30.9.13

उमा दारु जोषित की नाईं। सबहिं नचावत रामु गोसाईं : राम चरित मानस

दारु जोषित = लकड़ी की नारी = कठपुतली ,    

हम सब कठपुतलियां हैं , भगवान् के हाथों मे, 

कठपुतली की कोई इच्छा नहीं, कर्तव्या  नहीं , 

कठपुतली ही तो होना हैं मुझ्कॊ .

फिर कोई दुःख नहीं तकलीफ नहीं 

--------------------------------------------------

क्या रुकावट हैं कठपुतली होने में  !

===========================
पूरा पढने के लिए निचे लिंक पर क्लिक करें !

28.9.13

हिन्दू कौन ! हिन्दू क्या करता हैं , एक नए हिन्दू को क्या करने से वो हिन्दू कहलायेगा क्या जन्मजात हिन्दू वह सब करता हैं !

who is a hindu ! how to become a hindu, what a hindu is supposed to be !!

   
this was the mail i got from my freind in usa:
=========================
GOOD NEWS FOR HINDUS:
362 Christians and Muslims return back to Hindu Dharma

175 practicing Christians returned back to Hinduism in Paravartan Ceremony by VHP at Palakonda

=======================
  

=============================================================
this was my reply to this news: 

that is great, 
but when the all hindus will return to hinduism, as most of them are hindu for name sake only. 

they do not practice anything, 
they do not know anything about hinduism.
they critisize the hindu rituals,
they condemn the hindu saints,
they have not any scripture in their life time, 
their children do not know anything about hinduism
they never support , even verbally any hindu cause,
and so on..........
and these people are actually from upper class of hindus
how we consider them hindus.

actually what is hindu ?, 

just they have a hindu looking name ! 
then  what more  ?......
===================================
click at down the url for reading the full blog....if you wish........

राइट टू रिजैक्‍ट शुभ, मगर कितना.... ?

राइट टू रिजेक्‍ट स्‍वस्‍थ लोकतंत्र के लिए शुभ माना जा सकता है, मगर कितना? इस पर भी सोचा जाना चाहिए। खासकर इसलिए कि क्‍या अब तक नकारात्‍मक वोटों से संसद या विधानसभाओं में पहुंचने वाले इससे रुक पाएंगे। शायद जानकार मानेंगे कि उनका जवाब ना में ही होगा। कारण कुछ लोग जो पहले भी वोट नहीं देते थे, क्‍या वह देश की राजनीतिक व्‍यवस्‍था पर प्रश्‍नचिह्न नहीं था? हां अब इतना फर्क होगा कि नकारात्‍मक वोट की संख्‍या सार्वजनिक हो जाएगी। लेकिन फिर वही सवाल कि क्‍या इससे फायदा होगा?
मेरा मानना है कि राइट टू रिजेक्‍ट से बड़ा बदलाव आए या नहीं, लेकिन देश के शिक्षित वर्ग के रुझान का पता जरुर चल सकता है। कारण, देश में अब तक अनपढ़ों को किसी के भी पक्ष में बरगलाने में इसी वर्ग का सबसे बड़ा हाथ रहा है, और यही वर्ग चुनाव के बाद हरबार राजनीतिक प्रणाली, राजनेताओं, पार्टियों को बीच चौराहे बातों बातों में गालियां भी देता रहा है। सो साफ है कि अब उसे वोट के इस्‍तेमाल से पहले अपने चयन पर किंतु-परंतु के साथ मुहर लगानी होगी। वरना उसकी भूमिका, अंधभक्ति, स्‍वार्थ को भी सब जान जाएंगे।
हां एक बात अवश्‍य कही जा सकती है कि इससे निकलने वाली ध्‍वनि लोकतंत्र के कथित पहरुओं को भविष्‍य के लिए कोई कड़ा संदेश जरुर दे सकती है। और इससे राजनीतिक गलियारों में यदाकदा कोई साफ सुथरी छवि, ध्‍येय, निष्‍ठा वाला पहुंच सकता है। इस लिहाज से दीर्घकालीन योजनाओं की तरह राइट टू रिजेक्‍ट प्रणाली से भरोसा बांधा जा सकता है।
यह पहल एक और तरफ भी इशारा करती दिख रही है कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍थाओं के समय का पहिया घुमने लगा है। जो कि राइट टू रिजेक्‍ट से राइट टू रिकॉल और फिर निर्वाचन के लिए 50+1 के मानक तक पहुंच सकती है। जिससे धनबल, बाहुबल, उन्‍माद, भावनात्‍मक शोषण जैसी कुटील चालों का बल निकाल सकती है।
यहां आप से अनुरोध कि सफाई के इस अभियान पर अपनी प्रतिक्रिया तो दें ही, साथ ही उस शिक्षित (अनपढ़) वर्ग को भी समझाने का प्रयास करें। शायद यह हमारे लिए देशभक्ति जताने का एक अच्‍छा माध्‍यम बन जाए। जो देश के साथ ही हमारी, आने वालों की जिंदगियों को सुरक्षित और खुशहाल बना सके।

धनेश

बुरे फंसे नानसेंस

बुरे फंसे नानसेंस 

चने के झाड़ पर पंच चढ़ गए तो गुज्जु ने हाथ खिंच लिए और हाथ खींचते ही पंच
फस गए कि अब इस हड्डी को कैसे उगले.उस दिन तो गुज्जु बड़ा भाईपना दिखा
रहा था -जोर जोर से चिल्ला रहा था -  चोर-चोर मोसेरे भाई !माँ ने कहा था कि ये
गुज्जु  बड़ा तीसमारखा है मगर हम ही नहीं माने ,माँ तो पटखनी खा चुकी थी
इसलिए डांट रही थी . सब पंचों ने विलाप किया -बबलू ,कुछ सोचो ,वो तो अनर्थ
करके भाग लिया और पिंडा अपने बांध गया .

बबलू बोला- तुम लोग तो खाए खेले हो ,ये फैसला तो सबके हक़ मैं था ,मेरे जीजू के
हक़ में था ,ये वाले अंकलजी ,छुक छुक वाले अंकलजी ,सिगड़ी वाले अंकलजी ,
फोन वाले अंकलजी ,भेंस वाले और बंगले वाले अंकलजी सबके हक़ में था ,नाश
हो उस गुज्जु अंकल का जो हाँ -हाँ में सर हिलाता रहा और अब साफ ना कर बैठा ,
अब मैं तो नया रंगरूट ,मैं क्या जानू कि चक्रव्यूह कैसे तोडा जाता है ,मैं तो इस
खटपट से दूर मामा के घर जाउंगा .

