7.5.12

अफसोस कि कसाब अभी जिंदा है....


पूरे दो साल हो गए। 6 मई को ही सबसे बड़े आतंकी हमले में 166 लोगों की मौत व 350 को घायल करने वाले खूंखार आतंकी अजमल कसाब को मौत की सजा सुनायी गई थी। अफसोस व हैरानी सभी के दिलों में है। पाकिस्तान भी अपनी हांडी के सड़े चावल को जिंदा पाकर खुश है। आतंकियों ने लाखों दिलों को कभी न भरने वाले जख्म दिये हैं। जनता के करोड़ों रूपयों से सुविधाओं के बीच जिंदा रहकर उसकी उम्र बढ़ रही है। देश को आर्थिक चोट हमले से भी मिली ओर कसाब से भी मिल रही है, क्योंकि इस कसाब पर अब तक सरकार के करोड़ों रूपये खर्च हो चुके हैं। उसे सुविधाओं के बीच जिंदा रखना मजबूरी जरूर है, लेकिन यह भी सच है कि देश के लाखों लोगों को प्रतिदिन दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती। इतनी रकम से बहुत गरीबों का भला हो सकता था। इस बात की सख्त जरूरत महसूस होती है कि आतंकियों के मामले में अलग कानून होना चाहिए तुरंत फैंसला और तुरंत अमल। वैसे लोग राक्षस को सजा देने के लिये तैयार है, लेकिन......

1 comment:

  1. हमारी अपंग सरकार से और हम क्या उम्मीद कर सकते हैं। कसाव पर अलबेला खत्री जी ने शानदार कविता लिखी है।

    मुबारक हो.....
    मुबारक हो कसाब, तू जीत गया
    भाग्य हमारा खराब, तू जीत गया
    तू जीत गया हरामज़ादे !
    भारत हार कर बैठा है
    क्योंकि लोकतंत्र हमारा
    कुंडली मार कर बैठा है
    खोद ! खोद ! ख़ूब कब्र तू हमारी खोद !
    तेरे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं चादरमोद !
    जब तलक ज़िन्दा रहेगा, जेल में आराम फ़रमायेगा
    वीआईपी हत्यारा है न,
    मन चाहा पिएगा - मन चाहा खायेगा
    और कहीं सचमुच फांसी हो गई तो शहीद कहलायेगा
    हाँ हाँ शहीद कहलायेगा तू अपने मुल्क नापाक का
    एक एक बाल पुज जायेगा हरामखोर तेरी नाक का
    हम तो भारतीय हैं
    जंग में चाहे कितने बहाद्दुर हों, घर में तो पांगु हैं
    क्योंकि स्वभाव से ही दयालु अर्थात डान्गु हैं
    इसीलिए तुझ जैसे आंडू-पांडू भी हमें छील डालते हैं
    और हमारे हरे-भरे घरों को दिनदहाड़े लील डालते हैं
    काश !
    काश !
    सूअर की औलाद ...काश ! तू मेरे हाथ लग जाये......
    वो करूँ तेरे साथ मैं....
    कि तेरे मुर्दा पुरखे भी तड़प कर कब्रों में जग जाये .....
    मैं तुझे फांसी नहीं दूँ
    गोलियां भी नहीं मारूं
    क्योंकि मौत तेरे लिए सज़ा नहीं मज़ा है
    मौत मिल जाये ये तो ख़ुद तेरी भी रज़ा है
    मैं तो तुझे ज़िन्दा रखूं ............
    ज़िन्दगी भर गधा बना कर रखूं
    और तेरी सवारी करूँ
    चिलचिलाती धूप में, दहकती हुई सड़क पर,
    नंगे पाँव, नंगे बदन, जब मेरा बोझ ढोयेगा
    तो गधे के बीज ! तू ख़ून के आँसू रोयेगा
    मैं तो रात - दिन तुझे कोल्हू पर लगा कर दौड़ाऊँ
    सरसों के साथ साथ तेरा भी थोड़ा तेल निकलवाऊं
    बहुत कुछ करना चाहता हूँ मैं तेरे साथ कमीने !
    तुझ शैतान की संतान ने हमारे सुख-चैन छीने
    लेकिन अफ़सोस रे.................................
    अफ़सोस !
    तू तक़दीर का बादशाह है, मुकद्दर का धनी है
    सज़ा और वो भी कड़ी ? तेरे लिए कहाँ बनी है ?
    उज्ज्वल निकम खुश हैं
    क्योंकि पूरा भारत ख़ुशफ़हमी में पटाखे छोड़ रहा है
    वो तो अलबेला खत्री पगला है जो माथा फोड़ रहा है
    उड़ा उड़ा.........
    ख़ूब मज़े उड़ा............
    पहले वारदात करके सैकड़ों को मारा
    और अरबों रुपयों का नुक्सान किया
    अब तेरे रखरखाव
    और सुनवाई पर करोड़ों खर्च हो रहा है
    यानी सब कुछ तेरे ही हक़ में हो रहा है
    पाकिस्तान खड़ा खड़ा मुस्कुरा रहा है
    क्योंकि उसका
    एक मामूली लौंडा भी गज़ब ढा रहा है
    पूरी पलटन का काम तू अकेला कर रहा है
    और नुक्सान .....हिन्दुस्तान का अवाम भर रहा है
    लगा रह चादरमोद ! लगा रह ...........
    तुझे हक़ है..हक़ है पाकिस्तान में पैदा होने का
    काश !
    हमें भी मौका मिल जाये वतन पे शैदा होने का
    छोड़ो अलबेला ...........
    जाने दो....
    कौन सुनता है ?

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