भूपेंद्र प्रतिबद्ध
यह किसी से छिपा नहीं है कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म फैसलाबाद में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उस पाकिस्तान में जहां के हुक्मरानों और दौलतमंदों ने इस महान इंकलाबी को पूरी तरह बिसार रखा है। साथ ही पूरे मुल्क में एक ऐसा माहौल बना रखा है कि आम मेहनतकश अवाम ऐसे आजादी के दीवाने को न याद करने लगे जिसने शोषक-उत्पीड़क व्यवस्था के बुनियादी उन्मूलन और मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचार पर आधारित समाजवादी-साम्यवादी व्यवस्था की स्थापना के लिए संघर्ष किया और भरपूर लिखा। यहां तक कि आधिकारिक तौर पर यह तक नहीं दर्ज है कि भगत सिंह की जन्मस्थली इसी मुल्क में है जो अविभाज्य भारत का अंग रही है।
बावजूद इसके, कल्पना कीजिए कि भगत सिंह अचानक एक रोज पाकिस्तान में प्रकट हो जाएं, तो होगा क्या। अरे भई, लोग अचकचा जाएंगे, हैरान हो जाएंगे, अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं करेंगे। पर ऐसा हुआ पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर। वहां के एक पूर्व शिक्षक, जो अब नाटककार-अभिनेता एवं पत्रकार हैं, ने पाकिस्तान की आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों से उपजे अनगिनत सवालों को इन्डेलिबल—भगत सिंह शीर्षक नाटक के जरिए उठाया। इस ‘अमिट भगत सिंह’ नाटक का मंचन राजधानी इस्लामाबाद में निजी तौर पर किया गया जिसे देखने के लिए 500 से ज्यादा लोग जमा हुए। इसमें महात्मा गांधी की भी भूमिका शामिल थी।
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भगत सिंह के विचारों पर आधारित किसी नाटक का मंचन इस उप-महाद़वीप के लिए विरली, अभूतपूर्व घटना थी। क्योंकि स्वतंत्रता की सालगिरह के अवसर पर किसी दूसरे यानी विदेशी यानी भारतीय का उल्लेख किया जाए, चर्चा हो, यह इस मुल्क में अकल्पनीय है। खास बात यह है कि इस नाटक का प्रचार-प्रसार सोशल मीडिया और एक दूसरे को बता-बातचीत के जरिए के जरिए किया गया। नाटक के निर्देशक जैनब दार ने मीडिया से बातचीत में कहा कि हमारी दिलचस्पी इसे वार्ता के जरिए प्रचारित करने की थी।
उन्होंने कहा कि नाटक का मंचन ओपन एयर थियेटर में किया गया क्योंकि द पाकिस्तान नेशनल काउंसिल ऑफ आट़र्स ने आखिरी वक्त पर अपना थियेटर देने से मना कर दिया। इस सरकारी संस्था की दलील थी कि नाटक की विषय वस्तु उसके रूल्स-रेगुलेशन्स के विरुद़ध है। जैनब बताते हैं कि बावजूद इन अड़चनों के नाटक का शानदार प्रदर्शन-मंचन हुआ और देखने वालों का हुजूम उमड़ आया था। दर्शकों में सबसे ज्यादा विश्वविद्यालयी छात्र थे। इस दौरान इंकलाब जिन्दाबाद और लाल सलाम के नारे भी लगे।
निर्देशक दार कहते हैं कि पाकिस्तानी आम तौर पर भगत सिंह को एक भारतीय के रूप में देखते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि भगत सिंह ऐसे हीरो हैं, ऐसे नायक हैं जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी। हम लोगों को इस तथ्य से अवगत कराना चाहते हैं कि भगत सिंह एक ऐसी शख्सियत थे जिनका गोरे हुक्मरानों की बदमाशियों के खिलाफ कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने सार्वजनिक तौर पर बचाव किया था। पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना ने शहीद-ए-आजम की तरफदारी की थी।
इस नाटक में बताया गया है कि पाकिस्तान की आज की पीढ़ी के लिए भगत सिंह का अर्थ क्या है, उनकी उपयोगिता क्या है। इसमें बताया गया है कि भगत का जन्म इसी मुल्क की सरजमीं पर हुआ था। जैनब दार के मुताबिक भगत सिंह के बारे में जब जानकारी लेने वे लाहौर गए तो वहां उन्हें आश्वस्त किया गया कि भगत सिंह की यादों को एक मेमोरियल के रूप में संजो कर रखा गया है। पर जब वे ब्रैडलॉफ हॉल गए, जहां भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी, तो पाया कि वह हॉल बदहाल-बरबाद हो गया है।
लाहौर में दार ने एक मुल्ला को सरेआम भगत सिंह को कािफर कहते-बताते हुए सुना। यही नहीं, नौजवानों को भगत सिंह को बॉलीवुड का हीरो कहते हुए सुना। मतलब यह कि पाकिस्तानी हुकूमत ने भगत सिंह की पहचान को इस कदर छुपा रखा है, या कहें कि नकाब पहना रखा है कि मानों भगत की एक झलक भी पा ली, भगत के बारे कुछ भी जान लिया तो हुकूमत पर पाकिस्तानी युवाओं का कहर बरप जाएगा। जैनब उस वक्त तो और हैरान हो गए जब भगत सिंह की भूमिका कर रहे युवक को भी नहीं पता था कि भगत सिंह का जन्म उसके पुश्तैनी स्थान पर ही हुआ था।
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब भगत सिंह को नाटक के जरिए लोकप्रिय बनाने की कोशिश हुई है। 2012 में पाकिस्तानी पंजाब की सरकार ने उस शादमान चौक का नाम भगत सिंह चौक कर दिया था जहां भगत सिंह एवं उनके साथियों को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। 2014 में भगत सिंह की जन्म स्थली फैसलाबाद के बंगा को भगत सिंह मेमोरियल एवं हेरीटेज साइट घोषित कर दिया गया। इस संदर्भ में यह जानना भी जरूरी है कि पाकिस्तान के स्कूली पाठ़य पुस्तकों में जिन्ना और गांधी के बारे में दर्ज है, लेकिन भगत सिंह का नामो निशान तक नहीं है।
भूपेंद्र प्रतिबद्ध
चंडीगढ़
मो: 9417556066
bhupendra1001@gmail.com
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