13.8.15

दवा कम्पनियां अपने ब्रांड की बिक्री और प्रमोशन के लिए डॉक्टरों को आर्थिक या अन्य प्रलोभन देती हैं


- कुमार कृष्णन -
दवा कम्पनियाँ काफी अरसे से अपने ब्रांड की बिक्री और प्रमोशन के लिए डॉक्टरों को आर्थिक या अन्य माध्यम से प्रलोभन देती रही है। इन फायदों में छोटे-मोटे गिफ्ट्स से लेकर घरेलू उपयोगी सामान या फिर विदेश यात्रा तक शामिल हैं। ये पूरा कारोबार अरबों रुपयों का है। इस तरह की प्रैक्टिस से मरीजों को ही खामियाजा भुगतना पड़ता है। उन्हें अनावश्यक दवाएँ खरीदने पर मजबूर किया जाता है। विकास संवाद की ओर से मध्यप्रदेश के झाबुआ में 'मीडिया और स्वास्थ्य' विषय पर आयोजित परिसंवाद के प्रथम दिन के तीसरे सत्र में 'स्वास्थ्य और पत्रकारिता' सचिन कुमार जैन ने कहा कि एक ओर सहस्त्राबदि विकास का लक्ष्य रखा गया तो दूसरी ओर 1.60 लाख बच्चे अपना पहला जन्म दिन नहीं देख पाते हैं। नीतिगत प्राथमिकता की बात तो की जाती है, लेकिन बजट में कटौती की जा रही है। अस्पताल हैं तो डॉक्टर नहीं। संसाधन उपलब्ध नहीं है। देश भर में 14 लाख डॉक्टर्स की कमी है जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप चिकित्सक और मरीज के अनुपात में कम है। दूसरी ओर प्राइवेट अस्पतालों में शोषण का अंतहीन सिलसिला। इलाज के क्रम से ही हर साल लोग गरीबी रेखा के नीचे जा रहे हैं। ऐसे में पत्रकारिता की भूमिका अहम है। पत्रकारिता का क्या नजरिया हो, इस पर संजीदगी से गौर करने की आवश्यकता है।



परिसंवाद का संचालन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार चिन्मय मिश्र ने चंद्रकांत देवताले को उद्यृत करते हुए कहा- 'खुद पर निगरानी का वक्त'। मीडिया घरानों की सच्चाई का खुलासा करते हुए अधिकांश मीडिया घराने राजनीतिक दलों से प्रभावित हैं, उनसे संचालित होती है या उसके शेयर होल्डर हैं। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार मणिमाला ने की।

आउटलुक पत्रिका की मनीषा भल्ला ने कहा कि स्वास्थ्य की रिपोर्टिंग आम तौर पर सरजमीन की सच्चाईयों से भिन्न होती है। पंजाब की हरित क्रांति के किस्से अलग हैं, लेकिन सच्चाई यह भी है कि लोग कैंसर के शिकार हो रहे हैं। उन्होंने लगातर इस मुद्दे का कवरेज कर राष्ट्रीय बहस का विषय बनाया। बड़े महानगरों में तो स्वास्थ्य की रिपोर्टिंग पीआर कम्पनी के द्वारा होती है। उसमें बड़े अस्पतालों के उपलब्धियों के किस्से गढ़े जाते हैं।

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए पत्रकार विजय चौधरी मध्य प्रदेश के क्लिनिकल ट्राइल के मामले में पत्रकारिता की भूमिका और अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि दवा कम्पनियों के द्वारा मरीजों पर क्लिनिकल ट्राइल कराए जाते हैं। मरीजों को पता ही नहीं होता है कि क्या हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को लगातार लिखकर विधानसभा से लेकर इंडियन मेडिकल काउंसिल तक ले गए। अदालत के आदेश पर विभागीय जाँच हुई। इसमें लिप्त डॅाक्टर 16 माह तक प्रैक्टिस से वंचित रहे। दवा कम्पनियाँ काफी अरसे से अपने ब्रांड की बिक्री और प्रमोशन के लिए डॉक्टरों को आर्थिक या अन्य माध्यम से प्रलोभन देती रही है। इन फायदों में छोटे-मोटे गिफ्ट्स से लेकर घरेलू उपयोगी सामान या फिर विदेश यात्रा तक शामिल हैं। ये पूरा कारोबार अरबों रुपयों का है। इस तरह की प्रैक्टिस से मरीजों को ही खामियाजा भुगतना पड़ता है। उन्हें अनावश्यक दवाएँ खरीदने पर मजबूर किया जाता है। प्रदेश के कई बड़े डॉक्टरों पर दवा कम्पनियों के पैसे से विदेश यात्रा का खुलासा होने के बाद इसकी शिकायत मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में गयी। इसकी जाँच एथिकल कमेटी ने की। जाँच में प्रदेश के 15 डॉक्टर दोषी पाए गए, जिनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल ने इनके रजिस्ट्रेशन छह महीने के लिए निरस्त कर दिए गए। उन्होंने कहा कि यह ध्यान में रखने की बात है कि कोई अपने लाभ के लिए औजार की तरह इस्तेमाल नहीं कर पाए।

वहीं पत्रकार श्रावणी सरकार ने कहा कि पत्रकारिता के समक्ष अनेक चुनौतियाँ है। जहाँ तक स्वास्थ्य सेवा का सवाल है तो यह निजीकरण की ओर बढ़ रही है। कल्याणकारी राज्य की अवधारणा समाप्त हो रही है। इसमें आए फर्क को समझना होगा। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य का सवाल कुपोषण से जुड़ा है। उन्होंने इस मामले को गम्भीरता से समझा और लगातार काम कर रही हैं। सुधीर जैन ने कहा कि पेशा और व्यावसयिकता के सकारात्मक पहलू को ध्यान में रखकर काम करना चाहिए। अध्यक्षता करते हुए जनआंदोलनों की चर्चित पत्रकार मणिमाला ने चिंता जतायी कि मीडिया में जनसरोकार की जगह खत्म होती जा रही है। परिसंवाद वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत, हिन्दी इंडिया वाटर पोर्टल के केसर सिंह, रमेश, स्नेहा, भड़ास डाट कॉम के यशवंत व्यास, जयंत तोमर, राकेश कुमार मालवीय, मदद फ़ाउंडेशन की वंदना झा के साथ देश के विभिन्न हिस्सों से आए पत्रकार, जनसंगठन के लोगों ने हिस्सा लिया।

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