29.1.15

किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल,एक आलोचनात्मक विश्लेषण

29 जनवरी,2015,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अब दिल्ली के मतदान में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। दिल्ली में ऐसा पहली बार हुआ है कि यहाँ की सभी तीनों प्रमुख पार्टियों ने अपने-अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि दिल्ली पिछले 800 सालों से भारत की राजधानी है,भारत का दिल बनी हुई है ऐसे में दिल्ली पर कब्जे का मतलब सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं हो सकता।
मित्रों,लगभग सारे विश्लेषक यह मानकर चल रहे हैं कि इस बार दिल्ली में मुख्य मुकाबला भाजपा और आप पार्टी के बीच है। यह कहीं-न-कहीं आश्चर्यजनक है क्योंकि जो पार्टी दिल्ली को अपने हाल पर छोड़कर बनारस भाग गई थी वही पार्टी कैसे टक्कर में हो सकती है! फिर भी जो है सो है। ऐसा तो हमारे साथ अक्सर ही होता है कि हम जो चाहते हैं वैसा होता नहीं है। हम चौथे स्तंभ हैं और हम तो इसके साथ-साथ कि क्या हो रहा है बस यही बता सकते हैं कि क्या होना चाहिए। बस यही तो हमारे वश में है।
मित्रों,पिछले कई दिनों से जबसे किरण बेदी जी को भाजपा ने अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है मीडिया किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल तथा भाजपा और आप पार्टी की तुलना करने में जुटी हुई है। मैं समझता हूँ कि दोनों दो तरह के मिजाज वाले लोग हैं इसलिए इन दोनों की तुलना हो ही नहीं सकती फिर भी जबकि दोनों आमने-सामने हैं तो तुलना तो करनी ही पड़ेगी।
मित्रों,पहले अरविंद केजरीवाल की कथनी,करनी और शख्सियत पर विचार करते हैं। अरविंद को भी किरण बेदी की ही तरह रमन मैग्सेसे पुरस्कार मिल चुका है। अरविंद विवाद पुरूष हैं क्योंकि उनको जानबूझकर विवादों में रहने में मजा आता है इसलिए वे लगातार विवादित बयान देते रहते हैं,अंट-शंट बकते रहते हैं। अरविंद आरोप लगाने में मास्टर हैं लेकिन आज तक अपने किसी भी आरोप को साबित नहीं कर पाए हैं। अरविंद में एक और कमी यह है कि जब उनके ऊपर आरोप लगता है तो वे चुप्पी साध जाते हैं,न तो खंडन करते हैं और न ही मंडन। झूठ बोलने में उनको मास्टरी है। किसी के बारे में भी कुछ भी बोल दिया और जब प्रमाण मांगा गया तो कह दिया कि हमने तो आरोप लगा दिए हैं अब ये सही हैं या गलत जनता समझेगी। अरविंद चंदा किंग हैं और उनको भारतमाता के कट्टर दुश्मनों से भी चंदा लेने में कोई आपत्ति नहीं है। अरविंद कभी भी अपने किसी भी पुराने कथन पर कायम नहीं रह पाए हैं। बोलते हैं कि हम तो आम आदमी हैं जी हमें वीवीआईपी ट्रीटमेंट नहीं चाहिए लेकिन साथ ही वीवीआईपी पास की भी ईच्छा रखते हैं। अरविंद सर्वेवीर हैं। उनके पास सर्वक्षकों की एक बेहतरीन टीम है जो पहले से ही सर्वेक्षण के निष्कर्ष निर्धारित कर लेते हैं और पीछे सर्वेक्षण करते हैं। जैसे-हमने पता लगाया है जी कि हमारे 49 दिनों के शासन में भ्रष्टाचार काफी कम हो गया था,हमने सर्वे करवाया है जी कि हम 55 सीटों पर चुनाव जीतने जा रहे हैं,हमने यह सर्वे करवाया है जी,वह सर्वे करवाया है जी। अरविंद जी धरातल पर चाहे काम करें या न करें सर्वे बहुत करवाते हैं। अरविंद जी ने मीडिया में भी अच्छे दोस्त बना रखे हैं जो उनके आगे-पीछे भगत सिंह की तस्वीरें लगाकर लगातार उनको क्रांतिकारी साबित करने में जुटी रहती है। उनके क्रांतिकारी मीडिया-मित्र भी लगातार सर्वे करवाते हैं और गजब के सर्वे करवाते हैं। अभी कुछ ही दिन