गंगा तेरे वास्ते...
गंगा तेरे वास्ते बातें तो बड़ी बड़ी होती हैं...आंदोलन किये जाते हैं...धरना प्रदर्शन किये जाते हैं...करोडों की योजनाएं बनायी जाती हैं...धरना...प्रदर्शन औऱ आंदोलनों से कोई अपनी राजनीति चमका रहा होता है...तो करोडों की योजनाओं से गंगा को साफ करने वाले अपनी जेबें रोशन कर रहे होते हैं...ये सब होता है गंगा तेरे वास्ते...लेकिन मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि गंगा तू आज पहले से और ज्यादा मैली हो गयी है...तेरी अविरलता...निर्मलता...स्वच्छता धुंधली पडती जा रही है। इसी अविरलता और स्वच्छता को लेकर संत समाज हमेशा से आवाज बुलंद करता रहा है...लेकिन ये वही संत हैं...जो परंपरा के नाम पर किसी संत के निधन पर उस संत के शव को जल समाधि देने की बात कहते हुए गंगा में बहा देते थे...उस शव से गंगा में फैल रहा प्रदूषण इन संतों को नजर नहीं आता था...लेकिन सालों पुरानी ये परंपरा को एक संत ने ही तोडा है...एक नया इतिहास रचा है...ताकि गंगा की निर्मलता...स्वच्छता बरकरार रहे...गंगा तेरे वास्ते...महंत शंकर दास ने अपना शरीर छोडने से पहले संत समाज से कहा था कि जल समाधि के नाम पर उनका शव गंगा में ना बहाया जाए...बल्कि उसे जलाया जाए...महंत ने इसकी शुरूआत तो कर दी है...लेकिन बडा सवाल ये है कि क्या संत समाज महंत शंकर दास की गंगा के वास्ते इस आहुति की जोत को क्या जलाए रखने में सफल होगा...या फिर महंत शंकर दास की आहुति की ये जोत...उऩकी राख ठंडी होने के साथ ही मंद पड़ जाएगी। महंत शंकर दास ना सिर्फ संत समाज के लिए ये जोत जलाकर गये हैं...बल्कि गोमुख से लेकर गंगासागर तक गंगा के तट पर बसने वाले उन 40 करोड लोगों के लिए भी इस जोत को रोशन करके गये हैं...लेकिन क्या ये 40 करोड लोग इस जोत की मशाल को थाम कर गंगा के तटों पर फेंके जाने वाले करोडों टन कचरे की मात्रा को कम करने का संकल्प लेंगे। गंगा की अविरलता औऱ स्वच्छता कुछ हद तक बच सकती है...अगर संत समाज और गंगा के तट पर बसने वाले 40 करोड लोग महंत शंकर दास की जोत को जलाए रखने में कामयाब रहते हैं। गंगा को साफ करने के लिए करोडों खर्च किये जा चुके हैं औऱ करोडों की योजनाएं पाइपलाइन में हैं...लेकन गंगा की अविरलता और स्वच्छता सही मायने में तब तक नहीं लौट सकती जब तक हम गंगा में फेंकें जा रहे करोडों टन कचरे को रोकने में कामयाब नहीं होते...और ये सब होगा आपकी अपनी इच्छाशक्ति से...तो आज आप भी संकल्प लें अपने आस पास की गंगा को गंगा ही रहने दें...कोई गंदा नदी नाला ना बनने दे...सिर्फ गंगा के वास्ते।
दीपक तिवारी
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