11.10.12

आबरु लुटे तो लुटे...इन्हें फर्क नहीं पड़ता


हरियाणा में एक महीने में बलात्कार की 16 घटनाएं हो जाती हैं...पुलिस ज्यादातर मामलों में आरोपियों को गिरफ्तार करने में भी नाकाम साबित होती है...ऐसे में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी जो कि खुद एक महिला हैं...हरियाणा के जींद में एक पीड़ित दलित परिवार के घर पहुंचती है...सोनिया पीड़ित परिवार को ढ़ांढ़स तो बंधाती हैं...लेकिन घर से बाहर निकलते ही वे भूल जाती हैं कि वे भी शायद एक महिला हैं...ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि बाहर निकलकर सोनिया गांधी से तो कम से कम एक इतने संवेदनशील मुद्दे पर ऐसे बयान की उम्मीद कतई नहीं थी। सोनिया इन घटनाओं के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार...जो कि उनकी ही पार्टी की है...पर ये कहते हुए पर्दा डालने की कोशिश करती हैं...कि बलात्कार की घटनाएं तो देशभर में हो रही हैं...खैर सोनिया ने ये कहा सो कहा...सोनिया के इस बयान के बाद से इस मुद्दे पर राजनीति गर्मा जाती है...और तमाम विपक्षी दल सोनिया के इस बयान की आलोचना करते हैं...लेकिन योगगुरु बाबा रामदेव जिनकी कर्मभूमि भले ही हरिद्वार हो लेकिन उनकी जन्मभूमि तो हरियाणा हैं...लगता है इस बयान से कुछ ज्यादा ही आहत हो गए...और सोनिया पर ये कहकर वार करते हैं कि...सोनिया जी अगर ये घटना आपकी बेटी के साथ होती तो क्या तब भी आप ऐसा ही बयान देती। अब रामदेव के इस बयान के पीछे की वजह सिर्फ और सिर्फ सोनिया का बयान ही था या फिर केन्द्र सरकार के खिलाफ उनकी बौखलाहट ये तो आप भी बेहतर समझ गए होंगे। बहरहाल सोनिया के बयान के बाद उठे बवाल को रामदेव ने ये कहकर उबाल जरूर दे दिया...अबकी बार रामदेव ने सीधा सोनिया गांधी पर हमला बोला था...वो भी तीखा तो कांग्रेसी कहां पीछे रहने वाले थे। एक एक कर केन्द्र सरकार के मंत्री और कांग्रेसी नेता रामदेव पर बरस पड़ते हैं...औऱ रामदेव के योगगुरु होने पर ही सवाल खड़े कर देते हैं। बड़ा सवाल ये भी है कि रामदेव के जिस बयान पर कांग्रेस बौखलाई हुई है...शायद कांग्रेस ये भूल गई कि ऐसा ही कुछ बयान कांग्रेस नेता रीता बहुगुणा ने करीब ढाई साल पहले दिया था...जब रीता ने बुलंदशहर में सरेआम एक सभा में कहा था कि उत्तर प्रदेश में अपराध का बोलबाला है और यूपी में लड़कियों की ईज्जत लूटी जा रही है...और बसपा सरकार तसल्ली के लिए मुआवजा बांट रही हैं...इसलिए मैं कहती हूं की दो लाख रूपए मुझ से ले लो और कर दो मायावती का बलात्कार फिर देखते हैं क्या होता है। रीत बहुगुणा जोशी के इस बयान के बाद बसपा कार्यकर्ताओं ने रीता के घर में आग लगा दी थी...लेकिन आज रामदेव सोनिया गांधी पर कुछ ऐसा ही बयान देते हैं तो कांग्रेस बौखला जाती है। राजनीति को इसी लिए सियूटिब्लयूटी का खेल कहा जाता है...जो अपने पर सूट करे वो तो सही है...जो न करे उस पर सामने वाले की जमकर खबर ले लो। बयानों की इस जंग के बीच इनेलो के ओम प्रकाश चौटाला साहब खाप पंचायतों के उस फैसले का समर्थन करते दिखाई देते हैं...जिसमें खाप पंचायतें कहती हैं...कि लड़कियों की शादी 15 वर्ष की उम्र तक कर देनी चाहिए ताकि बलात्कार की घटनाओं को कम किया जा सके। एक नई जुबानी जंग शुरू  जाती है...लेकिन हरियाणा में एक महीने में हुई बलात्कार की घटनाओं के पीड़ित औऱ उनके परिवार पर क्या गुजर रही होगी...इसका ख्याल किसी को नहीं है। विडंबना तो ये है कि पीडितों के हिमायती बनने वाले ये राजनीतिक दल किसी भी घटना के बाद घड़ियाली आंसू बहाते तो दिखाई दे जाते हैं...लेकिन इन घटनाओं को कम करने या रोकने के लिए...और आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए कोई सख्त कदम उठाने के लिए पहल करते नहीं दिखाई देते। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि हमारे राजनेता हर घटना पर राजनीति करने से बाज नहीं आते फिर चाहे किसी की बहू – बेटी की इज्जत आबरू की क्यों न दांव पर लगी हो। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ें तो इसकी भयावहता खुद बयां करते नजर आते हैं कि वाकई में देशभर में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं। हरियाणा की ही अगर बात कर लें तो औसतन यहां रोज दो लड़कियां बलात्कार की शिकार हो रही हैं। पुलिस के आंकड़ें कहते हैं कि 2012 में हरियाणा में अब तक करीब 460 बलात्कार की घटनाएं हो चुकी हैं। जबकि 2011 में ये संख्या 733 थी। ये तो महज वे आंकड़ें हैं जो दर्ज हैं...ऐसे सैंकड़ों मामले और भी हैं जो किसी सरकारी रजिस्टर में लोक लाज के भय से या फिर दबंगों के डर से दर्ज नहीं हो पाते...यानि कि ये घटनाएं जितनी सामने आती हैं...उससे कही ज्यादा होती हैं। ऐसे में सवाल यही उठता है कि आखिर कब भले मानस का लबादा ओढ़कर हमारे बीच में घूम रहे ऐसे वह्शी दरिंदों के खिलाफ पुलिस और राज्य सरकारें उनके रसूख औऱ राजनीतिक कनेक्शन को दरकिनार करते हुए दबंगई से उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगी...और उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेजेंगी ताकि युवतियां – महिलाएं बैखौफ होकर घर से बाहर निकल सकें...हालांकि ऐसा तब तो कम से कम संभव नहीं दिखाई देता जब तक सरकार में बैठे लोग भाई भतीजावाद और अपनी कुर्सी की महत्वकांक्षा को त्याग कर काम नहीं करेंगे। उम्मीद करते हैं कि अगली बार देश के जिम्मेदार नेताओं और लोगों से तो कम से कम ऐसे बयान सुनने को न ही मिले...जिनसे लोगों को बड़ी उम्मीदें हैं। उम्मीद तो ये भी कर सकते हैं कि ऐसी घटनाएं ही हमें सुनने को न मिले...हालांकि ऐसी बातें तो हमारे राजनेता भी बखूबी कर लेते हैं...लेकिन कहते हैं न अच्छा सोचना और अच्छा करना दोनों में बड़ा फर्क है...बस जरूरत है तो इस बात को समझने कि...देखते हैं इस चीज को समझने वाले हमारे देश में कितने लोग हैं।
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