26.11.12

मुद्दा नियम नहीं...मुद्दा है कि बहस हो


संसद के शीतकालीन सत्र में एफडीआई पर विपक्ष के हंगामे की बर्फ पिघलने का नाम नहीं ले रही है। एफडीआई पर नियम 184 के तहत चर्चा और वोटिंग कराने की मांग पर अड़ी मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा अपने स्टैंड से पीछे हटने को तैयार नहीं हैऐसे में सवाल ये उठने लगा है कि क्या शीतकालीन सत्र का हाल भी मानसून सत्र की तरह ही होगा या फिर एफडीआई पर बना गतिरोध दूर होगा। खैर गतिरोध को दूर करने की कवायद जारी हैदेखते हैं ये कवायद क्या रंग लाती है। जिस एफडीआई को लेकर हो हल्ला मचा है उसकी ही बात करें तो सरकार इसे आर्थिक सुधारों के तहत लिया गया फैसला बता रही रही तो इसका विरोध कर रहे समूचे विपक्ष के साथ ही सरकार के कुछ सहयोगियों को एफडीआई पर सरकार का ये फैसला रास नहीं आ रहा है। किसी भी चीज के दो पक्ष होते हैंएक सकारात्मक पक्ष और दूसरा नकारात्मक पक्षबस जरूरत इस बात की है कि आप उसे किस नजर से देख रहे हैं। ठीक इसी तरह हर चीज की तरह एफडीआई के भी दो पक्ष हैंएक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। सरकार को एफडीआई का सकारात्मक पक्ष दिखाई दे रहा हैजो बताता है कि एफडीआई देश के आर्थिक सुधारों की दिशा में एक बड़ा फैसला हैसाथ ही एफडीआई से रोजगार के अवसर बढ़ेंगेबिचौलियों की भूमिका खत्म होने से सीधे किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिलेगाउत्पादों के भंडारण में मदद मिलने से उत्पाद जल्द खराब नहीं होंगे। विदेशी कंपनियों को कम से कम 30 फीसदी सामान भारतीय बाजार से ही लेना होगाइससे देश में नई तकनीक आएगीऔर लोगों की आय बढ़ेगी। उत्पाद सस्ते होने से उपभोक्ताओं को इसका सीधा फायद मिलेगा। वहीं विपक्ष को एफडीआई का नकारात्मक पक्ष दिखाई दे रहा है जो बताता है किएफडीआई के आने से छोटे और मझले व्यापारी खत्म हो जाएंगेविदेशी कंपनियां सस्ते दामों पर सामान बेचेंगेजिससे छोटे और मझले व्यापारी इनसे मुकाबला नहीं कर पाएंगे और उनके लिए रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाएगाइसके साथ विदेशी कंपनियां अपने बाजार से सामान खरीदेंगीऐसे में घरेलू बाजार से नौकरियां छिनने का खतरा पैदा हो जाएगाविदेशी कंपनियां बाजार का विस्तार करने की बजाए मौजूदा बाजार पर काबिज हो जाएंगीजिससे खुदरा बाजार से जुड़े करोड़ लोगों पर इसका असर पड़ेगा। ऐसे और तमाम कारक हैं जिसकी वजह से एफडीआई को लेकर बहस छिड़ी है कि ये हिंदुस्तान के लिए फायदेमंद है या नुकसानदायक। बड़ा सवाल ये है कि अगर हर चीज के नकारात्मक पक्ष को देखा जाए तो फिर तो कोई नई चीज भले ही उसके अच्छे फायदे भी हों वो आकार ले ही नहीं सकतीफिर एफडीआई क्या चीज है। दुर्भाग्य ये है कि एफडीआई के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों को जानने की बजाएउस पर बहस होने की बजाएहमारी सरकार और विपक्ष इस बात को लेकर लड़ रहे हैं कि बहस किस नियम के तहत होइन सबको शायद बहस से ज्यादा चिंता अपने राजनीतिक फायदे की है। विपक्ष 184 के तहत वोटिंग वाले प्रावधान पर बहस पर ये सोचकर अड़ा है कि शायद ये तीर निशाने पर लग जाए और सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की जाएजबकि सरकार 193 पर बहस के लिए तैयार दिखाई देती है क्योंकि उसमें वोटिंग का प्रावधान नहीं हैयानि सरकार सिर्फ बहस कराकर ही बचना चाह रही है और वोटिंग का सामना करने के लिए तैयार नहीं है। अगर संसद में एफडीआई पर बहस होती है तो एफडीआई के कई ऐसे पहलू निकल कर सामने आ सकते हैं कि जिससे शायद देश की जनता अब तक अंजान होयानि कि बहस होना पहली शर्त है न कि ये कि बहस किस नियम के तहत हो।

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