25.9.12


नगर पंचायत लखनादौन चुनाव के मामले में भी  आला कमान ने यदि कार्यवाही नहीं की गर्त में चली जायेगी कांग्रेस
 बीते कई सालों से जिले में कांग्रेस को कांग्रेसियों से ही हरवाने का चलन चल रहा हैं। इसी कारण कभी 1977 की जनता लहर में भी जिलंे की पांचों विधानसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस अब सिमट कर एक सीट पर रह गयी हैं और यह जिला भाजपा का गढ़ माने जाने लगा हैं। समय समय पर आलाकमान को शिकायतें भी हुयी हैं लेकिन रह बार किसी ना किसी बढ़े नेता ने अपने खिदमतगार हरवंश सिंह को बचा ही लिया। इन सबका असर यह हुआ कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों ने नगर पंचयात लखनादौन के अध्यक्ष पद के चुनाव  में आपने नामांकन पत्र ही उठा लिये और क्षेत्र में कांग्रेस चुनाव से बाहर हो गयी। कांग्रेसी हल्कों में यह चर्चा जोरों से है कि यदि हमेशा की तरह इस बार भी कुछ नहीं हुआ तो कांग्रेस के मिशन 2013 और 14 में विपरीत असर पड़ सकता हैं। नरेश और राजेश के विचार बिल्कुल नहीं मिलते लेकिन वे एकसाथ मिलकर विहार जरूर कर लेते हैं। ऐसा ही एक वाकया दलसागर में नौका विहार के दौरान देखने को मिला। वैसे तो जिला सहकारी बैक के शताब्दी समारोह की तैयारियां जोर शोर से चल रहीं हैं। अध्यक्ष अशोक टेकाम की अध्यक्षता में आयोजित एक बैठक में महाकौशल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष नरेश  दिवाकर और विधायक नीता पटेरिया ने भी हिस्सा लिया था।यहां यह उल्लेखनीय है कि अब कुछ हीदिनों बाद बैंक के चुनाव होना हैं। इसलिये अभी से पैतरेबाजी भी प्रारंभ हो गयी हें। 
जिले में कांग्रेस को हराने वाले दंड़ित होने के बजाय पुरुस्कृत होते रहे-बीते कई सालों से जिले में कांग्रेस को कांग्रेसियों से ही हरवाने का चलन चल रहा हैं। इसी कारण कभी 1977 की जनता लहर में भी जिलंे की पांचों विधानसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस अब सिमट कर एक सीट पर रह गयी हैं और यह जिला भाजपा का गढ़ माने जाने लगा हैं। तारीफ की बात तो यह हैं कि कांग्रेस को हराने वाले कांग्रेसियों को सजा मिलने के बजाय पुरुस्कृत किया जाता रहा हैं। और तो और बागी होकर विस चुनाव लड़ने और कांग्रेस को हराने वाले कांग्रेसियों को उप चुनाव या अगले चुनाव में ही पार्टी की टिकिट तक मिली हें। और यह सब आज के जिले के इकलौते कांग्रेस विधायक और विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह की सरपरस्ती में हो रहा हैं। समय समय पर आलाकमान को शिकायतें भी हुयी हैं लेकिन रह बार किसी ना किसी बढ़े नेता ने अपने खिदमतगार हरवंश सिंह को बचा ही लिया। इन सबका असर यह हुआ कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों ने नगर पंचयात लखनादौन के अध्यक्ष पद के चुनाव  में आपने नामांकनपत्र ही उठा लिये और क्षेत्र में कांग्रेस चुनाव से बाहर हो गयी जिस क्षेत्र से आजादी के बाद से 2003 तक कांग्रेस का कब्जा रहा हैं। और यह सब कुछ हुआ हरवंश सिंह और दिनेश राय मुनमुन की नूरा कुश्ती के चले हुये। इंका नेता आशुतोष वर्मा ने मेल के द्वारा चुनाव के दौरान ही इसकी शिकायत कांग्र्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, महासचिव राहुल गांधी और प्रभारी महासचिव बी.