राजेश ज्वेल
अपनी मोबाइल सेवा जियो की धमाकेदार लॉन्चिंग के साथ रिलायंस प्रमुख मुकेश अम्बानी एक बार फिर सुर्खियों में हैं... देशभर के स्मार्ट मोबाइल फोन धारक इन दिनों जियो सिम कबाडऩे की जुगत में भिड़े हैं और तमाम रिलायंस डिजीटल स्टोर्स के बाहर कतारें लगी हैं। सालों से टेलीफोन और मोबाइल कम्पनियां उपभोक्ताओं को लूटती आ रही है। ऐसे में जियो के ऑफर काफी ललचाने वाले हैं। हालांकि मुकेश अम्बानी भी पक्के कारोबारी हैं और जियो के जरिए भी वे कोई समाजसेवा तो करने नहीं निकले हैं... मुनाफा जरूर कमाएंगे, लेकिन पूरे मार्केट पर कब्जा कर लेंगे। जानकारों ने अभी जो गणित-ज्ञान लगाकर बताया, उसके मुताबिक प्रति उपभोक्ता औसतन 180 रुपए की बिलिंग पर जियो घाटे की दुकान साबित नहीं होगा और मेरे हिसाब से तो 180 रुपए का औसत बिल बहुत अधिक नहीं है। अभी सामान्य रूप से ही मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल करने पर 1000-800 रुपए से कम का खर्चा नहीं आता।
खैर, जियो की सेवाएं और लागत कितनी रहेगी यह तो भविष्य में तय होगा, मगर इसमें कोई शक नहीं कि मुकेश अम्बानी मोबाइल सेवा के क्षेत्र में गेम चेन्जर के रूप में सामने आए हैं। यह भी सच है कि अम्बानी-अडानी की हम आए दिन आलोचना करते हैं और तमाम सरकारें इन्हें उपकृत भी करती आई हैं, लेकिन हमने सरकारी सेवाओं का हश्र इन 70 सालों में देखा है और निजी क्षेत्र के जरिए ही जनता को बेहतर सुख-सुविधाएं प्राप्त हो रही हैं। चाहे वह शिक्षा का मामला हो या स्वास्थ्य का अथवा परिवहन से लेकर संचार माध्यमों का। हमारा बीएसएनएल सबसे अधिक कवरेज एरिया को कवर करने के बावजूद आज तक बेहतर सेवाएं नहीं दे पाया। ऐसे में निजी कम्पनियों को मनमानी का मौका भरपूर मिलेगा। जियो की लॉन्चिंग के बाद मुकेश अम्बानी ने एक बड़ी मार्के की और अपील करने वाली बात कही कि काश मैं 30 साल का होता।
देश के इस सबसे अमीर व्यक्ति की यह बात प्रेरणादायक है। हमारे देश की अधिकांश आबादी अपना समय फिजूल ही काटती है और थोड़ा-सा मिलने पर संतोष भी कर लेती है। मगर बड़ा सोचो और बड़ा बनो जैसी बात कहने वाले अम्बानी को अपनी बढ़ती उम्र से इसलिए परेशानी है, क्योंकि उनके सामने सम्भावनाओं का अनंत आकाश खुला पड़ा है और अब दुनिया तेजी से बदल रही है। जो परिवर्तन पिछले 25-50 सालों में नहीं हुए, वह अब मात्र चंद महीनों और सालों में संभव हैं।
मुकेश अम्बानी को अच्छी तरह पता है कि वे अपने मौजूदा रसूख और पैसे का किस तरह बेहतर उपयोग इन आने वाले सालों में कर सकते हैं और तमाम क्षेत्र उनके लिए खुले पड़े हैं, जहां पर वे जनता को कई तरह की सेवाएं उपलब्ध करा सकते हैं। इसीलिए उनका कहना है कि काश वे 30 साल के होते, तो और अधिक ऊर्जा और ताकत से काम कर पाते और अपने तमाम सपनों को पूरा करने के लिए उन्हें लम्बा समय भी मिलता। मगर उम्र पर तो किसी का बस नहीं चलता और अम्बानी भी उससे परे नहीं हैं। मगर मुकेश अम्बानी की बात मुझे ना सिर्फ अपील की, बल्कि अपने साथ-साथ सभी के लिए प्रेरणादायी भी लगी कि हम छोटी-मोटी चीजों में संतुष्ट हो जाते हैं और एक आदमी देश का सबसे अमीर होने के बावजूद 24 घंटे काम करना चाहता है और अपनी उम्र को भी पीछे ले जाने की ख्वाहिश रखता है। इस बात के लिए तमाम आलोचनाओं से परे होकर मुकेश अम्बानी को सलाम... जियो अम्बानी!
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