बबलू की बात सुन सब के मुंह उतर गए ,सब गले में अटकी हड्डी को लेकर परेशान
थे ,आखिर में तकले अंकल ने कहा - लुन्गीवाले,सब लपेटे में आ गए हैं ,गले में अटकी
ये हड्डी से गला लहुलुहान हो गया ,करमजले तूने ही तो कहा तो सब सेट हो गया ?

लुन्गीवाला बोला -सब सेट था ,मगर ये गुज्जु !हाँ कह रहा था की ना कह रहा था
ये समझने में मार खा गया और ऊपर से दादा भी दांत किटकिटा रहे हैं और सुपर
सर तो दूसरा धमाका नापसंद बम्ब से भी कर चुके हैं .

खुरखुरे बोला -एक उपाय है ,अम्मी के पास चलते हैं ,विलायती बादाम की खोपड़ी
में जरुर कुछ छटकने का उपाय होगा .

सब के सब अम्मी के घर की ओर भागे .सबको भागते देख अम्मी समझ गयी की
जरुर कुछ कलई खुलने वाली आफत आन पड़ी है .

अम्मी बोली -क्यों सिटपिटाये हो कर्मजलों?

दुग्गी बोला -गेम पेक होना है ,वो तो साहूकार बन गाँव भर में डुगडुग्गी पिट रहा है
और कह रहा है -मैं साहूकार ,अब अम्मी क्या करे ,हाय रे हड्डी ....

अम्मी बोली -फिक्र ना करो ,बड़ा चमचा तो अब काम आने वाला नहीं है इसलिए
उसे तोड़ दो !

सब एक साथ बोले -हैं ...!!! .फिर समझ गए तो तालियाँ बजा उठे और लगे बड़े
चमच्चे को घिसने .

बबलू भी जोश में आ गया और बोला -देखो,मैं इस चमचे के दो टुकड़े करता हूँ ,
तुम सब जयजयकार करना .

बबलू ने गाँव की टंकी पर चढ़ कर ऐलान किया -बेवकूफ,अब नयी पिक्चर का
हीरो अपुन खुद बनेगा  और बड़े चमच को घिस दूंगा

बाकी के कुछ चमचों ने तालियाँ बजाई ,समर्थन किया ,तुरंत थूंका तुरंत चाटा
और बड़ा चमचा दूर पड़ा कराहा-अपुन ने कुछ नहीं किया ,अपुन ने सबको खिलाया ,
अपुन का पेट भूखा है     

27.9.13



हिंदुस्तान की जनता के सामने सुप्रीम कोर्ट विश्‍वास की आखिरी उम्मीद है. सुप्रीम कोर्ट कोई राजनीतिक दल नहीं है, जो झूठे आरोप लगाए और जिसे राजनीतिक जवाब देकर टाला जा सकता है. अदातल तो सच का पता लगाती है. दूध का दूध और पानी का पानी करती है. अदातल फैसला करती है और जब तक फैसला नहीं देती, तब तक वो इशारा देती है. कोयला घोटाले में अब तक सुप्रीम कोर्ट से जो इशारे मिल रहे हैं, वह खतरनाक है. 

कोयला घोटाले से जुड़ी फाइलें गायब हो गईं. ये फाइलें कहां गईं? क्या इन फाइलों को जमीन खा गई या कोई भूत लेकर गायब हो गया? ये फाइलें कब गायब हुईं? कहां से गायब हुईं? इन फाइलों में क्या था? क्या भारत सरकार के दफ्तर चोरों का अड्डा बन चुके हैं? या फिर इन फाइलों को गायब कर के किसी को बचाया जा रहा है? नोट करने वाली बात यह है कि कोयला घोटाला उस वक्त हुआ, जब मनमोहन सिंह कोयला मंत्री थे. कोयला खदानों के हर विवादित आबंटन पर मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर हैं. एक तरफ सरकार है, जो सच को छुपाना चाह रही है, सीबीआई जांच में बाधा पैदा कर रही है और दूसरी तरफ अदालत है, जो कह रही है कि किसी भी कीमत पर दोषियों को दंडित किया जाएगा. दिसंबर महीने में कोयला घोटाले की जांच पूरी हो जाएगी. जैसे टूजी घोटाले में सीबीआई ने एफआईआर लिख कर ए राजा को गिरफ्तार किया था, उसी तरह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई को मनमोहन सिंह के खिलाफ एफआईआर लिखनी होगी. उन्हें गिरफ्तार करना होगा और बाद में उन पर मुकदमा चलेगा. इस घोटाले के केंद्र में प्रधानमंत्री हैं तो क्या दिसंबर में भारत को एक शर्मनाक इतिहास का मुंह देखना पड़ेगा? कोयला............

पूरा लेख पढने के लिए क्लिक करें :
http://worldisahome.blogspot.in/2013/09/blog-post_27.html

सत्य के आग्रह से कतई परे, सत्याग्रह !

प्रकाश झा कैम्प से गंगाजल और अपहरन जैसी जीवान्त फिल्में देखने के बाद सत्याग्रह देखकर बहुत प्रसन्नता नहीं हुयी । इस बात को शायद इसी से समझा जा सकता है कि फिल्म देखने के कई दिन बाद उस पर कुछ लिखने का मन बना पाया हूँ । एक बिखरे हुये से कथानक की झलक, जिसमें सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कई घटनाओं की चटनी परोसने का प्रयास ज्यादा दिखा।  सत्येद्र दुबे हत्याकाड़ं, अन्ना का अन्दोलन, केजरीवाल का आन्दोलन से विरचन कर राजनैतिक दल बनाना और गांधी के अन्तिम दिनों की झलक, सबकुछ एक साथ ।

एक बात इस फिल्म में जोरदार तरीके से कह दी, कि अगर आप व्यापार में हैं और तो समाज सेवा और आन्दोलन का ख्वाब मत देखिये क्योंकि राजनीति आपको जीने नहीं देगी । पर राजनीति के उच्चतम शिखर पर भी आपका बड़ा और महा-भ्रष्ट व्यापारी होना काफी मददगार सिद्ध हो सकता है । क्योंकि मानव (अजय देवगन) को अपना 5000 करोड़ का बिजनेस (जो कि वास्तविकता में 6250 करोड़ का था ) छोड़कर ही सत्याग्रह में उतरना पड़ा । । इसके पलट सभी मन्त्री सरकारी बैठकों में अपने - अपने कारोबारी हित साधते नजर आये । यहाँ तक कि प्रमुख विपक्षी पार्टी का नेता भी अपने कारोबारी हितों के चलते आन्दोलन से अचानक अलग हो गया ।

फिल्म के कुछ पहलुओं पर फिल्म से मेरा प्रश्न है ।  मध्य प्रदेश की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म में बिहारी / भोजपुरी बोलने वाले विलेन टाइप नेता बलराम सिंह (मनोज बाजपेयी) की क्या जरूरत थी ? क्या बुन्देलखण्डी बोलने वाला कोई किरदार बेहतर नहीं होता ?  शायद ’गठबंधन की राजनीति ’ की मजबूरी रही होगी ?

