3.11.16

चीन के विश्वविद्यालयों में बही ज्ञान की गंगा

हिंदी विभाग, मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय, मुंबई द्वारा एशियाई भाषा और साहित्य विभाग, क्वांग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, क्वांगचौ एवं शिंजन विश्वविद्यालय, शिंजन चीन में दि. 24 से 26 अक्टूबर तक मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान के प्रथम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, 2016 का आयोजन हुआ। सम्मेलन का विषय था- शिक्षा एवं शोध की नई दिशाएँ। इस ऐतिहासिक सम्मेलन का भव्य उद्घाटन दि. 24 अक्टूबर 2016 को क्वांगतोंग विश्वविद्यालय क्वांग्चौ, चीन में हुआ जिसकी अध्यक्षता की चीन में भारत के कौंसुल जनरल श्री वाए. के. सैलास थंगल ने।


श्री थंगल ने कहा कि भारत और चीन दोनों देशों की संस्कृति पाँच हज़ार वर्ष प्राचीन है। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए और पश्चिम के समक्ष एक आदर्श रखना चाहिए, न कि उसके पीछे भागना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि इस सम्मेलन से दोनों देशों के बीच शिक्षा और शोध के नए द्वार खुलेंगे, हमें अपने मूल्यों के अनुसार अपनी दिशाएं तय करनी होंगी। उन्होंने विश्वास जताया कि यह सम्मेलन एक दूसरे को जानने, समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।  

सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. शशिकला वंजारी ने अपने वक्तव्य में सम्मेलन के विषय की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए कहा कि दोनों देशों को शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग और आपसी संबंधों की नई दिशाएं तलाशनी होंगी। शिक्षा एवं शोध के क्षेत्र में नए-नए विषयों के अध्ययन को प्रोत्साहन देना होगा, और शिक्षा की महत्ता को ध्यान में रखते हुए आपसी साझेदारी, सहयोग और एकत्व की भावना को आगे बढ़ाना होगा।

क्वांग्तोंग विश्वविद्यालय की कला एवं संस्कृति संकाय की अधिष्ठाता प्रो. ल्यू यूयुआन ने सम्मेलन के सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस आयोजन से छात्रों में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के अध्ययन के प्रति ललक और बढ़ेगी। इस विश्वविद्यालय में तेरह (13) एशियाई भाषाएँ पढ़ाई जाती हैं। सन 2011-2012 से यहाँ श्रीहू रुई ने हिंदी विभाग की स्थापना की और इसके पहले वर्ष के सभी बीस स्नातकों को अच्छी नौकरियाँ मिली हैं। इस अवसर पर चीन में भारत के सांस्कृतिक कौंसुल श्री मनोज कुमार ने उपस्थित रहकर प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन किया।
 
इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की भारतीय निदेशिका और मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. हर्षदा राठोड़ ने एक चीनी कहावत के हवाले से कहा कि अंधेरे को कोसने से अच्छा है कि एक दीप जलाया जाए। उन्होंने शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण पर ज़ोर देते हुए कहा कि आज वैश्विक शिक्षा का दौर है। ज्ञान के द्वार सभी के लिए खुले हैं। आज की आवश्यकता है कि शिक्षा के ये अवसर हर विद्यार्थी तक समान रूप से पहुंचें।

इस सम्मेलन के चीन के निदेशक श्री हू रुई ने इस सम्मेलन के आयोजन के लिए नानावटी महाविद्यालय को धन्यवाद दिया और कहा कि भविष्य में भी इस तरह के आयोजन होते रहेंगे जो दोनों देशों और भाषाओं के मध्य एक सेतु का निर्माण करेंगे। सम्मेलन के चीन के प्रमुख आयोजक और क्वांग्तोंग विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर डॉ. गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ ने सभी अतिथियों का उत्तरीय, सम्मान-पत्र आदि से स्वागत किया और कहा कि भारत और चीन की दोस्ती बहुत प्राचीन है, इस सम्मेलन से यह और प्रगाढ़ होगी। सम्मेलन की कार्यकारी आयोजक और हिंदी की अध्यापक तिअन केपिंग ने बड़ी कुशलता से चीन और भारत के सभी प्रतिभागियों का ध्यान रखा।

