदार बनना चाहती है, जो ’टीआरपी’ की दुनिया में गुम हो जाती हैं। मेरी कलम विचारधारा की स्याही से भीगती है, लेकिन किसी ’वाद’ की दास नहीं है। यह कलम लोकतंत्र के मूल्यों, संविधान की आत्मा और जन-जन के हक की पक्षधर है।

मैं चाहता हूं कि मेरी पत्रकारिता सामाजिक न्याय, समानता और मानव गरिमा की पुनर्स्थापना का औजार बने। यह राह आसान नहीं है, यह राह अकेलेपन की भी है, आलोचना की भी, और संघर्ष की भी। लेकिन अगर यह राह किसी पीड़ित को न्याय दिला सके, किसी निर्बल को बल दे सके, तो यही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। मैं उस राह का राही हूं, जो लोकप्रियता की होड़ से परे है, जो सत्ता की प्रशंसा से दूर है, लेकिन जो जन-आवाज़ के सबसे निकट है। मैं उस स्वराज की कल्पना में विश्वास करता हूं, जिसमें हर व्यक्ति को अपने विचार रखने, विरोध दर्ज करने और न्याय मांगने का अधिकार हो। मेरी पत्रकारिता उसी स्वराज की परिकल्पना का विस्तार है, जहां लेखनी एक आंदोलन है, और पत्रकार एक जनपक्षधर सैनिक। जब कलम बिकने लगती है, तो सत्य गिरवी हो जाता है। और जब कलम चुप हो जाती है, तब अन्याय बोलने लगता है। मैं नहीं चाहता कि मेरी कलम किसी के लिए हथियार बने, मैं चाहता हूं कि यह समाज के लिए दीपशिखा बने, जो अंधेरे में दिशा दिखाए।

मैं चाहता हूं कि मेरी पत्रकारिता से निकली हर पंक्ति किसी मूक चीख को स्वर दे, किसी पीड़ित की पीड़ा को मंच मिले। मैं चाहता हूं कि जब सत्ता मद में चूर हो जाए, तब मेरी कलम उसका आईना बने। जब व्यवस्था विकृत हो जाए, तब मेरी लेखनी उसका विवेक बने। और जब समाज थक जाए, टूट जाए, तब मेरी आवाज़ उसे फिर से उठ खड़ा होने की हिम्मत दे। मुझे गर्व हो, यदि आने वाली पीढ़ियां कहें कि “यह पत्रकार सबका था, लेकिन किसी का गुलाम नहीं था।” मैं आज़ाद कलम का वह सिपाही बनना चाहता हूं जो सबका है, लेकिन किसी का नहीं। जिसका कोई निजी स्वार्थ नहीं, पर जिसकी निष्ठा जनहित में अडिग है। पत्रकारिता का यह आदर्श भले ही कठिन हो, लेकिन यही उसका असली रूप है। इस कलम को बिकने नहीं दूंगा। इसे झुकने नहीं दूंगा। इसे उस हर व्यक्ति के लिए चलने दूंगा, जिसकी आवाज़ कोई नहीं सुनता।

खासतौर से तब जब पत्रकारिता एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है. इस समय भारत में देशभक्ति से पूर्ण पत्रकारिता की जरूरत है जो आजादी से पहले हुआ करती थी। आज सस्ती टीआरपी की होड़ लगी है। समाज में व्याप्त बुराइयां इस पवित्र पेशे को भी दागदार बना चुकी हैं। जब दर्पण ही दागदार हो गया तो वह भला कैसे बता सकेगा समाज की सच्ची तस्वीर। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। जब न्यायपालिका को छोड़कर लोकतंत्र के बाकी स्तंभ भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की समस्याओं से जूझ रहे हैं, तो ऐसे समय पत्रकारिता की सामाजिक जिम्मेदारी कहीं अधिक बढ़ जाती है। लेकिन दुखद बात तो यह है कि अब तो समाचारों की विश्वसनीयता पर भी संदेह होने लगा है। पत्रकारों का यह दायित्व है कि वे लोगों को सही खबरों से अवगत कराएं और उनमें लोकतंत्र की आस्था को मजबूत करें।

