इंसाफ अभियान उत्तर प्रदेश . . . आपसे मुखातिब
प्रिय दोस्त,
मुल्क की आजादी के समय हम सबने कुछ ख्वाब देखे थे। एक ऐसे देश का ख्वाब
जिसमें कोई दुखी न हो, कोई भूखा न हो। लेकिन इस ख्वाब यह आलम है कि पिछले
चालीस सालों में गेहूं का दाम सात गुना बढ़ा लेकिन सोना नब्बे गुना।
साबुन अस्सी गुना, नमक चालीस गुना और देश का हर इंसान पचास हजार रुपये का
कर्जदार है। जो मेहनत करता है, अनाज पैदा करता है वह आत्महत्या करने को
मजबूर है। सच है कि जितने ज्यादा लोग गरीब होंगे उतने ही कम लोगों का
खजाना बढ़ेगा। एक तरफ की गरीबी से दूसरी तरफ अमीरी पैदा होती है। इसीलिए
एक तरफ करोड़ों गरीब जनता है तो दूसरी तरफ मुट्ठी भर टाटा-बिरला,
अडानी-अंबानी। ये दो चार लोग सवा अरब लोगों की तकदीर तय करते हैं। गरीब
जनता को तन ढ़कने के लिए कपड़े, पेट भरने के लिए रोटी मयस्सर नहीं है तो
वहीं अंबानी जैसे लोगों के पास चार लाख स्क्वायर फिट के एंटीला जैसे महल
खड़े हैं। जिनके दरवाजों पर हमारे नेता हमारी बोली लगाने के लिए आपस में
धक्का मुक्की करते कतार में खड़ें हैं।
दुनिया का इतिहास गवाह है कि जिस मुल्क में इंसाफ नहीं होता वह मुल्क
बिखर जाता है। इंसाफ के बिना जनतंत्र कमजोर हो जाता हैं, एक आम शहरी बेबस
हो जाता है। उसकी बेबसी को कुछ नाम मात्र के अधिकारों या फिर थाना-कचहरी
में फांसकर आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया जाता है। खेती-किसानी में हो
रहे नुकसान से परेशान किसान जो आत्महत्या कर रहा है उसे अपने लोगों के
साथ सालों-साल की मुकदमेबाजी में इस तरह से जकड़ दिया गया है कि वह अपने
हक हुकूक के लिए एक साथ खड़ा तक न हो सके। पर ऐन चुनाव के समय जब उसको
अपने साथ हुई नाइंसाफी के खिलाफ वोट देने का अवसर मिलता है तो उसे
जाति-मजहब के खाके में बांटकर हिंदू-मुसलमान, ऊंची-नीची जाति का बना दिया
जाता है। सरकारें देश के भीतर और बाहर युद्ध जैसे हालात का डर दिखाकर
अपने वादों से मुकर जाती हैं।
देश का मजदूर-किसान जब एक फरियादी की हैसियत में हो, जाति और मजहब के नाम
पर हिंसा और भेदभाव हो, बेगुनाह जेलों में सड़ने को मजबूर हों, तब
हक-हुकूक की आवाज उठाने वालों पर हमला जम्हूरियत को खत्म करने की साजिश
है, जिसे हर तरफ होते हुए हम देख सकते हैं।
दोस्तों, इंसाफ का सवाल किसी के लिए अदालत का फरमान हो सकता है पर हमारे
लिए इंसाफ का मतलब है कमरतोड़ मेहनत करने वाले किसान-मजदूर को भरपेट
खाना, सबको कपड़े मुहैया कराने वाले बुनकर को कपड़ा, सबको छत देने वाले
कारीगर को मकान। मोमबत्ती और लैंपों की रोशनी में भविष्य को अपनी किताबों
में तलाशने वाले युवाओं को रोजगार।तकनीकी ज्ञान से लैस करने के नाम पर
सिर्फ लैपटॉप का लाली पॉप नहीं बल्कि उच्च तकनीकी से देश और देशवासियों
की उन्नति। बिजली-ईंधन और निर्माण के लिए विस्थापन नहीं बल्कि ऐसा प्रगति
का रास्ता जो किसी मुनाफाखोर कंपनी के विकास के लिए नहीं बल्कि देश की
जनता की प्रगति का आधार बन सके। सबको बेहतर शिक्षा मिले, देश की सुरक्षा
में लगाई गई फौजें लोगों का घर न उजाड़े, जमीन न छीनें, मासूम नौजवानों
को अपनी वर्दी पर लगने वाले स्टारों के खातिर मारें नहीं बल्कि मुल्क और
मुल्क के बाशिंदों की हिफाजत करें। महिला, दलित, आदिवासी, मुस्लिम और
