16.7.12

औरत की गोलाइयों से बाहर भी दुनिया गोल है..


गुवाहाटी की घटना ने मुझे आहत किया है वेसा आहत नहीं जैसा आम तौर पर लोग हो जाते हैं किसी अपने के साथ दुर्घटना हो जाने पर ..अब हम लोग उतने आहत होते ही नहीं लगता है मीडिया के नकली आंसुओं ने हमें भी कुछ उसी तरह के घडियाली आंसू बहाने ,ना बरसने वाले बादलों की तरह सिर्फ गद्गड़ाने वाला बना दिया है .मैं आहत हू क्यूंकि  हम सब एसे हो गए है , मैं आहत हू की आम जनता सिर्फ मूक दर्शक हो गई है ...
ज्यादातर लोग आहत है क्यूंकि कल को जब उनकी बहु बेटियों के साथ भरी सड़क पर एसा होगा तो लोग क्या एसे ही खड़े रहेंगे ज्यादातर लोग अपनी ढपली अपना राग गा रहे हैं . २,४ दिन में शायद लोग भूल भी जाए या कुछ और दिन याद रख ले फिर भूले ... 
पर क्या सच बात सिर्फ इतनी है की हम कितने दिन याद रखेंगे या कितनी जल्दी भूल जाएँगे ? अगर बात सिर्फ इतनी ही है बात को करना ही क्यों? क्यों हर जगह गुस्सा दिखाना  बोलना या बुरे शब्दों में कहे तो थोड़ी देर भोकना और फिर अपनी रोटी की जुगाड़ में लग जाना ? लगता है ना दिल पर एसी बुरी तुलना क्यों? पर सच मानिये दिल पर लग रहा है ये अच्छी बात है क्यूंकि जिनके दिल पर लग रहा वहा अभी रौशनी की किरण बाकि है ....

मुझे पिछले  उन सभी दिनों से लग रहा है जबसे ये घटना हुई है.  हर मिनिट हर क्षण लग रहा है  पढ़ रही हू देख रही हू सोच रही हू पर ये लगना बंद नहीं हो रहा घबराहट हो रही है अन्दर से....लोग अपनी अपनी अपनी शिकायतें कर रहे हैं किसी को पोलिस  से शिकायत  है ,किसी को उस भीड़ से शिकायत है जिसने विरोध नहीं किया, कुछ लोग अपनी ढपली लेकर महिलाओं को आत्म रक्षा सिखाने के गीत गा रहे हैं पर मुझे किसी से शिकायत नहीं बस शर्म है जो ख़तम नहीं हो रही शर्म है उस सोच पर जिसने कुंठित होकर घिनोना रूप धारण कर लिया है . पूरी पोस्ट के लिए लिंक पर जाए : परवाज़ 

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