उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की करारी हार के बाद हाईकमान की फोकस पर आए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अब अपनी सरकार की छवि की चिंता लग गई है। वे समझ रहे हैं कि जनहित के अनेक कार्यक्रम शुरू किए जाने के बाद भी विभिन्न कारणों से मीडिया में उनके खिलाफ लगातार खबरें आ रही हैं। कभी पत्रकारों से मित्रता के कारण राजनीति में मीडिया की देन माने जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब उनकी खबरों से भारी परेशानी होने लगी है। उनका मानना है कि राज्य सरकार की रीति-नीति और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के संबंध में नकारात्मक समाचार छपने से जनता में सरकार के बारे में गलत संदेश जाता है। साथ ही लोगों में भ्रम की स्थिति भी बनती है। वस्तुस्थिति ये है कि ऐसी खबरों की वजह से ही उन्हें कांगे्रस के प्रतिद्वंद्वी ही आए दिन घेरते रहते हैं और कई बार हाईकमान के सामने नीचा देखना पड़ता है। इसी से निपटने के लिए उनके निर्देश पर नए मुख्य सचिव सी. के. मैथ्यू ने पद संभालने के तुरंत बाद सभी विभागों को नकारात्मक खबरों का नियमित रूप से खंडन जारी करने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए सभी विभागों में विभागाध्यक्ष अथवा वरिष्ठतम उप शासन सचिव को नोडल अधिकारी बनाया गया है।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस संगठन से जुड़े नेता तो सरकार की रीति-नीति की आलोचना करते ही हैं, पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे भी आए दिन उन्हें कई आरोप लगा कर घेरती रहती हैं। पिछले दिनों ही उन्होंने जल महल प्रकरण, कल्पतरू कंपनी को फायदा देने, वेयर हाउस कॉर्पोरेशन को शुभम कंपनी को सौंपने और होटल मेरेडीयन को फायदा पहुंचाने संबंधी कई आरोपों को फिर दोहराया, जो कि खुद उनकी ही पार्टी के नेताओं ने लगाए हैं और मीडिया ने भी उजागर किए हैं। वसुंधरा के इस आक्रामक रुख का मुकाबला ठीक से न कर पाने के कारण कांग्रेस नेताओं को भारी परेशानी है। उन्हें बड़ी पीड़ा है कि वे वसुंधरा को घेरने की बजाय खुद ही घिरते जा रहे हैं।
हालांकि यह भी सही है कि वसुंधरा जिस तरह से अपने आप को निर्दोष बताते हुए दहाड़ रही हैं, जनता उन्हें उतना पाक साफ नहीं मानती। भाजपा राज में हुए भ्रष्टाचार को लेकर आम जनता में चर्चा तो खूब है, भले ही गहलोत उसे साबित करने में असफल रहे हों। साथ ही यह भी कड़वा सच है कि जनता की नजर में भले ही वसुंधरा की छवि बहुत साफ-सुथरी नहीं हो, मगर कम से कम गहलोत तो उनके दामन पर दाग नहीं लगा पाए हैं। अब जब कि भाजपा सत्ता में लौटने को आतुर है, वसुंधरा के लगातार हमले बहुत भारी पड़ सकते हैं। इसी को लेकर गहलोत चिंतित हैं। इसी सिलसिले में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान का यह कहना कि मौजूदा स्थिति में कांग्रेस पचास सीटें भी हासिल नहीं कर पाएगी, बेहद गंभीर विषया है।
ऐसा प्रतीत होता है कि गहलोत को अब यह अहसास हो गया है कि उनका मीडिया प्रबंधन काफी कमजोर है। यही वजह है कि राजस्थान के लोक सेवाओं के प्रदान करने का गांरटी अधिनियम 2011 लागू करने, सेन्ट्रल विजिलेंस कमीशन के आधार पर राज्य में सी.वी.सी. सिस्टम शुरू करने, केन्द्र से भी पहले सूचना का अधिकार देने, नागरिक अधिकार पत्र लागू करने, मुख्यमंत्री, मंत्री, आई.ए.एस, आई.पी.एस. अधिकारी के साथ साथ 45 हजार राजपत्रित अधिकारियों की सम्पितियों का विवरण वेबसाइट पर जारी करने, राईट टू शेल्टर अधिनियम व राईट टू एजूकेशन एक्ट लागू करने, मुख्यमंत्री निशुल्क दवा वितरण योजना व जननी शिशु सुरक्षा योजना आरंभ करने के साथ-साथ पारदर्शिता अधिनियम (ट्रान्सपे्रन्सी एक्ट) राईट टू हियेरिंग एक्ट व फूड सिक्योरिटी एक्ट लागू करने का ऐलान करने के बाद भी सरकार को जो क्रेडिट मिलनी चाहिए, वह मिलने के बजाय मेदरणा प्रकरण व गोपालगढ़ कांड ज्यादा हावी हैं।
ऐसे में सरकार ने नकारात्मक खबरों से निपटने के लिए पुख्ता व्यवस्था की है। मुख्य सचिव मैथ्यू ने जो परिपत्र जारी किया है, उसके तहत सभी विभागों को नकारात्मक समाचार के बारे में वस्तुस्थिति (खंडन) सीधे ही सूचना एवं जन संपर्क विभाग की वेबसाइट पर अपलोड करने होंगे। खबरों की जानकारी रोजाना सुबह 11 बजे तक सीएमओ, मुख्य सचिव अथवा डीपीआर की ओर से मोबाइल, एसएमएस अथवा टेलीफोन से संबंधित अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, विभागाध्यक्ष को दी जाएगी। दोपहर 12 बजे तक संबंधित विभागों को खबरों की कटिंग फैक्स अथवा ई-मेल से भेजी जाएंगी। संबंधित विभाग को शाम 4 बजे तक उस खबर से संबंधित वस्तुस्थिति और तथ्यात्मक टिप्पणी से ऑन लाइन न्यूज मॉनिटरिंग सिस्टम पर अपलोड करनी होगी।
अब देखना ये होगा कि सरकार यह कदम छवि सुधारने में कितना कारगर साबित होता है। इसमें संशय इस कारण है कि प्रदेशभर में तैनात कई पीआरओ भाजपा मानसिकता के हैं, जो सरकार की मंशा को पूरा करते हैं या नहीं, यह वक्त ही बताएगा।
-तेजवानी गिरधर
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