के.हरप्रिसाद से की थी।  यहां यह विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं कांग्रेस ने इस चुनाव में शानदा प्रर्दशन किया और उसके 15 में से ना सिर्फ आठ पार्षद जीते वरन सभी वार्डों में कांग्रेस ने 3226 वोट लिये जबकि भाजपा के अध्यक्ष पद के प्रत्याश्ी को कुल 1880 वोट मिले और निर्दलीय प्रत्याशी मुनमुन राय की माताजी सुधा राय को 6628 वोट मिले थे। यह भी तय है कि कांग्रेस के वोट भाजपा को तो गये नहीं होंगें इसीलिये यदि सुधा राय के वोटों में से कांग्रेस के वोट घटा दिये जायें तो उन्हें 3402 वोट ही मिलते। ऐसये हालात में कहा जा सकता हैं कि यदि कांग्रेस का अध्यक्ष पद का प्रत्याशी मैदान में होता तो ना केवल बराबरी की टक्कर होती वरन कांग्रेस चुनाव जीत भी सकती थी। इन्हीं सब कारणों के चलते बताया जा रहा है कि हाल ही में भोपाल में हुयी प्रदेश कांग्रेस की तीन दिन की बैठकों में भी यह मामला प्रभारी बी.के.हरप्रिसाद और दिग्विजय सिंह के सामने भी  जोरदारी से उठाया गया हैं। बताते हैं कि कांग्रेस आला कमान ने भी इसे काफी गंभीरता से लिया हैं। लेकिन कांग्रेसी हल्कों में यह चर्चा जोरों से है कि यदि हमेशा की तरह इस बार भी हरवंश सिंह को बरी कर दिया जाता हैं तो जिले में कांग्रेस के मिशन 2013 और 2014 पर विपरीत असर पड़ सकता हैं।
विचार मिले या ना मिलें साथ में विहार तो कर ही लेते हैं नरेश और राजेश -गुटबाजी के राज रोग से भाजपा भी अछूती नहीं हैं।जिले में भाजपा के कई गुट है जो कि आपस में गलाकाट प्रतियोगिता भी करते रहतें हैं। भाजपायी हलके में हमेशा से यह चर्चित रहा है के मविप्रा के अध्यक्ष नरेश दिवाकर और पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी दो अलग अलग धु्रवो पर रहते हैं। इनके विचार बिल्कुल नहीं मिलते और आपस में एक दूसरे को फूटीं आंख भी नहीं सुहाते हैं। लेकिन एक अच्छी बात यह है कि विचार आपसमें मिले या ना मिले वे एकसाथ मिलकर विहार जरूर कर लेते हैं। ऐसा ही एक समाचार बीते दिनों अखबारों में फोटो के साथ सुर्खियों में रहा जिनमें ये दोनो युवा नेता दलसागर तालाब में एक साथ नौका विहार करते दिख रहे थे जिसेें लोगों ने चटखारे लेकर पढ़ा। भाजपाइयों में तो यहां तक चर्चा है कि इसी दलसागर तालाब में चेकर्स टाइल्स लगानें में की गयी गड़बड़ियों को लेकर कांग्रेस के उपाध्यक्ष राजिक अकील ने जो शिकायत की थी और उस पर जिला प्रशासन ने जो फुर्ती दिखायी थी उसके पीछे नरेश दिवाकर का ही हाथ था।  अब यह कहां तक सही हैं? यह तो नरेश जी ही जानते होंगें लेकिन फिर  भी दोनों भाजपा नेताओं का यह विहार चर्चित जरूर हो गया हैं। 
