भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय महामंत्री व राजसमंद की विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी के आंसुओं के आगे आखिर भाजपा का नेतृत्व पिघल गया। पार्टी वरिष्ठ नेता एवं पूर्व गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया की प्रस्तावित लोक जागरण अभियान यात्रा को स्थगित कर दिया गया है। साफ तौर पर इस मामले में किरण माहेश्वरी की जीत हो गई है, मगर इसे कटारिया की हार भी करार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि अब फर्क सिर्फ इतना है कि ऐसी यात्राओं को पार्टी मंच पर तय किया जाएगा। जो कुछ भी हो, मगर इस विवाद के कारण पार्टी में बढ़े मनमुटाव को ठीक से दुरुस्त नहीं किया गया तो यह आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी पड़ सकता है। ज्ञातव्य है कि कुछ इसी प्रकार मनमुटाव पिछली बार भी वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री बनने में बाधक हो गया था।
असल में सारा झगड़ा संघ लोबी और वसुंधरा खेमे का है। हालांकि पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी व पूर्व प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी साफ घोषणा कर चुके हैं कि अगला विधानसभा चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, मगर संघ लोबी को यह मंजूर नहीं है। यही वजह रही कि पहले संघ लाबी से जुड़े पूर्व मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने यह कह कर कि पार्टी ने अब तक तय नहीं किया है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, विवाद को उजागर किया तो एक और दिग्गज पूर्व मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी ने भी उस पर मुहर लगाते हुए कह दिया कि आडवाणी ने राजस्थान दौरे के दौरान ऐसा कहा ही नहीं कि अगला चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। उन्होंने भी यही कहा कि चुनाव में विजयी भाजपा विधायक ही तय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा।
पूर्व गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया की ओर से पार्टी से अनुमति लिए बिना ही 2 मई से जन जागरण यात्रा निकालने का ऐलान इसी विवाद की एक कड़ी है। यात्रा की घोषणा के बाद से ही पार्टी में संघनिष्ठ और गैर संघ भाजपा नेताओं के बीच तनाव की स्थिति बन गई। खासकर मेवाड़ में पार्टी दो खेमों में बंटी नजर आई। जाहिर सी बात है कि निजी स्तर पर निर्णय लेकर पार्टी के प्रचार का यह कदम अनुशासन के विपरीत पड़ता है, मगर चूंकि कटारिया को संघ लाबी का समर्थन हासिल है, इस कारण पार्टी हाईकमान के सामने बड़ी दिक्कत हो गई। दिक्कत तब और बढ़ गई जब कटारिया की यात्रा के सिलसिले में राजसंमद जिला भाजपा की बैठक में जम कर हंगामा हुआ। कटारिया की धुर विरोधी राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी और भीम विधायक हरिसिंह ने कड़ा विरोध किया और यात्रा को काले झंडे दिखाने तक की धमकी दी गई। हालात धक्का मुक्की तक आ गए तो किरण फूट-फूट कर रो पड़ी। किसी बात के विरोध तक तो ठीक है, मगर एक राष्ट्रीय महासचिव का इस प्रकार रोना कोई कम बात नहीं है। सीधी सी बात है कि जिस इलाके की वे विधायक हैं, वहीं की स्थानीय इकाई यदि उनके विरोधी कटारिया का साथ देती है, तो इससे शर्मनाक बात कोई हो ही नहीं सकती। मौके पर खींचतान कितनी थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश भाजपा महासचिव सतीश पूनिया तक मूकदर्शक से किंकर्तव्यविमूढ़ बने रहे गए। संघ लाबी के ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी का रुख भी कटारिया की ओर झुकाव लिए रहा और उन्होंने कहा कि कुछ अंतर्विरोध हो सकते हैं, लेकिन गुलाब चंद कटारिया संगठन की धुरी हैं। ऐसे में किरण जान गईं कि अब तो दिल्ली दरबार का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। उन्होंने जा कर पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को शिकायत कर दी। कदाचित वहां भी उन्होंने रो कर अपना पक्ष रखा हो। यहां कहने की जरूरत नहीं है कि मेवाड़ अंचल में भले ही वे कटारिया की चुनौती से परेशान हैं, मगर दिल्ली में तो उनकी खासी चलती है। पार्टी अनुशासन के लिहाज से भी किरण की शिकायत वाजिब थी, इस कारण गडकरी को मजबूरी में कटारिया को दिल्ली तलब करना पड़ा। संघ कटारिया का पूरा साथ दे रहा था। गडकरी तो बड़ी मुश्किल में पड़ गए। हालांकि उन्होंने अन्य नेताओं की सलाह पर पार्टी हित में कटारिया की यात्रा को स्थगित करने का निर्णय किया, मगर संघ के दबाव की वजह से यात्रा को पूरी तरह से निरस्त करने का निर्णय वे भी नहीं कर पाए। यात्रा की रूपरेखा पार्टी मंच पर तय करने के लिए उसे जयपुर के कोर ग्रुप पर छोडऩा पड़ा।
माना कि किरण माहेश्वरी कटारिया की यात्रा को स्थगित करवाने में कामयाब हो गईं हैं, मगर दूसरी ओर यह बात भी कम नहीं है कि कटारिया भी अपनी यात्रा की चर्चा राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने करवाने में सफल रहे हैं। यात्रा का स्वरूप भले ही अब बदल दिया जाए और उसमें सभी धड़ों को भी साथ लेने पर सहमति बने, मगर इससे यह पूरी तरह से साफ हो गया है आगामी विधानसभा चुनाव में संघ वसुंधरा को फ्री हैंड नहीं लेने देगा और ऐसे में वसुंधरा को संघ को साथ लेकर चलना होगा। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कहां तो वसुंधरा अपने दम पर पूरे प्रदेश की यात्रा की योजना बना रही थीं और खुद को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने वाली थीं और कहां अब पार्टी मंच पर तय हो कर यात्राएं निकाली जाएंगी। ऐसा लगता है कि सब कुछ संघ की सोची समझी रणनीति के तहत हुआ है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
