मित्रों,गुजरात
और हिमाचल प्रदेश के चुनावों का परिणाम आ चुका है। जहाँ गुजरात में नरेन्द्र मोदी
ने जीत की हैट्रिक पूरी कर ली है वहीं हिमाचल प्रदेश की जनता ने एक बार फिर
प्रत्येक चुनाव में सत्ता बदलने की परंपरा बनाए रखी है। हिमाचल की जनता ने वीरभद्र
सिंह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को भी दरकिनार कर दिया है और यह सिद्ध कर दिया
है कि सिर्फ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भारत में चुनाव नहीं जीता जा सकता। यद्यपि
भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल पर भी थे। हालाँकि हिमाचल
के चुनावों का भी कम महत्त्व नहीं था मगर पूरा भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व इस
समय गुजरात चुनाव पर निगाहें टिकाए हुए था। वास्तव में उनकी जीत पहले से ही
सुनिश्चित मानी जा रही थी और सबकी अभिरूचि सिर्फ इस बात को लेकर थी क्या मोदी
गुजरात में फिर से 117 सीटें जीतने का रिकार्ड कायम रख पाते हैं अथवा उनकी
लोकप्रियता घटती है। मोदी के लिए परीक्षा इसलिए भी इस बार ज्यादा कठिन थी क्योंकि
इस बार भाजपा के कद्दावर नेता केशुभाई पटेल उनकी राह में रोड़ा बनकर खड़े थे।
कांग्रेस ने भी इस बार कुछ ज्यादा ही संगठित और आक्रामक प्रचार किया था और उसको भी
केशुभाई पटेल द्वारा वोट काटने की उम्मीदें कुछ ज्यादा ही थीं। फिर भी सारी बाधाओं
को पार करते हुए मोदी इस बाधा दौड़ को शानदार तरीके से जीतने में सफल रहे हैं
जिससे निश्चित रूप से उनका मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ा होगा।
मित्रों,अभी लोकसभा चुनावों में एक साल
से थोड़ा ही ज्यादा का समय बचा है इसलिए अब यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि क्या भारतीय
जनता पार्टी उनको प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार बनाती है या नहीं। वैसे जिस
तरह के संकेत भाजपा की ओर से प्राप्त हो रहे हैं उससे तो ऐसा ही लग रहा है कि अब
ऐसा होना निश्चित है और इसकी घोषणा की सिर्फ औपचारिकता ही शेष है। भाजपा के सामने
और कोई विकल्प इस समय दिख भी नहीं रहा है। अगर भाजपा को चुनाव जीतना है तो
नरेन्द्र मोदी को आगे लाना ही होगा। निश्चित रूप से मोदी के काम करने के तरीके में
कुछ कमियाँ हैं लेकिन उन पर अब तक भ्रष्टाचार का कोई गंभीर आरोप नहीं है जबकि उनको
गुजरात की सत्ता पर काबिज हुए एक दशक से भी ज्यादा समय गुजर चुका है। नरेन्द्र
मोदी की बातों में जादू है उनकी भाषण-कला लाजवाब है। यहाँ तक कि कांग्रेसी नेता भी
गुजरात में यही कहते देखे गए कि मोदी नेता कम जादूगर ज्यादा दिखते हैं। माना कि
भाजपा में सामूहिक नेतृत्व की परंपरा रही है लेकिन यह भी कटु सत्य है कि भाजपा को
सत्ता की दहलीज तक अगर 1998 और 1999 में पहुँचाया था तो अटल बिहारी वाजपेयी के
करिश्माई व्यक्तित्व ने पहुँचाया था पार्टी सिर्फ अपने बल-बूते पर सत्ता तक नहीं
पहुँची थी। जहाँ तक मोदी को इस चुनाव में मिले वोटों का सवाल है तो इसमें सभी
वर्गों और जातियों के वोट शामिल हैं। यहाँ तक कि उनको कुछ-न-कुछ मुसलमानों का भी
वोट मिला है अन्यथा इस तरह की अविस्मरणीय जीत संभव नहीं होती। इससे यह भी साबित हो
रहा है कि गुजरात के अल्पसंख्यकों के जख्म अब भरने लगे हैं और उनको भी अन्य
गुजरातियों की तरह भ्रष्टाचाररहित विकास का नारा रास आने लगा है।
मित्रों,क्या मोदी भाजपा की ओर से
प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे और क्या वे ऐसा होने पर पार्टी को जिता पाएंगे
यह तो अभी समय के गर्भ में है लेकिन इतना तो निश्चित है कि
मोदी अगर प्रधानमंत्री बनते हैं तो वे मनमोहन सिंह या राहुल गांधी से ज्यादा सक्षम
और कुशल नेतृत्व देश को दे पाएंगे। इतना ही नहीं इससे देश को कांग्रेस के
अभूतपूर्व भ्रष्टाचार से युक्त शासन से भी मुक्ति मिल सकेगी। अब तक देश के काफी
सारे संसाधनों को कांग्रेस बेच चुकी है और अगर वह फिर से लोकसभा चुनाव जीत जाती है
तो शायद भारत फिर से गुलाम ही हो जाए आर्थिक रूप से भी और राजनीतिक रूप से भी। अरविन्द
केजरीवाल रह-रहकर सनसनी जरूर पैदा कर रहे हैं और शायद आगे भी करते रहनेवाले हैं लेकिन
उनके पास न तो पार्टी संगठन है और न ही वे एक साल में देशभर में स्वीकार्य हो
सकनेवाले जननेता ही बन सकते हैं। फिर उनके साथ दिख रहे लोगों का दामन भी भ्रष्टाचार
से पूरी तरह से पाक-साफ नहीं है। इस स्थिति में जनता उन पर आँख मूंदकर विश्वास
नहीं कर सकती। उन पर विश्वास तो उनके पूर्व सहयोगी अन्ना हजारे को भी नहीं है।
मित्रों,भारत जैसे विविधतावाले देश
में क्षेत्रीय शक्तियों का क्रमशः मजबूत होते जाना भारत की एकता और भारत के
लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है जिस पर कदाचित् मोदी के राष्ट्रीय पटल पर आने
से रोक लग सकेगी। मोदी पर गुजरात के दंगों से निपटने में नाकाम रहने के आरोप हैं
और हमेशा रहेंगे लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उसके बाद गुजरात में कभी साम्प्रदायिक
दंगे नहीं हुए जबकि उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के पिछले 10 महीने के छोटे-से
शासनकाल में ही एक दर्जन से ज्यादा साम्प्रदायिक दंगे हो चुके हैं। भारतीय जनता
पार्टी के पुराने नेताओं को भी वक्त की नजाकत को समझते हुए मोदी के प्रति
स्नेह-वात्सल्य और सदाशयता का परिचय देना चाहिए क्योंकि यही देशहित में भी है और
पार्टी के हित में तो है ही।
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