सेलफोन
फ्रैंडली पिजन
या
ब्रेन बग
डॉ. ओ.पी.वर्मा अध्यक्ष, अलसी चेतना यात्रा 7-बी-43, महावीर नगर तृतीय कोटा, राज. http://flaxindia.blogspot.com +919460816360 |
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आज सेलफोन हमारे दैनिक जीवन
का एक अभिन्न अंग बन चुका है। आज बिना सेलफोन के जीवन की
कल्पना करना भी मुश्किल लगता है। जिधर देखो उधर आपको लोग हाथ
में सेलफोन थामें दिखाई देंगे, ठीक वैसे ही जैसे द्वापर युग में श्री कृष्ण अपनी
अंगुली में सुदर्शन चक्र धारण करके घूमा करते थे। देखते ही देखते पिछले 15 वर्षों में सेलफोन के जाल ने पूरे विश्व को जकड़ लिया है।
किशोर लड़के और लड़कियाँ तो सेलफोन के दीवाने हो चुके हैं, सुबह से लेकर रात तक सेलफोन से ही चिपके रहते हैं। भारत में सेलफोन की क्रांति लाने में अंबानी
बंधुओं का भी बहुत बड़ा हाथ है। "कर लो दुनिया मुट्ठी में" के नारे का सहारा लेकर
इन्होंने खूब मोबाइल रूपी मौत का कारोबार किया। लोग तो दुनिया को शायद अपनी मुट्ठी
में नहीं कर सके लेकिन अंबानी बन्धु जरूर टाटा, बिरला आदि सभी अमीरों को पीछे छोड़
कर भारत के सबसे अमीर आदमी बन बैठे।
आज पूरे विश्व में 5.6 बिलियन सेलफोन उपभोक्ता हैं। भारत विश्व में दूसरे नम्बर पर आता है। ताजा आंकड़ों
के अनुसार नवम्बर, 2011 में हमारे यहाँ 881,400,578
सेलफोन उपभोक्ता थे। यानि हमारे 73.27% लोग
सेलफोन रखते हैं। एक अनुमान के अनुसार 2014 तक यह संख्या एक अरब हो जायेगी। लेकिन
मुद्दे की बात यह है कि सरकारी संस्थाओं नें बिना सोचे-समझे आम लोगों को सेलफोन
बेचने की स्वीकृति दे दी, यह नहीं सोचा कि इससे
निकलने वाली इलेक्ट्रोमागनेटिक तरंगे हमारे स्वास्थ्य के लिए कोई खतरा तो नहीं बन
जायेंगी। अफसोस इस बात का है कि इसकी सुरक्षा को लेकर कोई शोध नहीं की गई और हर
आदमी को यह खतरे का झुनझुना पकड़ा दिया। चलिये आज मैं आपको संक्षेप में सेलफोन के खतरों से रूबरू करवाता हूँ
और उनसे बचने के तरीकों पर स्पष्ट और निष्पक्ष चर्चा भी करता हूँ।
सेलफोन
के खतरे
सेलफोन या मोबाइल फोन एक
माइक्रोवेव ट्रांसमीटर है। माइक्रोवेव तरंगें रेडियो वेव या विद्युत-चुम्बकीय
तरंगे होती हैं, जो प्रकाश की गति (186,282 मील प्रति सैकण्ड की)
से चलती है। इन तरंगों की आवृत्ति (Frequency) सामान्यतः 800, 900 और 1900 Mega Hertz (MHz) होती है अर्थात ये एक
सैकण्ड में लाखो करोड़ों बार कंपन्न करती हैं। नई 3-जी तकनीक से लेस मोबाइल 1900-2200
MHz की आवृत्ति पर काम करते हैं और वाई-फाई सिस्टम लगभग 2450 MHz की आवृत्ति पर काम करते हैं। जब हम सेलफोन का प्रयोग नहीं कर रहे होते
हैं तब भी वह रेडियेशन छोड़ता रहता है,