मध्य प्रदेश में ’ हिन्दुस्तान ’ अखबार नहीं चलता है । वहाँ ’ नव भारत ’ की धूम है । पर पूरी फिल्म में प्रकाश झा हिन्दुस्तान अखबार दिखाने से बाज नहीं आये । मेरे विचार में यह रियालटी सिनेमा के सिद्धान्तों के विपरीत है । इसे हिन्दुस्तान अखबार के विज्ञापन के रूप में देखा जा सकता है । वैसे हिन्दुस्तान अखबार के अलवा फिल्म में ’ अल्ट्राटेक सीमेन्ट ’, हीरो की पैशन मोटर साईकिल, और किसी चावल के ब्राण्ड तो मुझे याद आ रहा है, जिनके की विज्ञापन दिखाये गये । इसके अलावा और ब्राण्ड भी हो सकते हैं ।

ए.बी.पी. न्यूज की प्रतिनिधि बनी करीना कपूर खुद आन्दोलन का हिस्सा बन गयी और अम्बिकापुर में ही बस गयी । पत्रकारिता की निश्पक्षता पर यह सवाल खड़ा करता है । क्या वास्तव में ए.बी.पी. न्यूज अपने किसी संवाददाता को ऐसा करने देगा ? कि जब चाहे आन्दोलनकारी बन जाओ और जब चाहे रिपोर्टर ? साथ ही अजय देवगन और करीना का प्रेम प्रसंग (चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो)  कथानक से बिल्कुल भी मेल नहीं खाता ।  इस पहलू पर भारतीय फिल्म निर्माताओं को हालीवुड से सीखने की जरूरत है । कि काम से काम रखो, बिलावहज का रोमांस मत ठूसो ।

26.9.13

आडवानी का मोदी विरोध महज एक दिखावा या संघ की रणनीति
भारतीय जनता पार्टी के पितृ पुरुष माने जाने वाले लालकृष्ण आडवानी के विरोध को दो बार दर किनार करके नरेन्द्र मोदी को पहले चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष और फिर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाना क्या उतना ही सहज सरल और पारदर्शी है, जितना दिखायी दे रहा है या फिर पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और है? क्या भाजपा में संघ के आर्शीवाद से उदारवादी अटलबिहारी वाजपेयी और हिन्दूवादी लालकृष्ण आडवानी की जोड़ी को सुनियोजित तरीके से अब उदारवादी लालकृष्ण आडवानी और हिन्दूवादी नरेन्द्र मोदी के रूप में बदला जा रहा है? ये यक्ष प्रश्न आज देश के राजनैतिक क्षितिज में उत्सुकता के साथ चर्चित है।
स्मरणीय है कि सन 1977 में भारतीय जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ था। जनता पार्टी की पहली गैर कांग्रेसी केन्द्र सरकार में अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवानी दोनों ही मंत्री बने थे। लेकिन जनता पार्टी की सरकार के मात्र ढ़ाई साल में गिर जाने का कारण भी इसमें शामिल समाजवादी दलों के नेताओं द्वारा जनता पार्टी और आर.एस.एस. की दोहरी सदस्यता का मसला ही था। इसके बाद पूर्व जनसंघ घटक के नेताओं ने एक अलग पार्टी बनायी जिसका नाम भारतीय जनता पार्टी रखा गया। केन्द्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में बनी दूसरी गैर कांग्रेसी सरकार भी भाजपा के बाहरी समर्थन से बनी थी। इस दौरान भाजपा नेता लालकृष्ण आडवानी राम रथ पर सवार होकर  सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा पर राम मंदिर के मुद्दे को लेकर निकल पड़े थे। यह वाकया भी कम रोचक नहीं है कि जब मीडिया ने इस पर अटल जी से आगे की रणनीति पर टिप्पणी मांगी थी तो अटल जी ने यह कहा था कि ये तो शेर की सवारी है आगे जो भी करेगा वो शेर ही करेगा। बिहार में लालू यादव द्वारा रथ यात्रा को रोककर आडवानी को गिरफ्तार कर लिया तो भाजपा के समर्थन वापस लेने से केन्द्र की दूसरी गैर कांग्रेसी सरकार भी गिर गयी थी।
भाजपा के गठन से ही निरंतर कुछ ऐसे राजनैतिक घटनाक्रम होते गये कि अटल जी एक उदारवादी नेता के रूप में उभरे तो दूसरी ओर आडवानी जी की छवि एक हिन्दूवादी नेता की बनती रही।  अतीत के इस दौर में संघ चट्टान की तरह आडवानी जी के पीछे खड़ा दिखायी देता था। अटल आडवानी की इस जोड़ी के नेतृत्व में भाजपा ने केन्द्र में अटल जी के नेतृत्व में सरकार बनायी और आडवानी जी गृह मंत्री बने। इस दौर में उन्हें लोह पुरुष का दर्जा भी भाजपा में दिया गया। जबकि आडवानी के गृह मंत्री रहते हुये ही काश्मीर के कट्टरपंथी आतंकवादियों को विदेश मंत्री जसवंत सिंह कांधांर तक छोड़ कर आये थे। हालांकि इस दौरान अटल आडवानी द्वारा की जाने वाली रोजा अफ्तार की दावतें भी बहुत चर्चित रहती थीं। एन.डी.ए. के ऐजेन्डे में राम मंदिर का मुद्दा ना होने को कारण बता कर भाजपा ने इससे भी किनारा कर लिया था। 
अस्वस्थ हो जाने के कारण देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी सक्रिय राजनीति से दूर हो गये। ऐसे में देश की राजनीति की मांग के अनुरूप भाजपा और संघ को अटल जी के बदले एक उदारवादी चेहरे की आवश्यकता थी। ऐसा माना जा सकता है कि इसकी सुनियोजित शुरुआत उस वक्त हुयी जब पाकिस्तान के दौरे पर गये देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री एवं भाजपा नेता लालकृष्ण आडवानी ने जिन्ना की मजार पर जाकर फूल चढ़ाये। संघ ने इसका भारी विरोध किया जिससे आडवानी की धर्म निरपेक्ष छवि बनना प्रारंभ हुई। दूसरी तरफ गुजरात के गोधरा कांड़ के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी कट्टरवादी हिन्दू नेता के रूप में उभर कर सामने आ गये। हालाकि गोधरा कांड़ के बाद अटल जी ने मोदी राजधर्म निभाने की सलाह तो दी लेकिन कोई कठोर कार्यवाही नहीं की थी। गुजरात में तीसरी पारी खेलने के बाद मोदी के व्यक्तित्व को संघ के इशारे पर विशाल रूप में प्रचारित किया गया।
संघ ने मोदी पर दांव लगाने का फैसला किया और उन्हें चुंनाव अभियान समिति का अध्यक्ष घोषित करने के लिये भाजपा पर दवाब बनाया। लेकिन आडवानी इस वक्त मोदी की घोषणा के पक्ष में नहीं थे। उनका तर्क था कि नवम्बर 2013 में राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद यह घोषणा की जाये। अपने मोदी विरोध के चलते आडवानी गोवा में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल नहीं हुये। लेकिन उनके विरोध को दरकिनार करते हुये संघ के दवाब में भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष घोषित कर दिया। इससे नाराज आडवानी ने भाजपा में अपने सभी पदों से स्तीफा दे दिया था जिसे चंद दिनों बाद ही वापस भी ले लिया। हाल ही में नरेन्द्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी घोषित कर दिया। आडवानी इस बार भी इस पक्ष में नहीं थे कि यह घोषणा अभी की जाये। अपने विरोध के चलते इस बार भी आडवानी भाजपा की संसदीय बोर्ड की बैठक में नहीं गये लेकिन संघ के दवाब में भाजपा ने आडवानी के विरोध को एक बार फिर दरकिनार करते हुये मोदी की घोषणा कर डाली। अपनी नाराजगी के बाद भी आडवानी ने दो दिन बाद ही छत्तीसगढ़ केे एक शासकीय समारोह में अपने भाषण में मोदी की जमकर तारीफ कर डाली। आडवानी का रूठना और मानना भी कहीं ऐसा ही तो नहीं है जैसे अटल जी ने मोदी को राज धर्म निभाने की सलाह देकर चुप्पी साध ली थी। शायद इीलिये अब यह धारणा बन गयी है कि संध आडवानी की धर्म निरपेक्ष छवि बनाये रखने के लिये उनका दिखावटी विरोध कर रहा है।
ऐसे हालात में यह सवाल उठना स्वभाविक ही है कि क्या आडवानी जैसा एक अत्यंत अनुभवी और उम्रदराज नेता एक ही गलती बार बार दोहरा सकता है? क्या आडवानी के मोदी विरोध को दरकिनार करने का साहस भाजपा ने इसलिये किया कि वो यह जानती थी कि ये विरोध महज एक दिखावा है? मोदी को लेकर दो बार दर्ज कराये गये अपने विरोध के चलते आडवानी अल्पसंख्यकों में यह संदेश देने में तो सफल हो गये कि वे उनके हित चिंतक है। ऐसा करके उन्होंने उनके उदारवादी नेता की छवि में तो इजाफा कर ही लिया है। इन्हीं सारे तथ्यों को देखते हुये ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि आडवानी का मोदी विरोध संघ की एक सुनियोजित रणनीति का ही हिस्सा था। संघ की यह योजना बहुत हद तक सफल भी रही कि जिस तरह भाजपा में अटलबिहारी वाजपेयी की उक उदारवादी नेता की छवि थी वैसे स्वरूप में अब आडवानी आ गये है और कट्टरवादी हिन्दू नेता के रूप में आडवानी की जगह नरेन्द्र मोदी ने ले ली है। इस तरह संघ अटल आडवानी की जोड़ी को आडवानी मोदी की जोड़ी के रूप में स्थापित करने में सफल हो गया है। अब यह तो आगामी लोकसभा चुनावों के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा कि संघ का यह प्रयोग कितना सफल होता है। 
               लेखक:- आशुतोष वर्मा,16 शास्त्री वार्ड, बारापत्थर सिवनी 480661 मो. 9425174640 



