बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद सबसे ज्यादा खशियां कांग्रेस
पार्टी मना रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल
गांधी एक लम्बे अर्से बाद प्रफ्फुलित नजर आ रहें हैं। बिहार में विधानसभा
की 27 सीटें जीतकर कांग्रेस महासचिव डा.सी.पी.जोशी ऐसे जता रहे हैं जैसे
उनके प्रभारी रहते कांग्रेस ने बड़ा मैदान मार लिया हो। राहुल गांधी की
डा.सी.पी.जोशी को मिठाई खिलाते की फोटो विभिन्न अखबारों में छप रही हैं।
उनकी सोच कुछ हद तक सही भी है क्योंकि एक लम्बे अन्तराल के बाद कांग्रेस
को किसी प्रदेश में सत्ता में हिस्सेदारी तो मिलेगी, हो चाहे नाम मात्र
की ही।
2013 के बाद कांग्रेस लगातार हार का मुंह देख रही है ऐसे में नाममात्र की
जीत भी बड़ा शकुन प्रदान करती है। कांग्रेस ने जहां केन्द्र में अपनी
सरकार गवांई, वहीं एक-एक कर राजस्थान, गोवा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना,
महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखण्ड, जम्मू कश्मीर, दिल्ली जैसे राज्यो में हार
का सामना करना पड़ा। कांग्रेस पार्टी गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़,
ओडीसा में लम्बे समय से सत्ता से बेदखल है,वहां सत्ता में आना कांग्रेस
का सपना बनकर रह गया है। आन्ध्र प्रदेश व दिल्ली तो ऐसे प्रदेश हैं जंहा
कांग्रेस का लोक सभा व विधानसभा में एक भी सदस्य चुनाव नहीं जीत सका हैं।
अब आगे असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडू व पुड्डुचेरी में
चुनाव होने वाल हैं जहां असम को छोड़ कर कहीं कांग्रेस मुख्य मुकाबले में
भी नहीं हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस के लोकसभा में 206 सांसद थे व
केन्द्र में सरकार थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा के
हाथों करारी शिकस्त मिली व सांसद घटकर मात्र 44 रह गये जो कांग्रेस के
लोकसभा में अब तक के सबसे कम हैं। कांग्रेस की इतनी शर्मनाक स्थिति इससे
पहले कभी नहीं हुयी। गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पूरे देश में 10
करोड़ 69 लाख 35 हजार 311 वोट मिले जो कुल मतदान का 19. 3 फीसदी था। वहीं
भाजपा को 17 करोड़ 16 लाख 37 हजार 684 वोट मिले जो कुल मतदान का 31 फीसदी
था। गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 162 लोकसभा सीट का नुकसान उठाना
पड़ा वहीं भाजपा को 166 सीटो का फायदा हुआ। आज भाजपा के पास लोकसभा में
282 यानी 51. 90 फीसदी सीटे हैं वहीं कांग्रेस के पास मात्र 8 फीसदी सीटे
ही है।
गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस देश के 29 राज्यों व 7 केन्द्र शाषित
राज्यों में से मात्र 16 राज्यों में ही अपना खाता खोल पाने में सफल रही
थी। देश में 13 राज्य आन्ध्र प्रदेश, ओडीसा, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडू,
झारखण्ड, जम्मू कश्मीर, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, गोवा,
नागालैण्ड, सिक्किम, व 7 केन्द्र शाषित प्रदेशों दिल्ली, पुड्डुचेरी,
लक्ष्यदीप, चन्डीगढ़, दादरा नगर हवेली, दमन द्वीव,अन्डमान निकोबार द्वीप
समूह में तो कांग्रेस का कोई लोकसभा में प्रतिनिधी ही नहीं है। अपनी बुरी
हार से लगे सदमें से कांगे्रस आज तक नहीं उबर पायी है फिर प्रदेशो में हो
रही लगातार हार रही -सही कसर पूरी कर रही है। ऐसे में कांग्रेस बिहार
चुनाव परिणाम को बहाना बनाकर अपनी हार के सदमें से निकलने का असफल प्रयास
करती नजर आ रही है।
कांग्रेस को बिहार चुनाव से कोई खास फायदा होने वाला नहीं हैं, क्योंकि
बिहार में कांग्रेस का स्वंय का कोई जनाधार नहीं रहा है। आज बिहार में