पहले एबीपी न्यूज कह रहा था कि दिल्ली में सरकार तो भाजपा की बनेगी लेकिन दिल्ली के लोग मुख्यमंत्री के रूप में तो अरविंद को ही देखना चाहते हैं। यानि सरकार तो भाजपा की बनेगी लेकिन मुख्यमंत्री तो अरविंद केजरीवाल ही होंगे। कुल मिलाकर अरविंद केजरीवाल मीडियाप्रेमी हैं,ब्लोअर की हवा हैं,परले दर्जे के हवाबाज हैं। आजतक उन्होंने सिर्फ बोला ही है किया कुछ भी नहीं है और अभी भी वे ऐसा ही करते दिख रहे हैं। मुख्यमंत्री बनकर वे बहुतकुछ कर सकते थे लेकिन उन्होंने खुद कोई काम नहीं किया सिर्फ केंद्र सरकार या विपक्ष के खिलाफ बयान देते रहे या फिर केंद्र और संसद-संविधान के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करते रहे। उनकी पार्टी में एक-से-एक कश्मीर के स्वतंत्रता-प्रेमी और राष्ट्रविरोधी तत्त्व भरे पड़े हैं।
मित्रों,अब आते है किरण बेदी जी पर। किरण बेदी ने जब जो कहा है वही किया है। किरण जी ने कभी किसी के ऊपर भी झूठे आरोप नहीं लगाए हैं न ही किरण जी अपनी झूठी प्रशंसा ही पसंद करती हैं। तभी तो महान क्रांतिकारी पत्रकार रवीश कुमार को उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गाड़ी नहीं उठवाई थी। किरण जी कर्मठ हैं,कर्त्तव्यनिष्ठ हैं,अनुशासनप्रिय हैं और देशभक्त हैं। किरण जी के पास एक पूरा खाका है,पूरी योजना है कि दिल्ली का मुख्यमंत्री बनकर वे कैसे दिल्ली के लिए काम करेंगी और दिल्ली का विकास करेंगी जो कि केजरीवाल के पास नहीं है। किरण जी ने अपने 40 साल के प्रशासनिक जीवन के द्वारा पहले ही यह साबित कर दिया है कि उनके पास अच्छा शासन व प्रशासन देने की भरपुर योग्यता है। किरण जी ने नौकरी के दौरान कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि किरण जी उस पुलिस का हिस्सा थीं जिसको हमारे देश में सर्वाधिक भ्रष्ट विभाग का खिताब अता किया जाता है और फिर भी वे निष्कलंक हैं। फिर वे जिस पार्टी का हिस्सा हैं वह घोर राष्ट्रवादी पार्टी है,राष्ट्रभक्तों की पार्टी है। हाँ,मैंने पिछले तीन-चार दिनों में गौर किया है कि किरण जी में कुछ कमियाँ भी हैं। किरण जी पत्रकारों को देखकर घबरा जाती हैं और ठीक से जवाब नहीं दे पातीं जबकि उनको ऐसा नहीं करना चाहिए। किरण जी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रेरणा लेनी चाहिए जिन्होंने लोकसभा चुनावों के दौरान अपने घोर विचारधारात्मक शत्रु चैनल एबीपी पर धमाकेदार साक्षात्कार देकर तहलका मचा दिया था। जहाँ तक दो-2 वोटर आईकार्ड होने का सवाल है तो मेरे पास भी दो-दो हैं जिनमें से एक का अब मैं कहीं भी इस्तेमाल नहीं करता। मैं भी चाहता हूँ कि एक को रद्द करवा दूँ लेकिन लालफीताशाही और दफ्तरों की बेवजह की दौड़ लगाने से भागता हूँ। अगर ऐसा करना अपराध है तो मैं भी अपराधी हूँ लेकिन क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि बीएलओ जाँच करके खुद ही एक को रद्द कर दे। फिर दिल्ली में तो कम-से-कम 22% वोटर आई कार्ड फर्जी हैं,एक ही फोटो पर 15-पन्द्रह आई कार्ड बने हुए हैं तो क्या इसमें भी उस तस्वीर वाले या वोटर की ही गलती है। मेरी 70 वर्षीय माँ की उम्र वोटर आईकार्ड में 98 साल दर्ज कर दी गई है,मेरे गाँव के कई पुरुषों के वोटर आईकार्ड में महिलाओं की और कई महिलाओं के वोटर आईकार्ड में पुरुषों की तस्वीरें दर्ज है,इसमें किसकी गलती है? हमारे हाजीपुर में लोग पिछले 20 सालों से रह रहे हैं और बार-बार मतदाता सूची में नाम दर्ज करने के लिए आवेदन देते हैं फिर भी उनका नाम दर्ज नहीं किया जाता,इसमें किसकी गलती है?
