21.11.15

मीडिया के मुखौटे में बलात्कारी!

मजिस्ट्रेट के समक्ष 164 के बयान 82 के तहत कार्यवाही के आदेश स्थानीय मीडिया के समक्ष रिकार्डेड बयान और मीडिया में खबर के बाद एकाएक पीड़िता का ‘यू टर्न’ संदेह पैदा करता है। चर्चा धन बल के आधार पर मामले को दफन करने को लेकर हो रही है। एक वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा इस मामले में जनहित याचिका भी दायर की जा चुकी है। दूसरी ओर तथाकथित बलात्कारी पत्रकार स्वयं को पाक-साफ बता रहा है जबकि वकीलों का एक ग्रुप मीडिया के मुखौटे में छिपे एक बलात्कारी का चेहरा आम जनता के सामने लाना चाहता है।



एक तथाकथित पत्रकार के खिलाफ एम.बी.ए. की एक छात्रा कोर्ट में 164 का बयान दर्ज करवाती है। बयान में पीड़िता अपने साथ हुए बलात्कार और जान से मारने की धमकी से सम्बन्धित आरोपों की पुष्टि करती है। मजिस्टेªट के समक्ष पूरी घटना को विस्तार से बताते हुए सही बताती है। उसके बाद विवेचनाधिकारी वारंट भी ले लेता है। इसी दौरान बलात्कार का आरोपी तथाकथित पत्रकार कमलकांत उपमन्यु का भाई एक प्रार्थना-पत्र देकर कहता है कि  विवेचना सही नहीं हो रही है। बयान झूठे हैं, लिहाजा इसकी विवेचना फिरोजाबाद से करवा ली जाए। डीजीपी ने मामले की विवेचना फिरोजाबाद पुलिस के सिपुर्द कर दिया। फिरोजाबाद की आई.ओ. द्वारा विवेचना शुरू होती इससे पहले ही पीड़िता ने शपथ-पत्र देकर उपमन्यु को क्लीनचिट दे दी। कहा जा रहा है कि कमलकांत उपमन्यु ने ही मामले को रफा-दफा करने के उद्देश्य से पीड़िता को भारी-भरकम रकम दी थी। स्थानीय इलाके में चर्चा है कि उपमन्यु ने पीड़िता को डेढ़ करोड़ रूपए दिए हैं जबकि कुछ लोग एक करोड़ और 70 लाख तक की बात कर रहे हैं। पैसा मिलने के बाद पीड़िता से आई.ओ. ने एफीडेविट ले लिया कि कोई घटना नहीं हुई। और कुछ लोगों के बहकावे में आकर उसने मुकदमा लिखवा दिया था। और इस तरह से एफ.आर. लगाकर रिपोर्ट भेज दी गयी। एफ.आर. जब कोर्ट में आयी तो कोर्ट ने पीड़िता को नोटिस जारी किया।

कोर्ट में जब लड़की आयी तो उसने कोर्ट के समक्ष स्वीकार कर लिया। इसी बीच एक नया घटनाक्रम यह हुआ कि जिस दौरान 82 की प्रोसेस जारी हुई थी उसके बाद ही बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने यह कहते हुए कि मुल्जिम या उसके किसी भी परिजन के प्रार्थना-पत्र पर कोई भी विवेचना ट्रांसफर नहीं की जा सकती। इसके बाद ही हाईकोर्ट में एक पीआईएल दाखिल कर दी गयी। यह पीआईएल अभी-भी स्टैण्ड कर रही है। कमलकांत ने भी काउण्टर भेज दिया लेकिन स्टेट का काउण्टर अभी तक नहीं आया है। जाहिर सी बात है जब तक यह मामला चल रहा है कोई फाइनल रिपोर्ट स्वीकार नहीं हो सकती। विशेष बात यह है कि मजिस्ट्रेट के समक्ष 164 के बयान के बाद दूसरी अन्य चीजें उससे निचले स्तर की होती हैं। इस मामले में आई.ओ. की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