असल में सारा झगड़ा संघ लोबी और वसुंधरा खेमे का है। हालांकि पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी व पूर्व प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी साफ घोषणा कर चुके हैं कि अगला विधानसभा चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, मगर संघ लोबी को यह मंजूर नहीं है। यही वजह रही कि पहले संघ लाबी से जुड़े पूर्व मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने यह कह कर कि पार्टी ने अब तक तय नहीं किया है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, विवाद को उजागर किया तो एक और दिग्गज पूर्व मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी ने भी उस पर मुहर लगाते हुए कह दिया कि आडवाणी ने राजस्थान दौरे के दौरान ऐसा कहा ही नहीं कि अगला चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। उन्होंने भी यही कहा कि चुनाव में विजयी भाजपा विधायक ही तय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा।
पूर्व गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया की ओर से पार्टी से अनुमति लिए बिना ही 2 मई से जन जागरण यात्रा निकालने का ऐलान इसी विवाद की एक कड़ी है। यात्रा की घोषणा के बाद से ही पार्टी में संघनिष्ठ और गैर संघ भाजपा नेताओं के बीच तनाव की स्थिति बन गई। खासकर मेवाड़ में पार्टी दो खेमों में बंटी नजर आई। जाहिर सी बात है कि निजी स्तर पर निर्णय लेकर पार्टी के प्रचार का यह कदम अनुशासन के विपरीत पड़ता है, मगर चूंकि कटारिया को संघ लाबी का समर्थन हासिल है, इस कारण पार्टी हाईकमान के सामने बड़ी दिक्कत हो गई। दिक्कत तब और बढ़ गई जब कटारिया की यात्रा के सिलसिले में राजसंमद जिला भाजपा की बैठक में जम कर हंगामा हुआ। कटारिया की धुर विरोधी राजसमंद विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी और भीम विधायक हरिसिंह ने कड़ा विरोध किया और यात्रा को काले झंडे दिखाने तक की धमकी दी गई। हालात धक्का मुक्की तक आ गए तो किरण फूट-फूट कर रो पड़ी। किसी बात के विरोध तक तो ठीक है, मगर एक राष्ट्रीय महासचिव का इस प्रकार रोना कोई कम बात नहीं है। सीधी सी बात है कि जिस इलाके की वे विधायक हैं, वहीं की स्थानीय इकाई यदि उनके विरोधी कटारिया का साथ देती है, तो इससे शर्मनाक बात कोई हो ही नहीं सकती। मौके पर खींचतान कितनी थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश भाजपा महासचिव सतीश पूनिया तक मूकदर्शक से किंकर्तव्यविमूढ़ बने रहे गए। संघ लाबी के ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी का रुख भी कटारिया की ओर झुकाव लिए रहा और उन्होंने कहा कि कुछ अंतर्विरोध हो सकते हैं, लेकिन गुलाब चंद कटारिया संगठन की धुरी हैं। ऐसे में किरण जान गईं कि अब तो दिल्ली दरबार का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। उन्होंने जा कर पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को शिकायत कर दी। कदाचित वहां भी उन्होंने रो कर अपना पक्ष रखा हो। यहां कहने की जरूरत नहीं है कि मेवाड़ अंचल में भले ही वे कटारिया की चुनौती से परेशान हैं, मगर दिल्ली में तो उनकी खासी चलती है। पार्टी अनुशासन के लिहाज से भी किरण की शिकायत वाजिब थी, इस कारण गडकरी को मजबूरी में कटारिया को दिल्ली तलब करना पड़ा। संघ कटारिया का पूरा साथ दे रहा था। गडकरी तो बड़ी मुश्किल में पड़ गए। हालांकि उन्होंने अन्य नेताओं की सलाह पर पार्टी हित में कटारिया की यात्रा को स्थगित करने का निर्णय किया, मगर संघ के दबाव की वजह से यात्रा को पूरी तरह से निरस्त करने का निर्णय वे भी नहीं कर पाए। यात्रा की रूपरेखा पार्टी मंच पर तय करने के लिए उसे जयपुर के कोर ग्रुप पर छोडऩा पड़ा।
माना कि किरण माहेश्वरी कटारिया की यात्रा को स्थगित करवाने में कामयाब हो गईं हैं, मगर दूसरी ओर यह बात भी कम नहीं है कि कटारिया भी अपनी यात्रा की चर्चा राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने करवाने में सफल रहे हैं। यात्रा का स्वरूप भले ही अब बदल दिया जाए और उसमें सभी धड़ों को भी साथ लेने पर सहमति बने, मगर इससे यह पूरी तरह से साफ हो गया है आगामी विधानसभा चुनाव में संघ वसुंधरा को फ्री हैंड नहीं लेने देगा और ऐसे में वसुंधरा को संघ को साथ लेकर चलना होगा। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कहां तो वसुंधरा अपने दम पर पूरे प्रदेश की यात्रा की योजना बना रही थीं और खुद को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने वाली थीं और कहां अब पार्टी मंच पर तय हो कर यात्राएं निकाली जाएंगी। ऐसा लगता है कि सब कुछ संघ की सोची समझी रणनीति के तहत हुआ है।
-तेजवानी गिरधर
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