 

23.9.13

Budwig Protocol


She has been referred to as a top European Cancer Research Scientist, Biochemist, Blood Specialist, German Pharmacologist, and Physicist. She is known and highly respected around the world as Germany's premier biochemist. Her name, is Dr. Johanna Budwig.
In the 1950's seven-time Nobel Prize nominee and biochemist, Dr. Johanna Budwig developed her "Oil-Protein" Diet to combat cancer. In following the work of Dr. Otto Warburg (himself a Nobel Prize winner) she studied how cancer cells are anaerobic- this means they cannot live in an oxygen rich environment. Instead, they rely on GLUCOSE (sugar) to survive (this is the reason that people with cancer should avoid sugar as much as absolutely possible -- because sugar FEEDS cancer). Even though Dr. Warburg understood this, he passed away before he was able to find a way to restore the anaerobic cancer cell to its original aerobic, healthy state. This is where Dr. Budwig came in.
Picking up where Dr. Warburg left off, Dr. Budwig discovered the reason why our healthy cells become anaerobic in the first place. According to her, it is quite simple: Basically, in order for our bodies' cells to process oxygen as fuel, they need certain enzymes to be present in the fat content of the foods we eat. However, because so much of the Standard American Diet (SAD diet) consists of chemically-treated, processed, sugar-laden, denatured foods, the necessary enzymes our bodies require for cellular respiration have been destroyed and in some cases even replaced by manufactured fats (i.e. trans fats) which are completely useless to the body. Over time, this sets up a whole host of problems from heart disease, to skin and lung problems, to brain and liver problems, to diabetes and immune deficiency syndromes, to cancer and more! Simply put, to remain HEALTHY, our cells NEED to be able to process oxygen, and the Budwig diet provides this! ...but HOW?