मित्रों,तो यह था अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी की कथनी,करनी और शख्सियत का आलोचनात्मक विश्लेषण। अब यह आप दिल्लीवासियों पर निर्भर करता है आप किसको चुनते हैं। झूठ और अराजकता को या सत्य और सृजनात्मकता को? विवादपुरुष को या विकासस्त्री को? रायता को या विकास को? राष्ट्रविरोधी को या राष्ट्रभक्त को? निर्णय आपके अपने हाथों में है। आप ही अपनी दिल्ली के भाग्यनिर्माता हैं। क्या आप वर्ष 2013 में अपने द्वारा की गई गलती को दोहराना चाहेंगे?

(हाजीपुर टाईम्स पर प्रकाशित)

18.1.15

पीके

शहीद भगत सिंह ने कहा था ‘‘आप किसी प्रचलित विश्वास का विरोध करके देखिए लोग आपको अहंकारी कहेंगे।’’ सच ही कहा है, प्रायः लोग अपनी ‘लकीर के फकीर’ मानसिकता की परिधि से बाहर आते घबराते हैं। ऐसा इसलिए नहीं है कि वे आना नहीं चाहते बल्कि बाहर आने के पश्चात् उन्हें अन्य कोई आसरा नज़र नहीं आता या कोई अन्य मान्यता नहीं मिलती। वे स्वयं को असहाय-असहज महसूस करते हैं। और कदाचित् होते भी हैं। कारण- अज्ञानता, निर्भरता एवं भय। अज्ञानता के कारण वे निर्भर है और निर्भरता के कारण भयभीत। वे प्रायः अगुवाई करने से घबराते हैं और अगर कोई पथप्रदर्शक मिल जाए तो बीच राह में उसके अदृश्य हो, धोखा देने, जो कि मानवीय प्रवृति है, उन्हंे भयभीत कर देती है। वे ग़लत भी नहीं हैं। अक्सर ऐसी राहें जटिल तो होती ही हैं और उन पर दृढ़ रहना उससे भी अधिक कठिन होता है। बहरहाल यहाँ बात है आमिर खान की फिल्म पीके के बहिष्कार की। यह विरोध वास्तव में किसी लतीफे से कम नहीं है। बिलकुल ऐसा, मानो एक दृृृष्टिबाधित कह रहा हो कि सूरज लाल नहीं काला है। वास्तव में उसके लिए सूरज काला ही है और यह कहना उसकी विवशता। परन्तु जो लोग इस फिल्म का विरोध कर रहे हैं वे तो विवश नहीं हैं! फिर ये कैसी मानसिकता है? वस्तुतः जिन मुद्दों का विरोध किया जा रहा है वे तो फिल्म का हिस्सा भी नहीं है। विरोध है कि फिल्म हिन्दु विरोधी है और हिन्दु देवी-देवताओं का अपमान करती है। जबकि फिल्म में प्रत्येक धर्म के ‘‘ठेकेदारों’’ का विरोध किया गया है, न कि किसी धर्म विशेष का। यह फिल्म अंधविश्वास और धर्म का धंधा करने वाले दलालों को केन्द्रित करके बनाई गई है फिर वे चाहे किसी भी धर्म के हों। सच तो यह है कि हम सभी इन ठेकेदारों के हाथों की कठपुतली बनते जा रहे हैं। इन्हें अपनी दुकान के रहस्य खुलते प्रतीत हुए तो नचा दिया जन-समूह को विरोध करने के लिए। ये पारंगत हैं मानसिक पराधीनता का दुरुपयोग करने में। क्या ऐसा नहीं है? इस बात का दावा किया जा सकता है कि जो लोग इस फिल्म का विरोध कर रहे हैं उनमें से अधिकतर ने तो यह फिल्म देखी भी नहीं होगी। तो भला क्यों कर रहे हैं विरोध? क्योंकि यह फिल्म एक मुस्लिम व्यक्ति ने बनाई है! यह तो कोई मुख्य वजह नहीं हो सकती! बॉलीवुड में हिन्दी फिल्मों का निर्माण किया जाता है, टॉलीवुड में तमिल एवं इसी प्रकार अन्य। कहीं भी मुस्लिमवुड का अस्तित्व नहीं है और न ही इस