यदि आई.ओ. यह बताता कि जांच के दौरान यह घटना असत्य पायी गयी है तभी इस मामले को रफा-दफा किया जा सकता था लेकिन आई.ओ. की जांच शुरू भी नहीं हो पायी थी कि पैसों के बल पर पीड़िता से ऐफिडेविट लेकर एफ.आर. लगा दी गयी। सिर्फ ऐफिडेविट लेकर एफ.आर. लगा देने से साफ जाहिर है कि विवेचना दूषित थी। जबकि हाई कोर्ट ने इस सम्बन्ध में स्टेट गवर्नमेंट को कड़ा आदेश जारी किया था। और जब 82 के आदेश जारी हो चुके थे तो उसका जरूर कोई न कोई आधार होगा। लिहाजा विवेचना को शुरूआती दौर में दोषपूर्ण नहीं माना जा सकता। गौरतलब है कि पीआईएल बार एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री तोमर ने दाखिल की है। खास बात यह है कि डीजीपी के आदेश पर जिस दिन केस को दूसरे जनपद ट्रांसफर किया गया था उस वक्त तत्कालीन डीजीपी महोदय अस्पताल में भर्ती थे। हाल ही में एक स्थानीय समाचार पत्र ने भी छापा है कि इस पूरे मामले को निपटाने के लिए 30 लाख रूपयों का सौदा किया गया है। जाहिर है जिस दिन इस मामले पर निर्णय आयेगा, ऐतिहासिक निर्णय ही होगा। कई सफेदपोशों को अदालत में हाजिरी देनी पड़ सकती है।

भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में एक छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न का मामला प्रकाश में आया। पीड़ित युवती एम.बी.ए. की छात्रा है जबकि कथित बलात्कारी लोकतंत्र के स्वयंभू चतुर्थ स्तम्भ का एक तथाकथित जिम्मेदार पत्रकार है। इतना ही नहीं वह अधिवक्ता होने के साथ-साथ बृज प्रेस क्लब का अध्यक्ष भी है। स्थानीय छावनी परिषद का पूर्व उपाध्यक्ष होने के साथ ही बसपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुका है। आरोपी कमलकांत उपजा जैसे पत्रकार संघ का प्रदेश उपाध्यक्ष भी रह चुका है। हालांकि बलात्कार मामला सामने आने पर उसे उपजा से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है लेकिन स्थानीय निवासियों का कहना है कि उपजा के बडे़ पत्रकार आज भी कमलकांत से मिलने आते रहते हैं।

कहा जा रहा है कि क्लीनचिट मिलते ही उसे दोबारा उपजा का प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया जायेगा। चूंकि यह मामला हाई-प्रोफाइल पत्रकार द्वारा दुराचार से सम्बन्धित था लिहाजा स्थानीय पुलिस कई दिनों तक इस मामले को दबाए रही। एक कथित भ्रष्ट पत्रकार के खिलाफ पत्रकारों, अफसरों और नेताओं का दबाव पड़ा तो बलात्कार के आरोपी पत्रकार के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 944/14 (आईपीसी की धारा 376/506) के तहत दर्ज कर लिया गया। रिपोर्ट लिखाने के लिए प्रार्थना-पत्र 3 दिसम्बर 2014 को दिया गया था जबकि पुलिस की जी.डी. में यह घटना चार दिन बाद यानि 7 दिसम्बर 2014 को दर्ज की गयी और वह भी तब जब उच्च स्तर से आदेश आने के साथ ही मथुरा की कई स्कूली छात्राओं ने कथित बलात्कारी पत्रकार के खिलाफ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया। कथित बलात्कारी पत्रकार के खिलाफ स्थानीय मीडिया ने भी जमकर इस मामले को उठाया। स्थानीय प्रशासन को जब इस बात का आभास हो गया कि कमलकांत को वे जितना प्रभावशाली समझते थे, उतना वह नहीं है तो उसके खिलाफ कार्यवाही का सिलसिला चल पड़ा। इससे पहले कि स्थानीय पुलिस प्रशासन हरकत में आता, कमलकांत ने अपने कथित अपराधी साथियों की मदद से अधिवक्ता तकनीकि का इस्तेमाल किया। पीड़िता और उसके परिजनों को जान से मारने की धमकी देकर उसके माता-पिता से अपनी बेगुनाही कि शपथ-पत्र पर हस्ताक्षर करवा लिए। हालांकि बलात्कार का मामला दर्ज होने के बाद उपजा ने उसे उसके पद से हटा दिया है लेकिन बृज प्रेस क्लब के अध्यक्ष पद पर वह अभी तक विराजमान है।