अन्य अल्पसंख्यकों व वंचित समाज अपने बेदखली और नाइंसाफी के आकड़ों के
लिए न जाना जाए बल्कि अपनी प्रगति के लिए जाना जाए। अदालतें, पुलिस-थाने
और प्रशासन महिलाओं, अल्पसंख्यकों और दलितों-आदिवासियों के उत्पीड़न का
अड्डा न बनें बल्कि उनको सुरक्षा दें। गोदामों में सड़ रहे अनाज भूखों और
जरूरतमंदों को मिले। जाति-धर्म के नाम पर लोगों के साथ भेदभाव न हो सभी
अपने को बराबर का शहरी महसूस करें। इंसाफ, फुटपाथ पर भीख मांगने वाले से
शुरू होकर उच्च शिक्षण संस्थानों के छात्रों तक पंहुचे। इंसाफ का दायरा
जितना बड़ा होगा देश भी उतना ही मजबूत होगा।
मुल्क की सियासत धमकी, गोला-बारूद से नहीं बल्कि अपने हर शहरी से मोहब्बत
से पेश आने वाली हो। देश में शांति और सुरक्षा के नाम पर मजहबी आधार पर
भेदभाव न हो। सड़कों पर आप ‘कैमरे की नजर’ में न हों, पुलिस की हूटर लगी
गाडि़यों से आपको डराया धमकाया न जाए। मुल्क की नजर में आपकी अहमियत हो
और मुल्क आपके प्रति सम्मान और जवाबदेही की अपनी जिम्मेदारी को निभाए।
किसी भी लोकतांत्रिक देश का लक्ष्य यही होना चाहिए। हम इस लक्ष्य की
प्राप्ति की दिशा में आपके साथ कदम बढ़ाना चाहते हैं।
इंसाफ के बिना हम किसी बेहतर मुल्क की कल्पना नहीं कर सकते। हमें तय करना
होगा कि हम देश की आम जनता के पक्ष में हैं और इस बात को एक बड़े जन
अभियान से सरकारों को हमें बताना होगा। हमारे बढ़े हुए कदम में बढ़ती हुई
कदमों की भागदारी नए नेतृत्व और नए भारत का निर्माण करेगी।
आइए इंसाफ की इस मुहिम को गांवों-कस्बों से शुरू कर सामाजिक-राजनीतिक और
आर्थिक सवालों पर आपसी बातचीत से नए नेतृत्व की तलाश की जाए। इंसाफ की इस
मुहिम को आपके सुझावों, सहयोग और समर्थन की जरूरत है। हम आपसे गुजारिश
करते हैं कि आप हमारे नीचे दिए गए नंबर और पते पर सम्पर्क कर इसे और
मजबूत बनाएं।
मोबाइल- राजीव यादव 9452800752, दिनेश चैधरी 8953599201, लक्ष्मण प्रसाद
9455692969, तारिक शफीक 9935492703, आफाक 9389036966, सलीम बेग
9411269101, विनोद यादव 9453992309, सरफराज 9452287353, हरेराम मिश्र
7379393876, गुफरान सिद्दीकी 9335160542, अवधेश यादव 8543824977, अनिल
यादव 9454292339
110/46, हरिनाथ बनर्जी स्ट्रीट, नया गांव पूर्व, लाटूश रोड, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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आइए इंसाफ अभियान उत्तर प्रदेश से जुड़ें
प्रिय दोस्त,
आप हमें बताइये कि हम सब इंसाफ की लड़ाई कैसे लड़ें। आपको कहां इंसाफ
नहीं मिला है। किस मायने में आप यह समझते हैं कि आपके साथ नाइंसाफी हुई
है। हर घर में नाइंसाफी की घुसपैठ है। सरकारी लूट-हिंसा को जब विकास का
नाम दिया जा रहा है तो नांइसाफी तो होगी ही। नाइंसाफी के खिलाफ संघर्ष की
आवाज ‘इंसाफ’ की होगी। इंसाफ ही देश है और इन दोनों पर खतरा है। इसके
खिलाफ ‘इंसाफ मुहिम’ हम सबकी आवाज है। जनता के अधिकार व जनतंत्र में
उम्मीदों के लिए इस अभियान में आपकी भागीदारी व सुझाव इस मुहिम को मजबूती
देगा।
आपके सुझाव- -----------------------------
नाम- ---------------------------------
पता- ------------------------------------
मोबाइल नंबर- .................................
ईमेल- ---------------
हम आपके संपर्क में हैं-
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