-संजय तिवारी-
आज ही किसी से अभिनेता अरुण गोविल की चर्चा हो रही थी कि कैसे बी ग्रेड फिल्मों में काम करनेवाले अरुण गोविल हमारे युग में 'राम' के प्रतीक बन गये। रामायण को आधार बनाकर बहुत सारे धारावाहिक बने और बन रहे हैं लेकिन चेहरों की जो छवि रामायण ने प्रस्तुत की वह कोई और न कर सका। हर एक पात्र उसी चरित्र की पहचान बन गया जिसका उसने अभिनय किया था। अरुण गोविल, दीपिका चिखलिया, दारा सिंह और अरविन्द त्रिवेदी। लोगों के मन में इनकी छवि राम, सीता, हनुमान और रावण की ऐसी बसी कि फिर निकलने का नाम नहीं लिया।
एक मजेदार बात और है। इसे नियति कहे या फिर संयोग रामायण के बाद रामायण में काम करनेवाले हर कलाकार का फिल्मी कैरियर खत्म हो गया। जैसे ताजमहल बनाने के राजा ने कारीगरों के हाथ काट दिये थे वैसे ही नियति ने रामायण में काम करनेवालों का फिल्मी कैरियर भी वहीं खत्म करवा दिया। इसलिए अरुण गोविल आज भी राम हैं और अरविन्द त्रिवेदी रावण। अरुण गोविल ने थोड़ी कोशिश जरूर की लेकिन बात बनी नहीं। मानों राम के अलावा और किसी रूप में लोग उनको देखना ही नहीं चाहते थे।
आज यह सब क्यों लिख रहा हूं? अभी अभी फेसबुक पर ही पता चला आज अरुण गोविल का जन्मदिन है। सुबह मित्र से बातचीत में अनायास अरुण गोविल का जिक्र क्यों आ गया, अब इसको तो मैं भी नहीं समझ सकता। कुछ तो है जो हमारी बौद्धिक क्षमता और दायरे से बहुत दूर है। रामायण क्यों बना, अचानक से उसकी इतनी प्रसिद्धि कैसे हो गयी जबकि गांव में भी इक्के दुक्के घरों में ही टेलीवीजन होते थे। महज एक सीरियल के लिए सड़कों पर सन्नाटा क्यों पसर जाता था? पूरा गांव सब काम रोककर रामायण देखने क्यों दौड़ता था? क्या यह सब महज एक सीरियल का आकर्षण था? शायद नहीं। यह इससे अधिक कुछ था।
कुछ तो ऐसा हो रहा था जो हम नहीं कर रहे थे। भारतीय संस्कृति को परखने समझने और प्रचारित करने का यह प्रस्ताव राजीव गांधी की तरफ से मंडी हाउस पहुंचा था जिसके बाद आनन फानन में रामायण और महाभारत पर टीवी सीरियल बनाने का निर्णय किया गया था। रामायण के एपिसोड पहले तैयार हो गये इसलिए टीवी पर उनका प्रसारण भी पहले शुरू कर दिया गया। रामानंद सागर कोई सफल निर्माता निर्देशक नहीं थे लेकिन रामायण ने उन्हें सफलता के ऐसे शिखर पर पहुंचा दिया जहां अब शायद ही कोई पहुंच सके।
रामायण के आखिरी एपिसोड के आखिर में रामानंद सागर ने भी सही कहा था, उन्होंने कुछ नहीं किया। बस राम जी की कृपा से हो गया।
लेखक संजय तिवारी जाने माने वेब जर्नलिस्ट हैं. उनका यह लिखा उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है.
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