31.7.14

.... स्वार्थी मित्र है या हितेषी ?

.... स्वार्थी मित्र है या हितेषी ?

आप जब कमजोर होते हैं तब स्वार्थी मित्र आपसे दूरियाँ बढ़ा लेते हैं और आपको
भूलने का या फिर अनुचित दबाब बढ़ाने का प्रयास करते हैं। अपने को ताकतवर
समझने वाले लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए या आपको नीचा दिखाने के लिए
आपके दुश्मन तथा विरोधी का सहयोग करते रहते हैं लेकिन जब आप ताकतवर
बन उभरते हैं तो स्वार्थी मित्र आपकी वाहवाही में लग जाते हैं,आपके दिए स्लोगन
या आपके द्वारा कही गई सामान्य बात पर भी तालियाँ पीटने लगते हैं। अपनी सीमा
से स्वार्थी लोग आपको इसलिए दूर रखते हैं ताकि उनका स्वार्थ सिद्ध होता रहे।
क्या ऐसे लोग कभी मित्र भी हो सकते हैं ?

ऐसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया जाये ? हमारे नीति शास्त्र कभी भी ऐसे
तुच्छ लोगों से मित्रता करने की सलाह नहीं देते हैं और ना ही उन पर विश्वास
जताने की सलाह देते हैं जिस तरह शठ के लिए शठ नीति है उसी तरह स्वार्थी लोगों
से खुद का स्वार्थ पूरा करके उन्हेँ बरगलाये रखना अच्छा है। स्वार्थी लोग खुद को
अच्छी तरह से पहचानते हैं वे स्वार्थ पूरा करने के लिए जो मिठ्ठी बात करते हैं
या सहयोग करने का वादा करते हैं वास्तव में उसका मूल्य कौड़ी का होता है। यदि
हम उन चिकनी बातों पर विश्वास करते हैं तो हम ही फिसलते हैं और चोट खाते हैं.

विश्व के डरावने स्वार्थी मित्र जब आपको निमंत्रण देते हैं और आपके पैरों तले लाल
कालीन बिछाते हैं इसका मतलब यह नहीं मानना चाहिए कि ये आपकी सफलता की
कद्र कर रहे हैं। ये लोग अपना स्वार्थ और आर्थिक हित देखने आते हैं और हमें भोन्दु
समझ अपना काम निकालने की फिराक में रहते हैं। जो लोग स्वार्थी मित्र से बढ़िया
सम्बन्ध बनाने में ऊर्जा नष्ट करते हैं वास्तव में अपने सच्चे मित्रों की उस समय
अवहेलना करते हैं क्योंकि हम तब उन्हें सम्मान देने में लगे रहते हैं जिसकी पात्रता
नहीं है और उत्साह अतिरेक में सच्चे मित्रों को खुद से दूर कर लेते हैं।

"सबका साथ और सबका विकास "तो भारतीय दर्शन का  मूलमंत्र रहा है हमारे ग्रन्थ
वसुधैव कुटुम्बकम का मन्त्र हजारों साल से दे रहे हैं मगर स्वार्थी लोग उसकी कद्र
आज तक नहीं कर पाये हैं परन्तु अपना हित साधने के लिए अभी वो इस मन्त्र की
प्रशंसा करते नहीं थक रहे हैं ?क्या हम वास्तविकता को समझ रहे हैं ? हमारे सच्चे
मित्र छोटे हैं तो भी हमारे लिए उत्तम है क्योंकि इतिहास और पुराण गवाह है श्री राम
की विजय में सहयोग करने वाले निषाद,भील,वानर ,काक जैसे सहयोगियों के समर्पित
भाव का।

कोयला जलता हुआ होता है तो भी उसका सम्पर्क हाथ जला सकता है और बुझा हुआ
है तो हाथ काले कर देता है ,स्वार्थी त्याज है। स्वार्थी मित्र को दूर करना है तो मनुष्य को
शांति पूर्वक अपना बहुत बड़ा स्वार्थ पूरा करने की बात रख देनी चाहिए वह उलटे पाँव
खिसक जाता है।    

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