7.9.12

कहाँ खो गया है आदमी ? (गीत)


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कहाँ  खो  गया है आदमी ? (गीत)

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अरमानों की  लाशें कितनी, ढो  रहा   है  आदमी..!

मायूसी के  भँवर में  कहाँ,  खो  गया  है  आदमी ?


अंतरा-१.


खिलखिलाता  मातम जहाँ, आँसू  बहाती  ख़ुशियाँ..!

मनचाही  सौगात पाकर  भी,  रो  रहा   है   आदमी ?

अरमानों   की   लाशें  कितनी, ढो  रहा   है  आदमी..!


अंतरा-२.


ज़िच राह भटकना  यहाँ,  नित जीना, नित  मरना  है..!

सादगी का  दम  भर  कर, चरम   सो  रहा  है  आदमी..!

अरमानों  की   लाशें      कितनी,  ढो  रहा   है  आदमी..!


(ज़िच  राह= लाचारी  भरी  ज़िंदगी; नित= रोज़; चरम= अंतिम )


अंतरा-३.


है  शग़ल  का  हाल  खस्ता, महँगा  पानी, खून  सस्ता ?

तभी  तो   आस्तीन,  इलीस   की   धो  रहा   है  आदमी..!

अरमानों  की      लाशें     कितनी,  ढो  रहा   है  आदमी..!

(शग़ल= रोजगारी; खस्ता=ख़राब) 
(इलीस की आस्तीन= शैतान की  लहूलुहान  बाँह)


अंतरा-४.


वसीयत लिखें  फ़ज़ीअत की  तो, क्या  लिखे  ये  आदमी ?

अवम  कवल, अंगी  को  देकर ,खुश  हो  रहा  है  आदमी..!

अरमानों   की    लाशें     कितनी,   ढो   रहा    है  आदमी..!


(फ़ज़ीअत= दुर्दशा; अवम= आख़री; कवल= निवाला; अंगी=नेताजी)


मार्कण्ड दवे । दिनांकः०७-०९-२०१२.


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MARKAND DAVE
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1 comment:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने। हम सब की यही तो हालत है।

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