हिंदुस्तान में जैसे जैसे लोग साक्षर होते
गए...देश की साक्षरता दर बढ़ती गई वैसे वैसे भारत में अपराधों का ग्राफ भी चढ़ता
गया। 15 अगस्त 1947 को आजादी के वक्त भारत की सक्षरता दर करीब 12 फीसदी थी जो 2011
में बढ़कर 74.04 फीसदी तक पहुंच गई है। जबकि देश में अलग-अलग अपराधों का ग्राफ 193.8 फीसदी से लेकर 873.3 फीसदी तक बढ़ा है। साक्षरता
दर और अपराधों का बढ़ता ग्राफ ये दोनों ही आंकड़ें सरकारी हैं इसलिए आप इसे नकार
नहीं सकते।
साक्षरता दर में जहां सरकारी कर्मचारियों
ने जनगणना के दौरान घर - घर जाकर पूरा डाटा तैयार किया है...तो अपराधों के ग्राफ का
ये वो आंकड़ा है, जिसे एनसीआरबी यानि राष्ट्रीय अपराध नियंत्रण ब्यूरो देशभर से
एकत्र करता है और इसमें वही अपराध की घटनाएं शामिल हैं, जिनकी शिकायत देश के किसी
न किसी पुलिस थाने में कभी न कभी दर्ज हुई है, यानि कि इसमें हजारों – लाखों
अपराधों की वो लंबी फेरहिस्त शामिल नहीं है, जिन मामलों की शिकायत अपराध होने के
बाद थाने तक पहुंचते ही नहीं या यूं कहें कि उन्हें पहुंचने ही नहीं दिया जाता या
अगर किसी तरह पहुंच गए तो थाने के रजिस्टर में वे शिकायत दर्ज की नहीं की जाती..!
दिल्ली गैंगरेप के बाद बलात्कार को लेकर
हो हल्ला मचा है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या इस घटना से पहले किसी के साथ कोई
बलात्कार नहीं हुआ..? या किसी महिला की अस्मत इससे पहले नहीं लूटी गई..? आजादी के बाद से देश में किसी एक अपराध के
ग्राफ में 800 फीसदी का ईजाफा हुआ है, तो वो “बलात्कार” है।
एनसीआरबी के 1953 से लेकर 2011 तक के
अपराध के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। 1953 के बाद से चोरी के मामलों में करीब 193.8
फीसदी का ईजाफा दर्ज किया गया तो हत्या के मामले 250 फीसदी तक बढ़े। इसके साथ ही
देशभर में दंगे भड़कने की घटनाएं 233.7 फीसदी तक बढ़ी तो अपहरण और बहला फुसला कर
भगा ले जाने की घटनाओं में 749 फीसदी का ईजाफा दर्ज किया गया। एनसीआरबी 1953 से
देशभर में अपराधों का रिकार्ड एकत्र कर रहा है, लेकिन एनसीआरबी ने बलात्कार के
आंकड़ें 1971 से एकत्र करना शुरु किया। 1971 के बाद से देश में बलात्कार की घटनाएं
873.3 फीसदी तक बढ़ी हैं। 1971 में जहां देशभर में 2 हजार 487 बलात्कार के मामले
दर्ज किए गए...वहीं 2011 में 24 हजार 206 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। इसके
अलावा उन मामलों की फेरहिस्त भी काफी लंबी है जिनकी शिकायत थाने तक पहुंचने ही
नहीं या पहुंचने ही नहीं दी गई..! बलात्कार 1971 से पहले भी होते थे और आजादी से पहले भी...उसका भले ही कोई
पूर्ण आधिकारिक आंकड़ा एक जगह नहीं हो लेकिन सच तो ये है कि महिला की अस्मत पहले
भी लूटी जाती थी और आज भी तार तार होती है।
बलात्कार के मामलों में 40 साल में करीब 800 फीसदी तक का ईजाफा
हैरान करने वाला है और कई सवाल खड़े करता है..! हम कैसे लोगों के बीच रह रहे हैं..? हम कैसे समाज में
रह रहे हैं..? क्या ऐसे वातावरण में हमारी मां, बहन,
बेटियां सुरक्षित हैं..? क्या वे बेखौफ होकर अकेले घर से बाहर निकल
सकती हैं..? इसका जवाब है- नहीं..! आज भले ही हम सभ्य
और साक्षर समाज में रहने की बात करते हों, लेकिन सच्चाई तो यही है कि महिलाएं देश
के किसी भी कोने में सुरक्षित नहीं हैं फिर चाहे वो देश की राजधानी दिल्ली हो या
फिर किसी राज्य का कोई छोटा सा गांव या कस्बा..! बलात्कार जैसे अपराध को अंजाम देने वाले मानसिक विकृति से ग्रसित लोग हर
जगह मौजूद हैं और अपनी हवस को पूरी करने के लिए महिलाओं की ईज्जत को तार – तार करने
का कोई मौका नहीं छोड़ते।
सबसे बड़ी बात ये है कि बलात्कार करने
वाले सिर्फ अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोग ही नहीं हैं बल्कि शिक्षित लोग(सभी शामिल
नहीं) भी बलात्कार की घटनाओं को खूब अंजाम दे रहे हैं। जाहिर है...अपराध...वो भी
बलात्कार जैसा अपराध करने वाला शख्स स्वस्थ मानसिकता का तो नहीं हो सकता। वो एक
गंभीर मानसिक विकृति का शिकार होता है फिर चाहे वो कितना ही पढ़ - लिख क्यों न ले
लेकिन महिलाओं के प्रति उसकी सोच नहीं बदलती। समाज में रह रहे ऐसे शख्स किसी न
किसी रूप में कभी न कभी मौका मिलने पर ऐसा अपराध करते हैं। साक्षरता को अपराध से
जोड़ने का मेरा मंतव्य ये था कि अगर सभी लोग साक्षर हो भी जाएं तो भी ऐसा नहीं है कि
अपराध खासकर बलात्कार जैसे अपराध रूक जाएंगे या कम हो जाएंगे।
जरूरत है सोच बदलने की...जब तक व्यक्ति की
सोच नहीं बदलेगी महिलाओं के लिए उसके दिल में अपनी मां, बहन, बेटी जैसा प्यार और
सम्मान नहीं पैदा होगा तब तक बलात्कार जैसी घटनाएं कम नहीं होंगी। इसके लिए जरूरत
है एक स्वस्थ समाज के निर्माण की और इसकी शुरुआत हमें अपने घर से...अपने दफ्तर
से...अपने गली-मोहल्ले, शहर से करनी होगी और अपने आस पास एक ऐसा वातावरण तैयार
करना होगा जहां महिलाएं बेखौफ होकर घर से बाहर निकल सकें...सभी से मिल सकें...आईए संकल्प
लें ऐसे स्वस्थ समाज के निर्माण का।
deepaktiwari555@gmail.com
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