इससे बड़ी बिडम्बना और क्या हो सकती है जब अखबारों के मालिक ही राजनीतिक दलों से डील कर पैसे लेकर उनके पक्ष में समाचार छापते हैं, तब फिर मातहत अधिकारी और कर्मी भी तो यही करेंगे। गंगा गंगोत्री से ही मैली हो रही है। सफाई की शुरुआत भी वहीं से करनी होगी लेकिन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? लोग पत्रकार क्यों बनते हैं-जन सेवा के लिए या फिर जैसे-तैसे पैसा कमाने के लिए। माना अब पत्रकारिता अब मिशन नहीं रहा, लेकिन इसको मिशन बनाया जा सकता है। तेज सफर में पत्रकारों को पत्रकारिता जगत के लिए शहीद भी होना पड़ा परन्तु इन कलम के रखवालों ने अपनी कलम की रोशनी को कम नहीं होने दिया। 

कांवड़ियों के शिविर में यात्री बनकर चोरी करने वाले पांच बेनकाब

 

मुजफ्फरनगर- पुलिस के अनुसार, ये लोग कांवड़ियों का भेष धारण कर शिविरों में रुकते थे। वहां आराम कर रहे श्रद्धालुओं के मोबाइल, पर्स और अन्य कीमती सामान चुराते थे। 

पुलिस को लगातार इन संदिग्धों की गतिविधियों की सूचना मिल रही थी। 14 जुलाई 2025 को विशेष अभियान के दौरान पुलिस ने इन्हें पकड़ा। 

पूछताछ में आरोपी अपनी उपस्थिति का कोई ठोस कारण नहीं बता पाए। गिरफ्तार आरोपियों में सुहैल उर्फ चौकस उर्फ शेरखान (22), आसिफ (20), अफसार (24), शाहिद (20) और आबिद शामिल हैं।

पुलिस ने पत्रकार वार्ता में इस मामले का खुलासा किया। 

सभी आरोपियों माधरजात हुल्लाह की पैदावार हरामखोरो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। सावधान और सतर्क रहे ये जात अब अपनी औकात पर आ गई है....

उत्तर प्रदेश पुलिस कांवड़ यात्रा को सकुशल संपन्न कराने के लिए पूरी तरह सतर्क है साथ-साथ आप सभी का सहयोग भी जरुरी है,,, अपना कीमती सामान संभालकर रखें.... 

14.7.25

सच्चाई दिखाने पर अजीत अंजुम के खिलाफ बिहार में मुकदमा


श्याम मीरा सिंह- 

बिहार में मतदाता सूची के लिए की जा रही धाँधली को अपनी ग्राउंड रिपोर्ट से दिखाने वाले पत्रकार अजीत अंजुम जी पर बिहार में FIR कर दी गई है। हम इस FIR की निंदा करते हैं। 

किसी भी पत्रकार को क़ानून का इस्तेमाल कर सताया नहीं जाना चाहिए। पत्रकार अपना काम करता है आप अपना करिए। 

उन्हें शायद इस बात का ज़रा भी पता नहीं है कि जिस आदमी से वे लड़ रहे हैं वो किस धातु का बना है। पत्रकार ajit anjum, पत्रकार तो अच्छे हैं हीं। वे इंसान भी सच्चे हैं। और एक सच्चे इंसान की ताक़त किसी भी सरकार से ज़्यादा है। 

अजीत अंजुम जी से फुल सॉलिडेरिटी के साथ, उन्हें सलाम। 



9.7.25

नाई की दुकान चलाने वाली हैदराबाद की इस BBA छात्रा से मिलिए

कविश अजीज- 

ये बिंदु प्रिया हैं। हैदराबाद की रहने वाली, BBA किया है।  इनके पिता की नाई की दुकान है। 