प्रकार धर्मविशेष का अस्तित्व होना चाहिए। तो भला इस फिल्म को धर्म विशेष के लिए कैसे बना सकते थे? किसी भी विषय का सामान्यीकरण करके ही प्रस्तुत किया जाना विषय के साथ न्याय करना है। एक ओर तो हम धर्म-निरपेक्षता की बात करते हैं। ‘‘हम सब भारतीय हैं’’, के नारे लगाते हैं। दूसरी ओर किसी भी अनावश्यक विषय को धर्म-जाति से जोड़ देते हैं। किसी भी निर्माण के पीछे छुपी धारणा के स्थान पर निर्माता के धर्म को अधिक महत्त्व कैसे दिया जा सकता है? निर्माता द्वारा परोसी गई अश्लीलता दर्शकों एवं फिल्म की माँग के नाम पर सरलता से स्वीकार कर ली जाती है परन्तु वास्तविक एवं उपयोगी तथ्यों का विरोध मात्र इस आधार पर किया जाता है कि वे किसी धर्म से जुड़े हैं। निश्चित रूप से यह भावी पीढ़ी को भ्रमित करने का घृणित प्रयास है तथा सामाजिक दृष्टि से घातक भी है। इस फिल्म का एक बहुत सुंदर दृृश्य हमारी संकुचित मानसिकता एवं कुतर्कों पर कटाक्ष करता है। पीके पर आरोप था कि वह ईश्वर को नहीं मानता। उससे पूछा गया कि तुम ईश्वर को नहीं मानते? उसने कहा मानता हूँ। बिलकुल मानता हूँ। मगर उस ईश्वर को मानता हँू जिसने हम सबको बनाया न कि जिसे आपने बनाया। सही ही तो कहा पीके ने। मंदिर-मस्जिद-गुरूद्वारे-चर्च इत्यादि में हमने अपने-अपने स्वार्थानुसार ईश्वर बनाए और अपनी-अपनी आवश्यकतानुसार उन्हें पूजते हैं। हममें से ज़्यादातर लोग तो ईश्वर को इसलिए पूजते हैं क्योंकि उनके पूर्वज उनकी पूजा करते आ रहे हैं। यदि उनसे पूछा जाए कि उनके ईश्वर का इतिहास क्या है या उनके माता-पिता कौन थे तो वे इससे अनभिज्ञ है, पूर्णतः निरुत्तर हैं। आज की युवा पीढ़ी तो इतनी आधुनिक हो गई है कि उन्हें होली-दिवाली जैसे मुख्य त्योहारों को मनाने के कारणांे तक का ज्ञान नहीं है। हाँ! लेकिन वे मंदिर अवश्य जाते हैं क्योंकि उनके भगवान जो वहाँ हैं। हम सभी जानते हैं कि मंदिरों में बैठकर किस प्रकार की चर्चाएँ की जाती हैं और प्रत्येक व्यक्ति इस बात की आलोचना भी बहुत ऊँची आवाज़ में करता है परन्तु वे सभी अवसर पाते ही स्वयं भी यही सब करते हैं। सही कहा जाता है कि भाषण दूसरों को देने के लिए ही होते हैं। ख़ैर बात यह है कि क्या यह सच्ची श्रद्धा है? या मात्र दिखावा या आत्मसंतुष्टि? यहाँ पुन शहीद भगत सिंह की बात प्रासांगिक लगती है कि प्रचलन का विरोध सरलता से स्वीकार्य नहीं होता। परन्तु यह भी सत्य है कि प्रचलित कितनी ही प्रथाएँ अपनी निरंकुशता के कारण ही समाप्त होती रही हैं और आगे भी होती रहेंगी। सती प्रथा हो या विधवा विवाह प्रत्येक प्रथा के प्रति होने वाले विरोध के भी विरोध में लोग मान्यताओें और धार्मिक भावनाओं के आहत होने का राग अलापते आए हैं परन्तु अन्ततः उन्हें समाप्त होना ही पड़ा। आज समाज के बुद्धिजीवी इन विषयों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से चर्चा का विषय बना रहे हैं। उनका आम आदमी को इन भ्रमजालों से मुक्त करने का प्रयास सरहानीय है। वास्तव में आम आदमी स्वयं भी कहीं न कहीं इन समस्त पाखंडों से उकता गया है। वह स्वयं भी इन निरर्थक बंधनों से मुक्त होना चाहता है परन्तु साहस नहीं कर पाता। 