महाराष्ट का नंबर एक हिन्दी दैनिक लोकमत समाचार योग्य संपादकों की कमी के चलते गलतियों पुलंदा बनकर रह गया है. अखबार में रोजाना होने वाली भाषागत गलतियां कमजोर संपादकीय नेतृत्व
की ओर इशारा करती हैं. संभवता अखबार के मालिकान को योग्य संपादकों की कमी खल रही है. शायद इसीलिए अखबार के औरंगाबाद संस्करण में कई सालों से एक ही संपादक जमे हुए हैं. कुछ ऐसे ही हालातों प्रबंधन अब तक जलगांव, पुणे, कोल्हापुर और मप्र के छिंदवाड़ा संस्करणों में ताला लग चुका है. यही हालात रहे तो औरंगाबाद संस्करण में भी ताला लग जाएगा.
औरंगाबाद संस्करण में होने वाली भाषागत व सामाचार संबंधी अन्य गलतियां कमजोर संपादकीय नेतृत्व का उदाहरण है. गंभीर बात यह है कि औरंगाबाद में मालिकान की नाक के नीचे यह सारी गलतियां हो रहीं हैं और ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
कर्मचारी लगातार संपादक द्वारा थोपी जा रही नीतियों और कुछ चापलूस किस्म के कर्मचारियों से परेशान होकर नौकरी छोड़ने पर विवश हैं. हालात यहां तक बिगड़ चुके हैं कि नये कर्मचारी रखने के लिए प्रबंधन को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है.
विश्वसनीय बताते हैं कि औरंगाबाद के संपादक के एकाकी और तानाशाही रवैये से प्रशासन के कई अधिकारी भी खार खाए बैठे हैं. ऐसे में लोकमत समाचार के बुरे दिन आ गए हैं और इन हालातों को देख लोग यहॉ आने से कतरा रहे है. इन स्थितियों में प्रतिस्पर्धी अखबार के मजबूत होने के कयास हैं. डेस्क के लोगों को फील्ड में दौड़ने को कहा जा रहा है.
neetesh pandyare
pandayre123456@gmail.com
No comments:
Post a Comment