एम.बी.ए. की छात्रा के साथ लगभग डेढ़ वर्षों तक जबरन यौन शोषण से जुडे़ इस मामले के खुलासे को लगभग एक वर्ष पूरे हो चुका है लेकिन मीडिया की छवि धूमिल करने वाले इस तथाकथित पत्रकार के खिलाफ ठोस कार्यवाही नहीं हो सकी है। कहा जा रहा है कि पीड़ित युवती की प्राथमिकी भी नहीं लिखी जाती यदि वह पुलिस के आला अधिकारियों, महिला आयोग (दिल्ली) समेत कुछ पत्रकारों को एस.एम.एस. भेजकर आत्मदाह की धमकी न देती। सरकार की छवि से जुडे़ इस मामले पर एस.एम.एस. ने अपना रंग दिखाया और शासन-प्रशासन हरकत में आया। जिस बाहुबली पत्रकार के खिलाफ स्थानीय पुलिस सुनना तक नहीं चाहती थी उसी पत्रकार के खिलाफ उच्च स्तर से आदेश आने के बाद बलात्कार और जान से मारने की धमकी देने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया। साथ ही जांच के आदेश भी पारित कर दिए गए। हालांकि कोर्ट में पीड़िता द्वारा ऐफिडेविट दिए जाने के बाद कमलकांत स्वयं को आरोपमुक्त समझ रहा है लेकिन बार एसोसिएशन के अध्यक्ष द्वारा दाखिल की गयी गयी पीआईएल कमलकांत के लिए मुसीबत बनी हुई है।

स्थानीय मीडिया और स्थानीय नागरिकों में चर्चा इस बात की हो रही है कि आखिर एक मामूली सा पत्रकार चंद समय में ही करोड़ों का आसामी कैसे बन गया। तथाकथित पत्रकार कमलकांत उपमन्यु के खिलाफ दर्ज हुआ यौन उत्पीड़न का मामला भले ही अभी पुलिस की जांच का मोहताज हो किंतु इस मामले से एक बात जरूर स्पष्ट हो जाती है कि कैसे किसी अखबार का एक मामूली सा संवाददाता देखते-देखते करोड़ों का आसामी बन जाता है, और कैसे पुलिस, प्रशासन, बड़े मीडियाकर्मी, व्यापारी, उद्योगपति, नेता एवं तथा कथित समाजसेवी न सिर्फ उसकी चाटुकारिता में दिन-रात एक कर देते हैं बल्कि एकतरफा हिमायत लेकर उसे बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर तक लगा देते हैं। यहां तक कि आईपीएस अधिकारी भी तथाकथित पत्रकार की पैरवी में लग जाते हैं।

यदि तत्कालीन एसएसपी मंजिल सैनी की बात करें तो उन्होंने भी मामले पर लीपा-पोती करने की गरज से पीड़ित परिवार के खिलाफ ही ऐसा मुकदमा दर्ज कर लिया जो सिरे से फर्जी प्रतीत होता था। उन्होंने पीड़िता के भाई पर एफआईआर दर्ज कराने के लिए तहरीर देने वाले नटवर नगर निवासी शिव कुमार शर्मा से यह तक पूछना जरूरी नहीं समझा कि कमलकांत उपमन्यु से उसका क्या सम्बन्ध है और क्यों वह अपनी तहरीर में इस बात का जिक्र कर रहा है कि उक्त लोग कमलकांत उपमन्यु के खिलाफ रेप की एफआईआर कराने का षड्यंत्र रच रहे हैं ? यदि मान लिया जाए कि कमलकांत उपमन्यु के खिलाफ दुराचार जैसे गंभीर मामले में एफआईआर दर्ज कराने की ऐसी कोई साजिश रची जा रही थी तो उससे कमलकांत उपमन्यु क्यों अनभिज्ञ थे और क्यों उन्होंने खुद इस बावत कोई प्रार्थना पत्र पुलिस को नहीं दिया ? और वो भी तब जबकि शिव कुमार शर्मा को उनके खिलाफ रची जा रही साजिश का पता लग चुका था। शिव कुमार शर्मा द्वारा दिए गये इस प्रार्थना पत्र पर एसएसपी ने 2 दिसंबर 2014 के दिन ही थानाध्यक्ष (हाईवे) को इस आशय के आदेश दे दिये थे कि वह जांच कर कार्यवाही करें, तो फिर एफआईआर तब क्यों दर्ज की गई जब कमलकांत उपमन्यु के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया जा चुका था ?