क्योकि इसे हर मिनट टॉवर को अपनी स्थिति की सूचना देनी होती है। सेलफोन हमारी आवाज
की तरंगों के छोटे-छोटे पुलिंदे (Packets) बना कर रेडियो
तरंगों पर लाद कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजता है, यानि रेडियो तरंगें वाहन
के रूप में कार्य करती हैं। आधुनिक युग में टेलीविजन, इंटरनेट, सेलफोन या टेलीफोन संदेशों के प्रसारण
में
माइक्रोवेव तरंगों की मदद ली जाती है। सेल्यूलर बायोकेमिस्ट्री के
जरनल के अनुसार ये तरंगे हमारे डी.एन.ए. तथा उसका जीर्णोद्धार करने वाले तंत्र को
क्षतिग्रस्त करती हैं और हृदय के पेसमेकर की कार्यप्रणाली को बाधित कर सकते हैं।
माइक्रोवेव के कुप्रभाव से हमारी कोशिकाएं जल्दी जीर्णता को प्राप्त होती है।
वाशिंगटन विश्वविद्यालय के प्रध्यापक डॉ. हेनरी लाइ ने स्पष्ट कहा है कि
माइक्रोवेव तरंगे अमेरिकन सरकार द्वारा तय मानक के काफी कम मात्रा में भी मस्तिष्क
को क्षति पहुँचाती हैं।
दशकों
पहले कई वैज्ञानिकों ने बतला दिया था कि माइक्रोवेव से कैंसर होने की संभावना रहती
है। शायद आपको याद होगा कि शीत युद्ध के समय रूस ने मास्को स्थित अमेरिकन दूतावास
में गुप्त रूप से माइक्रोवेव ट्रांसमीटर लगा दिया था, जिससे अमेरीका के दो राजदूत
ल्यूकीमिया के शिकार बने और कई अन्य
कर्मचारी भी कैंसर से पीड़ित हुए।
सामान्य विकार
शरीर के पास मोबाइल रखने
से विकिरण के ताप संबंधी प्रभाव हो सकते हैं,
जिसके कारण थकावट, मोतियाबिंद, और एकाग्रता में कमी आदि लक्षण हो सकते हैं। इसके कुछ अन्य गैर ऊष्मीय
प्रभाव जैसे सिर की त्वचा पर जलन, सिहरन या
चकत्ते बन जाना, थकान, अनिद्रा, चक्कर
आना, कानों में घंटियां बजना, प्रतिक्रिया
देने में वक्त लगना, एकाग्रता में कमी, सिरदर्द, सूंघने की शक्ति कम होती है, पाचन तंत्र में गड़बड़ी, दिल
की धड़कन बढ़ना, जोड़ों में दर्द, मांस-पेशियों में जकड़न और
हाथ पैर में कंपकंपी इत्यादि भी संभव हैं। श्वेत
रक्त-कणों की संख्या, कार्यक्षमता कम हो जाती है। मास्ट कोशिकाएँ ज्यादा हिस्टेमीन
बनाने लगती हैं जिससे श्वासकष्ट या अस्थमा हो जाता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि
सेलफोन गर्भवती स्त्रियों के पेट में पल रहे भ्रूण को नुकसान पहुँचा सकता है,
इसलिए वे सावधान रहें और सेलफोन का प्रयोग नहीं करें।
नैत्र विकार
आँखों में मोतियाबिंद, आँखों
में कैंसर और दृष्टि-पटल क्षतिग्रस्त होता है।
मस्तिष्क और कैंसर
सेलफोन खोपड़ी की नाड़ियों
को क्षति पहुँचाते हैं। मस्तिष्क को रक्त पहुँचाने वाले रक्त-मार्ग की बाधायें खोल
देते हैं जिससे विषाणु और दूषित तत्व मस्तिष्क में घुस जाते हैं। सेलफोन से निकलने