कांग्रेस ने जो 27 विधानसभा सीटे जीती है वो लालू प्रसाद यादव व नीतीश
कुमार की मेहरवानी से ही जीत पायी है। अपने दम पर कांग्रेस ने 2010 में
विधानसभा चुनाव लड़ा था जिसमें मात्र 4 सीट जीत पायी थी। हाल ही में
सम्पन्न विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 25 लाख 39 हजार 638मत
मिले जो कुल मतदान का 6.70 फीसदी ही है। भाजपा को 93 लाख 8 हजार 13 मत
प्राप्त हुये जो कुल मतदान का 24. 40 फीसदी हैं। अब देखने वाली बात यह है
कि आज भी बिहार में भाजपा अकेले सबसे अधिक वोट लेकर सबसे बड़ी पार्टी है
भले ही उसको सीटे कम मिली हो। उस स्थिति में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल
गांधी का यह बयान की कांग्रेस अपने दम पर भाजपा को देश से उखाड़ देगी
बचकाना पन ही कहलायेगा। कांग्रेस महासचिव व बिहार कांग्रेस प्रभारी
डा.सी.पी.जोशी जो स्वंय गत लोकसभा चुनाव में करीबन चार लाख वोटो से हारे
थे वो बिहार कांग्रेस की जीत को अपने नेतृत्व क्षमता दर्शा रहें हैं व
खुद को इस जीत का नायक साबित करने में लगे हैं इससे ज्यादा हास्यासपद बात
और क्या हो सकती है। राहुल गांधी ने कहा है कि बिहार का प्रयोग हम अन्य
चुनाव वाले राज्यो में भी करेंगें व वहां भी इसी तरह का गठबंधन कर भाजपा
को हरायेंगें। बिहार में कांग्रेस के दो-तीन मंत्री बन सकते हैं मगर उससे
कांग्रेस का भाजपा को सत्ता से हटाने का सपना पूरा नहीं होगा।
कांग्रेस ने बिहार में लालू यादव व नीतीश कुमार के साथ मिलकर भाजपा को तो
हरा दिया मगर जीत का भी सीटों की संख्या व वोट प्रतिशत के मामले में चौथे
नम्बर पर रही है। बिहार में कांग्रेस ने भाजपा को रोका तो उसे अपने
पुराने दुश्मन रहे लालूयादव व नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार करना पड़ा।
इसी तरह कांग्रेस पार्टी यदि अन्य राज्यो में भी क्षेत्रीय पार्टियों का
नेतृत्व स्वीकार करती रही तो वा अपनी अखिल भारतीय छवी नहीं बचा पायेगी व
क्षेत्रीय दलो की पिछलगू बन कर रह जायेगी। भविष्य में भाजपा केन्द्रीय
सत्ता से हटा दी जाती है तो भी कांग्रेस को केन्द्र में सत्ता मिलना
मुश्किल ही नहीं असंभव जान पड़ता है।
आज भाजपा ने अपना जो देश व्यापी आधार बनाया है उसका मूल कारण यही है कि
उसने हमेशा इस बात का प्रयास किया कि वो अधिकाधिक क्षेत्रों में ज्यादा
से ज्यादा सीटो पर चुनाव लड़ कर देश के मतदाताओं तक अपना नाम व निशान
पहुंचा सके। भाजपा अपने इस मकसद में कामयाब रही जिसका नतीजा है कि गत
लोकसभा चुनाव में अकेले दम पर 51.90 प्रतिशत सीटे जीत पायी।
कांग्रेस पार्टी जिसने आजादी के बाद 55 वर्षो तक केन्द्र में एकछत्र
सरकार चलायी आज वो कुछ क्षेत्रीय दलो का सहारा लेकर बड़े-बड़े दावे करने
लगी है, जो कांग्रेस के लिये कतई उचित नहीं हैं। जिन क्षेत्रीय दलो का
सहारा कांग्रेस ले रही है उनका व कांग्रेस का वोट बैंक एक ही है। यदि
क्षेत्रीय दल मजबूत होगें तो नि:संदेह कांग्रेस पार्टी ही कमजोर होगी
क्योंकि, भाजपा का अपना अलग ही वोटर है। ऐसे में कांग्रेस को अपने
आधारहीन नेताओं के स्थान पर प्रभावशाली व साफ छवी के नेताओं को आगे लाना
चाहिये व अपने बूते चुनाव की तैयारी करनी चाहिये भले ही कुछ चुनावो में
वो हार जाये मगर उसे दूसरे दलो का पिछलगू बनने से बचना चाहिये तभी वो
अपना खोया आधार पुन: हासिल कर पायेगी। आज कांग्रेस को खुश होने के बजाय
इस बात का चिन्तन करने की जरूरत है कि वो देश की जनता में अपना खोया आधार
कैसे पाये।
आलेख:-
रमेश सर्राफ धमोरा
स्वतंत्र पत्रकार
झुंझुनू
राजस्थान
9414255034
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