शताब्दी समारोह के संग चल रही है नरेश की कूटनीति? -वैसे तो जिला सहकारी बैक के शताब्दी समारोह की तैयारियां जोर शोर से चल रहीं हैं। इसके लिये बैक में अध्यक्ष अशोक टेकाम की अध्यक्षता में आयोजित एक बैठक में महाकौशल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष नरेश  दिवाकर और विधायक नीता पटेरिया ने भी हिस्सा लिया था। वैसे तो इस बैंक ने इन सौ सालों में कई बार उतार चढ़ाव देखें हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस बैंक के संचालक मंड़ल के चुनावों में ज्यादातर कांग्रेस का ही कब्जा रहा हैं। या फिर जिला कलेक्टर इसके अध्यक्ष रहें हैं। लेकिन पहली बार भाजपा ने इन चुनावों में बाजी मार कर संचालक मंड़ल में अपना कब्जा किया और युवा आदिवासी नेता अशोक टेकाम इस बैं के अध्यक्ष बनें। वैसे तो चुनाव के दौरान तत्कालीन जिला भाजपा अध्यक्ष वेद सिंह ठाकुर को अध्यक्ष ना बनने देने की रणनीति के तहत तत्कालीन विधायक नरेश दिवाकर ने टेकाम से हाथ मिलाकर अपने समर्थक सुनील अग्रवाल को उपाध्यक्ष बनवा लिया था। उनकी योजना यह थी कि अग्रवाल के माध्यम से बैंक पर पूरा नियंत्रण रख्रेंगें। लेकिन तेज तर्रार अशोक टेकाम के चलते जब यह संभव नहीं हुआ तो फिर दोनों के बीच तकरार हो गयी। लेकिन बीते दिनों फोर लेन के मामले में कुरई के अनशन के दौरान बरघाट के विधायक कमल सर्मकोले से नरेश की तकरार हो जाने के बाद नरेश अशोक के बीच फिर एका होने की चर्चायें भाजपायी हल्कों में सुनायी देने लगीं हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि अब कुछ हीदिनों बाद बैंक के चुनाव होना हैं। इसलिये अभी से पैतरेबाजी भी प्रारंभ हो गयी हें। बैंक की राजनीति से नाता रखने वालों का दावा है कि इस बार बैंक पर अपना कब्जा करने के लिये नरेश दिवाकर ने अभी से ताना बाना बुनना शुरू करा दिया हैं। वे सोसायटियों के पुराने धुरंधरों से संपर्क में हैं और यह कोशिश कर रहें हैं कि संचालक मंड़ल में उनके अधिक सदस्य आ सकें तथ बैंक पर अशोक टेकाम के बजाय उनका कब्जा हो जाये। ऐसे हालात में उन्हें बरघाट से विधानसभा की टिकिट दिलाने का प्रलोभन भी दिया जा सकता हैं।इस खेल में कौन कितना सफल होगा? यह तो भविष्य में ही पता चल पायेगा। “मुसाफिर“   




सप्ताह मुसाफिर आपसे मुखातिब नहीं हो पाया था। इसलिये इस हफ्ते पुराने और नये राजनैतिक घटनाक्रमों पर हम चर्चा करेंगें। बीते दिनो सबसे महत्वपूर्ण राजनैतिक घटनाक्रम छिंदवाड़ा जिले में हुआ। जहां केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ के संसदीय क्षेत्र में रेल मंत्री मुकुल राय ने परासिया माडल रेल्वे स्टेशन की आधारशिला रखी,अब प्रतिदिन चलने वाली छिंदवाड़ा दिल्ली ट्रेन को हरी झंड़ी दिखाया और अभी पूरी ना होने वाली छिंदवाड़ा नागपुर बा्रडगेज के विद्युतीकरण की भी आधार शिला रखी जो कि आमला नागपुर के नाम से स्वीकृत हुयी हैं। इसी कार्यक्रम के दौरान एक पत्रकार वार्ता के दौरान कमलनाथ ने  छिंदवाड़ा के विकास की चर्चा करते हुये यह कह दिया कि इतना विकास तो पड़ोसी जिले छिंदवाड़ा और सिवनी का भी नहीं हुआ हैं और चाहो तो ये हरवंश सिंह बैठे हैं इनसे पूछ लो।