वाली ई.एम. तरंगे मेलाटोनिन का स्तर भी कम करती हैं। यह मेलाटोनिन एक शक्तिशाली
एंटीऑक्सीडेन्ट, एंटीडिप्रेसेन्ट तथा रक्षाप्रणाली संवर्धक है और हमारे शरीर की
जीवन-घड़ी (Circadian Rhythm) को भी नियंत्रित करता
है। एल्झाइमर, पार्किंसन्स रोग और कैंसर
से बचाता है। इसका स्तर कम होने से कैंसर, एल्झाइमर, पार्किन्सन रोग, कई
निद्रा-विकार और अवसाद होने का जोखिम बढ़ जाता है।
डॉ. कोर्लो के अनुसार जीवित
ऊतक को रेडियो या विद्युत-चुम्बकीय तरंगों से इतना खतरा नहीं हैं। असली दुष्मन तो
ध्वनि या डाटा से बनी द्वितीयक तरंगे हैं, जिनकी आवृत्ति Hertz में होती है और जिसे हमारी कोशिकायें पहचानने में सक्षम हैं। हमारे ऊतक
इन तरंगों को आतंकवादी हमले के रूप में लेते हैं और सुरक्षा हेतु समुचित
जीवरसायनिक कदम उठाते हैं। जैसे कोशिकायें
ऊर्जा को चयापचय के लिए खर्च न करके सुरक्षा पर खर्च करने लगती हैं। भित्तियां
कड़ी हो जाती हैं, जिससे पोषक तत्व कोशिका के बाहर ही और अपशिष्ट उत्पाद अंदर ही
बने रहते हैं। जिससे कोशिका में मुक्त-कण बनने लगते हैं और डी.एन.ए. का जीर्णोद्धार-तंत्र
तथा कोशिकीय क्रियाएं बाधित होने लगती हैं। फलस्वरूप कोशिकाएं मरना शुरू हो जाती
हैं, टूटे हुए डी.एन.ए. से माइक्रोन्यूक्लियाई (Micronuclei ) बाहर निकल जाते हैं और उन्मुक्त होकर विभाजित और नई कोशिकाएं बनाने लगते
हैं। कोर्लो इसी प्रक्रिया को कैंसर का कारक मानते हैं। साथ ही कोशिकाओं में
प्रोटीन क्षतिग्रस्त हो जाता है जिससे अन्तरकोशिकीय संवाद बंद हो जाता है,
फलस्वरूप शरीर के कई कार्य बाधित हो जाते हैं।
मस्तिष्क में कई तरह के
कैंसर जैसे ऐकॉस्टिक न्यूरोमा, ग्लायोमा, मेनिनजियोमा, ब्रेन लिम्फोमा,
न्यूरोईपिथीलियल ट्यूमर आदि सबसे बड़ा खतरा है।
1975 के बाद अमेरिका में मस्तिष्क के कैंसर की दर में 25% का इजाफा हुआ है। अमेरिका में सन्
2001 में 185,000 लोगों को किसी न किसी तरह का मस्तिष्क कैंसर हुआ। मस्तिष्क में
अंगूर के दाने बराबर कैंसर की गाँठ मात्र चार महीने में बढ़ कर टेनिस की गैंद के
बराबर हो जाती है। मस्तिष्क कैंसर सामान्यतः बहुत घातक होता है, तेजी से बढ़ता है
और रोगी की 6-12 महीने में मृत्यु हो जाती है।
अग्न्याशय, थायरॉयड, अण्डाशय
और वृषण (Testes) आदि ग्रंथियों संबन्धी विकार हो जाते हैं। पैंट की
जेब में मोबाइल रखने से शुक्राणु की गणना और गतिशीलता 30% तक कम हो जाती है और सेलफोन
प्रयोक्ता स्थाई नपुंसकता को प्राप्त हो जाता है।
डी-कम्पनी के नये मोबाइल |
बच्चे
और किशोर ज्यादा संवेदनशील
बच्चों और किशोरों के लिए
सेलफोन का प्रयोग बेहद खतरनाक हो सकता है। कुछ यूरोप के देशों ने अभिभावकों को