यहां एक सवाल और खड़ा होता है कि जब एसएसपी ने शिव कुमार शर्मा के प्रार्थना पत्र पर जांच के आदेश देकर कार्यवाही करने का लिखित आदेश दिया था और ऐसा ही आदेश कमलकांत उपमन्यु के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप संबंधी दिये गये प्रार्थना पत्र पर 3 दिसंबर 2014 को दिया गया था तो फिर दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कैसे कर ली गई। वो भी कई दिनों के अंतर से। यदि शिव कुमार शर्मा की तहरीर में लगाये गये आरोप सही थे तो कमलकांत उपमन्यु के खिलाफ यौन उत्पीड़न का केस कैसे दर्ज कर लिया गया ? और यदि कमलकांत उपमन्यु के ऊपर लगाये गये आरोप जांच के बाद सही पाये जाने पर एफआईआर दर्ज हुई है तो अब तक 164 में पीड़िता के बयान तथा उसका तत्काल मेडीकल क्यों नहीं कराया गया जिससे जांच आगे बढ़ सके।

इसके बावजूद तत्कालीन एसएसपी मंजिल सैनी द्वारा यह कहा जाना कि ‘पत्रकार पर यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के बाद आगे कार्यवाही की जायेगी’। गले नहीं उतरती। चर्चा तो यह है कि तत्कालीन एसएसपी ने एक तीर से दो शिकार किया है। एसएसपी से आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्यु की निकटता तो उसके द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर उनके साथ लगाये गये उन फोटोग्राफ से हो जाती है जिसमें एसएसपी उसके साथ उसके घर में पूजा करती दिखाई दे रही हैं। अब रहा सवाल मीडिया जगत का, जो पहले तो इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साधे बैठा रहा लेकिन कमलकांत उपमन्यु के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद जब एक स्थानीय अखबार ने खबर प्रकाशित की तो दूसरे अखबारों ने एक तरफा रिपोर्टिंग करके एक ओर जहां नैतिकता को पूरी तरह ताक पर रख दिया वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के उन आदेश-निर्देशों की खुली अवहेलना करनी शुरू कर दी जो यौन उत्पीड़न के केस में दिये हुए हैं। आगरा से प्रकाशित एक प्रमुख हिन्दी दैनिक अखबार ने तो यहां तक खबर प्रकाशित कर दी कि ‘‘क्रॉस केस में उपजा उपाध्यक्ष को फंसाने पर एसएसपी ने जताया रोष,’’।

इससे मीडिया और एसएसपी दोनों का मकसद साफ हो गया था। यह अखबार एक पक्षीय रिपोर्टिंग करने के चक्कर में यह तक भूल गया कि उसने इस तरह की खबर लिखकर पीड़िता सहित उसके पूरे परिवार की पहचान उजागर कर दी और इससे लड़की व उसके परिवार को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। साथ ही उसकी यह रिपोर्टिंग सर्वोच्च न्यायालय के आदेश-निर्देशों की अवहेलना तथा अवमानना की श्रेणी में आती है। मथुरा से प्रकाशित एक अन्य दैनिक समाचार-पत्र ने तो नैतिकता व पत्रकारिता के नियमों सहित कानून को भी धता बताते हुए ‘‘दूसरे पक्ष पर भी छेड़छाड़ व मारपीट के दो मुकद्दमे’’ शीर्षक से बॉक्स के अंदर एक खबर प्रकाशित कर दी। उसने तो पीड़ित लड़की के भाई को दूसरा पक्ष ही बता डाला। गौरतलब है कि यौन उत्पीड़न की शिकार किसी युवती अथवा महिला की पहचान सार्वजनिक नहीं की जा सकती और इसलिए खबर में उनके काल्पनिक नाम-पते लिखे जाते हैं, लेकिन इन अखबारों ने पीड़िता के भाई व पिता का नाम तथा पता लिखकर उसकी व उसके पूरे परिवार की पहचान उजागर कर दी। इस संबंध में पीड़िता के अधिवक्ता प्रदीप राजपूत कहते हैं कि वह पीड़िता और उसके परिवार की पहचान उजागर करने वाले अखबारों के संपादक, ब्यूरो प्रमुख एवं संवाददाताओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने जा रहे हैं। अखबारों की रिपोर्टिंग और पुलिस के रवैये से निश्चित तौर पर एक बात तो साफ हो जाती है कि यौन उत्पीड़न के आरोप में कमलकांत उपमन्यु के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो जाने के कारण पुलिस और मीडिया ही नहीं, शहर के कई उद्योगपति, व्यापारी, नेता और अन्य तमाम तथाकथित सभ्रांत तत्व अपनी-अपनी रोटी सेंकते रहे हैं। कोई उपमन्यु का हिमायती बनकर अपना मकसद पूरा करता रहा है तो कोई उसके विरोध में खड़ा होकर।