इस पर हरवंश सिंह ने जवाब दे दिया कि मैं भी तो छिंदवाड़ा का हूं। जिले के विकास पुरुष कहे जाने वाले हरवंश सिंह का यह जवाब स्थानीय समाचार पत्रों में सुर्खियां भी बना। वैसे भी कांग्रेसियों में नाथों के नाथ कमलनाथ कहलाते हैंऔर वे गोद लेने के भी आदी रहें हैं। चुनाव प्रचार के दौरान वे जिले की अधिकांश विधानसभा सीटों को भी गोद ले चुके हैं। अब तो कांग्रेसियों के बीच चटखारे लेकर ख्ह चर्चा भी होने लगी हैं कि अच्छा हो कि कमलनाथ हरवंश सिंह का ही गोद लेकर अपने जिले से ही, जो कि हरवंश सिंह की मातृ भूमि भी है, से चुनाव लड़वा दें तो कम से कम जिला नाथ रहते हुये भी ऐसा अनाथ तो नहीं रहेगा जैसा कि पिछले दिनों देखा गया हैं और जिले को भी एक मौका मिल जायेगा कि वो अपना नया नाथ तलाश कर सके। वैसे हरवंश सिंह के इस कथन से उन पर पहले लगे ये आरोप सही लगने लगे है कि उन्होंने छिदवाड़ा के हितों के लिये सिवनी के हितों को कुर्बान किया है। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि परिसीमन में सिवनी लोकसभा के विलोपन,फोर लेन में आये अड़ंगें,संभाग मुख्यालय सिवनी ना बनने,बड़ी रेल के ना बनने आदि में हरवंश सिंह पर आरोप लगते रहें हैं कि उन्होंने अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिये सिवनी के हितों पर कुठाराघात किया हैं। मातृ भूमि के लिये प्यार होना चाहिये यह तो ठीक है लेकिन उस कर्म भूमि के कर्जे को भी नहीं भूलना चाहिये जिसने उन्हें मातृ भूमि में मंच पर बैठाल कर सम्मान दिलाया। यह तो कम से कम नहीं ही भूलना चाहिये कि किस बुरे स्थिति और अपमानजनक हालात में मातृ भूमि को छोड़ना पड़ा था। वैसे हरवंश समर्थकों का कहना हैं कि इससे साहब को कोई नुकसान नहीं होगा ब्लकि ऐसा कहकर कमलनाथ ने अपने आप को महाकौशल के बजाय सिर्फ छिंदवाड़ा जिले का नेता ही मान लिया हैं।
चिट्ठी लिखने से परहेज करने वाले हरवंश ने मंत्री से की चर्चा-जंगल मे मोर नाचा किसने देखा की कहावत बहुत पुरानी हैं। लेकिन इन दिनों यह कहावत एक बार फिर चर्चा में आ गयी हैं। छिंदवाड़ा में रेल मंत्री मुकुल राय के कार्यक्रम के दो दिन के बाद जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश की तरफ से बाकायदा एक प्रेस नोट जारी कर यह बताया गयी कि रेल्वे के सैलून में केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ की उपस्थिति में उन्होंने छिंदवाड़ा से नैनपुर रेल लाइन के गेज परिवर्तन और रामटेक से गोटेगांव नयी रेल लाइन के बारे में चर्चा की और डिब्बे में मौजूद रेल्वे बोर्ड के सदस्य मिश्रा ने उन्हें जानकारी दी है कि नैनपुर बड़ी रेल लाइन के मिट्टी के काम का टेंड़र लगने वाला हैं और दो साल में छिंदवाड़ा से सिवनी तक बड़ी रेल लाइन का काम पूरा हो जायेगा। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि छिंदवाड़ा से नागपुर के 125 कि.मी. गेज कनर्वशन का काम कमलनाथ के रहते हुये भी पांच साल में पूरा नहीं हो पाया हैं  तो भला सिवनी से छिंदवाड़ा का 70 कि.मी. का गेज कनर्वशन का काम दो साल में हरवंश कैसे पूरा करा लेंगें?