1.8.15

'हिंदी समय' में इस हफ्ते



मित्रवर

उदय प्रकाश हिंदी साहित्य का ऐसा नाम हैं जो न केवल भारतीय भाषाओं में खूब पढ़े और जाने जाते हैं बल्कि दुनिया भर में अपनी अद्भुत रचनात्मकता के लिए समादृत हैं। उनकी कुछ कहानियाँ आप हिंदी समय पर पहले पढ़ चुके हैं। इस बार हिंदी समय (http://www.hindisamay.com) पर उनकी कविताएँ प्रस्तुत करते हुए हम एक हार्दिक संतोष का अनुभव कर रहे हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए आप पाएँगे कि उनकी कविताओं में जहाँ एक तरफ महत्वहीन मानकर भुला दी गई वस्तुएँ अपनी जगह पुनः वापस पाती हैं वहीं वह वर्तमान राजनीतिक सत्ता और उसकी भयानक एब्सटर्डिटी का भी विखंडन करने से नहीं चूकते। इसीलिए वे अपने बारे में कह पाते हैं कि ‘राजनीतिक सत्ताएँ कभी भी किसी कविता को ईनाम नहीं देतीं। क्योंकि वे हमेशा पिछली कुछ सदियों में कविता विरोधी सिद्ध होती आई हैं।



 मेरा अभिप्रेत गहन मानवीय संपृक्ति और प्रतिबद्धता की कविता से है। आज तक के इतिहास में किसी भी धार्मिक या व्यापारिक या राजनीतिक सैद्धांतिकी या विचारधारा की कोई भी राज्यसत्ता ऐसी नहीं पाई गई है, जिसने प्रतिपक्ष की या किसी अकेले मनुष्य की अपने से असहमत, विसंवादी स्वर में बोलती कविता को बर्दाश्त किया हो। बेदखली, दंड, निर्वासन, उपेक्षा, उत्पीड़न, प्रताड़नाएँ और अंततः कवि की मृत्यु ही अक्सर ऐसी कविता का ईनाम हुआ करती है। मैं आपसे पूरी पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ कह रहा हूँ, कि मैं ऐसा ही कवि हूँ और यही बने रहना चाहता हूँ।’



भिखारी ठाकुर भारतीय साहित्य की एक विरल उपलब्धि हैं। यहाँ उनका नाटक गबरघिचोर प्रस्तुत करते हुए हमें बेहद खुशी है। यह बेहद महत्वपूर्ण नाटक है और यह कुछ ऐसे सवालों पर अपने को केंद्रित करता है जिनकी प्रासंगिकता आज नए सिरे से पहिचानी जा रही है। कहानियाँ इस बार पाँच हैं। यहाँ पढ़ें मनोहर श्याम जोशी की कहानी उसका बिस्तर, सृंजय की कहानी माप, प्रभात रंजन की कहानी हिडेन फैक्ट, आशुतोष की कहानी पिता का नाच और शेषनाथ पांडेय की कहानी चादर। यह कहानियाँ इस अर्थ में विशिष्ट हैं कि यह हिंदी कहानी की विविधता और निरंतरता दोनों को बखूबी रेखांकित करती हैं। काव्य परंपरा के अंतर्गत पढ़ें रोहिणी अग्रवाल का मीरा पर केंद्रित महत्वपूर्ण आलेख 'बरजी मैं काही की नाहिं रहूँ'। इस बार 1857 पर हमारी खास प्रस्तुति के रूप में पढ़ें अर्नेस्ट जोन्स का लेख हिंदुस्तान का संघर्ष और रामकृष्ण पांडेय का लेख 1857 और विष्णुभट्ट गोडसे। ऐसी ही एक विशेष प्रस्तुति है हिंदी के समर्थ युवा अध्येता राजकुमार का लेख पंचायत का सपना। हमारी हिंदी के अंतर्गत पढ़ें बसंत त्रिपाठी का आलेख राष्ट्रभाषा हिंदी और डॉ. अंबेडकर तथा राजकिशोर का आलेख हिंदी के क्रियोलीकरण के विरुद्ध। सिनेमा के अंतर्गत पढ़ें रमा का आलेख ‘स्त्री-अस्मिता’ के नाम रहा हिंदी सिनेमा का वर्ष-2014। बाल साहित्य के अंतर्गत पढ़ें मनोहर चमोली ‘मनु’ का नाटक जंगल में स्कूल नहीं। देशांतर के अंतर्गत पढ़ें जर्मन भाषा की चार चर्चित कविताएँ, गोएथे की कविता हितार्थ, मार्टिन नीम्योलर की कविता जब नाजी कम्युनिस्टों को खा गए, हरमन हेस्से की कविता कोहरे में और क्लेमेन्स ब्रेतानो की कविता कम और अधिक। और अंत में भाषांतर के अंतर्गत पढ़ें अंग्रेजी भाषा की चर्चित कवि सुकृता पाल कुमार की कविताएँ।



मित्रों हम हिंदी समय में लगातार कुछ ऐसा व्यापक बदलाव लाने की कोशिश में हैं जिससे कि यह आपकी अपेक्षाओं पर और भी खरा उतर सके। हम चाहते हैं कि इसमें आपकी भी सक्रिय भागीदारी हो। आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है। हमेशा की तरह आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।



सादर, सप्रेम

अरुणेश नीरन

संपादक, हिंदी समय

No comments:

Post a Comment