3-3-2014,कुबतपुर (भिखनपुरा) (देसरी)। ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,वर्ष 1995
में विधानसभा चुनाव का प्रचार पूरे शबाब पर था। नीतीश कुमार जनता दल से अलग
हो चुके थे और समता पार्टी का गठन कर चुके थे। नीतीश हरनौत से विधानसभा
सदस्यता के लिए उम्मीदवार भी थे। तब उनका भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन
नहीं हुआ था। तभी नीतीश ने लालू को चुनौती दी कि वे एक बार भी वोट मांगने
हरनौत नहीं जाएंगे और फिर भी चुनाव जीत जाएंगे। बाद में उन्होंने ऐसा किया
भी और चुनाव भी जीते। हालांकि लालू ने उनकी चुनौती स्वीकार तो कर ली लेकिन
बाद में बात से मुकरते हुए कई-कई बार राघोपुर का दौरा किया।
मित्रों,एक बार फिर से उन्हीं नीतीश कुमार ने उसी तरह का दावा किया है। मुख्यमंत्री जी का कहना है कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले अगर बिहार के प्रत्येक गांव में बिजली नहीं पहुँची तो वे विधानसभा चुनावों में जनता से वोट ही नहीं मांगेंगे। जाहिर है इस बार नीतीश कुमार जी के समक्ष चुनौती 1995 के मुकाबले काफी कठिन है। बिहार में अभी भी हजारों गांव ऐसे हैं जो बिजली की रोशनी से वंचित हैं और विधानसभा चुनावों की घोषणा होने में डेढ़ साल से भी कम समय बचा है। चुनौती इसलिए भी ज्यादा कड़ी है क्योंकि बिहार की अफसरशाही नहीं चाहती कि बिहार के प्रत्येक गांव में बिजली पहुँचे। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के अधिकारी नहीं चाहते कि बिहार के प्रत्येक गांव में रहनेवालों तक विकास की रोशनी पहुँचे।
मित्रों,जैसा कि आप जानते हैं कि मैंने 17 फरवरी,2014 को एक समाचार 'एक गांव सुशासन ने जिसकी रोशनी छीन ली' लिखा था जिसमें मैंने एक ऐसे गांव कुबतपुर (भिखनपुरा) के दर्द को शब्द प्रदान किया था जिसकी बिजली सुशासन बाबू के शासन में ही छिन गई लगभग 700 की आबादी वाले इस गांव ने वर्ष 2006 से बिजली की रोशनी नहीं देखी। पिछले 8 साल से दिन ढलते ही पूरा गांव अंधेरे के महासागर में डूब जाता है। मेरे लिखने और समाचार को मुख्यमंत्री, ऊर्जा मंत्री और बिजली विभाग के आला अधिकारियों को ई-मेल करने के कुछ दिन बाद विभाग अधिकारियों की एक टीम गांव पहुँची और पूछताछ की। पता चला कि वे लोग वहाँ मुझे खोज रहे थे।
मित्रों,मैं एक पत्रकार हूँ क्या यह संभव है कि मैं हर जगह मौजूद रहूँ? वैसे अगर कोई चाहे तो मुझसे मेरे नंबर 7870256008 पर जब चाहे बात कर सकता है। गांववालों को लगा कि अब उनकी मुश्किलों के हल होने के दिन निकट आ गए हैं लेकिन फिर सबकुछ पूर्ववत हो गया। न तो गांव में ठेकेदार आया और न ही जला हुआ ट्रांसफॉर्मर ही लगा। कदाचित् बिजली बोर्ड वाले भी चाहते हैं कि गांववाले ठेकेदार की रिश्वत की मांग को मान लें या फिर वे चाहते हैं कि अंधेरा कायम रहे। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर इस गांव सहित बिजली से वंचित हजारों गांवों में विधानसभा चुनावों की घोषणा तक बिजली नहीं आई तो फिर नीतीश कुमार चुनावों में वोट किस मुँह से मांगेंगे? 1995 में तो उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा की पूरे मनोयोग से रक्षा की थी तो क्या वे इस बार अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ देंगे? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,एक बार फिर से उन्हीं नीतीश कुमार ने उसी तरह का दावा किया है। मुख्यमंत्री जी का कहना है कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले अगर बिहार के प्रत्येक गांव में बिजली नहीं पहुँची तो वे विधानसभा चुनावों में जनता से वोट ही नहीं मांगेंगे। जाहिर है इस बार नीतीश कुमार जी के समक्ष चुनौती 1995 के मुकाबले काफी कठिन है। बिहार में अभी भी हजारों गांव ऐसे हैं जो बिजली की रोशनी से वंचित हैं और विधानसभा चुनावों की घोषणा होने में डेढ़ साल से भी कम समय बचा है। चुनौती इसलिए भी ज्यादा कड़ी है क्योंकि बिहार की अफसरशाही नहीं चाहती कि बिहार के प्रत्येक गांव में बिजली पहुँचे। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के अधिकारी नहीं चाहते कि बिहार के प्रत्येक गांव में रहनेवालों तक विकास की रोशनी पहुँचे।
मित्रों,जैसा कि आप जानते हैं कि मैंने 17 फरवरी,2014 को एक समाचार 'एक गांव सुशासन ने जिसकी रोशनी छीन ली' लिखा था जिसमें मैंने एक ऐसे गांव कुबतपुर (भिखनपुरा) के दर्द को शब्द प्रदान किया था जिसकी बिजली सुशासन बाबू के शासन में ही छिन गई लगभग 700 की आबादी वाले इस गांव ने वर्ष 2006 से बिजली की रोशनी नहीं देखी। पिछले 8 साल से दिन ढलते ही पूरा गांव अंधेरे के महासागर में डूब जाता है। मेरे लिखने और समाचार को मुख्यमंत्री, ऊर्जा मंत्री और बिजली विभाग के आला अधिकारियों को ई-मेल करने के कुछ दिन बाद विभाग अधिकारियों की एक टीम गांव पहुँची और पूछताछ की। पता चला कि वे लोग वहाँ मुझे खोज रहे थे।
मित्रों,मैं एक पत्रकार हूँ क्या यह संभव है कि मैं हर जगह मौजूद रहूँ? वैसे अगर कोई चाहे तो मुझसे मेरे नंबर 7870256008 पर जब चाहे बात कर सकता है। गांववालों को लगा कि अब उनकी मुश्किलों के हल होने के दिन निकट आ गए हैं लेकिन फिर सबकुछ पूर्ववत हो गया। न तो गांव में ठेकेदार आया और न ही जला हुआ ट्रांसफॉर्मर ही लगा। कदाचित् बिजली बोर्ड वाले भी चाहते हैं कि गांववाले ठेकेदार की रिश्वत की मांग को मान लें या फिर वे चाहते हैं कि अंधेरा कायम रहे। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर इस गांव सहित बिजली से वंचित हजारों गांवों में विधानसभा चुनावों की घोषणा तक बिजली नहीं आई तो फिर नीतीश कुमार चुनावों में वोट किस मुँह से मांगेंगे? 1995 में तो उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा की पूरे मनोयोग से रक्षा की थी तो क्या वे इस बार अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ देंगे? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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