2015 में इनके पिता राजेश को ब्रेन स्ट्रोक हुआ, बिंदु उस समय सिर्फ 12 साल की थी। इसी दुकान से घर का खर्च होता था।

बस फिर क्या था बिंदु ने पिता की दुकान संभाल लिया।

लोगों ने कभी किसी लड़की को पुरुषों के बाल काटते, दाढ़ी बनाते नहीं देखा था। ऐसे में  मोहल्ले वालों के विरोध का सामना करना पड़ा। 

कई बार दुकान पर आने वाले ग्राहक भी ऐसा कमेंट कर देते, जिसे उचित नहीं कहा जा सकता। लेकिन बिंदु पूरी लगन से अपना काम करती हैं।


5.7.25

बरेली से रामपुर चली 83.86 लाख रुपये की खाद दो ट्रकों समेत लापता

बरेली- रामपुर के बिलासपुर इलाके में स्थित शानू खाद भंडार सीमेंट स्टोर पर बरेली से भेजा गया लाखों रुपये का खाद ट्रक समेत लापता हो गया। मामला प्रकाश में तब आया जब पंजाब के होशियारपुर निवासी कुलविंदर सिंह (इटरनिटी फॉरवर्डस प्रा. लि. के मैनेजर) ने दो ट्रकों की खाद के रहस्यमय तरीके से लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई। 

कंपनी का कहना है कि परसाखेड़ा स्थित फ्रंटियर एग्रोटेक प्राइवेट लिमिटेड से 13 और 16 मई को कुल 77 हजार किलो खाद, जिसकी कीमत करीब 83.86 लाख रुपये है, चार ट्रकों के जरिए शानू खाद भंडार को भेजी गई थी। माल की जिम्मेदारी जीआर ट्रांसपोर्ट के अमित मिश्रा और जयगौरी फारवर्डिंग कमीशन एजेंसी के राजीव अग्रवाल को दी गई थी। 

रिसीविंग लेकर दो ट्रकों की डिलीवरी से इनकार

कुलविंदर सिंह के मुताबिक, चारों ट्रकों के ड्राइवरों ने निर्धारित पते पर माल उतारने के बाद उसकी रिसीविंग भी भेज दी थी। लेकिन 21 मई को शानू खाद भंडार की ओर से प्राप्त एक पत्र और ईमेल में कहा गया- उन्हें सिर्फ दो ट्रक खाद ही मिला है। बाकी दोनों ट्रकों की डिलीवरी को उन्होंने पूरी तरह से नकार दिया है। 

स्टोर संचालक का दावा है कि जिन दो ट्रकों की बात की जा रही है, उनके रिसीविंग पर न तो किसी कर्मचारी के हस्ताक्षर हैं और न ही स्टोर ने वह माल स्वीकार किया है। ऐसे में कंपनी और ट्रांसपोर्टरों के बीच टकराव की स्थिति बन गई है। 

2.7.25

टीटीई को ट्रेन से उतारकर पीटा, मुर्गा बनाकर कुकुड़ू-कूं बुलवाने का आरोप

ललितपुर- हीराकुंड एक्सप्रेस में विना टिकिट महिला यात्री से टिकट मांगना TTE को पड़ा भारी। जीआरपी कर्मी की पत्नी थी आरोपी महिला। 

महिला के पति को जैसे ही जानकारी हुई तो उसने TTE को ललितपुर स्टेशन पर जबरदस्ती कॉलर पकड़कर ट्रेन से उतरवा लिया। 

TTE को GRP थाने ले गया पुलिस कर्मी, GRP थाने में ले जाकर TTE दिनेश कुमार को पीटने और फिर मुर्गा बनाकर हर पांच मिनट पर एक बार "कुकुड़ू कूं - कुकुड़ू कूं" बुलवाने का आरोप। 


मण्डल रेल प्रबंधक से शिकायत पर उजागर हुआ पूरा मामला। GRP एसपी विपुल कुमार श्रीवास्तव ने मामले में बैठाई जांच।