14.8.13

स्वतंत्रता के बाद के दंश


स्वतंत्रता के बाद के दंश

स्वतंत्रता के बाद बहुसंख्यक समाज ने स्वतंत्र हिंदुस्तान से क्या पाया?

संसद में जो दल अपना बहुमत सिद्ध करता है उसे उस देश को चलाने का और नीति
निर्धारण करने का अधिकार मिल जाता है और इसके लिए उन्हें एक मत ज्यादा पेश
करना होता है लेकिन भारत के बहुसंख्यक 50 प्रतिशत से ज्यादा बहुमत रखते हैं फिर
उन्होंने क्या पाया स्वतंत्रता से ,यह प्रश्न आज यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर कोई भी दल
निष्पक्ष रूप से नहीं देना चाहता ,क्यों ?

तथाकथित मानवता वादी लोग बहुसंख्यक प्रजा के प्रति भेद भाव पूर्ण रवैया क्यों
रखते हैं ?जब बहुसंख्यक लोग उपद्रव का शिकार अपनी ही मातृभूमि पर हो जाते हैं
तो सब और चुप्पी ,सन्नाटा छा जाता है तब ये मानवता वादी लोग बहरे और गूंगे
बन जाते हैं और कहीं भी अल्पसंख्यक समुदाय जरा सा पीड़ित चाहे उनके अवेधानिक
रवैये से भी हुआ हो तो भी ये लोग बांहे चढ़ाकर चीखने चिल्लाने लग जाते हैं ,क्यों?

हमारे यहाँ कबीर जैसे लोग और उनके सिद्धांत अब कहीं भी नहीं झलकते। क्या
कारण है कि अधिकांश कर्णधार एक जगह तुष्टिकरण करते हैं और दूसरी तरफ
अधिकारों से वंचित करते हैं ?

क्या कारण है कि भारत के नागरिकों को समान अधिकार नहीं मिलते ?धर्म या जाती
के अनुसार कानून बनेंगे तो राष्ट्रीयता का अर्थ क्या रहेगा ?किसी एक वर्ग के लिए
अलग नीति और अन्य के लिए अलग ?क्या धर्म राष्ट्र से बढ़कर हो जाता है ?

गरीब और पिछड़े बहुसंख्यक गलत आरक्षण नीति का भोग बन रहे हैं। क्या गरीब
और निर्धन उच्च जाती का वर्ग अन्य से कुशल होने के बाद भी रोने और गिडगिडाने
के लिए बचा है ,क्यों नहीं उनको वो हक़ मिलते हैं जो अन्यों को धनवान होने के बाद
भी जाती धर्म के आधार पर मिल जाते हैं.

अधिकांश कर्णधार बहुसंख्यक समाज को साम्प्रदायिक शक्ति ठहराने पर तुले रहते हैं
जबकि उनको जो अधिकार मिले हैं वो बहुसंख्यक समाज के मत से ही मिले हैं। क्यों
ये पक्षपाती नेता उपद्रवियों को शरण देते हैं उनके अपराध को पोषित करते हैं उनके लिए
रोते हैं जबकि देश के वीरों के प्रति संवेदना शून्य बन जाते हैं उनकी देश भक्ति भी
मूल्यहीन बन जाती है और हुडदन्गियों के प्रति संवेदना झलकती है ,क्या ये लोग यह
चाहते हैं कि अपने अधिकारों के लिए समाज बागी बन जाये ?

गरीब और अशिक्षित भारतीयों के हक़ कानून के तहत छीन लिए जा रहे हैं और वो
लोग कुचले जाने के बाद निरंकुश कानून के खिलाफ खड़े होते हैं तो उनको बागी
या समस्या फैलाने वाले अराजक समूह के रूप में मान लिया जाता है ,क्या कोई
यह समजायेगा कि भगवान जब जन्म देते हैं तो अराजकता फैलाने वाले के लिए
देते हैं या फिर स्वार्थी लोगों के द्वारा उनका हक छीन लेने के कारण वे विद्रोही
बनते हैं ?

एक बड़ा समुदाय आज वनवासी और आदिवासी बन कर जी रहा है क्यों?
उनको योग्य कैसे बनाया जाये इस पर बहस न संसद में होती है ना सभ्य समाज
में,इनकी समस्या के समाधान को राहत की भीख देकर कर्तव्य पालन किया जा
रहा है।

देश की सरकारे यह तय कर पाने में अभी तक असमर्थ है कि हम गरीब किसे कहें ?
जब तक ये लोग यह परिभाषा ही नहीं गढ़ पायेंगे तो उनके लिए शिक्षा ,भोजन
आवास की सम्पूर्ण नीति कैसे बना पायेंगे ?क्या मात्र अक्षर ज्ञान को शिक्षा माने
भोजन विधेयक को भूखे नहीं रहने की गारंटी माने ,समस्या है भूख और गरीबी
और उसका समाधान राहत बांटना नहीं होता है ,भारतीय राहत पर जीने में कभी
गौरव नहीं महसूस करेगा उसे रोजगार दो ,मगर उसके लिए कोई नीति नहीं है ,
अगर यह हाल रहा तो आने वाले समय में मनरेगा में शिक्षित बेरोजगारों की भीड़
नजर आएगी।

स्वतंत्र देश के नागरिक समान अधिकारों का सुख पायें और सबके हाथों में रोजगार
हो ,राष्ट्रीयता ही आराधना बने ,सेना और सरहद को सम्मान मिले ,भ्रष्ट नेताओं को
कठोर दंड मिले ,क्या हम यह सपना देख रहे हैं उसे सपना ही समझे













छा 

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