24.3.12

रेकी या स्पर्श-चिकित्सा


 रेकी या स्पर्श-चिकित्सा
रेकी क्या है
रेकी या स्पर्श चिकित्सा में हाथों के द्वारा एक विशेष रीति से रोगी अथवा रोग से ग्रसित अंग को ब्रह्माण्डीय जीवन ऊर्जा या दिव्य प्राण शक्ति देकर बीमारी को दूर किया जाता है। रेकी शब्द दो जापानी शब्दों ' रे ' और ' की ' से बना है। ' रे ' का मतलब ब्रह्म बोध या दिव्य ज्ञान और ' की ' का मतलब जीवन ऊर्जा होता है (संस्कृत में की को प्राण कहते हैं)। यही जीवन ऊर्जा हमारे शरीर को चेतना प्रदान करती है और इस पूरे ब्रह्माण्ड में हमारे चारों तरफ विद्यमान है। रेकी शरीर, मन और आत्मा में सामंजस्य स्थापित करती है। जब हम बुजुर्गों के पैर छूते हैं और वे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते हैं, वह भी रेकी का ही रूप है। वास्तव में वे हमें जीवन ऊर्जा देकर अनुग्रहीत करते हैं।
यह बहुत आसान, अचूक, कारगर तथा एक सफल वैकल्पिक उपचार है। कोई भी व्यक्ति रेकी सीख सकता है। यह आवश्यक नहीं कि रेकी सीखने वाला व्यक्ति बहुत बुद्धिमान, योगी, संत-सन्यासी या आध्यात्मिक क्षेत्र का पहुंचा हुआ व्यक्ति हो। अभ्यास और एकाग्रता के बल पर कोई भी इसे सीख सकता है। न ही इसे सीखने के लिए उम्र का बंधन है। इसे सीखने के लिए कई वर्षों के लम्बे अभ्यास की आवश्यकता भी नहीं होती। रेकी एक ऐसा अद्भुत तरीका है, जिसमें रोगी और रोग से ग्रसित अंग को रेकी उपचारक द्वारा दिव्य प्राण ऊर्जा देकर बीमारी से छुटकारा दिलाया जाता है।
इतिहास
आध्यात्मिक शक्तियों से हमारा देश सर्वोपरी है। हजारों वर्ष पूर्व भारत में स्पर्श चिकित्सा का ज्ञान था। अथर्ववेद में इसके सबूत पाए गए हैं, किंतु गुरु-शिष्य परंपरा के कारण यह विद्या मौखिक रूप से ही रही। लिखित विद्या न होने के कारण धीरे-धीरे यह लुप्त होत चल 
2500  वर्ष पहले भगवान बुद्ध ने य विद्या अपने शिष्यों को सिखाई ताकि देशाटन के समय जंगलों में घूमते हुए उन्हें चिकित्सा सुविधा का अभाव न हो और वे अपना उपचार कर सकें। भगवान बुद्ध की 'कमल सूत्र' नामक पुस्तक में इसका कुछ वर्णन है।
15 अगस्त, 1865 में जन्मे जापान के डॉ. मिकाओ उसुई ने इस विद्या की पुनः खोज की और आज यह विद्या रेकी के रूप में पूरे विश्व में फैल गई है। डॉ. मिकाओ उसुई की इस चमत्कारिक खोज ने 'स्पर्श चिकित्सा' या रेकी के रूप में संपूर्ण विश्व को चिकित्सा के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान की है।
रेकी उपचार
