13.8.13

सिसकते भारत की तस्वीर



सिसकते भारत की तस्वीर 

संसद का पावन मन्दिर झूठे ,धूर्त ,मक्कार ,दागी ,अपवित्र ,चरित्रहीन बोझ को झेल कर थकता 
जा रहा है 
  देश गरीबी और भुखमरी से त्रस्त है और नेता इस आपदा से अपना मनोरंजन खोजते हैं,किसी को 
गरीब सत्ता का साधन लगता है,किसी को मानसिक स्थिति लगता है,किसी को बाजार की वस्तु 
लगता है.…. 
इस देश के धन को काले चोर लूट रहे हैं  कोई संविधान की सौगंध खा कर लूट रहा है,कोई 
कानून की आँखों पर पट्टी बाँध के लूट रहा है,कोई सांठ गाँठ करके लूट रहा है,कोई जनसेवक 
बन कर लूट रहा है,कोई समाज सेवा के नाम पर लूट रहा है।
यहाँ सपने दिखाये जाते हैं पर देखने नहीं दिये जाते कोई गरीबी हटाने का सपना दिखाता है,
कोई विकास का सपना दिखाता है कोई भरपेट भोजन का सपना दिखाता है तो कोई एकता 
का सपना दिखाता है।
यहाँ पढ़ लिख कर भी लोग बेरोजगार हो जाते हैं,पढ़ लिख कर आरक्षण का गरल पीते हैं,पढ़ 
लिख कर भी संस्कार विहीन हो जाते हैं।
यहाँ धर्म के मर्म पर निशाना लगाते हैं कोई तुष्टिकरण को सही राह मानता है कोई मजहब 
को सुलगाता है कोई धर्म से सत्ता खोजता है तो कोई धर्म से खून बरसाता है।
यहाँ गाँव रोता है ,किसान भूख से मरता है ,मजदुर खून के आँसू रोता है,कभी मनरेगा में भविष्य 
देखता है,कभी खदानों में मरता है ,कभी रेल की पटरियों के करीब बस कर लंगड़ाता है ,कभी 
झुग्गियों में सिसकता है।
यहाँ नारी के सम्मान की बाते सजती है और अधिकार का दिखावा होता है मगर उसकी 
हालत हर बार खरबूज सी रह जाती है ,नारी सहती है ,भोगती है,खिलौने सी टूटती है।
यहाँ बच्चे बचपन बेचते हैं,किशोर बदकाम करते हैं युवा तेज़ाब फेंकते हैं क्यों ,इस प्रश्न तक 
कोई नहीं पहुँचते। 
यहाँ हर कोई महान है,हर कोई मार्गदर्शक है,हर कोई नेता है,हर किसी के पास में समाधान 
है इसलिए किसी को किसी की पड़ी नहीं है।

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