Budwig Protcol Part 2


She has been referred to as a top European Cancer Research Scientist, Biochemist, Blood Specialist, German Pharmacologist, and Physicist.  She is known and highly respected around the world as Germany's premier biochemist.  Her name, is Dr. Johanna Budwig.
In the 1950's seven-time Nobel Prize nominee and biochemist, Dr. Johanna Budwig developed her "Oil-Protein" Diet to combat cancer. In following the work of Dr. Otto Warburg (himself a Nobel Prize winner) she studied how cancer cells are anaerobic- this means they cannot live in an oxygen rich environment. Instead, they rely on GLUCOSE (sugar) to survive (this is the reason that people with cancer should avoid sugar as much as absolutely possible -- because sugar FEEDS cancer).  Even though Dr. Warburg understood this, he passed away before he was able to find a way to restore the anaerobic cancer cell to its original aerobic, healthy state. This is where Dr. Budwig came in.
Picking up where Dr. Warburg left off, Dr. Budwig discovered the reason why our healthy cells become anaerobic in the first place.  According to her, it is quite simple:  Basically, in order for our bodies' cells to process oxygen as fuel, they need certain enzymes to be present in the fat content of the foods we eat.  However, because so much of the Standard American Diet (SAD diet) consists of chemically-treated, processed, sugar-laden, denatured foods, the necessary enzymes our bodies require for cellular respiration have been destroyed and in some cases even replaced by manufactured fats (i.e. trans fats) which are completely useless to the body.  Over time, this sets up a whole host of problems from heart disease, to skin and lung problems, to brain and liver problems, to diabetes and immune deficiency syndromes, to cancer and more!  Simply put, to remain HEALTHY, our cells NEED to be able to process oxygen, and the Budwig diet provides this! ...but HOW?

22.9.13

सूत्र -जाकी रही भावना जैसी ( रामचरित मानस से )

सूत्र -जाकी रही भावना जैसी ( रामचरित मानस से )

सूत्र यानि वह पद्धति जिसको हर काल में लागू करने पर समान परिणाम प्राप्त होता
है उस पर काल ,परिस्थिति,स्थान का प्रभाव नहीं पड़ता है। तुलसी कृत मानस सफल
जीवन पद्धति के सूत्रों से भरी पड़ी है। उसी से एक सूत्र उठा रहे हैं "जाकी रही भावना
जैसी"

भावना यानि मन में उठने वाले विचार। हर विचार दो प्रकार का होता है  एक सकारात्मक
और दूसरा नकारात्मक। दोनों ही भाव परस्पर विरोधी परिणाम देने वाले हैं ,वस्तु
तठस्थ होती है परन्तु भावना अलग-अलग होती है। उस वस्तु के प्रति हमारे जैसे भाव
होते हैं उसी रूप में वह प्राप्त हो जाती है।

हमारा क्रिकेट खिलाड़ी युवराज एक गंभीर बिमारी से पीड़ित हो गया और बिमारी को
पराजित कर पूर्ण रूप से स्वस्थ भी हो गया। बीमार होने से स्वस्थ होने तक उस खिलाड़ी
के भाव उस बिमारी के प्रति क्या रहे होंगे ?क्या वह बिमारी से भयभीत होकर निराश
हो गया या बिमारी को समूल नष्ट करने के भाव से विजयी हो गया ,वह खिलाड़ी बिमारी
को हरा चूका था  …. यह चमत्कार हुआ कैसे ?उत्तर है उसकी विजयी होने की भावना से।

मनुष्य जब भी जीवन क्षेत्र में उतरता है तो उसे क्या धन सम्पति लेकर उतरना चाहिए ?
यदि आपको उत्तर हाँ में है तो इस लेख को आगे पढना बंद कर दीजिये क्योंकि यह
आपके लिए नहीं लिखा जा रहा है यह उनके लिए लिखा जा रहा है जो हाथ से खाली
और भावना से सम्पन्न हैं।

हम जब जीवन के क्षेत्र में उतरते हैं तो हमारे पास वस्तु को सही रूप में देखने और
समझने की क्षमता होनी चाहिए। वस्तु को देखने का भाव और नजरिया सकारात्मक
ही होना चाहिए। यदि हम अपने लक्ष्य के प्रति सकारात्मक और नकारात्मक दोनों
चिंतन एक साथ रखेंगे तो हम अपने लक्ष्य को कभी भी प्राप्त नहीं कर पायेंगे चाहे
दैव कितना ही अनुकूल क्यों ना हो। अगर हम अपने लक्ष्य को ठीक वैसा ही देख रहे
हैं जैसा हमने सोचा है तो विजय के हम निकट आ जाते हैं उसके बाद ठीक वैसा ही
होने लगता है जैसा होना चाहिए।

हमारे देश के एक मुख्य मंत्री श्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण लीजिये उनके ऊपर विरोधी
नेताओं ने एक दंगे को भड़काने का आरोप लगाया लेकिन उन्होंने उस आरोप को
सकारात्मक भाव से देखा और तुरंत चुनाव घोषित करवा दिए और उसमे विजयी
हुये ,अगर उन्होंने उस चुनौती को नकारात्मक भाव से लिया होता तो विजय रथ रुक
भी सकता था।

हमारे देश के प्रधान मंत्री ने कहा था कि मेरे पास जादू की कोई छड़ी नहीं है जिससे
तुरंत समस्याओं का हल आ जाए ,यह कथन नकारात्मक भाव से भरा था और
नतीजा यह है कि देश मुश्किल दौर से गुजर रहा है ,यहाँ मेरा आशय किसी की प्रसंशा
या आलोचना करना नहीं है मेरा तात्पर्य है वस्तु को देखने के भाव से जुड़ा है।

कुछ दिन पहले देश के युवा नेता ने कहा था कि "तीन चार रोटी खायेंगे -सौ दिन काम
करेंगे -दवाई लेंगे  …। "यह कथन नकारात्मक और संकुचित दृष्टिकोण रखता है
इसको सुनकर देशवासी उत्साह से लबरेज नहीं हुआ ,क्यों  ……।

एक कथन अमेरिका के टावर हमले के समय राष्ट्रपति ओबामा का आया -"जिसने
भी यह अपराध किया है वह क्षमा का पात्र नहीं है उसे दण्डित करके ही रहेंगे "यह वाक्य
अमेरिकन प्रजा में आशा का संचार कर गया और उस विकट घड़ी में ओबामा को
पुरे राष्ट्र का समर्थन मिला।

हम अपने लक्ष्य के प्रति कैसा नजरिया रखते हैं यही महत्वपूर्ण है। यदि हम दृढ
निष्ठा,दृढ संकल्प के साथ आगे बढ़ते हैं तो उस लक्ष्य को पूरा करने का उत्तरदायित्व
प्रकृति स्वत:उठा लेती है। हमे अपने लक्ष्य को पूरा करने वाले लोग साधन मिलते
जाते हैं ,अगर ऐसा नहीं होता है तो निश्चित मानिए लक्ष्य पवित्र नहीं है ,कल्याणकारी
नहीं है। 

हमें शुभ नजरिया रखना है ,आशावादी विचारों से मन को भरे रखना है ,विजय का
विश्वास चेहरे से छलकना चाहिए हमारा संकल्प अटूट और अटूट उत्साह मन में
रखना है उसके बाद खुद को परमात्मा का अंश मानकर विराट भाव से कर्तव्य पथ
पर बढ़ जाना चाहिए  …। परिणाम अनुकूल ही रहेगा इस पर कोई शंका करने की
आवश्यकता नहीं है।
पत्थर में भी विराट परमात्मा को देखने का नजरिया रखिये। समस्या को झुका दीजिये ,
निराशा के भाव को दूर फ़ेंक दीजिये क्योंकि आप उस ईश्वर के अंश है जो सर्वसमर्थ है।
ये सब पदार्थ ईश्वर ने अपनी सन्तान के लिए आपके लिए ही तो बनाये हैं ,बस क़दम
बढ़ा दीजिये  ………………।       

पगथिया: बड़ी मज़बूरी है

पगथिया: बड़ी मज़बूरी है:
 कैसे साधे इस पे निशाना, बड़ी मज़बूरी है
 मौन कुर्सी की टाँगे, इसने ही टिका रखी है
 सबूत हटाये इन्ही हाथों से, बड़ी ...