कड़े निर्देश जारी दिये हैं कि वे अपने बच्चो को सेलफोन से दूर रखें। यूटा
विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता मानते हैं कि बच्चा जितना छोटा होगा, उतना ही
ज्यादा विकिरण का अवशोषण होगा, क्योंकि उनकी खोपड़ी की हड्डियां पतली होती है,
मस्तिष्क छोटा, कोमल तथा विकासशील होता हैं और माइलिन खोल बन रहा होता है। स्पेन
के अनुसंधानकर्ता बतलाते हैं कि सेलफोन बच्चों के मस्तिष्क की विद्युत गतिविधि को
कुप्रभावित करते हैं, जिससे उनमें मनोदशा (Mood) तथा
व्यवहार संबन्धी विकार होते हैं, चिढ़चिढ़ापन आता है और स्मरणशक्ति कमजोर होती है।
बच्चों में ब्रेन कैंसर का खतरा बहुत अधिक रहता है।
कार में खतरा ज्यादा
बंद कार में सेलफोन को टावर
से समुचित संपर्क बनाये रखने के लिए सेलफोन को बहुत तेज रेडियो तरंगे छोड़नी पड़ती
है। इसलिए कार में माइक्रोवेव रेडियेशन की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। इसीलिए
यूरोप का मशहूर और जिम्मेदार कार निर्माता वोल्कसवेगन अपने खरीदारों को स्पष्ट
निर्देश देता है कि कार में सेलफोन का प्रयोग बहुत घातक साबित हो सकता है क्योंकि
सेलफोन कार में बेहद खतरनाक मात्रा में इलेक्ट्रोमेगनेटिक रेडियेशन निकालते हैं।
सेलफोन के खतरों से बचने के
उपाय
यहाँ मैं आपको सेलफोन
रेडियेशन से बचने के कुछ उपाय बतलाता हूँ।
· जब
आप सेलफोन पर बात करें तो तारयुक्त हैडसेट का प्रयोग करें या स्पीकर-फोन मोड पर
बात करें। जहाँ संभव हो लघु संदेश सेवा (SMS) से काम
चलायें। बेतार हैडसेट जैसे ब्लू-टूथ भी खतरे से भरा है। कई अनुसंधानकर्ता तो तार-युक्त
हैडसेट को भी सही महीं मानते हैं। वे कहते हैं कि एयरट्यूब वाला हैडसेट प्रयोग
करें, इसमें तारयुक्त हैडफोन से स्टेथोस्कोप जैसी ट्यूब्स जुड़ी रहती हैं और
रेडियेशन का खतरा बहुत कम हो जाता है।
· जब
काम में नहीं आ रहा हो तो सेलफोन को शरीर से दूर रखें जैसे शर्ट की जेब, पर्स में
या बैल्ट में लगा कर रखें। पैंट की जेब में कभी नहीं रखें, शरीर का निचले हिस्सा
ज्यादा संवेदनशील होता है, और अण्डकोष क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
· कार,
बस, ट्रेन, बड़ी इमारतों या ग्रामीण क्षेत्र में जहाँ सिगनल कमजोर हों सेलफोन का
प्रयोग नहीं करें क्योंकि इस परिस्थितियों में सेलफोन बहुत तेज रेडियेशन छोड़ता
है।
· जब
भी संभव हो या आप घर पर हों तो लैंडलाइन फोन का प्रयोग करें। अपने कम्प्यूटर या
लेपटॉप में इन्टरनेट के लिए वाई-फाई की जगह तारयुक्त ब्रॉडबैंड कनेक्शन लें।
कोर्डलेस फोन भी प्रयोग नहीं करें। वाई-फाई और कोर्डलेस फोन भी रेडियो तरंगो
द्वारा ही काम करता है। व्यवसाय या प्यार की लम्बी बातें तो लैंडलाइन फोन पर
