भड़ास blog

अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...

2.4.13

बेचारा रावण या शायद हम :'(

......और अगर है अपराध नारी के अपमान का 
तो गिनों जिन्दा खुले फिरते बलात्कारियों को 
खड़े खड़े यूँ पोथे के पोथे भर जाने थे ।
उन्हें क्यूँ जला नहीं पाते तुम लोग , नपुंसक हो  ??
जो मरे हुए के पुतले को बार बार जलाते हो 
और जिन्दा अपराधी से डर के दुबक जाते हो ??
राम दुनिया में अब रहें नहीं या 
मेरे बाद शास्त्रों की बातें बदल गयी ।
पुरस्कार पापों पे मिलने लगा या 
                                              नारी सम्मान की परिभाषा बदल गयी ।|
                                                          .............
                                                          ..........
Manish Khedawat at 12:41 AM
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