संसद के शीतकालीन सत्र से पहले अविश्वास प्रस्ताव
को लेकर हंगामा मचा है। कभी सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली तृणमूल
कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने मानो सरकार को गिराने की ठान ली है। एफडीआई के
मुद्दे पर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कहते हुए ममता ने इसके
लिए कवायद तो तेज कर दी है...लेकिन विपक्षी दलों में आपस में ही “अविश्वास” के चलते ममता की कवायद फिलहाल रंग लाती नहीं दिखाई दे रही है। मुख्य
विपक्षी पार्टी भाजपा के साथ ही तमाम राजनीतिक दल अविश्वास प्रस्ताव में अपने नफे
नुकसान का आंकलन कर रहे हैं...शायद यही वजह है कि अविश्वास प्रस्ताव पर किसी ने भी
खुलकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। एनडीए ने एफडीआई के विरोध में मत विभाजन का
प्रस्ताव लाने की बात कहते हुए अविश्वास प्रस्ताव पर भी अपने विकल्प खुले रखे
हैं...यानि कि अविश्वास प्रस्ताव को लेकर एनडीए के पत्ते अभी पूरी तरह खुले नहीं
हैं। कुछ ऐसा ही हाल सरकार को बाहर से समर्थन दे रही सपा और बसपा का भी है और
दोनों ने अभी तक अविश्वास प्रस्ताव पर चुप्पी साध रखी है तो डीएमके ने भी इस पर
सस्पेंस बरकरार रखा है। लेफ्ट की अगर बात करें तो लेफ्ट भी अविश्वास प्रस्ताव के
पक्ष में फिलहाल नहीं दिखाई दे रहा है। एनडीए की अगर बात करें तो जाहिर सी बात है
कि अगर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर एनडीए ममता के साथ जाता है और
अविश्वास प्रस्ताव सदन में गिर जाता है तो इससे न सिर्फ ममता के साथ ही एनडीए की
किरकिरी होगी बल्कि सरकार भी मजबूत होगी और ऐसे समय में एनडीए कतई ये नहीं चाहेगा
कि सरकार फिलहाल किसी मुश्किल से बाहर निकले और मजबूत हो। वहीं लेफ्ट अपने नफ़े
नुकसान का आंकलन कर रहा है...लेफ्ट शायद अभी चुनाव के लिए तैयार नहीं है क्योंकि
लेफ्ट नेता इतनी जल्दी पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को नहीं भूले होंगे और
जानते हैं कि ममता की हवा पश्चिम बंगाल में मध्यावधि चुनाव होने की स्थिति में
उसका गणित बिगाड़ सकते हैं। जबकि ममता इसलिए अविश्वास प्रस्ताव के लिए जोर भर रही
हैं ताकि पश्चिम बंगाल में टीएमसी के पक्ष में बनी हवा को भुनाया जा सके और ज्यादा
से ज्यादा सीटों पर विजय पताका फहराई जा सके। लेफ्ट की जैसी स्थिति में उत्तर
प्रदेश में बसपा की दिख रही है तो पश्चिम बंगाल की तरह टीएमसी की स्थिति में सपा
उत्तर प्रदेश में नजर आ रही है और दोनों ही दल यहां भी अपने अपने नफा नुकसान के
गणित में उलझे नजर आ रहे हैं। सपा जहां टीएमसी की तरह विधानसभा चुनाव की हवा के
साथ आम चुनाव की नैया पार कराने की फिराक में है तो बसपा इस हवा का प्रतिरोध करने
की स्थिति में नहीं है। कुल मिलाकर विपक्षी दलों के अविश्वास औऱ नफा नुकसान की
गणित में फिलहाल कांग्रेस को कुछ हद तक राहत मिलती दिखाई दे रही है...लेकिन ये
राहत कब आफत में बदल जाए कहा नहीं जा सकता क्योंकि राजनीति में सब कुछ संभव है और
हर मिनट में न सिर्फ राजनीतिक दलों के नेताओं के बयान बदलते हैं बल्कि उनका चरित्र
भी बदलते हमने देखा है...ऐसे में तो फिलहाल यही कहा जा सकता है कि एफडीआई के मसले
पर मुश्किल का सामना कर रही सरकार के लिए संसद का शीतकालीन सत्र हंगामे की गर्माहट
से भरपूर होगा।
deepaktiwari555@gmail.com
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