यह एक विचारणीय प्रश्न हैं। रहा सवाल रामटेंक सिवनी गोटेगांव नयी रेल लाइन का तो इसके लिये इंका नेता आशुतोष वर्मा सन 2007 से अभियान चलाये हुये हैं। इसमें दो बार पत्र लिखो अभियान चलाया गया जिसमें जिले के सैकड़ों जन प्रतिनिधियों सहित हजारों नागरिकों ने भाग लिया लेकिन हरवंश सिंह ने चिट्ठी लिखना भी पसंद नहीं किया। अब यह एक सोचने वाली बात है कि चिट्ठी लिखने से परहेज करने वाले हरवंश सैलून में मंत्री से चर्चा भला क्या और कैसी की होगी?सैलून में हरवंश की चर्चा को लेकर स्थानीय अखबारों में भी सुर्खियां बनी हैं और इस चर्चा को उनकी कार्यप्रणाली के विपरीत निरूपित किया हैं। लेकिन इस सबसे और कुछ हुआ हो या नहीं हुआ हो लेकिन जिले में लोग चटखारे लेकर यह कहते हुये जरूर देखे जा रहें हैं कि सैलून में सिंह नाचा किसने देखा?
प्रधानमंत्री का पुतला तो जल जाता है पर मुख्यमंत्री का नहीं-वैसे तो यह आम बात है कि प्रदेश सरकार के विरोध में कांग्रेस और केन्द्र सरकार के विरोध भाजपा आंदोलन,प्रदर्शन कर पुतले जलाती रहती हैं। हालांकि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सत्तारूढ़ दल हैं और जनता के लिये जो भी समस्यायें होती हैं उनके लिये कमोबेश दोनों ही जवाबदार होती हैं लेकिन अपने को बचाते हुये दूसरे पर राजनैतिक हमलें करने की संस्कृति इन दिनों खूब फल फूल रही हैं। राजनैतिक विश्लेषकों ने एक बात और विशेषकर नोट की हैं कि जब प्रदेश में सत्ता की बागडोर संभाहने वाली भाजपा कोई आंदोनल करती है और प्रधानमंत्री का पुतला जलाने की घोषणा करती हैं तो वो पुतला जल लेती हैं लेकिन जब कांग्रेस प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री का पुतला जलाने की घोषणा करती है तो पुलिस येन केन प्रकारेण पुतला नहीं जलने देती चाहे इसके लिये आंदोलनकारियों से ही सांठगांठ क्यों ना करनी पड़े। ऐसा क्यों होता हैं? यह समझ से परे हैं। वैसे तो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनों ही पद संवैधानिक पद है और दोनों ही जनता द्वारा निर्वाचित सरकारों के मुखिया होते हैं। बीते दिनों भाजपायुमो ने जिला अध्यक्ष नवनीत सिंह ठाकुर के नेतृत्व में डीजल और रसोई गैस की कीमतों की गयी वृद्धि के खिलाफ प्रर्दशन किया और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का बाकायदा पुतला भी जलाया। यह बात सही है कि इससे आम जनता को कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा लेकिन इसके लिये प्रदेश सरकार द्वारा डीजल और रसोई गैस पर लिया जाने वाला वेट टेक्स भी कम जवाबदार नहीं हैं। उसमें कुछ कमी करके राज्य सरकार भी जनता को राहत पहुंचा सकती थी जैसी कि केन्द्र सरकार ने पेट्रोल पर प्रति लिटर पांच रुपये से अधिक एक्साइज डयूटी कम करके उसकी कीमत को बढ़ने से रोक कर किया है। कुछ राज्यों ने भी अपने टेक्स में कमी करके जनता को राहत पहुंचायी हैं। लेकिन राजनीति के लिये राजनीति करना आजकल नेताओं का शगल बन गया हैं। “मुसाफिर”    

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