1947 में भारत स्वतंत्र भले ही हो गया हो परन्तु मानसिक स्वतंत्रता से अभी भी वह कोसों दूर है। इस पराधीनता के अधीन रहकर उन्नति संभव नहीं और यह भौतिक परतंत्रता से कहीं अधिक घातक भी है। एक सशक्त राष्ट्र के रूप में विश्वपटल स्वयं को स्थापित करने के लिए भारत को एक स्वतंत्र चिंतक होना अति आवश्यक है।

12.1.15

वैतनिक प्रभाव

वेतन मिलने के कुछ दिन तक नौकरी पेशा पूंजीवादी रहता है, महीने के अंत तक वह समाजवादी होने लगता है और जो वैतनिक प्रताड़ना से परे है, वह हमेशा मार्क्सवादी बना रहता है।
- सखाजी

7.1.15

मेडिकल कालेज को लेकर प्रदेश सरकार के जिम्मेदार लोगों के अलग अलग बयानों से राजनीति गर्मायी
 सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने एक प्रश्न पूछा था। इस तारांकित प्रश्न क्र. 515 का सदन में जवाब 12 दिसम्बर 2014 को प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने दिया था। अपना पूरक प्रश्न पूछने के पहले मुनमुन राय ने कहा कि,“ माननीय अध्यक्ष महोदय आपकी मार्फत मैं माननीय मंत्री जी से इस प्रश्न का जवाब मांगने से पूर्व  माननीय मुख्यमंत्री जी और माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी को बधाई दूंगा कि हमारे जिले में पहली बार एक बड़ा काम मेडिकल कालेज का आपके माध्यम से सरकार के माध्यम से होने जा रहा है।”छिंदवाड़ा जिले के विधायक सोहनलाल बाल्मीक ने कहा कि छंदवाड़ा जिले में मेडिकल कालेज पहले स्वीकृत हुआ था और सरकार की गलत नीतियों के कारण मेडिकल कालेज सिवनी में परिवर्तित किया जा रहा है।”जब 2013 में छिंदवाड़ा और शिवपुरी में केन्द्र द्वारा पोषित मेडिकल कालेज खुलने खोले जाने की घोषणा हुयी थी तब प्रदेश सरकार ने इस बात का खुलासा क्यों नहीं किया था कि प्रदेश सरकार ने प्रस्ताव में सिवनी और सतना प्रस्तावित किया था जिसे तत्कालीन केन्द्र सरकार ने बदल कर छिंदवाड़ा और शिवपुरी कर दिया जहां से केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद थे। जिले में हुये पहले जिला पंचायत चुनाव में भाजपा की गोमती ठाकुर वार्ड क्रं 8 से चुनाव जीती थी। तब से लेकर पिछले चुनाव तक वे लगातार इसी वार्ड से निर्वाचित होते आयीं है। एक बार पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष पद का चुनाव भी लड़वाया था लेकिन वे हार गयीं थीं। 
केन्द्र सरकार द्वारा पोषित मेडिकल कालेज से कब छटेगी धुंध?ः-शीतकालीन सत्र में विधानसभा में जिला चिकित्सालय की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने एक प्रश्न पूछा था। इस तारांकित प्रश्न क्र. 515 का सदन में जवाब 12 दिसम्बर 2014 को प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने दिया था। अपना पूरक प्रश्न पूछने के पहले मुनमुन राय ने कहा कि,“ माननीय अध्यक्ष महोदय आपकी मार्फत मैं माननीय मंत्री जी से इस प्रश्न का