26.2.13


क्र्फयू के लिये जितनी प्रशासनिक खामियां जवाबदार है उतनी ही जनप्रतिनिधियों की उदासीनता और भाजपा की गुटबाजी भी जवाबदार है
 छपारा की एक घटना को लेकर बिगड़े सांप्रदायिक तनाव के कारण सिवनी शहर के आम लोगों ने कफ्र्यू का दंश झेला। कफ्र्यू हटने के बाद झन झन कर आ रही खबरों को यदि सही माना जाये तो आम आदमी को यह भुगतमान भाजपा की स्थानीय गुटबंदी के कारण भोगना पड़ा हैं। नगर में लगे क्र्फयू के लिये जितनी प्रशासनिक  खामियां जिम्मेदार हैं उतनी ही जनप्रतिनिधियों की उदासीनता भी जवाबदार हैं। जिले में हुये मंड़ी चुनावों में कांग्रेस का परचम फहरने के समाचार सुर्खियों में रहे। मंडि़यों में अध्यक्ष उपाघ्यक्ष चुने जाने के बाद कांग्रेस के बड़े बड़े धुरंधर नेताओं के फोटो के साथ अखबारों में विज्ञापन भी प्रकाशित हुये कि इनके कारण कांग्रेस ने जीत का परचम फहराया। लेकिन चुनाव के बाद जो खबरें सियासी हल्कों में चर्चित हैं वे चैंका देने वाली है। बीते दिनों हुयी भीषण ओला वृष्टि ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी हैं। इसमें सिवनी विकास खंड़ के गांव ज्यादा प्रभावित हुये हैं। कई बुजुर्गों का तो यह भी कहना हैं कि उन्होंने इतने बड़े ओले कभी देखे नहीं हैं। जैसे ही यह खबर मिली कि ओले से किसानों का भारी नुकसान हुआ है तो तत्काल ही राजनैतिक दलों के नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने तत्काल ही प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर सरकार से राहत देने की मांग की है। 
क्या भाजपायी गुटबंदी के कारण क्र्फयू का दंश भोगा शहर ने?-छपारा की एक घटना को लेकर बिगड़े सांप्रदायिक तनाव के कारण सिवनी शहर के आम लोगों ने कफ्र्यू का दंश झेला। लगभग एक सप्ताह तक लोग मानो अपने अपने घरों में नजर बंद से हो गये थे। कफ्र्यू हटने के बाद झन झन कर आ रही खबरों को यदि सही माना जाये तो आम आदमी को यह भुगतमान भाजपा की स्थानीय गुटबंदी के कारण भोगना पड़ा हैं। राजनैतिक एवं प्रशासनिक क्षेत्रों में व्याप्त चर्चा के अनुसार भाजपा के ही एक गुट ने प्रशासन को यह आश्वासन दे दिया था कि छपारा की घटना के विरोध में विहिप और बजरंग दल का बंद का आव्हान शांति पूर्वक निपट जायेगा इसलिये इस बंद को हो जाने दें। इसे देखते हुये भाजपा के ही एक अन्य गुट ने बंद को सफल बनाने एवं तनाव पैदा करने में अपनी भूमिका खुले आम निभायी। जबकि वास्तविकता यह थी कि जिस हरिजन युवक के साथ दो मुस्लिम युवकों ने घृणित एवं अमानवीय घटना की थी उसे तत्काल ही पुलिस ने हिरासत में लेकर  समुचित धारायें लगाकर उन्हे ना सिर्फ कोर्ट में पेश कर दिया था वरन रिमांड़ पर जेल भी भेज दिया था। ऐसे हालात में होना यह चाहिये था कि जिले के सभी भाजपा नेताओं को एक जुट होकर प्रदेश की भाजपा सरकार का बचाव करना चाहिये था और बंद का आव्हान करने वाले अपने ही अनुशांगिक संगठनों के लोगों  को यह समझाना था कि आखिर विरोध करके आप लोग मांग क्या करोगे जबकि सभी आरोपी जेल में बंद हैं। इस सबकी जवाबदारी यदि देखा जाये तो सिवनी की भाजपा  विधायक नीता पटेरिया और जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर की ही प्रमुख रूप से बनती हैं। ऐसा क्यों नहीं हो पाया? इसे लेंकर राजनैतिक हल्कों में कई तरह की चर्चाये चल रहीं हैं। यह खुलासा होना भी महत्वपूर्ण है कि आखिर 7 फरवरी को मस्जिद और मंदिर में जो घटनायें हुयी उनके आरोपी कौन थे? हालाकि इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया हैं। लेकिन इसे लेकर तरह तरह की चर्चायें स्थान और परिस्थितियों को लेकर जारी हैं। इसी साल नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भी सियासी चर्चायें हो रहीं हैं। राजनैतिक कारणों से यदि सांप्रदायिक सदभाव बिगाड़ने के प्रयास किये जाते तो इसकी निंदा होना स्वभाविक ही हैं। नगर में लगे क्र्फयू के लिये जितनी प्रशासनिक खामियां जिम्मेदार हैं उतनी ही जनप्रतिनिधियों की उदासीनता भी जवाबदार हैं। जो हो गया सो हो गया लेकिन अब जरूरत इस बात की है कि भविष्य में ऐसा कुछ ना हो जिससे जिले का अमन चैन दांव पर लगें और निर्दोष आम लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़े इसके लिये सभी जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अमले को कारगर प्रयास करना चाहिये। 
