3.11.16

अखिलेश के बिना कैसे महागठबंधन बनाएंगे नेताजी ?

चरण सिंह राजपूत 

महागठबंधन के नेता बनने के बाद पीछे कदम खींचने वाले मुलायम सिंह यादव फिर से महागठबंधन की कवायद में लगे हैं। मौका है समाजवादी पार्टी के स्थापना दिवस का। लखनऊ में पांच नवम्बर को मनाने जा रहे स्थापना दिवस कार्यक्रम में मुलायम सिंह यादव ने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार, जदयू(एस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एचडी देवगौड़ा और राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजित सिंह के साथ ही पुराने समाजवादियों को कार्यक्रम का आमंत्रन भेजा है। नेताजी का कहना है कि उत्तर प्रदेश चुनाव में वह महागठबंधन बनाकर डॉ. राम मनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश और चौधरी चरण सिंह के अनुयायियों को एकजुट किया करेंगे। इस कवायद में मुलायम सिंह ने बाकायदा अपने अनुज और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव लगा भी दिया है। इतना ही नहीं शिवपाल यादव जदयू नेता के.सी त्यागी, शरद यादव समेत कई समाजवादी नेताओं से मिल भी चुके हैं। नेताजी के बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने की बातें भी सामने आ रही हैं। रिश्तेदारी निभाने के लिए लालू प्रसाद यादव इस कवायद में पूरी शिद्दत के साथ लग चुके हैं। कांग्रेस के चुनावी मैनेजर प्रशांत किशोर अमर सिंह के साथ मुलायम सिंह यादव से मिले हैं।


गौर करने वाली बात यह है कि इस महागठबंधन बनने की बात ऐसे समय में चल रही जब समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव परिवार दोनों में कोहराम मचा हुआ है। अखिलेश यादव ने अमर सिंह को बाहरी बताकर अपने पिता और चाचा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। पार्टी के थिंकटैंक कहे जाने वाले रामगोपाल यादव को पार्टी से निकाल दिया गया है। पार्टी में संगठन और सरकार में ठनी हुई है। अखिलेश यादव के फैसले शिवपाल यादव नहीं मान रहे हैं तो शिवपाल सिंह यादव के अखिलेश। इस महागठबंधन बनाने की कवायद भी समाजवादी पार्टी के मुखिया ही कर रहे हैं। यह कवायद कैसे सिरे चढ़ेगी यह समझ से बाहर है। एक ओर नेताजी की अगुआई में समाजवादी पार्टी 5 नवम्बर को स्थापना दिवस मना रही है तो दूसरी ओर अखिलेश यादव रथयात्रा निकाल रहे हैं। शिवपाल यादव व अमर सिंह कह रहे हैं कि रामगोपाल यादव के चलते बिहार में महागठबंधन नहीं बन सका और अखिलेश यादव रामगोपाल के साथ मिलकर आगामी रणनीति बनाने में मशगूल हैं। ऐसे में यह महागठबंधन कैसे परवान चढ़ेगा, यह तो समय ही बताएगा ?

इन सबके बीच प्रश्न उठता है कि यह महागठबंधन उत्तर प्रदेश में ही बना रहा है या फिर आम चुनाव के लिए भी। यदि आम चुनाव के लिए भी तो इसमें प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा ? अभी हाल ही में बिहार राजगीर में हुई जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तो तीसरे मोर्चे से नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तुत कर दिया है। तो क्या प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले बैठे नेताजी महागठबंधन में नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान लेंगे ?

बिहार चुनाव में मुलायम सिंह यादव के महागठबंधन के नेता से पीछे हटना क्या नीतीश कुमार भूल गए होंगे ? कल तक मुलायम सिंह कुनबे को गलियाने वाले अजित सिंह कैसे मुलायम सिंह के हो जाएंगे ? नेताजी अखिलेश के रुख पर बेहद नाराज हैं पर नीतीश कुमार ने उनके इस रुख की सराहना की है। ऐसे में ये लोग कैसे मिलेंगे ? वैसे भी उत्तर प्रदेश में जदयू व जदयू (एस) का कोई जनाधार नहीं। रही अजित सिंह की बात। मुजफ्फरनगर दंगे व उनकी सत्तालोलुपता के चलते उनका जनाधार लगातार खिसक रहा है। सपा के मुस्लिमों के मोह के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट भाजपा के पक्ष की बात करते देखे जा रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि उत्तर प्रदेश में महागठबंधन का चेहरा कौन होगा ? अखिलेश यादव महागठबंधन की कवायद में जुटे नेताओं से नाराज हैं और मुलायम सिंह अखिलेश यादव से। जदयू व रालोद ने पहले ही जयंत चौधरी को उत्तर प्रदेश का चेहरा घोषित कर दिया है।