जवाब मांगने से पूर्व  माननीय मुख्यमंत्री जी और माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी को बधाई दूंगा कि हमारे जिले में पहली बार एक बड़ा काम मेडिकल कालेज का आपके माध्यम से सरकार के माध्यम से होने जा रहा है।” मुनमुन राय के इतना कहते ही छिंदवाड़ा जिले के विधायक सोहनलाल बाल्मीक ने कहा कि,“अध्यक्ष महोदय यह विषय के बाहर की बात है। मुझे बोलने का मौका नहीं दिया जा रहा है जो बात हमको कहनी चाहिये। मेडीकल कालेज की बात मैंने उठाई हैं। छिंदवाड़ा जिले में मेडिकल कालेज पहले स्वीकृत हुआ था और सरकार की गलत नीतियों के कारण मेडिकल कालेज सिवनी में परिवर्तित किया जा रहा है।” इस पर व्यवधान हुआ। अध्यक्ष महोदय ने कहा कि,“ आप प्रश्न कर दें। यह उनका प्रश्न है। यह आपका प्रश्न नहीं था। आपका प्रश्न था क्या?” इस पर सोहन लाल बाल्मीक ने कहा कि,“ उनकी बधायी का हम विरोध करेंगें। मुनमुन भाई यह छिंदवाड़ा में सेंक्शन था माननीय कमलनाथ के मार्फत ” इस पर फिर व्यवधान हुआ। और चर्चा फिर मूल प्रश्न पर चालू हो गयी। विधानसभा की इस कार्यवाही विवरण में यह स्पष्ट हो गया है कि विधायक मुनमुन राय ने सदन में मेडिकल कालेज के लिये सिर्फ मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को बधायी भर दी थी। उनकी इस बधायी से ही सदन में विवाद हुआ और छिंदवाड़ा और सिवनी को लेकर एक सवाल खड़ा हो गया। लेकिन एक बात यह भी स्पष्ट हो गयी कि सदन में मौजूद मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ने इस मामले में चुप्पी साधे रहे । जबकि छिंदवाड़ा की सभा में मुख्यमंत्री ने यह दहाड़ लगायी कि मेडिकल कालेज छिंदवाड़ा में ही खुलेगा और उनके रहते कोई भी माई का लाल छिंदवाड़ा से उसका हक नहीं छीन सकता।  उन्होंने यह तक कह डाला कि यह अफवाह ना जाने कौन फैला रहा है । जबकि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करते समय प्रेस को यह बताया था कि प्रदेश सरकार का मूल प्रस्ताव सिवनी और सतना में केन्द्रीय सरकार द्वारा पोषित मेडिकल कालेज खोले जायेंगें जिसे तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार ने बदल कर छिंदवाड़ा और शिवपुरी कर दिया था। लेकिन ये कालेज सतना और सिवनी में ही खुलेंगें। छिंदवाड़ा के कलेक्टर ने मुख्यमंत्री के छिंदवाड़ा प्रवास के पूर्व प्रेस कांफ्रेंस लेकर यह कहा कि मेडिकल कालेज छिंदवाड़ा में ही खुलेगा। इसमें कोई भ्रम नहीं हैं। प्रदेश सरकार के जिम्मेदार लोगों के द्वारा दिये गये अलग अलग बयानों से छिंदवाड़ा और सिवनी के राजनैतिक क्षेत्रों में हडकंप मच गया और आंदोलन तथा बयानबाजी होने लगी। इन सब बातों से एक सवाल यह सामने आता है कि जब 2013 में छिंदवाड़ा और शिवपुरी में केन्द्र द्वारा पोषित मेडिकल कालेज खुलने खोले जाने की घोषणा हुयी थी तब प्रदेश सरकार ने इस बात का खुलासा क्यों नहीं किया था कि प्रदेश सरकार ने प्रस्ताव में सिवनी और सतना प्रस्तावित किया था जिसे तत्कालीन केन्द्र सरकार ने बदल कर छिंदवाड़ा