क्या जिले में कहीं कांग्रेस बची है?-जिले में हुये मंड़ी चुनावों में कांग्रेस का परचम फहरने के समाचार सुर्खियों में रहे। जिले की छः में से 5 मंडि़यों में कांग्रेस का कब्जा हुआ हैं। मंडि़यों में अध्यक्ष उपाघ्यक्ष चुने जाने के बाद कांग्रेस के बड़े बड़े धुरंधर नेताओं के फोटो के साथ अखबारों में विज्ञापन भी प्रकाशित हुये कि इनके कारण कांग्रेस ने जीत का परचम फहराया। लेकिन चुनाव के बाद जो खबरें सियासी हल्कों में चर्चित हैं वे चैंका देने वाली है। जिन मंडि़यों में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी उन मंडि़यों में खुले आम सौदेबाजी हुयी। सौदागर भी इतने माहिर थे कि एक ही माल के कई खरीददार एक साथ तैयार कर रखे थे और वो भी ऐसे ही नहीं वरन पूरी कीमत एडवांस के रूप में जमा करवा कर। लेकिन इसमें भी इतना फर्क जरूर था कि कांग्रेस और भाजपा के लिये कीमत अलग अलग थी। अब यदि मंड़ी के चुनाव में मंड़ी के सदस्यों की भी यदि बोली लग जाये तो कौन सी बड़ी बात है? कहा जाता है कि मोहब्बत और जंग में सब कुछ जायज है और जो जीता वही सिकन्दर माना जाता हैं। राजनीति में मोहब्बत तो अब कहीं दिखती नहीं नहीं हैं। रही बात जंग की तो उसमें तो तरकश के सारे तीरों को आजमाने को गलत नहीं कहा जा सकता। जिले की सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंड़ी में भी कांग्रेस ने लगातार तीसरी बार अपना कब्जा बरकरार रखा हैं। पिछले दो चुनावों में किसान सीधे अध्यक्ष चुनते थे लेकिन इस बार अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव सदस्यों के माध्यम से हुआ था। इस महत्वपूर्ण मंड़ी में कांग्रेस के रणनीतकारों के रूप में राहुल गांधी के करीबी युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय समन्वयक राजा बघेल और जिला पंचायत के अध्यक्ष मोहन चंदेल उभर कर सामने आये थे। कांग्रेस की इस उपलब्धि के लिये वे बधायी के पात्र हैं। लेकिन इन चुनावों में एक सवाल जरूर उभर कर सामने आया है कि जिले में आखिर कांग्रेस रह कहां गयी है? जहां कांग्रेस समर्थित सदस्यों के बहुमत के बाद भी धन बल के आधार पर चुनाव जीता जाये। शायद यही कारण है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को उन क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ता है जिन क्षेत्रों में धनबल या बाहुबल के आधार के अधार पर इतने बड़े पैमाने पर यह सब कुछ मेनेज नहीं किया जा सकता है। 
किसानों के लिये संवेदना या ओला महोत्सव?-बीते दिनों हुयी भीषण ओला वृष्टि ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी हैं। इसमें सिवनी विकास खंड़ के गांव ज्यादा प्रभावित हुये हैं। कई बुजुर्गों का तो यह भी कहना हैं कि उन्होंने इतने बड़े ओले कभी देखे नहीं हैं। जैसे ही यह खबर मिली कि ओले से किसानों का भारी नुकसान हुआ है तो तत्काल ही राजनैतिक दलों के नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने तत्काल ही प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर सरकार से राहत देने की मांग की है। यह स्वभाविक भी है कि जब जनता मुसीबत में हो तो राजनैतिक नेताओं को उनकी मदद में आगे आना चाहिये। इसमें भाजपा और कांग्रेस के नेता भी शामिल है जिन्होंने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। लेकिन इस सबकी चर्चाये होना जब शुरू हुयी तब नेताओं के फोटों साथ अखबारों में समाचार प्रकाशित होना चालू हुये कि फलां नेता फंला गांव पहुचा और किसानों के प्रति संवेदना व्यक्त की। ऐसा लगता था कि मानेा नेता लोग फोटोग्राफर से लैस होकर ही दौरे पर गयें हों। प्रशासनिक स्तर पर फसलों सहित किसानों की हुयी क्षति का आंकलन ठीक ढंग से हो और उन्हें अधिकतम राहत मिल सके इसके लिये संयुक्त प्रयास होने चाहिये। अक्सर यह शिकायत रह जाती हैं वास्तविक पीडि़त किसान तो रह जाते है और जुगाड़ लगाने वाले कामयाब हो जाते हैं। जयरत इस बात की भी है कि आर.बी.सी. में ऐसे बहुत से संशोधन कराना जरूरी है जिनसे किसानों को वास्तव में राहत मिल सके। वर्तमान में सिंचित भूमि में 5 हजार और असिंचित में 32 सौ 50 रु. प्रति हेक्टेयर अधिकतम देने का प्रावधान हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि यदि सरकार के ही बीज निगम से बीज लेकर किसान  बोनी करता है तो आधे का तो बीज ही हो जाता है और खाद,डीजल और बिजली तथा लेबर चार्ज अतिरिक्त लगता हैं। इस लिये नियम में ऐसा संशोधन होना चाहिये कि किसान को कम से कम लागत की राशि तो राहत के रूप में मिल सके। यदि नेता किसानों को अधिकतम मुआवजा नहीं दिला पाये और संशोधन की दिशा में कारगर कदम नहीं उठा पाये तो उनके द्वारा व्यक्त की गयी संवेदनाये बेकार रहेंगी और ऐसा लगेगा मानों वे ओला महोत्सव में भाग लेने गयें हों और अखबारों में अपने समाचार और फोटो छपवाकर अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री कर ली हो। “मुसाफिर”       

दर्पण झूठ ना बोले
26 फरवरी 2013 से साभार

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