1.1.15

नववर्ष में सब अमंगल दूर हो.


बीते वर्ष बिहार में राजग गठबंधन का टूटना अफसोसजनक रहा. अहंकार राज्यहित पर भारी पड़ा. बिहार का भविष्य नीच बिहारी नेताओं ने बर्बाद किया है. शिव प्रकाश राय जी ने बतौर One Man Army राज्य में कई घोटालों का उद्भेदन किया और एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता की भांति अनवरत जूझते रहे हैं, वर्तमान में ऐसे लोगों की जरुरत है, भयवश ही सही तंत्र ऐसे जुनूनी लोगों की वजह से कुछ सही दिशा में काम कर भी देता है. नागरिक अधिकार मंच, बिहार के माध्यम से उन्होंने उच्च न्यायालय में कई जनहित याचिकाएं दायर कर रखी हैं, जिससे गड़बड़ी करनेवालों की नींद हराम है, बहुत सारे मामले अभी पाईपलाईन में हैं. बिहार जनशिकायत निवारण प्रणाली www.bpgrs.in पर दर्ज शिकायतों का कोई संज्ञान नहीं लिया जाता, उम्मीद है नववर्ष में इसे उपयोगी बनाया जाएगा. बिहार राज्य खाद्य निगम की गलत धान-खरीद नीतियों के कारण राज्य सरकार को भी अत्यधिक राजस्व की क्षति हुई है और राज्य में राईस मिल उद्योग भी पूरी तरह बर्बाद हो गया. नए साल में किसानों से धान-खरीद की प्रक्रिया में उम्मीद है सुधार किया जाएगा. जजों की नियुक्ति हेतु केंद्र सरकार द्वारा कॉलेजियम सिस्टम के स्थान पर न्यायिक आयोग के गठन का फैसला काबिले तारीफ़ और साहसिक कदम है. प्रधानमंत्री जी का स्वच्छ भारत अभियान जन-जागरूकता की दिशा में शानदार पहल है, इस कार्यक्रम को शुरू करने हेतु वे बधाई के पात्र हैं. मनरेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य, समेकित बाल-विकास परियोजना, पीडीएस ये सब जनता के धन को लूटने के कार्यक्रम हैं और इनका जमीनी स्तर पर कहीं कोई समुचित क्रियान्वयन नहीं हो रहा. इन सब योजनाओं में सुधार की भी कोई गुंजाईश नहीं सबको बंद कर देना चाहिए और बिना किसी के दबाव में आए इन्हें निजी हाथों में सौंप देना चाहिए. राज्य सरकार की मुख्यमंत्री साईकिल योजना का उद्देश्य सफल रहा है और यह बालिकाओं में आत्मविश्वास जगाने का काम किया है, बाकी छात्रवृत्ति, पोशाक-राशि इत्यादि एक तरह से वोट के लिए नकदी बाँटने जैसा है. यह सरकारी विद्यालयों में कलह का कारण बना हुआ है. मध्याह्न भोजन योजना तो किसी सिरफिरे के दिमाग की उपज है, जिसने भी यह योजना बनाई है वह अवश्य ही चाहता होगा कि गरीबों के बच्चे न पढ़ें. आपलोग बतायें अमीरों के बच्चों के लिए जो टॉप क्लास के स्कूल हैं उनमें मध्याह्न भोजन योजना का प्रावधान है ? अगर उद्देश्य संतुलित भोजन देना है तो बच्चे की माँ को इससे संबंधित राशि और अनाज उपलब्ध कराई जानी चाहिए थी. मध्याह्न भोजन योजना के कारण ही बिहार में गंडामन धर्माशती जैसे काण्ड हुए. भूमि की कमी को देखते हुए इंदिरा आवास योजना के लाभार्थियों का ग्रुप बनाकर पेयजल एवं शौचालय संपन्न बहुमंजिले भवन बनाकर उन्हें आवंटित करना चाहिए न कि उनके खाते में सत्तर हजार रूपए डाल दिए और निश्चिन्त हो गए. मेरे गाँव में लगभग एक करोड़ रूपए से अधिक के सरकारी भवन का निर्माण हुआ है पर उनका दस साल से भी अधिक समय से कोई उपयोग नहीं हुआ और अब वे खस्ताहाल उपयोग लायक हैं भी नहीं. आप राज्य और देश स्तर पर इस तरह के फिजूलखर्ची का अनुमान लगा सकते हैं. यह सब इसलिए होता है कि विभिन्न विभागों के बीच सामंजस्य का घोर अभाव है. भवन निर्माण विभाग ने पशु अस्पताल का निर्माण करवा दिया पर उसमें बैठने के लिए सरकार के पास डॉक्टर और कर्मियों का अभाव है. पहले डॉक्टर की व्यवस्था करते तब भवन बनाते, जनता के धन का इस तरह निर्लज्जता और निर्ममता से बंदरबांट करते हो ! नीचे वाला फोटो जो देख रहे हैं इसे वेबरत्न अवार्ड मिला हुआ है, पर जरा इनाम पानेवालों से पूछ लीजिए कि इस पर कितने मामले दर्ज हुए और उसमें से कितने मामलों पर जांचोपरांत कार्रवाई हुई, और कितने मामलों का ATL Upload किया गया. सब ढाक के तीन पात हैं. उम्मीद है नववर्ष में इन सारी भडासों को दूर करने हेतु हमलोग प्रयासरत होंगे और सरकार भी अधिक संवेदनशील बनेगी.

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