और शिवपुरी कर दिया जहां से केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद थे। ऐसे में यह उठना स्वभाविक है कि क्या इस स्थान परिवर्तन में प्रदेश की भाजपा सरकार और उसके मुखिया की भी सहमति थी? विधानसभा में सिवनी के लिये बधायी स्वीकार करने वाले शिवराज सिंह की छिंदवाड़ा की सभा में लगायी गयी दहाड़ क्या नगर निगम के होने वाले चुनाव के संबंध में थी? इन तमाम बातों से ऐसा लगता है कि हमेशा सिवनी के साथ छल करने वाली प्रदेश सरकार और उसके मुखिया शिवराज सिंह जिले की भोली भाली जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहें हैं। ऐसी ही थोथी घोषणाओं के चलते विस चुनाव में भाजपा का मात्र एक विधायक ही जीत पाया जबकि पिछली विस में भाजपा के तीन विधायक थे। यदि ऐसा ही चलते रहा तो जिले में भाजपा का सूपड़ा साफ होने से कोई नहीं रोक पायेगा। 
गामती ठाकुर की उपेक्षा सियासी हल्कों हुयी चर्चित:-मध्यप्रदेश में 1994 से तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पंचायती राज लागू किया था। देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा संविधान में संशोधन के बाद प्रदेश में पंचायती राज लागू करने वाला पहला प्रदेश मध्यप्रदेश था। जिले में हुये पहले जिला पंचायत चुनाव में भाजपा की गोमती ठाकुर वार्ड क्रं 8 से चुनाव जीती थी। तब से लेकर पिछले चुनाव तक वे लगातार इसी वार्ड से निर्वाचित होते आयीं है। एक बार पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष पद का चुनाव भी लड़वाया था लेकिन वे हार गयीं थीं। इस बार भाजपा ने उनके वार्ड से उन्हें उम्मीदवार ना बना कर माया ठाकरे को अपना समर्थित उम्मीदवार बनाया है। लेकिन गोमती ठाकुर भी फिर से पांचवी बार इसी वार्ड से चुनाव लड़ रहीं है। इससे नाराज होकर भाजपा नेतृत्व ने उनसे जिला महिला मोर्चे के अध्यक्ष पद से स्तीफा ले लिया और आनन फानन में उसे मंजूर भी कर लिया। भाजपा की अंदरूनी राजनीति जानने वालों का कहना है कि चूंकि इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष का पद महिला अनारक्षित हुआ है इसलिये सालों से अध्यक्ष बनने की लालसा रखने वाली गोमती ठाकुर को दौड़ से बाहर करने के लिये स्थानीय भाजपायी गुटबंदी के चलते गोमती ठाकुर को भाजपा ने अपना प्रत्याशी नहीं बनाया है। यदि वे प्रत्याशी बन कर जीत कर आतीं तो ना केवल जिले में यह रिकार्ड बनता ब्लकि भाजपा में भी सबसे अनुभवी सदस्य वही होतीं और उनके दावे को दरकिनार करना आसान नहीं होता। इसी के चलतें ये सब सियासी चाले चलीं गयी है। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि श्रीमती गोमती ठाकुर भाजपा की ना केवल वरिष्ठ सक्रिय महिला नेत्री रहीं हैं वरन जिला भाजपा की महामंत्री सहित कई महत्वपूर्ण पदों की जवाबदारी भी निभा चुकीं हैं। ऐसे में उनकी उपेक्षा किया जाना सियासी हल्कों में चर्चित हैं। “मुसाफिर” 
दर्पण झूठ ना बोले, सिवन
6 जनवरी 2015 से साभार  




1.1.15

नववर्ष में सब अमंगल दूर हो.


