8.9.12

सुख बिना सत्ता की चाह...बड़ी मुश्किल है ये राह !



रालेगण में अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों का पार्टी बनाने का फैसला अभी भविष्य के गर्भ में है...लेकिन जिस तरह अरविंद केजरीवाल ने बैठक के बाद बयान दिया कि उनकी पार्टी से स्वच्छ छवि के लोग ही चुनाव लड़ेंगे और उन्हें बड़े त्याग के लिए तैयार रहना होगा...इससे तो ये साफ जाहिर होता है कि अरविंद केजरीवाल पार्टी गठन को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। 17 – 18 सितंबर को अन्ना के साथ सहयोगियों की बैठक में माना सहमति बनने के बाद केजरीवाल एंड कंपनी पार्टी का गठन कर भी लेती है...तो ये बात तो अन्ना ने साफ कर ही दी है कि वे पार्टी में शामिल नहीं होंगे। लेकिन उनकी पार्टी में शामिल होने वाले औऱ चुनाव लड़ने वाले लोग क्या जिस त्याग की बात अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं वो कर पाएंगे। दरअसल अरविंद केजरीवाल जिस त्याग की बात कर रहे हैं उसके अनुसार उनकी पार्टी में शामिल होने वाला व्यक्ति ईमानदार और स्वच्छ छवि का ही होगा...और हर साल उसे अपने बैंक खाते की जानकारी सार्वजनिक करनी होगी...साथ ही उसके अंदर समाज सेवा की भावना हो। अगर वो चुनाव जीत जाता है तो सरकारी सुख सुविधाओं से दूर रहेगा....मसलन सरकारी बंगले में नहीं रहेगा...लाल बत्ती की गाडी भी नहीं रखेगा। इसमें शर्त ये है कि ये सारी शर्तें चुनाव लड़ने से पहले ही लागू कर दी जाएंगी। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जिन शर्तों की बात अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी कर रही है क्या वे खुद उन शर्तों पर खरे उतर पाएंगे...माना केजरीवाल और उनके सहयोगी इन शर्तों को निभा भी लेंगे...तो भी कितने दिन। उनके साथ जुड़ने वाले...उनकी पार्टी से चुनाव लड़ने वाले लोग इन शर्तों को पूरा करने के लिए हामी भरेंगे और हामी भर भी देते हैं तो कितने वक्त के लिए इन्हें निभा पाएंगे। ये सवाल इसलिए भी जायज है क्योंकि राजनीति एक ऐसा दलदल है जिसमें एक बार घुसने के बाद अपने आपको इसमें डूबने से बचा पाना और अपने दामन को उस दलदल के कीचड़ से बचा पाना आसान काम नहीं है। सत्ता ऐसी चीज है जो अच्छे अच्छों के दिमाग खराब कर देती है...अगर माना केजरीवाल एंड कंपनी को सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने का मौका मिलता है, हालांकि ये लगभग असंभव है...तो क्या केजरीवाल एंड कंपनी खुद को और अपने समर्थकों को सत्ता के नशे में चूर होने से बचा पाएगी। बहरहाल केजरीवाल एंड कंपनी ने लोगों को चुनावी विकल्प देने के लिए राजनीति के दलदल में घुसने का फैसला तो उसी दिन ले लिया था..जिस दिन जंतर मंतर से टीम अन्ना का अनशन समाप्त हुआ था...लेकिन देखना ये होगा कि अन्ना के बिना केजरीवाल एंड कंपनी कैसे अपने मिशन में कामयाब हो पाएगी...वो भी ऐसी वक्त में जब लोकपाल के समर्थन में औऱ भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मिशन को शुरू करने वाले और नेतृत्व प्रदान करने वाले अन्ना हजारे आगे की लडाई में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े नहीं होंगे।

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