स्थानीय पत्रकारों के एक खेमे की मानें तो कमलकांत उपमन्यु को जीरो से हीरो बनाने में शहर के ऐसे ही तथाकथित सभ्रांत और विभिन्न व्यवसायों से जुड़े सफेदपोश माफियाओं का हाथ रहा है जिन्होंने उसे अपने लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल किया तथा उसकी कमजोरियों का फायदा उठाया। कुछ पत्रकारों की मानें तो यह मामला सिर्फ एक लड़की के यौन उत्पीड़न या कमलकांत उपमन्यु तक सीमित नहीं है, इसकी यदि निष्पक्ष जांच हो तो सफेदपोश अपराधियों का एक बहुत बड़ा रैकेट सामने आ सकता है। ऐसा रैकेट जिसमें पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर न्यायपालिका के दलाल और भूमाफिया व शिक्षा माफिया तक शामिल हैं। ऐसे-ऐसे लोग इस रैकेट का हिस्सा हैं जिन्होंने अपने ही परिवार की महिलाओं तक को नहीं छोड़ा और उन्हें अपने काम कराने का जरिया बना रखा है। यह सच्चाई चौंकाने वाली जरूर हो सकती है लेकिन इसमें सच्चाई का प्रतिशत काफी है। कमलकांत के सन्दर्भ में उसका पक्ष रखने वाले पत्रकार यह कहते नहीं थकते कि कमलकांत उपमन्यु की शोहरत व कम समय में अर्जित की गई दौलत को देखकर कुछ लोग उससे दुश्मनी रखते हैं और इसी दुश्मनी के चलते उसे निशाना बनाया गया है। कमलकांत की पैरवी करने वाले पत्रकारों ने इस बात का जवाब नहीं दिया कि आखिर इतने कम समय में कमलकांत करोड़ों का आसामी कैसे बन गया ? कमलकांत के पक्ष-विपक्ष के अलावा एक वर्ग ऐसा भी है जो जानना चाहता है कि बिना किसी बिजनेस के आखिर कमलकांत उपमन्यु करोड़ों का आसामी कैसे बन गया ? और उसकी आमदनी का जरिया क्या है ? कमलकांत मामले को लेकर स्थानीय मीडिया में अब यह सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि क्या वाकई में पत्रकारिता से इतनी दौलत कमाई जा सकती है, वो भी तब जबकि कोई किसी ऐसे अखबार का मात्र रिपोर्टर हो जिसकी जिले में सैंकड़ों प्रतियां भी सर्कुलेट न होती हों।

फिलहाल पीआईएल पर जब फैसला सामने आयेगा तो कमलकांत उपमन्यु और पीड़िता के भाई पर लगे आरोपों का सच देर-सबेर जरूर सामने आयेगा, लेकिन इस पूरे प्रकरण में कोई न कोई सूत्रधार ऐसा अवश्य है जिसका बेनकाब होना सबके हित में जरूरी है। जरूरी है ऐसे सफेदपोश लोगों का बेनकाब होना जो मीडिया को अपनी ढाल बनाकर अपना हित साधते आए हैं। यही लोग उन मीडिया कर्मियों को बचाने की भी कोशिशें करते हैं जो मीडिया का पेशा चुनने के बाद भी अपराध जगत से नाता नहीं तोड़ पाते। इन परिस्थितियों में यदि यह कहा जाए कि राजनीति की भांति मीडिया भी अपराधियों की शरणस्थली बनती जा रही है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।

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