दरअसल चुनाव के समय ही इस तरह से महागठबंधन की बात की जाती है और अपने-अपने स्वार्थ के चलते गठबंधन टूट जाता है। समाजवादियों का पहला महागठबंधन जेपी क्रांति के बाद सत्तर के दशक में हुआ। जनता पार्टी में समान विचारधारा वाले दलों का विलय हो गया था।  इनमें संघी भी शामिल थे। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलने पर मोरारजी देसाई की अगुआई में जनता पार्टी की सरकार बनी पर अजित सिंह के पिता और मुलायम सिंह यादव के गुरु रहे चौधरी चरण सिंह की प्रधानमंत्री की महात्माकांक्षा के चलते यह महागठबंधन टूट गया। जिन चरण सिंह ने अपने गृहमंत्रित्व काल में इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कराया, उन्हीं चरण सिंह ने जनता पार्टी को तोड़कर कांग्रेस की मदद से सरकार बना ली। वह बात दूसरी है कि बहुत जल्द कांग्रेस ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया तथा चरण सिंह इंदिरा गांधी का मुंह ताकते रह गए।

दूसरी बार महागठबंधन बना 80 के दशक में। जब राजीव गांधी सरकार में तत्कालीन रक्षामंत्री वीपी सिंह ने बोफोर्स का मुद्दा उठाया। समाजवादियों और संघियों ने वीपी सिंह के कंधे से कंधे मिलाकर राजीव गांधी सरकार के खिलाफ बिगुल फूंका। 1989 में जनता दल की सरकार बनने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने पर देश में भड़के आरक्षण विरोधी छात्र आंदोलन को हवा देकर भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर निर्माण का आंदोलन छेड़ दिया। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ मंदिर से लेकर अयोध्या तक रथयात्रा निकालनी शुरू कर दी। बिहार में रथ घुसते ही तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने आडवाणी की गिरफ्तारी करा दी। भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। वीपी सिंह के बाद चंद्रशेखर सिंह से तालमेल न बैठने की वजह से मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी बना ली। तीसरी बार महागठबंधन बना 90 के दशक में। एचडी देवगौड़ा की अगुवाई में तीसरे मोर्चे की सरकार बनी। मुलायम सिंह यादव को रक्षामंत्री पद पर संतोष करना पड़ा। इसी महागठबंधन में एचडी देवगौड़ा का हटाकर इंद्र कुमार गुजराल को प्रधानमंत्री बनाया गया।

चुनाव के समय गठबंधन बनते और बिगड़ते रहे हैं। गत 2014 के आम चुनाव से पहले भी महागठबंधन की कवायद चली थी पर गठबंधन बन सका। जिसका फायदा तत्कालीन प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने उठाया। तब उन्होंने नीतियों को लेकर लोहिया व जेपी के चेलों पर जमकर निशाना साधा था। इस महागठबंधन कवायद की विशेष बात यह है कि अब तक महागठबंधन आम चुनाव के बने हैं पर इस बार मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए तैयार कर रहे हैं। बिहार चुनाव में मुलायम सिंह यादव के अचानक पीछे हटने पर बेहद नाराज चल रहे नीतीश कुमार को मुलायम सिंह यादव कैसे मनाएंगे ? वैसे भी सभी समाजवादी नेता जानते हैं आजकल उनके सलाहकार अमर सिंह बने हुए हंै और अमर सिंह का नाम जोड़ने में कम तोड़ने में ज्यादा आता है। ऐसे में यह महागबंधन कैसे असली रूप लेगा यह तो समय ही बताएगा सभी दल यह चाहेंगे कि उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार का नाम प्रस्तुत किया जाए। क्योंकि नीतीश कुमार, एचडी देवगौड़ा व अजित सिंह यह भलीभांति जानते हैं कि उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद नेताजी अपने रंग में आ जाएंगे। साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी सामने लाना होगा। अखिलेश यादव के बारे में नेताजी पहले ही चुनाव परिणाम के बाद ही विधायकों के मुख्यमंत्री चुनने की बात कह चुके हैं।

इसमें दो राय नहीं कि अखिलेश यादव ने पार्टी में जो स्टैंड लिया है। उससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि उनके तेवर अब ढीले नहीं पड़ने वाले हैं। उन्होंने अपने रुख से दिखा दिया कि पार्टी की छवि और प्रदेश विकास के लिए वह किसी से भी टकराने के लिए तैयार हैं। उन्होंने ढान ली कि किसी के दबाव में अब वह कोई समझौता कर अपने छवि धूमिल नहीं होने देंगे। विचारधारा के मामले में पार्टी के मुखिया तथा उन्हें मुख्यमंत्री बनाने वाले अपने पिता मुलायम सिंह यादव की भी न सुनकर उन्होंने आगामी रणनीति को स्पष्ट कर दिया है।
   
चरण सिंह राजपूत
9958622975
charansraj12@gamil.com

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