उत्तर प्रदेश में दलित-दलित का खेल खूब चल रहा है। प्रदेश में चौतरफा दलितों पर अत्याचार का रोना-रोया जा रहा है। हकीकत पर पर्दा डालकर हवा में तीर चलाये जा रहे हैं। दलितों का मसीहा बनने की होड़ में कई दल और नेता ताल ठोंक रहे हैं। किसको कितना फायदा होगा यह तो कोई नहीं जानता है,लेकिन ऐसा लगता है कि बसपा को दलित वोटों में सेंधमारी से बड़ा नुकसान हो सकता है। 2014 के आम चुनाव में दलितों का जो रूझान बीजेपी की तरफ देखा गया था, उसका सारा श्रेय मोदी को दिया गया था। लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता भी नहीं खुल पाया था। इसके बाद से अपने आप को दलित वोटों का लंबरदार समझने वाली मायावती बीजेपी और मोदी के ऊपर कुछ ज्यादा ही हमलावर हो गई हैं। देश के किसी भी कोने से दलितों के ऊपर अत्याचार की कोई घटना प्रकाश में आती है तो मायावती उसे तुरंत हाईजेक कर लेती है। चाहें गुजरात हो या बिहार अथवा देश का अन्य कोई हिस्सा, जहां कहीं से भी दलितों पर अत्याचार की खबर आती हैं, माया वहां पहुंच जाती हैं। राज्यसभा में किसी भी विषय पर चर्चा चल रही हो माया उसको दलितों पर अत्याचार की तरफ मोड़ देती हैं। माया ही नहीं कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत कुमार,जदयू नेता नीतिश कुमार,आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल,लालू यादव आदि नेताओं की भी नजरें दलित वोटरों पर लगी रही हैं। बीएसपी सुप्रीमो मायावती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लगातार ललकार रही हैं कि वह दलितों पर अत्याचार के मुद्दे पर सहानुभूति जताने की जगह दलितों पर अत्याचार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करें।
यह ऐसा मसला है जिस पर सभी दल बैकफुट पर नजर आते हैं, लेकिन अबकी से मोदी टीम इस मसले पर मायावती को ‘माइलेज‘ देने को तैयार नहीं हैं। माया के साथ कांग्रेसी भी दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर कदम ताल करते दिख जाते हैं। उधर, जिस मुखरता के साथ माया और कांग्रेस दलित उत्पीड़न के मुद्दे को हवा देने में लगे हैं, बीजेपी नेता भी उतनी मुखरता से दलितों पर अत्याचार की घटनाओं का प्रतिवाद कर रहे हैं। बीजेपी कतई यह नहीं चाहती है कि यूपी के चुनाव में दलित उत्पीड़न की घटनाएं विरोधियों के लिये सियासी हथियार बनें। मोदी का गोरक्षा के नाम पर तांडव करने वालों के खिलाफ सख्त बयान को इसी से जोड़कर देखा गया था। मोदी ही नहीं केन्द्रीय गृह मंत्री और यूपी की सियायत के दमदार ‘खिलाड़ी’ रह चुके राजनाथ सिंह के साथ पार्टी के अन्य नेता भी इस कोशिश में हैं कि किसी भी सूरत में बीजेपी और मोदी छवि दलित विरोधी न बने। इसीलिये राज्य में कहीं कोई दलित उत्पीड़न की घटना हो रही है तो इसके लिये बीजेपी या मोदी कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं,यह सवाल माया जैसे नेताओं से पूछा जा रहा है। राजनाथ सिंह विरोधियों से कह रहे हैं,’ दिल पर हाथ रखकर कहिये,क्या बढ़े हैं दलितों पर अत्याचार। पुराने आंकड़ों के द्वारा भी यह समझाया जा रहा है कि दलितों की इस स्थिति के लिये कांग्रेस का 55 वर्षो का शासन जिम्मेदार है। वहीं दलितों के उत्पीड़न के नाम पर मायावती के हो-हल्ले को कम करने के लिये बीएसपी से बगावत करने वाले स्वामी प्रयाद मौर्या को बीजेपी ने अपनी शरण में लेकर नया दांव चला है। स्वामी अपनी पूर्व बहनजी का चिट्ठा जनता के सामने खोलने में लगे हैं, मायावती दलित नहीं दौलत की बेटी हैं,जैसे बयान भी सियासी फिजाओं में गूंज रहे हैं।
दलितों को अपने पाले में खींचने के लिये बसपा-भाजपा के बीच चल रहे दंगल को उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार अपने हिसाब से हवा दे रही है।वह चाहती है ‘सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे।’ इसी लिये मायावती पर सीधा हमला बोलकर दलितों की नाराजगी मोल नहीं लेने की रणनीति के तहत सपा सुप्रीम कोर्ट के सहारे माया का इतिहास खंगाल रही है। बसपा राज में दलित महापुरूषों के बने स्मारकों में हुए भ्रष्टाचार को जगजाहिर करके दलितों के बीच यह मैसेज पहुंचाया जा रहा है कि मायावती ने जब दलित महापुरूषों को नहीं छोड़ा तो वह दलितों का क्या भला करेंगी। अखिलेश सरकार के लिये दलित वोट बैंक की सियासत का दरवाजा तब खुला जब सुप्रीम कोर्ट ने उससे पूछा कि बसपा राज में लखनऊ और नोयडा में दलित महापुरूषों के स्मारकों के कथित भ्रष्टाचार की जांच के मामलों में सरकार क्या कर रही है। पहले से ही मायावती को घेरने में लगी सपा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बसपा सुप्रीमों मायावती और महासचिच नसीमुद्दीन के खिलाफ खिलाफ जांच तेज कर दी गई है। जो स्मारक और पार्क जांच के दायरें में है उसमें अंबेड़कर सामाजिक परिवर्तन स्थल, काशी राम स्मारक स्थल, गौतम बौद्ध उपवन इको पार्क, नोएड़ा का अंबेड़कर पार्क शामिल है। सपा सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के उस सवाल के बाद यह जबाव आया था जिसमें कोर्ट ने अखिलेश सरकार से पूछा था कि उसने मायावती सरकार के 2007 से लेकर 2011 तक के कार्यकाल के दौरान तत्कालीन मंत्री नसीमद्द्ीन सिद्दीकी पर लोकायुक्त रिपोर्ट में लगे अरोपों की जांच के बारे में क्या किया है।
बहरहाल, लोकसभा और राज्यसभा में दलित उत्पीड़न पर चर्चा के बाद बसपा या अन्य दल मोदी सरकार से संतुष्ट हो जायेंगे, इस बात की संभावना काफी कम है। न ही इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा राज्य सरकारों को इन असामाजिक तत्वों के खिलाफ कड़ा से कड़ा कदम उठाने की सलाह का कोई ज्यादा असर पड़ेगा दी। कांटे से कांटा निकालने की जुगत में लगे भाजपा नेता और तमाम केंद्रीय मंत्री विपक्ष, खासतौर पर कांग्रेस पर दलितों पर उत्पीड़न के मुद्दे को राजनीतिक रंग देने का आरोप लगा रहे हैं। केन्द्रीय मंत्र वैंकेया नायडू का कहना सही है कि हम सबको अल्पकालिक फायदे के लिए घटनाओं को राजनैतिक रंग देने से बचना चाहिए। इससे अनुसूचित जाति, जनजाति और दलितों का भला नहीं होगा।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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