19.9.13

जननायक की जय हो

जननायक की जय हो

फूट गए जन-जन के किस्मत 
जब खलनायक ही अधिनायक 
क़ोम -क़ोम में लहू बहाकर 
कहलाते खुद को जननायक 

शाख -शाख पर उल्लू  बैठे 
साध रहे सब अपना मतलब 
जिस माता की कोख से जन्मे 
उसे उझाड़े क्रूर खल नालायक  

भारत माँ का भाग्य विधाता 
किसकी करनी किसको भरनी 
बस लाश गिरे, हो हिंसक बस्ती 
है कुटिल इरादा कुरसी मिलनी 

उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम
धुं -धुं कर हर दिशा जले 
मारो काटो अमन चैन को 
नफरत का नंगा नाच चले

चाहे पराजीत हो प्रजातंत्र
चाहे जनतंत्र की कुर्बानी हो 
कीमत कितनी भी लग जाए 
गूँजे अधिनायक की जय हो 

रो-रो कर जन-जन पुकारे- 
जय हो,जननायक की जय हो

  
   

18.9.13

क्या बिल्डर माफिया तय करायेगा केवलारी की भाजपा टिकिट?
1977 मे राजेन्द्र अग्रवाल,1985 और 2003 में वेदसिंह ठाकुर को स्थानीय प्रत्याशी के रूप में टिकिट दी गयी थी: 62 और 90 में बाहरी गैर कांग्रेसी ही जीते थे चुनावं
सिवनी। जिले की सर्वाधिक महत्वपूर्ण केवलारी विस क्षेत्र से कांग्रेस और भाजपा से कौन चुनाव लड़ेगा? इसे लेकर उत्सुकता बनी हुयी है। इंका विधायक हरवंश सिंह की मृत्यु के बाद भाजपा में टिकिट के लिये घमासान मचा है। कुछ भाजपायी स्थानीय और बाहरी उम्मीदवार की लड़ाई लड़ रहें तो कुछ दबी जुबान से यह कहने से नहीं चूक रहें हैं कि इस सीट का फैसला प्रदेश के बिल्डर माफिया करायेगें।
इस क्षेत्र से लगातार चार बासर चुनाव जीतने वाले इंका नेता हरवंश सिंह की मृत्यु के बाद ऐसा माना जा रहा है कि उनके पुत्र रजनीश सिंह ही कांग्रेस के उम्मीदवार होंगें। वैसे डॉ. वसंत तिवारी,कु. शक्ति सिंह  और जकी अनवर जैसे नाम भी चर्चित है लेकिन अधिकांश कांग्रेसी यह मान कर चल रहें हैं कि रजनीश सिंह ही प्रत्याशी होंगें।
टिकिट को लेकर इस बार भाजपा में ज्यादा घमासान मचा हुआ है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछला चुनाव भाजपा के पूर्व मंत्री डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन ने लड़ा था और स्व. हरवंश सिंह बमुश्किल लगभग 59 सौ वोटों से ही जीत पाये थे। इस बार हरवंश सिंह के ना रहने से बहुत से समीकरणों के बदलने के आसार भी दिखायी दे रहें है।
केवलारी क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति शुरू से ऐसी रही है कि पूरे विस क्षेत्र में प्रभाव बना सकने वाले स्थानीय नेता बहुत कम ही रहते है। इसीलिये ज्यादातर चुनाव जिला स्तरीय बाहरी नेता ही इस क्षेत्र से जीतते आये हैं चाहे वे कांग्रेस के हों या गैर कांग्रेस दल के हों। सन 1957 में कांग्रेस के एम.पी.जठार, 62 में राम राज्य परिषद के दादू योगेन्द्रनाथ सिंह,67 से 85 तक कांग्रेस की कु. विमला वर्मा,93 से 2008 तक कांग्रेस के हरवंश सिंह चुनाव जीते थे जो कि सभी केवलारी क्षेत्र के बाहर के निवासी थी। 2008 के चुनाव में नये परिसीमन के बाद छपारा क्षेत्र जुड़ जाने के कारण हरवंश सिंह जरूर स्थानीय उम्मीदवार हो गये थे। 
सन 1977 में जनता पार्टी ने पलारी निवासी राजेन्द्र अग्रवाल को और 1985 तथा 2003 में भाजपा ने वेदसिंह ठाकुर के रूप में स्थानीय उम्मीदवार को टिकिट जरूर दी थी लेकिन वे जीत नहीं पाये थे। जबकि 1977 में जनता पार्टी की तथा 2003 में उमा भारती की लहर चल रही थी।
अब एक बार फिर भाजपा में स्थानीय उम्मीदवार को टिकिट देने की भाजपा में मांग उठ रही है। कई नेताओं का ऐसा मानना है कि हरवंश सिंह के निधन के कारण अब कोई भी चुनाव जीत सकता है।
वहीं दूसरी ओर भाजपा में यह चर्चा भी जोरों से चल रही है कि स्थानीय प्रत्याशी के नाम पर बीसावाड़ी निवासी और लंबे समय से भोपाल में रह रहे डॉ. सुनील राय को टिकिट दिलाने की योजना बनायी गयी। प्रशासनिक अमले द्वारा उन्हें दिये जाने वाले महत्व ने इन हवाओं को और पुख्ता करने का काम किया है। भाजपायी हल्कों में चल रही चर्चाओं के अनुसार डॉ. राय दिलीप बिल्डिकॉन के मालिक दिलीप सूर्यवंशी के रिश्तेदार है। बताया तो यह भी जा रहा है कि डॉ. राय और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी बहुत पुरानी एवं घनिष्ठ सहेलियां हैं। राजनैतिक क्षेत्रों में यह दावा करने वालों की भी कोई कमी नहीं है कि शिवराज केवलारी में कमजोर प्रत्याशी देकर स्व. हरवंश सिंह का राजनैतिक कर्ज उतारने के लिये ऐसा कर भी सकते हैं। हालाकि यह भी बताया जा रहा है कि रायशुमारी के दौरान डॉ. राय का नाम किसी भी मंड़ल से तीसरे नंबंर पर भी नहीं गया है। प्रदेश में तीसरी पारी खेलने को बेताब भाजपा इस क्षेत्र में किसे चुनाव लड़ायेगी? इसे लेकर तरह तरह के कयास लगाये जा रहें हैं।
सा. दर्पण झूठ ना बोले सिवनी
17 सितम्बर 2013 