बीते वर्ष बिहार में राजग गठबंधन का टूटना अफसोसजनक रहा. अहंकार राज्यहित पर भारी पड़ा. बिहार का भविष्य नीच बिहारी नेताओं ने बर्बाद किया है. शिव प्रकाश राय जी ने बतौर One Man Army राज्य में कई घोटालों का उद्भेदन किया और एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता की भांति अनवरत जूझते रहे हैं, वर्तमान में ऐसे लोगों की जरुरत है, भयवश ही सही तंत्र ऐसे जुनूनी लोगों की वजह से कुछ सही दिशा में काम कर भी देता है. नागरिक अधिकार मंच, बिहार के माध्यम से उन्होंने उच्च न्यायालय में कई जनहित याचिकाएं दायर कर रखी हैं, जिससे गड़बड़ी करनेवालों की नींद हराम है, बहुत सारे मामले अभी पाईपलाईन में हैं. बिहार जनशिकायत निवारण प्रणाली www.bpgrs.in पर दर्ज शिकायतों का कोई संज्ञान नहीं लिया जाता, उम्मीद है नववर्ष में इसे उपयोगी बनाया जाएगा. बिहार राज्य खाद्य निगम की गलत धान-खरीद नीतियों के कारण राज्य सरकार को भी अत्यधिक राजस्व की क्षति हुई है और राज्य में राईस मिल उद्योग भी पूरी तरह बर्बाद हो गया. नए साल में किसानों से धान-खरीद की प्रक्रिया में उम्मीद है सुधार किया जाएगा. जजों की नियुक्ति हेतु केंद्र सरकार द्वारा कॉलेजियम सिस्टम के स्थान पर न्यायिक आयोग के गठन का फैसला काबिले तारीफ़ और साहसिक कदम है. प्रधानमंत्री जी का स्वच्छ भारत अभियान जन-जागरूकता की दिशा में शानदार पहल है, इस कार्यक्रम को शुरू करने हेतु वे बधाई के पात्र हैं. मनरेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य, समेकित बाल-विकास परियोजना, पीडीएस ये सब जनता के धन को लूटने के कार्यक्रम हैं और इनका जमीनी स्तर पर कहीं कोई समुचित क्रियान्वयन नहीं हो रहा. इन सब योजनाओं में सुधार की भी कोई गुंजाईश नहीं सबको बंद कर देना चाहिए और बिना किसी के दबाव में आए इन्हें निजी हाथों में सौंप देना चाहिए. राज्य सरकार की मुख्यमंत्री साईकिल योजना का उद्देश्य सफल रहा है और यह बालिकाओं में आत्मविश्वास जगाने का काम किया है, बाकी छात्रवृत्ति, पोशाक-राशि इत्यादि एक तरह से वोट के लिए नकदी बाँटने जैसा है. यह सरकारी विद्यालयों में कलह का कारण बना हुआ है. मध्याह्न भोजन योजना तो किसी सिरफिरे के दिमाग की उपज है, जिसने भी यह योजना बनाई है वह अवश्य ही चाहता होगा कि गरीबों के बच्चे न पढ़ें. आपलोग बतायें अमीरों के बच्चों के लिए जो टॉप क्लास के स्कूल हैं उनमें मध्याह्न भोजन योजना का प्रावधान है ? अगर उद्देश्य संतुलित भोजन देना है तो बच्चे की माँ को इससे संबंधित राशि और अनाज उपलब्ध कराई जानी चाहिए थी. मध्याह्न भोजन योजना के कारण ही बिहार में गंडामन धर्माशती जैसे काण्ड हुए. भूमि की कमी को देखते हुए इंदिरा आवास योजना के लाभार्थियों का ग्रुप बनाकर पेयजल एवं शौचालय संपन्न बहुमंजिले भवन बनाकर उन्हें आवंटित करना चाहिए न कि उनके खाते में सत्तर हजार रूपए डाल दिए और निश्चिन्त हो गए. मेरे गाँव में लगभग एक करोड़ रूपए से अधिक के सरकारी भवन का निर्माण हुआ है पर उनका दस साल से भी अधिक समय से कोई उपयोग नहीं हुआ और अब वे खस्ताहाल उपयोग लायक हैं भी नहीं. आप राज्य और देश स्तर पर इस तरह के फिजूलखर्ची का अनुमान लगा सकते हैं. यह सब इसलिए होता है कि विभिन्न विभागों के बीच सामंजस्य का घोर अभाव है. भवन निर्माण विभाग ने पशु अस्पताल का निर्माण करवा दिया पर उसमें बैठने के लिए सरकार के पास डॉक्टर और कर्मियों का अभाव है. पहले डॉक्टर की व्यवस्था करते तब भवन बनाते, जनता के धन का इस तरह निर्लज्जता और निर्ममता से बंदरबांट करते हो ! नीचे वाला फोटो जो देख रहे हैं इसे वेबरत्न अवार्ड मिला हुआ है, पर जरा इनाम पानेवालों से पूछ लीजिए कि इस पर कितने मामले दर्ज हुए और उसमें से कितने मामलों पर जांचोपरांत कार्रवाई हुई, और कितने मामलों का ATL Upload किया गया. सब ढाक के तीन पात हैं. उम्मीद है नववर्ष में इन सारी भडासों को दूर करने हेतु हमलोग प्रयासरत होंगे और सरकार भी अधिक संवेदनशील बनेगी.