करने का आनंद ही कुछ और है। आपको टेलीफोन पर गाये गये “मेरे पिया गये रंगून किया है वहाँ से टेलीफोन तुम्हारी याद सताती है जिया
में आग लगाती है” या दिलीप कुमार और वैजंती माला पर फिल्माया
गया ”आजकल शौक-ए-दीदार है क्या करूँ आपसे प्यार है” मधुर गीत को सुनने में आज भी आनंद आता है।
· बच्चो
और किशोरों को तकिये के नीचे या बिस्तर में सेलफोन रख कर सोने से मना करें। वर्ना
रात भर सेलफोन उन्हें विद्युत-प्रदूषण (Electro-Polution) देता रहेगा। सेलफोन का प्रयोग गाने सुनने, मूवी देखने या गेम्स खेलने के
लिए नहीं करना चाहिये।
· 18 वर्ष से छोटे लड़कों को सिर्फ आपातकालीन परिस्थितियों में ही सेलफोन प्रयोग करने
दें।
·
मोबाइल में रेडिएशन रोधी कवर
लगवाएं।
· मोबाइल
खरीदते समय इस बात का विशेष ख्याल रखें कि उसमें S.A.R. (स्पेसिफिक
एब्सॉप्शन रेट) कम हो ताकि आपका मोबाइल आपको कम रेडियेशन छोड़े। एस.ए.आर. ऊतक (एक
किलो) द्वारा अवशोषित की जाने वाले रेडियेशन की मात्रा है। इसकी इकाई व्हाट प्रति किलो
(ऊतक) है। भारत में एस.ए.आर. की अधिकतम सीमा 1.6 वाट/किलो रखी गई है, बशर्ते व्यक्ति
सेलफोन का प्रयोग दिन में सिर्फ 6 मिनट करे।
सरकार
के लिए दिशा-निर्देश
· सेलफोन
निर्माताओं को कड़े निर्देश देना चाहिये कि वे सेलफोन में स्पीकर और माइक लगायें ही नहीं और उपभोक्ताओं को एक बढ़िया और सुरक्षित हैडसेट (संभवतः एयर
ट्यूब वाला) दे दें। इससे सेलफोन कीमत पर भी विशेष फर्क नहीं पड़ेगा।
· लोगो
को सेलफोन के रेडियेशन से बचने हेतु जागरुकता अभियान कार्यक्रमों के लिए धन मुहैया
करना चाहिये।
· सेलफोन
कम्पनियों को सेलफोन बेचने की अनुमति देने के पहले उपभाक्ताओं की सुरक्षा हेतु
बीमा करवाना और उसके साक्ष्य प्रस्तुत
करना अनिवार्य होना चाहिये।
· सेलफोन
पर संवैधानिक चेतावनी लिखी होनी चाहिये कि इसके प्रयोग से ब्रेन कैंसर हो सकता है।
· रेडियेशन
मानक नये सिरे से निर्धारित करने चाहिये।
· सेलफोन
रेडियेशन के दूरगामी खतरों पर अनुसंधान हेतु निष्पक्ष और स्वतंत्र संस्थाएं गठित
करना चाहिये और पर्याप्त धन उपलब्ध करवाना चाहिये।
· बच्चों
को सेलफोन बेचने हेतु बने लुभावने विज्ञापन तुरन्त प्रतिबंधित करने चाहिये।
· स्कूल
में पढ़ने वाले बच्चों को सेलफोन के खतरों से बचाने हेतु कड़ें निर्देश जारी करने
चाहिये कि बच्चे स्कूल में सेलफोन लेकर नहीं आयें, सेलफोन, वाई-फाई, माइक्रोवेव
ओवन आदि के खतरों के बारे में उन्हें पढ़ाया जाना चाहिये और जागरुकता हेतु स्कूल
में बेनर लगावाने चाहिये। सेलफोन टॉवर भी
स्कूल से दूर लगाये जाने के निर्देश दियें जायें।
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