सिर्फ 39 वर्ष 5
महीने और 24 दिन का छोटा सा जीवन लेकिन कद इतना बड़ा की विश्व में करोड़ों लोग
स्वामी विवेकानंद को न सिर्फ अपना आदर्श मानते हैं बल्कि उनके दिखाए मार्ग पर चलते
हैं। मनुष्य अपनी आयु पूरी करे तो भी उसे लगता है कि ये जीवन छोटा है। अपने
जीवनकाल में मनुष्य सिर्फ अपनी व अपने परिवार की परेशानियों में ही उलझा रहता है
कि समाज से उसे कुछ लेना देना नहीं होता है, लेकिन स्वामी विवेकानंद ने इस सब से
परे न सिर्फ भारतवासियों के मन में भारत की गौरवशाली परंपरा और संस्कृति के प्रति आत्मविश्वास
और आत्मसम्मान का संचार किया बल्कि समूचे विश्व में भारतीय आध्यात्म का परचम भी
लहराया। भले ही आजादी से 45 साल पहले सन 1902 में ही स्वामी विवेकानंद का निधन हो
गया लेकिन आजादी की लड़ाई में स्वामी विवेकानंद के योगदान को कोई कैसे भूल सकता
है। वे विवेकानंद ही थे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भारत वासियों में एक नई
ऊर्जा का संचार किया। समाज को स्वाभिमान, साहस और कर्म की प्रेरणा देने वाले
स्वामी विवेकानंद के मंत्र से ही मूर्छित समाज में नई ऊर्जा का संचार हुआ।
उठो जागो और तब तक
मत रुको, जब तक लक्ष्य को प्राप्त न कर लो कहने वाले स्वामी जी ने 25 वर्ष की आयु
में संन्यास लेने के बाद सिर्फ 14 वर्षों में ही बिना किसी साधन औऱ सुविधा के
सिर्फ एक महान संकल्प के बल पर भारत का मान बढ़ाया। विवेकानंद का जीवन बताता है कि
कैसे बिना किसी साधन और सुविधा के सिर्फ एक संकल्प के बल पर युवा समाज की देश की सोच
बदल सकते हैं।
आज भारत की आबादी
का एक बड़ा हिस्सा युवा हैं। 70 फीसदी भारतीय 35 साल से कम के हैं। युवाओं के दम
पर ही विश्व में भारत के सर्वशक्तिमान बनने की बातें की जाती हैं लेकिन ये बातें तब
तक साकार रूप नहीं लेंगी जब तक भारत की युवा आबादी नई सोच और सकारात्मक ऊर्जा से
भरी नहीं होगी। आज जरूरत है युवाओं को...युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक सोच और दिशा
देने की। आज जरूरत है युवाओं को एक ऐसे नेतृत्व की जो स्वामी विवेकानंद की तरह
ऊर्जावान हो और सबसे बड़ी बात कि सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर हो। लेकिन ये देश का
दुर्भाग्य ही है कि युवा आबादी आज नेतृत्व विहिन है।
देश के जो युवा
नेता नेतृत्व देने की स्थिति में हैं भी वे भी अपने निजि हितों को साधने के काम
में लगे हुए हैं। बीते कुछ सालों में मुझे ऐसा कोई मौका याद नहीं आता चुनाव को
छोड़कर जब इन कथित युवा नेताओं ने युवाओं के लिए कुछ करने की बात की हो या युवा
शक्ति के बल पर कुछ करने की ठानी हो। ज्यादा पीछे न भी जाएं तो दिल्ली गैंगरेप के
बाद राजपथ पर युवाओं के आंदोलन को ही देख लें। राजपथ पर युवाओं का गुस्सा चरम पर
था और जरूरत थी ऐसे वक्त पर एक युवा नेतृत्व की जो सकारात्मक सोच के साथ आंदोलन को
सही दिशा की ओर लेकर जाए लेकिन यहां भी हमें ऐसा देखने को नहीं मिला। देश के किसी
भी कथित युवा नेता ने निजि स्वार्थों से ऊपर उठकर, पार्टी लाइन से ऊपर उठकर इंसाफ
की लड़ाई के लिए शुरु हुए युवाओं के इस आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करना तो दूर वहां
पहुंचने की हिम्मत नहीं दिखाई। ऐसे वक्त पर एक सक्षम, ऊर्जावान और नेतृत्व की कमी
साफ झलकती है और लगता है कि काश एक बार फिर से हमारे बीच पैदा हों एक और स्वामी
विवेकानंद। स्वामी जी की 150वीं जयंती पर कोटि कोटि नमन।
deepaktiwari555@gmail.com
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