नहीं करूंगा ब्याह कभी, मैं सच्चा हूं हनुमान भगत
मैं अटल सरीखा ब्रह्मचारी, कल मानेगा गुणवान जगत
ऐसा मैं सोचा करता था, जब निपट अकेला होता था
माला जपता था रात-रात, जब सारा आलम सोता था
पर क्या बतलाऊं एक दिवस दिल पर कैसी शमशीर चली
जो काम-धाम से फारिग था, उसको बीवी बलवीर मिली
बीवी आते ही करमहीन के पौबारे पच्चीस हुए
दिल रोया मेरा फूट-फूट, क्यों मेरे ना जगदीश हुए
वो तीस साल का मोटियार, ब्याहा था पूरे पचपन से
मैं लगा कोसने खुद को मैं क्यों पागल था बचपन से
मैं चार दशक पूरे करके भी आज कंवारा डोल रहा
उसकी बांहों में बच्चा है, जो पापा-पापा बोल रहा
-कुंवर प्रीतम
12-10-12
पर क्या बतलाऊं एक दिवस दिल पर कैसी शमशीर चली
ReplyDeleteजो काम-धाम से फारिग था, उसको बीवी बलवीर मिली।
बहुत अच्छे..! धन्यवाद।
बहुत शानदार रचना , पढ़कर कुछ कुछ अपना सा किस्सा लगा :)
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