शंकर जालान
राज्य के विभिन्न जिलों में भूमि कटान की समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। उत्तर बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में नदी के जल स्तर के भू-भाग पर अतिक्रमण के कारण हर वर्ष यहां के हजारों लोगों के अपनी जमीन और अपने आशियाना खोना पड़ा रहा है। वहीं दक्षिण चौबीस परगना जिले के सुंदरवन व मालदा जिले के कुछ गावों में नदियों का बढ़ता दायरा खतरे की दस्तक दे रहा है। इस बाबत मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु पर हो रहे बदलाव की वजह ऐसा हो रहा है। विशेषज्ञों की माने तो बीते दस साल में बंगाल के तटवर्ती क्षेत्रों में भूमि कटान की समस्या पनपी है, जो धीरे-धीरे गंभीर रूप धारण करती जा रही है। मौसम के जानकार का कहना है कि वायुमंडल का तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसी के फलस्वरुप ग्लेशियर तेजी से पिघल रही है, जिससे नदियों की धारा तीव्रता से बढ़ गई है और वह अनियंत्रित होकर भू-भाग पर अतिक्रमण कर रही है। इस सिलसिले में विशेषज्ञ अरुण दास का कहना है कि भू-कटान की समस्या केवल बंगाल या भारत की नहीं, बल्कि विश्वभर के कई देश इससे जूझ रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि सभी देश इस रोकने के लिए एक जुट होकर प्रयास करे।
उन्होंने बताया कि उत्तर बंगाल में भू-कटान की सबसे ज्यादा प्रभाव महानंदा वन्य जीव अभयारण्य पर पड़ा है। इस अभयारण्य से आधा से ज्यादा हिस्से पहले ही पानी की चपेट में आ चुका है। दास के शब्दों में इस वजह से वनांचल सीमित हो रहे हैं, जिससे वहां रहने वाले वन्य जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ा गया है।
मालूम हो कि सैकड़ों किलोमीटर में फैले इस वन क्षेत्र में गैंड़ा, तेंदुआ. हिरण की कई दुर्लभ प्रजातियों का वास है। इसके अलावा यहां साल व सागौन के हजारों पेड़ भी हैं।
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