प्रदेश में अरविंद मैनन के पर कतरे जाने से जिले की भाजपा राजनीति में भी चुनाव के समय भारी बदलाव आ सकते है
 सिवनी विस क्षेत्र में भाजपा की घमासान थमने का नाम नहींे ले रही है। नीता नरेश हटाओ भाजपा बचाओ के नारे जो सिवनी से लगना चालू हुये थे उनकी गूंज भोपाल तक पहुच गयी है। पर्दे के पीछे चल रही चर्चाओं के अनुसार ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा ने इस बार अरविंद मैनन के पर कतर दिये हैं। यदि यह सही है तो जिले की भाजपा की राजनीति में इसका असर होना स्वभाविक है। कांग्रेस में भी टिकिट आवंटन की प्रक्रिया तेज हो गयी है। पिछले दिनों दिल्ली में प्रदेश चुनाव समिति की एक बैठक भी संपन्न हो गयी है। वर्तमान विधायकों के अलाव पिछला चुनाव एक हजार से कम वोटों से हारने वाले नेताओं के साथ ही स्व. हरवंश सिंह के पुत्र रजनीश सिंह का नाम भी आगे बढ़ा दिया गया है। भाजपा में सिवनी की टिकिट को लेकर मचे घमासानकी चर्चाओं के बीच जिले के पूर्व सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का सिवनी आगमन हुआ। उन्होंने श्रीवनी में कार्यकर्त्ताओं की एक बैठक भी ली और फिर पत्रकारों से भी रूबरू हुये। भाजपा सूत्रों का यह भी दावा है कि सिवनी की टिकिट तय हाने में अब प्रहलाद पटेल की भूमिका महत्व पूर्ण हो सकती है। छपारा में हुआ तेंदूपत्ता वितरण कार्यक्रम इन दिनों विवादों में छाया हुआ है। इस कार्यक्रम में जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री ठा. रजनीश सिंह मुख्य अतिथि थे। इसे लेकर भाजपा नेताओं में उबाल आया हुआ है।
भाजपा के असंतोष के पीछे कौन?-सिवनी विस क्षेत्र में भाजपा की घमासान थमने का नाम नहींे ले रही है। नीता नरेश हटाओ भाजपा बचाओ के नारे जो सिवनी से लगना चालू हुये थे उनकी गूंज भोपाल तक पहुच गयी है। बीते दिनों भोपाल में प्रदेश भाजपा नेताओं के सामने भी कार्यकर्त्ताओं ने अपनी नाराजगी व्यक्त की और मांग उनके सामने रखी। पर्दे के पीछे चल रही चर्चाओं के अनुसार ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा ने इस बार अरविंद मैनन के पर कतर दिये हैं। बताया जा रहा है कि जबलपुर के एक सेक्स स्केंडल के कारण यह निर्णय लिया गया है। बताया जा रहा है कि प्रदेश के पूर्व संगठन मंत्री कप्तान सिंह सौलंकी और भगवत शरण माथुर को आगे लाया गया हैै। यदि यह सही है तो जिले की भाजपा की राजनीति में इसका असर होना स्वभाविक है। जिला भाजपा के कई नेताओं से मैनन के प्रगाण संबंध थे। कई नेताओं को मैनन ने ही आश्वस्त किया था कि उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ना है। ऐसे में अब नये समीकरणों में क्या होगा? यह कहना अभी संभव नहीं रह गया है। भाजपा में जो हालात देखे जा रहें और जिस तरीकेे से कार्यकर्त्ताओं का असंतोष उभर कर सामने आ रहा है उससे भाजपा का पार्टी विथ डिफरेंस का दावा तार तार हो गया है। सिवनी विधानसभा में ब्राम्हणों और बनियों के विरोध में जो कार्यकर्त्ता लामबंद हो रहे है उन्हें किसकी शह है? यह तो उजागर नहीं हुआ है लेकिन जिस तरीके से विधायक नीता पटेरिया और पूर्व विधायक तथा जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर के विरोध में सिवनी से लेकर भोपाल तक नारेबाजी हुयी है उसे महज चंद कार्यकर्त्ताओं की ही आवाज ना मान कर इसके पीछे किसी बड़े नेता का हाथ होना माना जा रहा है।तीसरी पारी खेलने को बेताब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसे कैसे संभालेंगें? इसे लेकर तरह तरह के कयास लगाये जा रहें हैं।वैसे तो भाजपा नेताओं का यह भी दावा है कि जिन भाजपा विधायकों की टिकिट पर तलवार लटक रही है उनमें नीता पटेरिया भी शामिल हैं। लेकिन उनका ब्राम्हण होने के साथ साथ महिला होना तथा केन्द्रीय भाजपा नेताओं के साथ उनके संपंर्कों को भी नकारा नहीं जा सकता। इसलिये अभी यह दावा करना कि कोई नया प्रत्याशी ही सामने आयेगा?यह कहना अभी संभव नहीं दिख रहा है।
कांग्रेस की प्रदेश चुनाव समिति ने चालू किया काम -कांग्रेस में भी टिकिट आवंटन की प्रक्रिया तेज हो गयी है। पिछले दिनों दिल्ली में प्रदेश चुनाव समिति की एक बैठक भी संपन्न हो गयी है। इस बैठक में समिति ने प्रदेश के कांग्रेस विधायकों सहित पिछला चुनाव एक हजार से कम वोटों से हारने वाले नेताओं का नाम भी आगे बढ़ा दिया है। इसमें जिले की केवलारी विधानसभा क्षेत्र से स्व. हरवंश सिंह के पुत्र ठा. रजनीश सिंह का नाम भी आगे बढ़ा दिया है। अब इन नामों पर प्रदेश की स्क्रीनिंग कमेटी और फिर केन्द्रीय संसदीय बोर्ड में विचार होगा जिसके बाद ही टिकिटों का अंतिम फैसला होगा। इसके अलावा अब प्रदेश की चुनाव समिति की अगली बैठक 17 सितम्बर को दिल्ली में होना है। जिसमें बाकी बची टिकटों के बारे में चर्चा होगी। इसमें या अगली बैठक में जिले की शेष तीन सीटों के बारे में विचार होना है। इनमें लखनादौन से हिमाचल की राज्यपाल उर्मिला सिंह के पुत्र योगेन्द्र सिंह, पूर्व विधायक बेनी परते और जनपद अध्यक्ष राजेश्वरी उइके के बीच घमासान है। जिले की दूसरी आदिवासी सीट बरघाट में भी रोचक स्थिति बनी हुयी है जहां एक प्रत्याशी अर्जुनसिंह काकोड़िया के विरुद्ध बाकी 18 टिकटार्थी लामबंद हो गये है। यहां आदिवासियों में गौड़ और परघान का विवाद मचा हुआ है। जिले में सबसे अधिक घमासान जिला मुख्यालय की सिवनी सीट पर मचा हुआ है। इस बार यह मांग भी जबरदस्त रूप में उठी हुयी है कि जिले में एक सीट अल्प संख्यक वर्ग को दी जाये। यदि केवलारी से रजनीश सिंह का नाम फायनल हो जाता है तो यह दवाब सिवनी सीट पर ही बन जायेगा। पांच बार से हारने वाले इस क्षेत्र से 38 लोगों ने टिकिट मांगी है। इनमें से किसके नाम पर टिकिट आयेगी? यह कहना तो अभी संभव नहीं है। 
प्रहलाद पटेल का दौरा भाजपाइयों में हुआ चर्चित  -भाजपा में सिवनी की टिकिट को लेकर मचे घमासानकी चर्चाओं के बीच जिले के पूर्व सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का सिवनी आगमन हुआ। उन्होंने श्रीवनी में कार्यकर्त्ताओं की एक बैठक भी ली और फिर पत्रकारों से भी रूबरू हुये। सियासी हल्कों में जारी चर्चाओं के अनुसार वे भाजपा के असंतोष को दूर करने के लिये आये थे। भाजपा के सूत्रों का दावा है कि इस विवाद में चूंकि जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर खुद एक पार्टी बने हुये हैं इसीलिये प्रदेश नेतृत्व ने प्रहलाद पटेल को सुलझाने की जवाबदारी दी है। भाजपा सूत्रों का यह भी दावा है कि सिवनी की टिकिट तय हाने में अब प्रहलाद पटेल की भूमिका महत्व पूर्ण हो सकती है। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि प्रहलाद पटेल के सांसद रहते ही भाजपा ने पहली बार सिवनी सीट 1990 में कांग्रेस के स्व. हरवंश सिंह को हरा कर स्व. पं. महेश शुक्ला ने जीती थी और यह सिलसिला आज तक जारी है। 
बोनस वितरण कार्यक्रम के कांग्रेसीकरण पर बौखलाये भाजपायी-छपारा में हुआ तेंदूपत्ता वितरण कार्यक्रम इन दिनों विवादों में छाया हुआ है। इस कार्यक्रम में जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री ठा. रजनीश सिंह मुख्य अतिथि थे। इसे लेकर भाजपा नेताओं में उबाल आया हुआ है। सबसे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता नरेन्द्र टांक ने इस मामले में विज्ञप्ति जारी कर विभागीय अधिकारियों में दोषारोपण किया। फिर भाजपा के छपारा मंड़ल के महामंत्री शाहिद पटेल ने भी इसी आशय की विज्ञप्ति जारी कर विरोध जताया। स्थानीय भाजपा नेताओं के इस विरोध ने कई सवाल खड़े कर दिये है। प्रदेश में सरकार भाजपा की है। मुख्यमंत्री से लेकर जिले के तीन विधायक भाजपा के है। उसके बाद भी यदि अधिकारी किसी शासकीय कार्यक्रम में किसी कांग्रेस नेता को मुख्य अतिथि बनाता है तो इसमें गलती किसकी है? यदि अधिकारियों की गलती है तो फिर विज्ञप्ति जारी करने के बजाय उसके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं करते? या फिर स्थानीय भाजपा नेताओं इस बात से भयभीत है कि उनके चाहने के बाद भी वे अपनी सरकार से कार्यवाही नहीं करा सकते है इसलिये सिर्फ विज्ञप्ति जारी कर अपना असंतोष व्यक्त कर रहें है। बीते कई सालों से चल रहा भाजपा का नूरा कुश्ती का दौर अभी भी खत्म होगा या नहीं? इसे लेकर सियासी हल्कों में तरह तरह की चर्चायें होती रहती है। “मुसाफिर”
साप्ताहिक दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी
17 सितम्बर 2013 से साभार

