24.3.12

चिंता से बचना ही सफलता


चिंता से बचना ही सफलता 

चिंता क्या है 

मन में उठने वाले विचार जब नकारात्मक दिशा में बढ़ने लगते हैं और मस्तिष्क की ऊर्जा भी 
नकारात्मक विचारों के अति-विश्लेषण पर व्यय होने लगती है तब हम उसे चिंता कहते हैं 

चिंता की उत्पति कैसे होती है 

चिंता भय की कल्पनाओं से उत्पन्न होती है

चिंता का स्वरूप 

हम चिंता को चार भागों में बाँट सकते हैं 

(१) स्वास्थ्य या  मृत्यु की चिंता - हम या हमारे प्रिय स्वजन असमय में गंभीर बिमारी से ग्रस्त 
     ना हो जाए या असमय काल कलवित ना हो जाए यह चिंता हर प्राणी के मन में रहती है .कोई 
     गंभीर रोग ना लग जाए इस नकारात्मक कल्पना का स्मरण कर मन इस कल्पना पर गहन 
    विश्लेषण करने लग जाता है तब हम तनावग्रस्त हो जाते हैं  

(२) धन सम्पत्ति या आजीविका की चिंता - मेरी आजीविका का साधन यदि संकट में पड़ गया
     तो क्या होगा या किसी आर्थिक नुकसान में फँस गया तो क्या होगा ,ऐसी कल्पनाओं पर विचार 
     करके व्यक्ति अपने आत्मबल को कम कर लेता है और खुद को दीन-हीन मानकर भयभीत 
     हो जाता है 
 
(३) सामाजिक अपकीर्ति या अपयश की चिंता- समाज,शहर या देश में मेरा अच्छा नाम है, मैं 
      जो कुछ कर रहा हूँ उस पर समाज क्या प्रतिक्रिया देगा ,कहीं  मेरे कुल के गौरव पर दुनिया 
     अंगुली ना उठा दे,कहीं मेरे कुकृत्य या दोष समाज के सामने ना आ जाए .
 
(४) प्रतिकूल परिस्थिति या असफलता की चिंता - आज का दिन तो ठीक बीत गया मगर आने 
      वाला कल कैसा बीतेगा,कहीं मुझे असफलता का आने वाले समय में सामना ना करना पड़ जाए 
     इस प्रकार के भय की कल्पनाएँ हमें तनावग्रस्त कर देती है.  

चिंता का कुप्रभाव 
(१) मानसिक और शारीरिक बीमारियाँ मन तथा शरीर को घेर लेती है 
(२) स्वभाव में नीरसता ,चिडचिडापन और अनुत्साह छा जाता है 
(३) गलत चिंतन से नकारात्मक विचारों का दिमाग में एक चक्र निर्मित हो जाता है जो शंका ,
     असंतोष,इर्ष्या ,कुढ़न और बैचेनी का जाल फेला देता है 
(४) आत्मविश्वास टूटने लगता है,एकाग्रता भंग हो जाती है 
(५) मतिभ्रम ,सोचने की शक्ति पर दुष्प्रभाव ,स्मरण शक्ति में कमी आ जाती है 
(६) निर्णय शक्ति कुंठित हो जाती है ,सुअवसर भी कुअवसर में बदल जाते हैं 

चिंता से मुक्ति कैसे    
(१)सकारात्मक सोच रखे 
(२)प्रतिकूल परिस्थितियों में चित्त को शांत रखे ,अटूट धेर्य रखे 
(३)आज को सफल जीने का लक्ष्य बनाएं 
(४)चिंता के कारणों पर पूर्ण और तटस्थ होकर चिंतन करे 
(५)योग्य ,वृद्ध, विशेषज्ञों तथा पूज्य लोगों से सलाह ले और उनके द्वारा प्राप्त सलाह पर अमल करे 
(६) आस्तिक बने ,परिवर्तन के चक्र पर श्रद्धा रखे 
(७)अंतर्मन से  बार-बार सुखद परिणाम की प्राप्ति का मार्ग पूछे 
(८) कार्य को पूजा समझ कर निष्ठां से करते रहे   
     

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