रेकी उपचार के लिए रोगी पूरे कपड़े पहने निश्चिंत होकर पलंग पर लेट जाता है या आरामदायक कुर्सी पर बैठ जाता है। रोगी से उसके अनुभव, लक्षण, रोग की अवधि, तीव्रता और आवृत्ति के बारे में जानकारी ली जाती है। उससे जीवनशैली, आहार, मानसिक तनाव आदि के बारे में भी पूछा जाता है। रेकी विशेषज्ञ रोगी के विभिन्न अंगो को अपने हाथों से स्पर्श करके उपचार करता है। हाथों के हस्त चक्र द्वारा उपचारक रोगी के प्रभामण्डल और चक्र में जीवन ऊर्जा के प्रवाह में आई रुकावट को महसूस कर लेता है। वह रोगी के प्रभामण्डल और चक्रों में ऊर्जा प्रवाहित करता है। यह ऊर्जा अंतःस्रावी ग्रंथियों, अंगों और न्यूरोट्रोंसमीटर्स में आई रुकावट को दूर करती है तथा नकारात्मकता को निकाल देती है। कभी-कभी यह नकारात्मकता निकलते समय तकलीफ बढ़ा सकती है लेकिन ज्यों ही सारी नकारात्मकता निकल जाती है, स्थिति सुधर जाती है। यह उपचार लगभग एक घन्टे या थोड़ा ज्यादा चलता है। हाथों का स्पर्श बहुत हल्का और कोमल होता है और कोई दबाव नहीं डाला जाता है। इसलिए इसे किसी भी उम्र या रोग में दिया जा सकता है। कई बार तो हाथों को त्वचा से दूर रख कर ही उपचार दिया जाता है। जीवन ऊर्जा को जहाँ भी आवश्यकता हो वहीं केन्द्रित कर दिया जाता है। रोगी को हल्का सी गर्मी  या सिरहन महसूस होती है। रेकी उपचार बहुत सौम्य  और आरामदायक अनुभव होता है। जब तक रोगी इस ब्रह्माण्डीय जीवन ऊर्जा को ग्रहण नहीं करना चाहता तब तक यह ऊर्जा उसके शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती है, इसलिए रोगी का विश्वास, सहमति और सहयोग बहुत जरूरी है।
रेकी शक्तिशाली और सौम्य उपचार
रेकी उपचार की विशेषता यह है कि इसमें जीवन ऊर्जा भौतिक, भावनात्मक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर उपचार करती है। यह लगभग सभी रोगों जैसे श्वासकष्ट, सिरदर्द, ऐलर्जी, साइनोसाइटिस, अस्थिसंध-शोथ, रक्तचाप, कमरदर्द, सर्वाइकल स्पोन्डिलाइटिस, जुकाम, मधुमेह, पेप्टिक अल्सर, स्क्लिरोडर्मा, पाइल्स, हिपेटाइटिस, माइग्रेन, माहवारी विकार आदि में काम करती है। यह सभी तरह के दर्द में आश्चर्यजनक रूप से लाभप्रद है। यह चिरकारी भौतिक और मानसिक रोगों के उपचार में  बहुत प्रभावशाली साबित हुई है।
रेकी के लाभ
  • यह शरीर में ऊर्जा के उन्मुक्त प्रवाह में आई रुकावट को दूर करती है।
  • यह शरीर, प्रभामण्डल और चक्रों के विशुद्ध करती है।
  • अतीद्रिंय मानसिक शक्तियों को बढ़ाती है।
  • ध्यान लगाने के लिए सहायक होती है।
  • शरीर में व्याप्त नकारात्मकता को दूर करती है।
  • शरीर की रक्षाप्रणाली को प्रभावी बनाती है।
  • शरीर को शान्त करती है।
  • शरीर और मन दोनों का उपचार करती है।
  • अहम को खत्म करती है।
  • शरीर की स्वउपचार शक्ति को बढ़ाती है।
  • कुण्डलिनी शक्ति के मार्ग को साफ करती है।
  • मानसिक शक्ति को बढ़ाती है।
  • समक्ष एवं परोक्ष उपचार करती है।

रेकी कैसे कार्य करती है

शरीर में जीवन ऊर्जा का स्वचछंद प्रवाह ही अच्छे स्वास्थ्य का आधार होता है। स्वस्थ रहने के लिए मन की भूमिका अहम होती है। हमारा मन पांचों इन्द्रियों द्वारा एकत्रित बाहरी सूचना तथा ऊर्जा का विश्लेषण करता है और उसे प्रभामण्डल और चक्रों द्वारा अवचेतन मन में प्रवाहित करता है। इसलिए मन को छठी इन्द्री कहते है। यदि मन शान्त है और तनावमुक्त है, तो ऊर्जा का प्रवाह अविरत होता रहता है। इस तरह पांचों इन्द्रियों द्वारा एकत्रित बाहरी सूचनाएं मन और शरीर में सामंजस्य बनाये रखने में अहम भूमिका रखती हैं। ऊर्जा के प्रवाह में रुकावट आने से कोई चक्र असन्तुलित हो जाता है, जिसके फलस्वरूप अन्य चक्र, अंतःस्रावी ग्रंथियां और पांचों तत्व भी असन्तुलित हो जाते है। जिससे उन चक्रों से नियंत्रित कोई अंग विशेष या सम्पूर्ण शरीर निष्क्रिय और रोगग्रस्त हो जाता है। हर चक्र एक अंतःस्रावी ग्रंथि का भी नियंत्रण करता है, जो अमुक हार्मोन का स्रवण करती हैं। ये हार्मोन शरीर के खास अंगों के क्रिया-प्रणाली को संतुलित रखते हैं। रेकी उपचार में उपचारक अपने हाथों द्वारा ब्रह्माण्डीय जीवन ऊर्जा को रोगी के प्रभामण्डल और चक्रों में प्रवाहित करता है।
रेकी की विशेषताएं
  • जहाँ दवाओं के दाम आसमान को छू रहे हैं, वहीं रेकी बहुत कम खर्चीला उपचार है।
  • कोई पार्ष्व-प्रभाव नहीं हैं।
  • इसे अन्य उपचार (एलोपेथी, आयुर्वेद, हाम्योपेथी आदि) के साथ लिया जा सकता है।
  • यह रोग के मूलभूत कारण को दूर करती है।
  • रेकी बिना किसी दवा के पूरे शरीर का उपचार करती है।
  • चूँकि रेकी का प्रयोग करने वाला गुरू केवल उसका वाहक होता है, उसका मूल स्रोत नहीं, अतः उपचार करने से रेकी उपचारक की अपनी ऊर्जा कम नहीं होती, अपितु उसके माध्यम से रेकी दी जाने के कारण रोगी की चिकित्सा के साथ-साथ उसकी अपनी भी चिकित्सा होती है और उपचारक का ऊर्जा स्तर बढ़ता है।
  • यह बेचैन के लिए फूलों की सेज है, निराश के लिए आशा का दीप है, और स्वस्थ्य के लिए कायाकल्प पेय है।
रेकी प्रशिक्षण
शक्तिपात
रेकी के माध्यम से हम मानव अस्तित्व में व्याप्त उर्जा को न सिर्फ नियंत्रित कर सकते हैं बल्कि रेकी हमारे शरीर, मस्तिष्क, भावनाओ एवं आध्यात्मिक स्तर पर भी सकारात्मक असर डालती है। रेकी प्रशिक्षण में रेकी प्रशिक्षक प्रभिक्षु के चक्र खोलता है और उसमें स्थाई रूप से असिमित ब्रह्माण्डीय जीवन ऊर्जा का संचार करता है। इसे शक्तिपात कहते हैं और यह तीन चरणों में की जाती है। इसके बाद यह शक्ति जीवनपर्यंत तथा हर समय व्यक्ति के पास रहती है। इससे वह स्वयं का और दूसरों का उपचार कर सकता है।  रेकी साधक  की आत्मा पवित्र होनी चाहिये। शान्त, निष्कपट और सत्यवादी साधक  अच्छे उपचारक बनते हैं। चक्रों पर ध्यान लगाने से साधक  की जीवन ऊर्जा को प्रसारित करने की क्षमता बहुत बढ़ जाती है। इसे चक्र, प्रभामण्डल, आत्मा और ब्रह्माण्डीय विज्ञान का पूरा ज्ञान होना भी जरूरी है।
पहला चरण
यह 14-16 घंटे की प्रशिक्षण प्रक्रिया है जिसमे साधक  को रेकी की सैधान्तिक एवं व्यवहारिक जानकारी दी जाती है प्रायः यह सम्पूर्ण प्रक्रिया 2 दिनों में की जाती है एवं पूरी प्रक्रिया में साधक  पर 4 बार शक्तिपात द्वारा सहस्रार, आज्ञा, विशुद्ध तथा अनाहत चक्रों को खोला जाता है और साधक  को स्वयं तथा दूसरे का उपचार करने की योग्यता दी जाती है। शक्तिपात के बाद साधक में जीवन ऊर्जा का स्पन्दन बढ़ जाता है, शरीर में आरोग्य ऊर्जा अवस्थित हो जाती है, नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है और शारीरिक रोग ठीक होने लगते हैं।  इसे सीखने के बाद साधक  कुछ महीनों तक इसका अभ्यास  करता है।
दूसरा चरण
इस प्रशिक्षण में भी लगभग 2 दिनों का समय लगता है। इस चरण में साधक को प्रशिक्षण को आगे बढ़ाते हुए रेकी के परम्परागत और गैर-परम्परागत चिन्ह सिखाये जाते हैं। ये पवित्र चिन्ह विशेष प्रयोजन हेतु आरोग्य ऊर्जा को केन्द्रित करते हैं। इनका प्रयोग उपचार और शक्तिपात दोनों के लिए किया जाता है। ये तृतीय नेत्र को खोल देते हैं जिससे कई मानसिक शक्तियां विकसित हो जाती हैं और दूरस्थ उपचार करना भी सम्भव हो जाता है।
तृतीय चरण
तृतीय चरण में छात्र रेकी में महारत हासिल कर लेता है और इस काबिल हो जाता है की दूसरों को रेकी सिखला सके।  रेकी के इस चरण रेकी की एक अलग ही अध्यात्मिक धारा की शुरुआत है जहाँ से साधक को रेकी में दक्ष होकर समाज के दूसरे लोगो तक रेकी का प्रचार-प्रसार एवं प्रशिक्षण का कार्यभार संभालना होता है जो आगे चलकर रेकी गुरू और उसके बाद महागुरू के रूप में जाना जाता है। रेकी चिकित्सा का लाभ मनुष्य एवं अन्य जीवित प्राणियों (जैसे जानवर) के अलावा, पेड़-पौधे एवं निर्जीव वस्तुओं  जैसे पृथ्वी इत्यादि को भी मिलता है। इनके अलावा यह रिश्तों में आई दूरी या खटास को भी कम करता है या पूरी तरह से मिटाता है।

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