इसीलिये गर्व है- मैं हिन्दू हूँ ,हिंदुस्तानी हूँ।

इसीलिये गर्व है- मैं हिन्दू हूँ ,हिंदुस्तानी हूँ।

मेरी माँ के आँचल में पनाह पाता हर धर्म
मेरी माँ कि छाती से पोषित सब संस्कृति
मेरी माँ की गोदी में प्रफुल्लित है हर कोम
इसीलिये गर्व है -मैं हिन्दू हूँ ,हिंदुस्तानी हूँ।

मेरे वेद की ऋचाएँ मुझे सम दृष्टा बनाती है
मेरे उपनिषदो से धारा स्नेह की बरसती है
मेरे पुराणों की गाथा सत्य की लौ जलाती है
इसीलिये गर्व है- मैं हिन्दू हूँ ,हिंदुस्तानी हूँ।

मेरे राम सिखाते हैं जीना आदर्श जिन्दगी
मेरे श्याम गाते हैं निष्काम कर्म है बन्दगी 
मेरे शंकर पीते रहे गरल बचाने को सृष्टि
इसीलिये गर्व है- मैं हिन्दू हूँ ,हिंदुस्तानी हूँ।

मेरे दिल में है रसखान मेरे मन में कबीरा है
मेरे दर्शन में महावीर भुजा में गुरु गोविन्दा है
मेरी धडकन में बसी टेरेसा मेरे कर्म में बुद्धा है 
इसीलिये गर्व है- मैं हिन्दू हूँ ,हिंदुस्तानी हूँ।


    

16.9.13

अडवानी ने पहले थूका फिर चाटा

अडवानी ने पहले थूका फिर चाटा

  
अडवानी ने पहले  थूका फिर चाटा 

आखिर किस बूते पर विरोध किया था ?

पूरा ब्लॉग पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें :-