अक्षय जैन
दुनिया में ता़कतवर तो हर कोई होना चाहता है, नंगा कोई नहीं होना चाहता। यह नियम अमरीका पर लागू नहीं होता। नंगा होने में और दूसरे को नंगा करने में अमरीका का मु़काबला दुनिया का कोई मुल़्क नहीं कर सकता। जो लोग हिंदुस्तान में तीसमारखां बनते हैं, अमरीका के एयरपोर्ट पर अपने कपड़े उतारने में एक मिनट की भी देर नहीं लगाते। य़कीन न हो, तो शाहरु़ख खान से पूछ लीजिये।
अमरीका दुनिया का मालिक है। मालिक के सामने नंगा होने में वैâसी शर्म? बंदे को खुद्दार होने का अधिकार नहीं होता। शाहरु़ख ़खान के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ, जब अमरीकी एयरपोर्ट पर उनके कपड़े उतरवाये गये और घंटों उनसे पूछताछ की गयी। इस तरह के यादगार अनुभवों से वे पहले भी कई बार गुजर चुके हैं। जिन लोगों के नाम के साथ ़खान शब्द जुड़ा होता है, अमरीका में उनके साथ ऐसा ही सलूक किया जाता है। शाहरु़ख खान हिंदुस्तान के तमाम सेक्युलर और तरक्कीपसंद बुद्धिजीवियों की दाद के ह़कदार हैं। न तो उन्होंने अपना नाम बदला और न ही अमरीका जाना छोड़ा। लगता है, अमरीका में जरूर बेश़कीमती ख़जाने छिपे हैं, जिनकी तलाश में हिंदुस्तान के सुपरहीरो अपनी जान जो़िखम में डाल कर निकल पड़ते हैं। यूं ही कोई अपने कपड़े नहीं उतरवाता।
शाहरु़ख खान इस खबर को कैसे लेंगे, इस बाबत मीडिया में कोई दिलचस्पी उजागर नहीं हुई हैं। वीरेंद्र सिंह उत्तरप्रदेश के भदोही से भाजपा के लोकसभा सांसद हैं। वीरेंद्रसिंह अक्सर संसद में अलग-अलग तरह की पगड़ी पहनकर आते हैं और गांवों से जुड़े मसले उठाते हैं। उनका राजनीतिक रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं माना जाता है, लेकिन वे खुद को किसान नेता महेंद्र सिंह टिवैâत की बिरासत का सिपाही बताते हैं। खेती पर व्याख्यान देने के लिए अमरीका ने उन्हें न्यौता दिया। यूएस एंबेसी में सिक्युरिटी चेकिंग के दौरान उनसे पगड़ी उतारने को कहा गया। वीरेंद्र सिंह ने अमरीकी वी़जा लेने से इनकार कर दिया। वीरेंद्र सिंह का कहना था कि पगड़ी उनके लिए स्वाभिमान की ची़ज है। देश के सम्मान का प्रतीक है।
जवाहरलाल नेहरू ने ‘भारत एक खोज’ पुस्तक लिखी और प्रधानमंत्री बनने के बाद देश को ब्रिटिश कानूनों और अंग्रे़जी शिक्षा के हवाले कर दिया। राजनीतिक विश्लेषकों की याददाश्ता कम़जोर नहीं हुई हो, तो उन्हें ते़ज-तर्रार समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस का किस्सा याद होगा। जार्ज साहब रक्षामंत्री की हैसियत से अमरीकी यात्रा पर गये थे और वहां एयरपोर्ट पर उनके कपड़े उतारकर तलाशी ली गयी थी। इस जातक कथा का सार यह है कि पिछले ७० सालों से राजनीति में स्वाभिमान, भारतीयता और देशप्रेम की खोज जारी है।
हिंदुस्तान को उन लोगों का एहसानमंद होना चाहिये, जिनके पास बेशुमार दौलत और शोहरत है। इन लोगों को हिंदुस्तान रहने लायक जगह नहीं लगती, लेकिन हिंदुस्तान इस वजह से नहीं छोड़ रहे हैं, क्योंकि यहां लूट की असीम संभावनाएं हैं। इनके बच्चे अमरीका और योरप में रह रहे हैं तथा दोयम दर्जे के नागरिकों की हैसियत से जिंदगी बसर कर रहे हैं। खाते-पीते मध्यम वर्ग के बच्चों की पहली पसंद अमरीका है। हिंदुस्तान के बेहतरीन आला डाक्टर, इंजीनियर और प्रोपेâशनल्स अमरीका में सस्ती म़जदूरी कर अमरीका को धनवान बना रहे हैं।
देशप्रेम का अप्रतिम नमूना चीन और जापान है, जहां की युवा पीढ़ी अपने देश में रहकर देश की समृद्धि में अभूतपूर्व योगदान दे रही है। इस गुलाम मानसिकता से मुक्त भारत की कल्पना आज के मौजूदा राजनीतिक परिवेश में संभव नहीं है। हमारी समूची व्यवस्था और जीवन-शैली की बागड़ोर अमरीका और योरप के हाथ में है। फर्क सिर्फ इतना है कि कोई अमरीका जाकर नंगा होता है और करोड़ों हिंदुस्तान दुस्तान इसलिये फटेहाल रहते हैं, क्योंकि बदल ढ़ंकने के लिए उनको कपड़ा नहीं मिलता। सर ढ़ंकने के लिए छत नहीं मिलती और भूखे पेट सोने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता।
अमरीका का शरीर पैसा है और आत्मा मुना़फा। पैसे के लिए खुद के कपड़े भी उतारने पड़े या किसी की जान लेनी पड़े, तो अमरीकियों को इससे कोई ऐतरा़ज नहीं है। दुनियाभर के मुसलमान अमरीका को अपना दुश्मन नंबर वन मानते हैं। फिर भी सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं, दुनिया के किसी भी मुल़्क का पढ़ा-लिखा नौजवान मुसलमान अमरीका जाने की जुगाड़ में लगा रहता है। अमरीका के पास दुनिया को देने के लिए क्या है? युद्ध, आर्थिक गुलामी, यौन विकृतियां, सेहत खराब करने के लिए पी़जा और पेप्सी, गरीब देशों के शासकों को रिश्वत में धन और सुंदरियां! नंगा होने का शौ़क हो, तो अमरीका जाइये!
लेखक जाने-माने कवि और व्यंग्यकार हैं तथा दाल-रोटी के संपादक हैं.
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