22.4.12

एमपी नहीं मुख्यमंत्री कहो...


एमपी नहीं मुख्यमंत्री कहो...

विजय बहुगुणा अब एमपी नहीं है मुख्यमंत्री बन गए हैं...खबरदार जो उनको एमपी बोला...उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार 20 अप्रेल को मुख्यमंत्री आवास पर बहुगुणा का जनता दरबार लगा...लोग अपनी फरियाद लेकर मुख्यमंत्री के पास पहुंचे थे...कुछ लोग ऐसे भी थे...जो बहुगुणा के एमपी रहते हुए की उनकी चिट्ठी लेकर पहुंचे थे...बहुगुणा साहब ने जब वो चिट्ठी देखी तो चुप रहे बिना नहीं रह सके...बोले अब मैं मुख्यमंत्री बन गया हूं...एमपी नहीं रहा। बेशक कांग्रेस में चली सीएम की कुर्सी की जंग में बहुगुणा की विजय हुई...लेकिन एमपी साहब शायद ये भूल गए कि अभी तो विधायकी का चुनाव लड़ना है...और जैसे हालात प्रदेश कांग्रेस में है...उससे तो लगता नहीं कि बहुगुणा साहब आसानी से इस अग्निपरीक्षा को पास कर पाएंगे। बहरहाल हम बात कर रहे थे बहुगुणा के पहले जनता दरबार की...ये तो जनता दरबार का सिर्फ एक किस्सा था...मुख्यमंत्री का जनता दरबार था...वो भी प्रदेश के नए नए सीएम का तो लोगों को भी बड़ी उम्मीदें थी...हर कोई जनता दरबार में अपनी अर्जी इस उम्मीद से लेकर आया था कि शायद सीएम साहब उनकी तकलीफें कुछ कम करेंगे...लेकिन जनता दरबार में जनता को दो घंटे इंतजार कराने के बाद जब बहुगुणा पहुंचे तो बड़ी जल्दी में दिखाई दिए...मानो जनता दरबार बुलाकर सीएम साहब ने कोई बड़ी गलती कर दी हो। कुछ जरूरतमंद नौकरी की आस में पहुंचे थे...तो कुछ आर्थिक सहायता की उम्मीद लेकर...लेकिन कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ का नारा देने वाले पार्टी से आने वाले बहुगुणा के पास न तो जरूरतमंदों के लिए नौकरी थी औऱ न ही आर्थिक सहायता देने के लिए कोई बजट। ये बात शायद आपको हज़म न हो लेकिन ये सौ प्रतिशत सच है...पौड़ी का रहने वाला रमेश सेलाकुइ में एक फैक्ट्री में काम के दौरान अपना एक हाथ गंवा बैठा था...जनता दरबार में बड़ी आस के साथ पहुंचे रमेश ने जब बहुगुणा को नौकरी की अर्जी दी तो बहुगुणा ने बिना उसका दर्द समझे...बिना उसकी परेशानी समझे दरखास्त लौटा दी...अरे बहुगुणा साहब नहीं देते नौकरी न सही...कम से कम उस गरीब का दर्द तो बांट लेते...वह तो आपको अपना मुख्यमंत्री समझ कर ही जनता दरबार में पहुंचा था...लेकिन आप अब एमपी नहीं रहे न...अब तो आप सीएम बन गए हैं...सीएम...अब आपको क्या मतलब किसी के दर्द से। लालढांग से आए एक औऱ शख्स की आर्थिक सहायता की अर्जी पर बहुगुणा साहब कहने से नहीं हिचकिचाए...इतना ही मिल सकता है...ज्यादा बज़ट नहीं होता हमारे पास...हां विधायकों के वेतन भत्ते बढ़ाने की बात जब आती है...तब बजट की कमी नहीं होती सरकार के पास...नहीं है तो बस जरूरतमंदों की सहायता के लिए बजट। कुछ इसी तरह बहुगुणा साहब ने आधे घंटे में करीब डेढ़ सौ फरियादियों को निपटा दिया...यानि कि समय 30 मिनट औऱ फरियादी 150...एक फरियादी को दिए 12 सेकेंड...माना आपका वक्त कीमती है...लेकिन कोई 12 किलोमीटर से आया था तो कोई 120 किलोमीटर दूर से...कुछ तो चार सौ से पांच सौ किलोमीटर दूर से पहुंचे थे...लेकिन उन्हें नसीब हुए आपके सिर्फ 12 सेकेंड। किसी की मदद न करते न सही कम से कम इत्मिनान से उनकी समस्या ही सुन लेते शायद उनके चेहरे पर सकून तो देखने को मिलता...लेकिन जिस जल्दी में आप आए औऱ गए...उससे तो हर कोई आपके जनाने के बाद बस यही कहता नजर आया...बहुगुणा साहब सही कहा आपने अब आप एमपी नहीं रहे अब आप वाकई में मुख्यमंत्री बन गए हो। यही तो आप सुनना चाह रहे थे न कि अब मैं मुख्यमंत्री बन गया हूं...आपने तो एहसास भी करा दिया लोगों को...उनकी गलतफहमी दूर कर दी।

दीपक तिवारी

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