इस सम्मेलन में भारत के जयपुर से प्रो. सुधीर सोनी, मुंबई से प्रो. शशिकला वंजारी, डॉ. हर्षदा राठोड़, डॉ. सिसीलिया चेट्टियार, डॉ. सेजल शाह, श्रीमती ट्विंकल संघवी, श्रीमती संवेदना रावत अमिताभ, डॉ. वत्सला शुक्ला, डॉ. रवींद्र कात्यायन, दिल्ली से श्रीमती रेनू बिडालिया, कुल्लू से डॉ. सूरत ठाकुर, बेंगलुरू से सुश्री प्रेरणा बिडालिया, तथा चीन से प्रो. हू रुई, श्रीमती तिअन केपिंग, प्रो. आबिद सियाल, प्रो. वु वुडांग, प्रो. ल्यू यूयुआन आदि विद्वानों ने प्रतिभागिता की। इसमें विभिन्न सत्रों में शिक्षा और शोध की नई दिशाओं से संबंधित बीस से अधिक गंभीर शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जो मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, स्त्री-अध्ययन, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, हिंदी साहित्य, गुजराती साहित्य, अंग़्रेज़ी साहित्य, उर्दू साहित्य, प्रबंधन, भाषाविज्ञान, चीनी साहित्य आदि पर केंद्रित थे।

दि. 26 अक्टूबर को इस सम्मेलन का समापन समारोह शिंजन विश्वविद्यालय, शिंजन के भारतीय अध्ययन केंद्र के खचाखच भरे सभागार में हुआ। शिंजन विश्वविद्यालय के भारतीय अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. यू लॉन्ग्यू ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह सम्मेलन भारत और चीन के विद्यार्थियों, अध्यापकों और लेखकों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. शशिकला वंजारी और मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. हर्षदा राठोड़ की  इस पहल का स्वागत किया और तीनों संस्थाओं के मध्य आपसी सहयोग, अध्यापक-विद्यार्थी आदान प्रदान, एम.ए. व पी-एच.डी. छात्र-छात्राओं के लिए भारत व चीन में संयुक्त अवसर एवं अन्य संभावित साझेदारी पर विचार विमर्श किया। उन्होंने दोनों देशों के मध्य शिक्षा और शोध के आदान-प्रदान हेतु समझौता ज्ञापन का प्रस्ताव भी रखा, जिस पर जल्द ही सकारात्मक निर्णय लिया जाएगा। समापन समारोह में चीन के विद्यार्थियों ने भारतीय साहित्य और संस्कृति से संबंधित बहुत से प्रश्न पूछे जिनका समुचित उत्तर दिया गया।  

इस सम्मेलन के भारतीय आयोजक और मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय मुंबई के हिंदी विभाग के अध्यक्ष रवींद्र कात्यायन ने सभी अतिथियों को धन्यवाद दिया और कहा कि इस सफल आयोजन से शिक्षा और साहित्य में सहयोग के नए द्वार खुले हैं और दोनों देशों में नई संभावनाएं विकसित हुई हैं। आज शिक्षा का जो अंतरराष्ट्रीय स्वरूप विकसित हुआ है उसमें इस तरह के सहयोग और सहभागिता की अनिवार्यता सिद्ध हो रही है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि भविष्य में इस तरह के अनेक आयोजन भारत और चीन में आयोजित होंगे।          

इस अवसर पर क्वांग्तोंग विश्वविद्यालय की हिंदी पत्रिका इंदु-संचेतना का विमोचन चीन में भारत के कौंसुल जनरल श्री वाए. के. सैलास थंगल ने किया। सम्मेलन में भारत के सांस्कृतिक कौंसुल श्री मनोज कुमार, क्वांग्तोंग विश्वविद्यालय के प्रो. हू रुई, तिअन केपिंग, प्रो. ल्यू यूयुआन, प्रोफेसर डॉ. गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ उपस्थित थे। समापन समारोह में शिंजन विश्वविद्यालय के श्री पेट्रिक, प्रो. यू लॉन्ग्यू, विलियम यून, डॉ. शू युआन, की फेंग के साथ-साथ सौ से अधिक छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। भारतीय दल का नेतृत्व प्रो. शशिकला वंजारी तथा डॉ. हर्षदा राठोड़ ने किया।

प्रस्तुति – रवींद्र कात्यायन

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